फेसबुक पर पिछले कुछ दिनों से कुछ लोग गोलबंद होकर पर्दे और बुर्क़े के खिलाफ तथा औरतें क्या पहने क्या नहीं पहनें मुद्दे पर जंग छेड़े हुए हैं, इसे अप्रत्यक्ष रूप से पर्दा विरोध भी कह सकते हैं जबकि भारत में मुसलमानो के अलावा भी कई धर्मों में चेहरा ढंकने, घूंघट लेने, सर पर पल्लू डालने की पर्दा रुपी परंपरा देखी जा सकती है !
अगर इस पर्दे या बुर्क़े को वैश्विक पटल पर देखें तो बहुत कुछ साफ़ हो जाता है कि विश्व के बड़े मुस्लिम देशों में इस बुर्क़े और पर्दे को किस तरह से देखा और अंगीकार किया जाता है !
अगर इस पर्दे या बुर्क़े को वैश्विक पटल पर देखें तो बहुत कुछ साफ़ हो जाता है कि विश्व के बड़े मुस्लिम देशों में इस बुर्क़े और पर्दे को किस तरह से देखा और अंगीकार किया जाता है !
जनवरी 2014 को हफिंगटन पोस्ट में 7 बड़े मुस्लिम देशों में मुस्लिम महिलाओं के पर्दे और उसके प्रकार पर The University of Michigan’s Institute for Social Research द्वारा किये गए सर्वे की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी :-
http://www.huffingtonpost.com/entry/female-muslim-dress-survey_n_4564188.html?section=india
जिसके कि यहाँ चार्ट और उदाहरण हैं !
पहले वाले चार्ट में यहाँ एक टेबल है जिसमें पर्दे को 5 भागों में बांटा गया है, पहला नंबर बुर्का है, दूसरा नक़ाब, तीसरा चादर, चौथा अल-अमीरा, पांचवां हिजाब ! साथ ही प्रमुख मुस्लिम देशों में किये गए सर्वे में सार्वजनिक जगह पर पर्दे के लिए पहने जाने के लिए पसंद किये जाने वाले वस्त्रों में बुर्का सबसे नीचे है !
बुर्क़ा :-
बुर्का मुस्लिम महिलाओं के शरीर को सबसे ज्यादा ढकने वाला पहनावा है। ये एक तरह का लबादा है जो सिर से पैर तक पूरे जिस्म को ढक लेता है। आमतौर पर बुर्का एक ही कपड़े से बनता है। इसे इस तरह से सिला जाता है कि आंखों के सामने बारीक जाली होती है जिससे कि महिला देख सके। सऊदी अरब और सीरिया जैसे देशों में महिलाओं के लिए बुरका पहनना जरूरी है।
नक़ाब :-
नकाब भी एक तरह का पर्दा है जो मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाता है, इसमें हिजाब की तुलना में शरीर ज्यादा ढका होता है। इसे पहनने वाली महिला की सिर्फ आंखें खुली रहती है।
अल-अमायरा :-
अल-अमायरा यूं तो हिजाब की तरह होता है लेकिन हिजाब से अलग ये दो कपड़ों से बना होता है। पहले कपड़े से सिर को कैप की तरह फिटिंग से ढका जाता है जबकि दूसरे कपड़े से गर्दन को ढका जाता है।
चादर :-
ईरान की अधिकांश महिलाओं में चादर पहनने का चलन है। महिलाएं जब घर के बाहर निकलती हैं तो पूरे शरीर पर काले या किसी गहरे रंग की चादर ओढ़ लेती हैं। कुछ महिलाएं इस चद्दर के नीचे भी सिर पर एक छोटा दुपट्टा डालती हैं।
हिजाब :-
हिजाब शब्द का अर्थ पूरे शरीर को ढकने से है लेकिन मुस्लिम महिलाएं इससे सिर और गर्दन को ढकने के लिए इस्तेमाल करती हैं। आधुनिक मुसलिम देशों में हिजाब प्रचलन में है। ये किसी भी रंग और स्टाइल का हो सकता है।
दूसरे वाले में भी यही चार्ट और यही प्रतिशत है !
यहाँ तीसरा जो चार्ट है वो यह बताता है कि पर्दा औरतों का मसला है, और पर्दे के लिए वो क्या पहने इसके चयन के लिए उनको अधिकार दिया जाना चाहिए, यहाँ आप देशों के साथ साथ उनकी सहमति का प्रतिशत देख सकते हैं !
वहीँ इस बुर्क़े और नक़ाब का सबसे ज़्यादा चलन अफगानिस्तान और सऊदी अरब सहित पर्शियन गल्फ के अरब देशों में है, और चादर का प्रचलन ईराक़, ईरान और लेबनॉन जैसे शिया बहुल देशों में है, वहीँ अल-अमायरा और हिजाब का प्रचलन तुर्की और ईरान के प्रगतिशील मुसलमानो में देखा गया है !
यहाँ सऊदी अरब पर्दे के लिए सबसे सख्त नियमों के पालन के लिए इस सर्वे में सबसे ऊपर आया है !
Full report :- http://mevs.org/files/tmp/Tunisia_FinalReport.pdf
इस सर्वे में साफ़ है कि बुर्क़ा औरतों की पसंद में सबसे नीचे है, और धीरे धीरे इसके विकल्पों को अपनाने की प्रक्रिया जारी है ! बल्कि पाकिस्तान में तो अक्टूबर 2015 में बुर्क़े की अनिवार्यता के खिलाफ संवैधानिक इस्लामिक निकाय Council of Islamic Ideology (CII) ने घोषणा ही कर डाली थी :
हालांकि इन आंकड़ों और सर्वे में भारत का नाम नहीं है, मगर इन सब उपरोक्त 7 मुस्लिम देशों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो उनके मुक़ाबले भारत में भी बुर्का ज़्यादा ही हाशिये पर नज़र आएगा !
कुल मिलाकर निचोड़ यह है कि जिस शब्द 'बुर्क़े' पर जंग छिड़ी है, वो कहीं बिलकुल हाशिये पर है, और महिलाओं के बहुत बड़े प्रतिशत को नापसंद भी है !
मगर जहाँ पर्दे पर खुद महिलाओं की पसंद और चयन की बात आती है तो इसमें विभिन्नताएं हैं, जो कि सामाजिक, धार्मिक , भौगोलिक और परिवेश के अनुरूप तय कर ली जाती है और महिलायें अपनी सुविधानुसार इन्हे अंगीकार कर रही हैं, ना किसी के कहने से ना किसी के दबाव से, और ना ही पर्दे के यह भिन्न भिन्न रूप उनकी शैक्षणिक गतिविधियों, उनकी प्रगति, केरियर या नौकरियों में गतिरोध पैदा कर रहे हैं !
मैं ज़बरदस्ती बुर्क़ा पहनाने का समर्थक बिलकुल नहीं, ना ही पर्दे का विरोधी हूँ, ये औरत का मसला है कि वो पर्दा कैसे करती है, मगर जिस तरह से पर्दे और बुर्क़े के समर्थन में तर्क गढ़े जा रहे हैं, उसका विरोध करता हूँ, वजह यहाँ इस लेख में साफ़ हो गयी है कि विश्व में जब बुर्का जैसा पहनावा या पर्दे का प्रतीक औरतों का मसला है, और पर्दे के लिए वो क्या पहने इसके चयन के लिए उनको अधिकार दिया जाना चाहिए ! ऐसे में पर्दे पर क्रांति करना फ़िज़ूल है।