शैक्षणिक और आर्थिक यानी तालीम और आत्मनिर्भरता के मामले में हमारी आधी आबादी (मुस्लिम औरतों) की हालत किसी से छुपी नहीं है, जब भी इस मुद्दे पर विचार विमर्श होता है, अगर मगर किन्तु परन्तु और कुतर्कों की बाढ़ आ जाती है !
मुस्लिम समाज में औरतों की तालीम का प्रतिशत डरावना है, आंकड़ों को पेश न करते हुए यही बात सामने रखने की कोशिश है कि बदलाव आ तो रहा है मगर इस डरावने प्रतिशत को देखते हुए बहुत ही कम रफ़्तार है, शैक्षणिक और आर्थिक (आत्मनिर्भरता) के मोर्चे पर मुस्लिम औरतों को अभी और बड़ी जंग लड़नी है !
बेटियों को दीनी तालीम के साथ दुनियावी तालीम से आरास्ता करना ज़रूरी है, उन्हें शैक्षणिक मोर्चे पर इतना मज़बूत करना है कि वो आगे जाकर किसी भी विपरीत परिस्थितियों में उसका डटकर मुक़ाबला कर सके, तालीम होगी तो बेटियां आर्थिक आत्मनिर्भरता के मोर्चे पर भी मज़बूतो होंगी !
अपने इर्द गिर्द और समाज में सोशल मीडिया में जब इस बदलाव की आहट सुनता हूँ तो ख़ुशी होती है, ऐसी ही एक मिसाल नज़र आयी फेसबुक पर दोस्त बनी असम राज्य की रहने वाली बहन डॉक्टर नील बहार बेगम के तौर पर, जब वो कोटा शहर में मेडिकल कोचिंग ले रही अपनी बिटिया से मिलने आईं और मुझे मेसेज कर इसकी इत्तिला दी, जब उनसे मिला तो पता लगा कि एक मुस्लिम औरत का शिक्षित होना और आर्थिक मोर्चे पर आत्मनिर्भर होना कितना ज़रूर है !
डॉक्टर नील बहार बेगम सहित सात बहने हैं, बचपन से ही उनके वाल्दैन ने उन्हें पढ़ाने के लिए किसी तरह की कोई कमी नहीं रखी, खास तौर पर उनकी वालिदा ने अपनी सातों बेटियों को पढ़ाने के लिए हमेशा से हौंसला दिया, और इस मामले में सातों बेटियों ने उनकी उम्मीदें पूरी कीं, सातों बहनें ग्रेजुएट हैं !
डॉक्टर नील बहार बेगम एक वेटनरी डॉक्टर हैं, उनका खुद का क्लिनिक है और साथ में ही डेरी फार्म भी है, जिसे वो अपने वेटनरी डॉक्टर शौहर के साथ मिलकर संभालती हैं, मैं यहाँ उनका ज़िक्र इसलिए ख़ास तौर पर कर रहा हूँ कि उन्होंने इस साल चार पांच महीने जो जद्दो जहद की है वो किसी आम औरत के बस की बात नहीं, इस बुरे वक़्त में उनकी तालीम और आत्मनिर्भरता ही उनके काम आई !
नील बहार बेगम के शौहर का 19 मढ़ 2018 को दरभंगा में रात दो बजे भयंकर कार एक्सीडेंट हुआ था,जिसमें वो गंभीर रूप से घायल हो गए थे, कार ड्राइवर उन्हें घायल हालत में छोड़कर भाग गया था, वो कार में ही फंसे रहे, हाई वे के आस पास वाले लोगों ने उनके एक लाख से ज़्यादा रूपये लूट लिए, मोबाइल छीन लिए मगर मदद नहीं की !
असम से दरभंगा जाकर अपने शौहर को संभाला और वहां से उनकी अस्थाई चिकित्सा कराकर असम लेकर आईं, जहाँ उनके चार ऑपरेशन हुए, इसी दौरान उन्होंने हॉस्टल में रहकर पढाई कर रही अपनी छोटी बेटी को गौहाटी जाकर संभाला, कोटा आकर अपनी दूसरी बेटी के कोचिंग एडमिशन की मालूमात की, एक वक़्त ऐसा आया कि जिस वक़्त वो कोटा में अपनी बिटिया का एडमिशन करा रही थीं उस वक़्त उनके शौहर को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया रहा था !
कोटा (राजस्थान) में विमान सेवा नहीं होने की वजह से डॉक्टर नील बहार बेगम हवाई जहाज़ द्वारा आसाम से जयपुर आती हैं उसके बाद ट्रैन का सफर कर कोटा आती हैं, और अपनी बिटिया को संभाल कर उसी रुट से वापस अपने शहर जाती हैं !
दो बेटियों की मां डॉक्टर नील बहार बेगम के साथ फोटो में खड़ी हैं वो उनकी छोटी बहन जासमीन बहार हैं और सरकारी विभाग में शिक्षिका हैं, वो अपनी बहन के लिए एक हौंसला भी हैं, सात बहनों में पांच बहने जॉब में हैं, दो बहनें हाउस वाइफ हैं, डॉक्टर नील बहार बेगम के अलावा चारों बहने अध्यापन के क्षेत्र में हैं !
जब नील बहार बेगम के सामने आईं कठिन परिस्थितियाँ पर और उनके हौंसले पर नज़र डालते हैं तो समझ आता है कि इस बुरे वक़्त में उनकी तालीम और आत्मनिर्भरता ही काम आयी, जबकि इससे पहले वो कभी अकेले न बिहार गयीं थीं ना ही हवाई जहाज़ से सफर कर कोटा आईं थीं, इन पिछले चार महीने उन्होंने न सिर्फ अपने शौहर को संभाला बल्कि उन्हें बिहार से लेकर आसाम लेकर आईं, उनके चार ऑपरेशन कराये, अपना क्लिनिक संभाला, अपना डेरी फार्म संभाला, बच्चों की तालीम और एडमिशन वगैरह का काम संभाला, आर्थिक स्त्रोतों को जारी रखा, किसी तरह की आर्थिक परेशानी नहीं आने दी !
कहानी बहुत लम्बी हो चली है, निष्कर्ष यही है कि मुस्लिम महिलाएं अगर तालीम और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में आगे बढ़ती हैं तो वो मौक़ा आने पर किसी भी तरह की विपरीत परिस्थतियों को डटकर सामना कर सकती हैं, मर्दों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल सकती हैं !
डॉक्टर नील बहार बेगम के साथ बीती ये घटनाएं और उनका संघर्ष सही मायनों में Women Empowerment का जीता जागता उदाहरण है, और साथ में ये उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा है जिन्हे Women Empowerment के नाम पर उबकाइयां आती हैं, महिला सशक्तिकरण के नाम पर अंडर गारमेंट बेचती अधनंगी औरतें याद आती हैं या फिर नालियों में पड़े भ्रूण नज़र आते हैं या फिर सनी लेओनी याद आती है मगर उन्हें ये याद नहीं आता कि मशहूर मैगज़ीन Forbes ने 2016 में अपनी '13th annual World’s 100 Most Powerful Women' की लिस्ट जारी की थी उन 100 शक्तिशाली औरतों में 6 मुस्लिम औरतों ने अपनी बा-वक़ार मौजूदगी दर्ज कराई थी !
मैंने इस लेख का शीर्षक नील बहार बेगम के नाम पर "Women Empowerment की ख़िज़ाँ में 'बहार' हैं कुछ मिसालें !" ही दिया है, बहन डॉक्टर नील बहार बेगम के संघर्ष और हिम्मत को सलाम, दुआ करता हूँ कि उनकी बिटिया भी पढ़ लिख कर डॉक्टर बने, अपने वाल्दैन के सपने पूरे करे और मुश्किलों से डटकर मुक़ाबला करने वाली अपनी मां जैसी मिसाल बने !!
मुस्लिम समाज में औरतों की तालीम का प्रतिशत डरावना है, आंकड़ों को पेश न करते हुए यही बात सामने रखने की कोशिश है कि बदलाव आ तो रहा है मगर इस डरावने प्रतिशत को देखते हुए बहुत ही कम रफ़्तार है, शैक्षणिक और आर्थिक (आत्मनिर्भरता) के मोर्चे पर मुस्लिम औरतों को अभी और बड़ी जंग लड़नी है !
बेटियों को दीनी तालीम के साथ दुनियावी तालीम से आरास्ता करना ज़रूरी है, उन्हें शैक्षणिक मोर्चे पर इतना मज़बूत करना है कि वो आगे जाकर किसी भी विपरीत परिस्थितियों में उसका डटकर मुक़ाबला कर सके, तालीम होगी तो बेटियां आर्थिक आत्मनिर्भरता के मोर्चे पर भी मज़बूतो होंगी !
अपने इर्द गिर्द और समाज में सोशल मीडिया में जब इस बदलाव की आहट सुनता हूँ तो ख़ुशी होती है, ऐसी ही एक मिसाल नज़र आयी फेसबुक पर दोस्त बनी असम राज्य की रहने वाली बहन डॉक्टर नील बहार बेगम के तौर पर, जब वो कोटा शहर में मेडिकल कोचिंग ले रही अपनी बिटिया से मिलने आईं और मुझे मेसेज कर इसकी इत्तिला दी, जब उनसे मिला तो पता लगा कि एक मुस्लिम औरत का शिक्षित होना और आर्थिक मोर्चे पर आत्मनिर्भर होना कितना ज़रूर है !
डॉक्टर नील बहार बेगम सहित सात बहने हैं, बचपन से ही उनके वाल्दैन ने उन्हें पढ़ाने के लिए किसी तरह की कोई कमी नहीं रखी, खास तौर पर उनकी वालिदा ने अपनी सातों बेटियों को पढ़ाने के लिए हमेशा से हौंसला दिया, और इस मामले में सातों बेटियों ने उनकी उम्मीदें पूरी कीं, सातों बहनें ग्रेजुएट हैं !
डॉक्टर नील बहार बेगम एक वेटनरी डॉक्टर हैं, उनका खुद का क्लिनिक है और साथ में ही डेरी फार्म भी है, जिसे वो अपने वेटनरी डॉक्टर शौहर के साथ मिलकर संभालती हैं, मैं यहाँ उनका ज़िक्र इसलिए ख़ास तौर पर कर रहा हूँ कि उन्होंने इस साल चार पांच महीने जो जद्दो जहद की है वो किसी आम औरत के बस की बात नहीं, इस बुरे वक़्त में उनकी तालीम और आत्मनिर्भरता ही उनके काम आई !
नील बहार बेगम के शौहर का 19 मढ़ 2018 को दरभंगा में रात दो बजे भयंकर कार एक्सीडेंट हुआ था,जिसमें वो गंभीर रूप से घायल हो गए थे, कार ड्राइवर उन्हें घायल हालत में छोड़कर भाग गया था, वो कार में ही फंसे रहे, हाई वे के आस पास वाले लोगों ने उनके एक लाख से ज़्यादा रूपये लूट लिए, मोबाइल छीन लिए मगर मदद नहीं की !
असम से दरभंगा जाकर अपने शौहर को संभाला और वहां से उनकी अस्थाई चिकित्सा कराकर असम लेकर आईं, जहाँ उनके चार ऑपरेशन हुए, इसी दौरान उन्होंने हॉस्टल में रहकर पढाई कर रही अपनी छोटी बेटी को गौहाटी जाकर संभाला, कोटा आकर अपनी दूसरी बेटी के कोचिंग एडमिशन की मालूमात की, एक वक़्त ऐसा आया कि जिस वक़्त वो कोटा में अपनी बिटिया का एडमिशन करा रही थीं उस वक़्त उनके शौहर को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया रहा था !
कोटा (राजस्थान) में विमान सेवा नहीं होने की वजह से डॉक्टर नील बहार बेगम हवाई जहाज़ द्वारा आसाम से जयपुर आती हैं उसके बाद ट्रैन का सफर कर कोटा आती हैं, और अपनी बिटिया को संभाल कर उसी रुट से वापस अपने शहर जाती हैं !
दो बेटियों की मां डॉक्टर नील बहार बेगम के साथ फोटो में खड़ी हैं वो उनकी छोटी बहन जासमीन बहार हैं और सरकारी विभाग में शिक्षिका हैं, वो अपनी बहन के लिए एक हौंसला भी हैं, सात बहनों में पांच बहने जॉब में हैं, दो बहनें हाउस वाइफ हैं, डॉक्टर नील बहार बेगम के अलावा चारों बहने अध्यापन के क्षेत्र में हैं !
जब नील बहार बेगम के सामने आईं कठिन परिस्थितियाँ पर और उनके हौंसले पर नज़र डालते हैं तो समझ आता है कि इस बुरे वक़्त में उनकी तालीम और आत्मनिर्भरता ही काम आयी, जबकि इससे पहले वो कभी अकेले न बिहार गयीं थीं ना ही हवाई जहाज़ से सफर कर कोटा आईं थीं, इन पिछले चार महीने उन्होंने न सिर्फ अपने शौहर को संभाला बल्कि उन्हें बिहार से लेकर आसाम लेकर आईं, उनके चार ऑपरेशन कराये, अपना क्लिनिक संभाला, अपना डेरी फार्म संभाला, बच्चों की तालीम और एडमिशन वगैरह का काम संभाला, आर्थिक स्त्रोतों को जारी रखा, किसी तरह की आर्थिक परेशानी नहीं आने दी !
कहानी बहुत लम्बी हो चली है, निष्कर्ष यही है कि मुस्लिम महिलाएं अगर तालीम और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में आगे बढ़ती हैं तो वो मौक़ा आने पर किसी भी तरह की विपरीत परिस्थतियों को डटकर सामना कर सकती हैं, मर्दों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल सकती हैं !
डॉक्टर नील बहार बेगम के साथ बीती ये घटनाएं और उनका संघर्ष सही मायनों में Women Empowerment का जीता जागता उदाहरण है, और साथ में ये उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा है जिन्हे Women Empowerment के नाम पर उबकाइयां आती हैं, महिला सशक्तिकरण के नाम पर अंडर गारमेंट बेचती अधनंगी औरतें याद आती हैं या फिर नालियों में पड़े भ्रूण नज़र आते हैं या फिर सनी लेओनी याद आती है मगर उन्हें ये याद नहीं आता कि मशहूर मैगज़ीन Forbes ने 2016 में अपनी '13th annual World’s 100 Most Powerful Women' की लिस्ट जारी की थी उन 100 शक्तिशाली औरतों में 6 मुस्लिम औरतों ने अपनी बा-वक़ार मौजूदगी दर्ज कराई थी !
मैंने इस लेख का शीर्षक नील बहार बेगम के नाम पर "Women Empowerment की ख़िज़ाँ में 'बहार' हैं कुछ मिसालें !" ही दिया है, बहन डॉक्टर नील बहार बेगम के संघर्ष और हिम्मत को सलाम, दुआ करता हूँ कि उनकी बिटिया भी पढ़ लिख कर डॉक्टर बने, अपने वाल्दैन के सपने पूरे करे और मुश्किलों से डटकर मुक़ाबला करने वाली अपनी मां जैसी मिसाल बने !!