शनिवार, 23 जनवरी 2016

जानिये ईधी फाउंडेशन और उसके संस्थापक अब्दुल सत्तार ईधी के बारे में !!

गीता की भारत वापसी के बाद एक नाम उभर कर सामने आया है, वो है ईधी फाउंडेशन और उसके संस्थापक
अब्दुल सत्तार ईधी साहब का, गीता उसका असली नाम नहीं है. ईधी फाउंडेशन के संस्थापक अब्दुल सत्तार ईधी की पत्नी बिलक़ीस ईधी ने ही उनका नाम गीता रखा था !
पाकिस्तान में एक 'भारतीय' लोगों के घावों पर मरहम लगाता है। जब भी कहीं आतंकवादी हमला होता है या कोई आपदा आती है, सबसे पहले उसके एम्बुलेंस मौके पर पहुंचकर लोगों की मदद करते हैं। ये हैं 83 वर्षीय अब्दुल सत्तार एधी।
मौलाना एधी का जन्म 28 फ़रवरी 1928 को भारत के गुजरात राज्य के बनतवा शहर में पैदा हुए थे। उनके पिता कपड़े के व्यापारी थे। वह जन्मजात लीडर थे और शुरू से ही अपने दोस्तों की छोटे-छोटे काम और खेल-तमाशे करने पर होसला अफ़ज़ाई करते थे। जब अनकी मां उनको स्कूल जाते समय दो पैसे देतीं थी तो वह उन में से एक पैसा खर्च कर लेते थे और एक पैसा किसी अन्य जरूरतमम्द को दे देते थे।
सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद उनका परिवार भारत से पाकिस्तान आया और कराची में बस गया। 1951 में आपने अपनी जमा पूंजी से एक छोटी सी दुकान ख़रीदी और उसी दुकान में आपने एक डाक्टर की मदद से छोटी सी डिस्पेंसरी खोली।
एधी के इस असाधारण योगदान को देखते हुए ही उन्हें 16वीं बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है। यह अलग बात है कि उन्हें अब तक पुरस्कार नहीं मिला। लेकिन उनके सचिव अनवर काजमी के अनुसार उन्हें कभी इसका मलाल नहीं रहा।
इस काम में जुटे उनके संगठन 'एधी फाउंडेशन' की शाखाएं 13 देशों में हैं। जहां तक पाकिस्तान की बात है तो वहां की सरकार एधी की सेवाओं पर बहुत हद तक निर्भर है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने 28 नवम्बर को उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया। एधी भारतीयों को भी अपने काम से सम्बंधित प्रशिक्षण देने के लिए तैयार हैं।
कराची से ‘आईएएनएस’ से फोन पर बातचीत में ईदी ने कहा, "मैं भारत से हूं और भारतीयों को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार हूं।"एधी का जन्म गुजरात में हुआ था।
उन्होंने कहा कि मुम्बई के लोगों के एक समूह ने काम शुरू करने के लिए उनके संगठन से सम्पर्क किया। एधी ने यह भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने उनसे भारत आने और यहां काम करने के लिए कहा था।
उन्होंने कहा, "हम इस वक्त 13 देशों में सेवाएं दे रहे हैं। हमारे पास 1,800 एम्बुलेंस हैं और देशभर में हमारे 450 केंद्र हैं।"
घटनास्थल पर जल्द से जल्द पहुंचने के लिए एधी फाउंडेशन के पास हवाई सेवा भी है। उन्होंने कहा, "हमारे पास तीन विमान और हेलीकॉप्टर हैं। हम एक नया हेलीकॉप्टर लेने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि मौजूदा हेलीकॉप्टर पुराना हो गया है।"
एधी फाउंडेशन ने अब तक 40,000 नर्सों को प्रशिक्षण दिया है। 20,000 परित्यक्त बच्चों को बचाया गया, जबकि करीब 10 लाख बच्चों का जन्म एधी के मातृत्व केंद्रों में हुआ।
अब्दुल सत्तार ईधी साहब को मिले सम्मान और पुरस्कार :-
१९९७ इदी फाउन्डेशन, गिनीज बुक में
1988 लेनिन शान्ति पुरस्कार
1986 रमन मैगसेसे पुरस्कार
1992 पाल हैरिस फेलो रोटरी इन्टरनेशनल फाउन्डेशन (Paul Harris Fellow Rotary International Foundation)
2000ء अन्तर्राष्ट्रीय बालजन पुरस्कार (International Balzan Priz
26 मार्च 2005 आजीवन उपलब्धि पुरस्कार (Life Time Achievement Award)

देश की युवा पीढ़ी और भारत की विरासत !!

देश की राजनीति में सक्रीय भूमिका निभाने में युवाओं का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है, हर साल करोड़ों नए मतदाता पंजीकृत होते हैं, मगर ये युवा पीढ़ी जिसने आँख खुलते ही स्मार्ट फोन देखे, फेसबुक ट्वीटर देखे, राहुल गांधी, मोदी, केजरीवाल, अमित शाह देखे, सचिन देखे, पीढ़ी के भारत की आज़ादी के इतिहास से अनजान हैं !

इस पीढ़ी के अधिकांश लोग उस संघर्ष से अनजान है जिसके लिए शहीदों ने अपनी जान न्योछावर की ! इस पीढ़ी के लिए राष्ट्रवाद, सेकुलरिज्म, साम्प्रदायिकता की अलग अलग साईबर परिभाषाएं हैं !
इनके हीरो अलग हैं, इनकी प्रेरणाएँ अलग हैं !

फास्ट फ़ूड युग का यह युवा 15 अगस्त, 26 जनवरी पर झट से सोशल मीडिया में अपनी DP पर तिरंगा लहरा कर खुश हो जाता है, इससे आसान युक्ति भला और कहाँ हो सकती है !

यह गांधी, सुभाष, भगत सिंह के बारे में उतना नहीं जानते जितना कि मोदी, राहुल या केजरीवाल के बारे में जानते हैं ! यह पीढ़ी सचिन के बारे में जितना जानती है, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बारे में उतना नहीं जानती !

यह सनी लेओनी को भी उतना ही सर्च करती है जितना मोदी, राहुल या केजरीवाल को, इसे भले ही राष्ट्रगान पूरा नहीं आता हो, मगर हनी सिंह के रैप सॉन्ग पूरे याद हैं !

इन्हें मुंशी प्रेम चन्द के बारे में उतना नहीं पता जितना चेतन भगत के बारे में पता है, इन्हे हमीद के चिमटे की कहानी, बूढी काकी की कहानी नहीं मालूम मगर हाफ गर्ल फ्रेंड की पूरी कहानी पता होगी !

आज के राजनैतिक दल विशेषकर इस पीढ़ी को ही टारगेट कर अपनी चुनावी रणनीति तय करते हैं, कई बार फिल्म इंडस्ट्री इस पीढ़ी को ही नज़र में रख कर फ़िल्में बनाती है, और सुपर हिट करा लेती है !

यह पीढ़ी अगर ठान ले तो किसी भी आंदोलन को सफल बना सकती है, किसी भी राजनैतिक दल की विचारधारा को जिता सकती है, और धूल भी चटा सकती है !

यह पीढ़ी जब भारत की राजनीति की दिशा और दशा बदलने के लिए अपनी राजनैतिक समझ को काम में लेगी तो स्पष्ट है कि उसका क्या परिणाम होगा !

मगर एक बात इस पीढ़ी की जो बहुत ही सकारात्मक है, वो यह है कि इसी पीढ़ी के कन्धों पर भावी उज्जवल भारत के निर्माण की ज़िम्मेदारी भी है, जिसे यह पीढ़ी ईमानदारी से निभा रही है, ये पीढ़ी अपने सुनहरे भविष्य के लिए कठिन परिश्रम करती नज़र आती है !


इस पीढ़ी को देश की राजनैतिक, सामाजिक, पारिवारिक और धर्म निरपेक्ष विरासत से जोड़ने और परिचित कराने के लिए सभी राजनैतिक दलों, बुद्धि जीवियों को हर संभव कोशिश करनी चाहिए, कारण कि यही पीढ़ी देश के भावी नागरिक,भविष्य के नेता, उद्द्योग्पति, वैज्ञानिक, इंजीनियर्स, साहित्यकार होंगे, यदि यह भारत की विरासत को साथ लेकर आगे जायेंगे तो यह भावी भारत के निर्माण के लिए बहुत ही सकारात्मक बात होगी !!

सोशल मीडिया पर हम सबकी एक ज़िम्मेदारी यह भी है !!

सोशल मीडिया अब लोगों के लिए अनजान नहीं रहा, दिन प्रतिदिन यहाँ हज़ारों नए लोग जुड़ते हैं, और यही सोशल मीडिया कई बार जाने अनजाने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का हथियार भी बन जाता है, कई ऐसे नौजवान फेसबुक और ट्वीटर पर नज़र रख कर पकडे गए हैं, जो किसी लालच या बहकावे में आकर गलत ताक़तों के हाथों की कठपुतली बन गए थे !

वो यह नहीं सोचते कि सोशल मीडिया पर उनकी इस गतिविधियों से क्या हासिल होने वाला है ? फेसबुक पर ऐसे कई ग्रुप्स भी हैं...जो कि मुसलमानो के नाम से कोई और ताक़ते आपरेट कर रही हैं, बिना सोचे समझे इनके जाल में फंसने वाले नौजवान खुद अपने लिए ही आफत का सामान इकठ्ठा कर रहे हैं !
ऐसी पोस्ट और लोगों से बचें, समझाएं, ना माने और फ्रेंड लिस्ट में हों तो फ़ौरन ही अन्फ्रेंड करें, खासकर फेसबुक पर बनाये गए हज़ारों ऐसे सीक्रेट ग्रुप्स से होशियार रहें, यही बात Whatsapp पर भी लागू होती है, जहाँ जाने अनजाने भड़काऊ या राष्ट्रविरोधी पोस्ट या शेयर होती है !

कई लोग जाने अनजाने में ऐसी हरकतों में संलिप्त हो जाते हैं, जिनका प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना देना नहीं होता, मगर जब धर पकड़ होती है तो यही पोस्ट्स और किया धरा सबूत के तौर पर उनके विरुद्ध काम में लिया जाता है !

ऐसे में सभी मुस्लिम युवाओं से यही अपील कर सकते हैं कि ऐसी किसी भी प्रकार की देश विरोधी गतिविधि पर निगाह रखें, कभी किसी के उकसावे या बहकावे में नहीं आयें, कभी किसी प्रकार की लालच में नहीं आयें, संदेहास्पद लोगों से दूरी बनाये रखें, ख़ास तौर पर इंटरनेट पर ऐसे अजनबी लोगों से सावधान रहें, जो मुसलमान के रूप में आपको गुमराह करना चाहे हों, उग्र विचार वालों से होशियार रहें, कभी तैश में नहीं आयें, किसी भी मुद्दे या घटना पर आक्रोशित कभी ना हों, विरोध करें तो लोकतांत्रिक तरीक़े से और क़ानूनी मर्यादा में रहते हुए करें !



आज के दौर में क़ौम के नौजवानो की हर जगह होशमंद मौजूदगी ज़रूरी हो गयी है ..ताकि आने वाले नए युवा उनसे कुछ सीख ले सकें ...इस देश, क़ौम और समाज की बेहतरी और अम्नो अमान में आपका हमारा सबका योगदान ज़रूरी है और हमारा फ़र्ज़ बनता है कि अपने आस पास होने वाली ऐसी गतिविधियों और संदिग्ध लोगों से होशियार रहें, आपके लिए सर्वोपरि आपका देश है....वही काम करें जिससे आपके परिवार, समाज, अपने देश और क़ौम की भलाई हो !!

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

सोशल मीडिया पर हम अपने म'आशरे का आईना भी हैं !!

अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बने सोशल मीडिया पर आये दिन लोगों की उपस्थिति बढ़ रही है, हर धर्म, सोच, समाज और विचारधारा के लोग यहाँ अपने विचारों और बहस से अपने मत व्यक्त करते नज़र आते हैं !

आप यहाँ कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष रूप से अपने समाज और धर्म का आईना भी होते हैं, आपकी पोस्ट, आपकी शेयरिंग, आपके विचार आपकी टिप्पणियां, आपकी प्रतिक्रिया यहाँ आपके धर्म समाज के सिद्धांतों को भी प्रतिध्वनित करती हैं !

यह बात सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं बल्कि ऑफलाइन भी लागू होती है, आप अपने मोहल्ले में अपने पड़ोस में भी इस को अपने व्यवहार, बोलचाल, संवाद से अपने समाज और धर्म की छवि अप्रत्यक्ष रूप से लोगों तक पहुंचाते हैं !

सोशल मीडिया पर 6 साल होने को आये हैं, मगर एक बात जो यहाँ  बहुत ही अफसोसनाक महसूस की है, वो है मुस्लिम म'आशरे और मज़हब की अजनाने में ही नकारात्मक इमेज पेश करना !

कोई दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन मुसलमान आपस में फ़िरक़ों, मसलकों पर ना भिड़े हों ! लोग यहाँ खासतौर से ग्रुप में इकठ्ठे होकर यह काम करते हैं, फ़िरक़े एक्सपर्ट्स बहुत हैं, कोई किसी से हार माने को तैयार नहीं है, यह बहुत ही अफ़सोस की बात है, आज से तीन चार साल पहले यहाँ सोशल मीडिया पर ऐसी तमाशेबाज़ी बिलकुल नहीं थी !

इसके अलावा भी कई आम मुद्दों पर मज़हब की नेगेटिव इमेज ही निकल कर बाहर आती है !

कुछ ऐसे हैं जो अपने ही म'आशरे की औरतों की इज़्ज़त का जनाज़ा यहाँ निकाल कर खुश होते हैं, कोई साहब बीवियों को रोज़ बिना कहे पाँव दबाने वाली बांदी की हैसियत से पेश करते हैं तो, तो कोई साहब औरतों को चारदीवारी में क़ैद रखें वाला फितना बताते हैं, कोई पढ़ाई लिखाई को गैर ज़रूरी बताता है, तो कोई औरतों को नौकरी करने, पैसा कमाने को हराम क़रार देता है !

यह क्या तमाशा है ? आप एकतरफा इलज़ाम और फैसला कैसे सुना सकते हैं, सिर्फ इसी वजह से कि यहाँ सोशल मीडिया पर मुस्लिम बहन बेटियों का वजूद कम है ? जिस दिन उनका प्रतिशत यहाँ बढ़ गया (जिसे कि काफी लोग शायद पसंद ना करें) उस दिन इस इल्ज़ाम तराशी का माक़ूल जवाब भी मिल जायेगा !

एक ख़ास बात यह कि म'आशरे की बहन बेटियों को लतियाने वाले कभी म'आशरे के बेटों में फैलती बुराईयों पर हमला बिलकुल नहीं करते, जो कि औरतों के मुकाबले कहीं ज़्यादा है, वजह शायद यही है कि खुद भी उसी पुरुष श्रेणी में आते हैं !




अपने समाज की कुरीतियों को सामने रखना, दूर करने के उपायों पर चर्चा कर अच्छी बात है, मगर एहतियात के साथ ! इस मंच पर हर मज़हब के लोग हैं, सैंकड़ों हज़ारों यहाँ एक दूसरे की पोस्ट पढ़ते हैं, और नज़रिये बनाते हैं. हमेशा किसी बात का नकारात्मक पहलू सामने रखते रहेंगे तो उसकी छवि यहाँ दूसरे लोगों में वैसी ही बन जाएगी !

सोशल मीडिया की इस कोलाहल भरी दुनिया में हम सब की पोस्ट, बहस, तक़रार और कमेंट्स से गैर मुस्लिम्स के सामने जो सामूहिक नजरिया निकल कर आता है वो जाने अनजाने कहीं न कहीं इस्लामोफोबिया को ही पोषित करता है, यानी मज़हब की ख़ौफ़ज़दा, कट्टर या नेगेटिव इमेज ही पेश करता है !

कौन किस मस्जिद में जाता है, कैसे नमाज़ पढता है, किस फ़िरक़े का है ? यह ज़रूरी नहीं, ज़रूरी है तालीम पर ज़ोर देना, लोगों को बताया जाए कि मुल्क में तालीम के मामले में आप किस जगह हैं ? नौकरियों में आप किस जगह हैं ? आपकी आधी आबादी यानी मुस्लिम औरतों की शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्थिति कितनी बदतर है !

अब यह हम सब पर मुन्हसिर है कि हम अपने मज़हब की कैसी इमेज यहाँ पेश करते हैं, फ़िरक़ों में बँटे हुए, लड़ते झगड़ते, कट्टर, इल्म से महरूम, जिहादी, पिछड़े हुए या फिर तालीम में आगे बढ़ते हुए, मुत्तहिद, समाज को सुधारने की कोशिश करने वाले !!

इसलिए कोशिश यही कीजिये कि जहाँ तक हो सके ऐसी बातों से ऐसी पोस्ट्स से बचा जाए जिससे मज़हब की गलत इमेज निकल कर बाहर आये ! ज़रा सोचिये कि एक होने के बजाय हम रोज़ तिनका तिनका होकर क्यों बिखर रहे हैं ?? आखिर किस दिन एक होंगे ?
पांच उँगलियाँ इकठ्ठी होकर मुठ्ठी में कब तब्दील होंगी ??

शायद ऐसी ही बातों पर किसी शायर ने यह शेर कहा होगा :-

मुत्तहिद हो तो बदल सकते हो निजाम-ए-आलम !
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मुन्तशिर  हो  तो  मरो,  शोर  मचाते  क्यों  हो !! 

शनिवार, 2 जनवरी 2016

बेटियों को भी मज़बूत बनाइये ~~!!

कई बार और कई मौक़ों पर यह देखा गया है कि घर में किसी मर्द के न होने पर अचानक कुछ बुरा या अनहोनी हो जाने पर घर की औरतें..घर में स्कूटी, साइकल, या कार के होते हुए भी...पब्लिक ट्रासंपोर्ट यानी ऑटो वगैरह के लिए भागती हैं, इसके पीछे की वजह होती है जिन घरों में यह साधन हैं, उन्हें इनको चलाना नहीं आना ! 


आज स्कूटी, साइकल या बाइक हर घर में तक़रीबन नज़र आती है, ऐसे में अगर हम अपनी बेटियों को इन चीज़ों से दूर रखेंगे तो एक तरह से उनका बुरा ही कर रहे हैं, जब बेटे ड्राइविंग सीख सकते हैं, बाइक, स्कूटी या कार चलाने का अधिकार रखते हैं तो बेटियां क्यों नहीं ? 


इसी लिए मेरा सभी बेटी वाले पिताओं से यही कहना है कि अपनी बेटियों को इन चीज़ों से महरूम नहीं रखें, बल्कि उन्हें बैंकों के काम काज, बिजली के बिल भरने से लेकर लाइसेंस बनवाने तक और पासपोर्ट बनवाने से लेकर इनकम टैक्स भरने तक, कंप्यूटर शिक्षा से लेकर रोज़गार परक शिक्षा दिलवाने तक...किसी भी मामले में पीछे नहीं रखें ! 

ताकि कल को खुद न खास्ता कभी बुरा वक़्त आये तो यह किसी की मोहताज न हों, किसी के सामने गिड़गिड़ाएं नहीं, बा-वक़ार तरीके से मुश्किलों का सामना करने खड़ी हो जाएँ ! यह हमारी ओर से बेटियों के लिए एक बेहतरीन तोहफा साबित होगा !


जब हमारे मुल्क की पहली डीज़ल इंजन ड्राइवर मुमताज़ क़ाज़ी ट्रैन चला सकती है, जब हमारे मुल्क की पहली मुस्लिम पायलट साराह हमीद हवाई जहाज़ उड़ा सकती है.....तो हमारी बेटियां क्यों पीछे रहें ? कभी वक़्त मिले तो शीबा असलम फहमी साहिबा का लिखा एक लेख भी ज़रूर पढ़ें जिसका शीर्षक है " झांसी की रानी  मैके में ही तैयार होती हैं !" 


एशिया की पहली डीज़ल इंजन ड्राइवर मुमताज़ क़ाज़ी के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं :-


मुल्क की पहली मुस्लिम महिला पायलट साराह हमीद के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं :-