ओलंपिक में देश की उपलब्धियां और खेल मंत्रालय का र'वैया सभी ने देखा है, दो बेटियां पी.वी. सिंधु और साक्षी मालिक जहाँ अपने ही दम पर सिल्वर और कांस्य मैडल लेकर आईं हैं, वहीँ दूसरी ओर मैराथन दौड़ में भारत की एक बेटी जेयशा मरते मरते बची, ओपी जेयशा को दौड़ के दौरान कोई भी व्यक्ति पानी देने के लिए मौजूद नहीं था !!
वहीँ दूसरी ओर खेल मंत्री विजय गोयल को रियो में ओलिंपिक कमेटी की वॉर्निंग मिलती है, जो कि बहुत ही शर्म की बात है !
यहाँ ओलम्पिक में घटिया प्रदर्शन के कारणों को देखने से पहले खेल मंत्रालय के साथ साथ खेल संगठनों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुर्सियों पर जमे बड़े मगरमच्छों पर भी नज़र डालना ज़रूरी है !
अनुराग ठाकुर, अरुण जेटली, अमित शाह, फारुक अब्दुल्ला, लालू प्रसाद यादव, शरद पवार, यशवंत सिन्हा, राजीव शुक्ला, ये कुछ ऐसे नाम हैं, जो राजनीति के खेल में माहिर हैं !
आइये नज़र डालते हैं ऐसे ही कुछ बड़े सूरमाओं पर जिनका खेल से लेना देना नहीं है, मगर खेल संगठनों के उच्च पदों को हथियाये बैठे हैं :-
भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा करीबन 40 साल तक आर्चरी ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे।
कांग्रेस की नेता विद्या स्टोक्स ने चार बार भारतीय महिला हॉकी ऐसोसिएशन की अध्यक्षता की और हॉकी इंडिया ने 2015 में उन्हें लाइफ टाइम प्रेसिडेन्ट के पद पर नियुक्त किया !
कांग्रेस के जगदीश टाइटलर जूडो फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद पर रहे।
कांग्रेस के दिग्विजय सिंह शूटींग फेडरेशन के अध्यक्ष रह चुके हैं !
भाजपा के अनुराग ठाकुर बीसीसीआई का सेक्रेटरी पद संभालने के साथ साथ हॉकी इंडिया में ऐसासिएट वॉइस प्रेसिडेन्ट की भूमिका भी निभा रहे हैं !
भाजपा के यशवंत सिन्हां ने सन 2000 से 12 सल तक ऑल इंडिया टेनिस ऐसोसिएशन का अध्यक्ष पद संभाला !
राजनेता लालू प्रसाद यादव सन् 2001 में बिहार क्रिकेट ऐसोसिऐशन के अध्यक्ष बनें।
सुरेश कलमाडी ने जेल जाने से पहले 16 सालों तक इंडियन ओलम्पिक ऐसोसिएशन का अध्यक्ष पद संभाला।
उनके कांग्रेसी साथी विद्या चरण शुक्ल भी कभी अध्यक्ष रह चुकें हैं !
इंडियन नेशनल लोकदल के ओमप्रकाश चौटाला ने करीबन 5 साल तक इंडियन ओलम्पिक ऐसोसिएशन की अध्यक्षता की !
जबकि कॉमनवेल्थ गेम्स में धांधली को लेकर जेल तक का सफर तय करने वाले उनके बेटे अभय चौटाला इंडियन ऐमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन में अध्यक्ष रह चुके हैं।
यही नहीं अभय के भाई अजय चौटाला टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडियन के अध्यक्ष रह चुके हैं।
कांग्रेस के प्रियरंजन दास मुन्शी ने करीबन 20 साल ऑल इंडियन फुटबॉल फेडरेशन का अध्यक्ष पद संभाला।
2008 में मुन्शी जी को खराब स्वास्थ्य की वजह से अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा, पर उनकी जगह भी एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल के रूप में किसी नेताजी की ही नियुक्ति हुई।
अलग-अलग स्टेट क्रिकेट ऐसोसिएशन और बीसीसीआई में अरुण जेटली, शरद पवार और राजीव शुक्ला की दखलअंदाजी किसी से छुपी हुई नहीं है।
नरेन्द्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, लेकिन उनकी जगह अध्यक्ष पद पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आ गए।
कुल मिलाकर तकरीबन हर एक संगठन में नेताजी परदे के पीछे का खेल खेल रहे असली खिलाड़ी हैं और कुछ तो ऐसे भी हैं जो एक से ज्यादा खेल संगठनो में पद धारक हैं या रह चुके हैं।
इतना ही नहीं जब इन्हें संगठन के संविधान या कोर्ट के फैसलों की वजह से अपना पद छोड़ना पड़ता है, तब भी नई नियुक्ति के तौर पर कोई नेताजी ही आते हैं, ना की कोई खिलाड़ी।
खेल संगठनों के संविधान के हिसाब से संगठन के अध्यक्ष, सेक्रेटरी या अन्य सदस्यों को खेल सुविधाओ के रखरखाव और निर्माण कार्य पर ध्यान देना होता है, पर इन संगठनों में नेताओ का रुतबा इस हद तक है कि संगठन के संचालन के लिए अन्य पदों पर नियुक्ति से लेकर खिलाड़ियों के चयन तक में उनकी दखलअंदाजी रहती हैं, कोचिंग स्टाफ और स्पोर्ट स्टाफ की नियुक्तियां भी इनकी देखरेख में ही कि जाती है।
कई बार नेताजी के चाहने वाले लोग बिना कोई योग्यता के कोई खेल टीम के साथ विदेशी दौरा तक कर आतें हैं और जब विदेशी टीमे यहां खेलने आती हैं, तब उन खास लोगों को मैच के कॉम्प्लीमेन्ट्री पास के साथ-साथ विदेशी खिलाड़ियों के साथ लंच-डिनर तक की सुविधा दी जाती है।
कीर्ती आजाद, बिशन सिंह बेदी, मोहिन्दर अमरनाथ, अभिनव बिंद्रा, ज्वाला गट्टा जैसे कुछ खिलाड़ियों और खेल संगठनो से जुड़े आइएस बिंद्रा और आदित्य वर्मा जैसे लोगों ने कई बार खेल संगठनो में चल रहे घोटालो पर उंगली उठाई हैं, पर इन्हें आश्वासन के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा है।
खेल संगठनो में नेताओं की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणीः “ज्यादातर खेल संगठनों की अगवाई ऐसे लोग कर रहें है, जिनका खेल से कोई नाता नहीं रहा है। व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए कुछ नेता और उद्योगपति खेल संगठनों में मठाधीश बने हुए हैं।
शायद इसी वजह से भारत कई बार गोल्ड मेडल जीत चुका है, उस हॉकी जैसे राष्ट्रीय खेल के प्रदर्शन में गिरावट आई है, और आज भारतीय हॉकी टीम को ओलम्पिक के लिए क्वालिफाय करने में भी मुश्किलें आ रही हैं।
सरकार इन खेल संगठनों पर कभी अंकुश नहीं लगा पाई है और हर एक संगठन किसी न किसी विवाद में फंसा हुआ है और खेल के मैदान पर ध्यान देने के बदले कोर्ट की लड़ाइयों में उलझा हुआ है।
नेताओं को खेल संगठनों से दूर रहना चाहिए और इन संगठनों में खिलाड़ियों को शामिल करने पर जोर दिया जाना चाहिए।”
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और हॉकी इन्डिया के केस की सुनवाई के दौरान खेल संगठनों में नेताओ की भूमिका पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसी ही कड़ी भाषा में निंदा की थी, पर तब से लेकर अब तक इन किसी भी नेता ने आगे आकर सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए खेल संगठनों में अपना पद नहीं छोड़ा !
ऐसे भी थे नेता जो खेल भी जानते थे और संगठन चलाना भी :-
1954 में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और केबिनेट मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ऑल इंडिया लॉन्ग टेनिस ऐसोसिएशन की अध्यक्ष चुनी गई। युवावस्था में एक अच्छी टेनिस खिलाड़ी रह चुकी अमृत कौर ने टेनिस ऐसोसिएशन में चल रहे घपलों को बड़ी ही गंभीरता से लिया और उन्होनें पूरे प्रयास किए की इन गड़बड़ियों के बदले अच्छे खेल की वजह से ऐसोसिएशन पहचाना जाना जाए।
वो पांच कदम जो भारत को पदक दिला सकते हैं :-
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भारत को ऐसे पांच कौन से क़दम उठाने चाहिए कि उसकी चीन से बराबरी न सही कम से कम पदक तालिका बेहतर हो पाए :-
पैसा :
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कुछ समय पहले 2008 के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा ने ट्वीट करके कहा कि टीम जीबी के हर पदक के पीछे 50 लाख पौंड स्टर्लिंग का निवेश होता है !
उन्होंने भारत को पदक जीतने से पहले खेलों में ढेर सारे पैसे निवेश करने की सलाह दी !
अभिनव बिंद्रा टीम जीबी के बारे में सोलह आने सही हैं.
ब्रिटिश सरकार नेशनल लाटरी के ज़रिये बहुत पैसे कमाती है, इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा खेलों को बढ़ावा देने पर खर्च किया जाता है !
सरकार 18 साल की एक योजना के तहत लाटरी की कमाई खेलों में झोंक रही है.नतीजा सब के सामने है.
भारत सरकार भी स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया को पैसे देती है ताकि खेलों को बढ़ावा मिले. लेकिन ये पैसे न केवल कम हैं बल्कि सिस्टम में भ्रष्टाचार के कारण पूरे पैसे खेलों में खर्च भी नहीं हो पाते हैं !
केवल ढेर सारे पैसों का निवेश काफी नहीं होगा. पदक का लक्ष्य तय करना होगा और इसकी ज़वाबदेही भी तय करनी पड़ेगी !
एक करियर के रूप में खेल :-
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जैसे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए युवा और उनके परिवार वाले पूरी ताक़त लगा देते हैं वैसे ही खेलों को भी अगर वो करियर की तरह देखें तो देश में खेल संस्कृति पैदा होगी !
खेलों को बड़ी कंपनियों की अधिक स्पॉन्सरशिप मिल सकेगी. अगर टारगेट 2020 या 2024 में कुछ खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करना है तो काम अभी से शुरू करना होगा !
ध्यान क्रिकेट से आगे :-
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अगर क्रिकेट ओलंपिक खेलों में शामिल होता तो भारत को स्वर्ण पदक मिल सकता था. लेकिन क्रिकेट एक टीम स्पोर्ट है !
ये आपको केवल एक ही पदक दिला सकता है. इसके बावजूद पूरा देश क्रिकेट का दीवाना है !
अगर ओलंपिक में पदक हासिल करना है तो ये दीवानगी थोड़ी कम करनी पड़ेगी !
जीतने वाली मानसिकता :-
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खेलों के कई विशेषज्ञ कहते हैं कि भारतीय खिलाड़ियों में कुछ कर दिखाने की प्रवृति नहीं दिखाई देती ~
जीत की मानसिकता और किलर स्टिंक्ट के कारण चौथे स्थान पाने वाले खिलाड़ी तीसरे नंबर पर आ सकते हैं और पदक तालिका बढ़ाई जा सकती है !
यह मानसिकता पैदा करने के लिए यूरोप और अमरीका में अलग से प्रोग्राम चलाये जाते हैं !
सुविधाएं :-
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अगरतला में दीपा कर्मकार को हासिल सुविधाएं अफ़सोसनाक हैं, अगर ये सुविधाएँ अन्तरराष्ट्रीय स्तर की होती तो शायद दीपा आज एक पदक लेकर देश वापस लौटती !
ये सभी जानते हैं कि भारत में खेलों की सुविधाएं बहुत कम हैं, लेकिन ओलंपिक खेलों के बाद इस पर चर्चा तक नहीं होती !
क्या आपको मालूम है कि 2024 ओलंपिक खेलों को आयोजित करने की भारत में सलाहियत क्यों नहीं है ?
क्योंकि यहाँ ओलंपिक स्तर की सुविधाएं नहीं हैं.
भारत को अगर ओलंपिक की महिमा चाहिए तो सुविधाओं में इज़ाफ़ा करना होगा !
इसके इलावा अच्छे कोच, अच्छी ख़ुराक और अच्छी वर्ज़िश पर भी ध्यान देना होगा !!
Data Source :-
http://khabar.ibnlive.com/blogs/parun/sports-organizations-political-leader-436911.html
http://www.bbc.com/hindi/india/2016/08/160824_olympics_india_za?ocid=socialflow_twitter
वहीँ दूसरी ओर खेल मंत्री विजय गोयल को रियो में ओलिंपिक कमेटी की वॉर्निंग मिलती है, जो कि बहुत ही शर्म की बात है !
यहाँ ओलम्पिक में घटिया प्रदर्शन के कारणों को देखने से पहले खेल मंत्रालय के साथ साथ खेल संगठनों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुर्सियों पर जमे बड़े मगरमच्छों पर भी नज़र डालना ज़रूरी है !
अनुराग ठाकुर, अरुण जेटली, अमित शाह, फारुक अब्दुल्ला, लालू प्रसाद यादव, शरद पवार, यशवंत सिन्हा, राजीव शुक्ला, ये कुछ ऐसे नाम हैं, जो राजनीति के खेल में माहिर हैं !
आइये नज़र डालते हैं ऐसे ही कुछ बड़े सूरमाओं पर जिनका खेल से लेना देना नहीं है, मगर खेल संगठनों के उच्च पदों को हथियाये बैठे हैं :-
भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा करीबन 40 साल तक आर्चरी ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे।
कांग्रेस की नेता विद्या स्टोक्स ने चार बार भारतीय महिला हॉकी ऐसोसिएशन की अध्यक्षता की और हॉकी इंडिया ने 2015 में उन्हें लाइफ टाइम प्रेसिडेन्ट के पद पर नियुक्त किया !
कांग्रेस के जगदीश टाइटलर जूडो फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद पर रहे।
कांग्रेस के दिग्विजय सिंह शूटींग फेडरेशन के अध्यक्ष रह चुके हैं !
भाजपा के अनुराग ठाकुर बीसीसीआई का सेक्रेटरी पद संभालने के साथ साथ हॉकी इंडिया में ऐसासिएट वॉइस प्रेसिडेन्ट की भूमिका भी निभा रहे हैं !
भाजपा के यशवंत सिन्हां ने सन 2000 से 12 सल तक ऑल इंडिया टेनिस ऐसोसिएशन का अध्यक्ष पद संभाला !
राजनेता लालू प्रसाद यादव सन् 2001 में बिहार क्रिकेट ऐसोसिऐशन के अध्यक्ष बनें।
सुरेश कलमाडी ने जेल जाने से पहले 16 सालों तक इंडियन ओलम्पिक ऐसोसिएशन का अध्यक्ष पद संभाला।
उनके कांग्रेसी साथी विद्या चरण शुक्ल भी कभी अध्यक्ष रह चुकें हैं !
इंडियन नेशनल लोकदल के ओमप्रकाश चौटाला ने करीबन 5 साल तक इंडियन ओलम्पिक ऐसोसिएशन की अध्यक्षता की !
जबकि कॉमनवेल्थ गेम्स में धांधली को लेकर जेल तक का सफर तय करने वाले उनके बेटे अभय चौटाला इंडियन ऐमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन में अध्यक्ष रह चुके हैं।
यही नहीं अभय के भाई अजय चौटाला टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडियन के अध्यक्ष रह चुके हैं।
कांग्रेस के प्रियरंजन दास मुन्शी ने करीबन 20 साल ऑल इंडियन फुटबॉल फेडरेशन का अध्यक्ष पद संभाला।
2008 में मुन्शी जी को खराब स्वास्थ्य की वजह से अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा, पर उनकी जगह भी एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल के रूप में किसी नेताजी की ही नियुक्ति हुई।
अलग-अलग स्टेट क्रिकेट ऐसोसिएशन और बीसीसीआई में अरुण जेटली, शरद पवार और राजीव शुक्ला की दखलअंदाजी किसी से छुपी हुई नहीं है।
नरेन्द्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, लेकिन उनकी जगह अध्यक्ष पद पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आ गए।
कुल मिलाकर तकरीबन हर एक संगठन में नेताजी परदे के पीछे का खेल खेल रहे असली खिलाड़ी हैं और कुछ तो ऐसे भी हैं जो एक से ज्यादा खेल संगठनो में पद धारक हैं या रह चुके हैं।
इतना ही नहीं जब इन्हें संगठन के संविधान या कोर्ट के फैसलों की वजह से अपना पद छोड़ना पड़ता है, तब भी नई नियुक्ति के तौर पर कोई नेताजी ही आते हैं, ना की कोई खिलाड़ी।
खेल संगठनों के संविधान के हिसाब से संगठन के अध्यक्ष, सेक्रेटरी या अन्य सदस्यों को खेल सुविधाओ के रखरखाव और निर्माण कार्य पर ध्यान देना होता है, पर इन संगठनों में नेताओ का रुतबा इस हद तक है कि संगठन के संचालन के लिए अन्य पदों पर नियुक्ति से लेकर खिलाड़ियों के चयन तक में उनकी दखलअंदाजी रहती हैं, कोचिंग स्टाफ और स्पोर्ट स्टाफ की नियुक्तियां भी इनकी देखरेख में ही कि जाती है।
कई बार नेताजी के चाहने वाले लोग बिना कोई योग्यता के कोई खेल टीम के साथ विदेशी दौरा तक कर आतें हैं और जब विदेशी टीमे यहां खेलने आती हैं, तब उन खास लोगों को मैच के कॉम्प्लीमेन्ट्री पास के साथ-साथ विदेशी खिलाड़ियों के साथ लंच-डिनर तक की सुविधा दी जाती है।
कीर्ती आजाद, बिशन सिंह बेदी, मोहिन्दर अमरनाथ, अभिनव बिंद्रा, ज्वाला गट्टा जैसे कुछ खिलाड़ियों और खेल संगठनो से जुड़े आइएस बिंद्रा और आदित्य वर्मा जैसे लोगों ने कई बार खेल संगठनो में चल रहे घोटालो पर उंगली उठाई हैं, पर इन्हें आश्वासन के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा है।
खेल संगठनो में नेताओं की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणीः “ज्यादातर खेल संगठनों की अगवाई ऐसे लोग कर रहें है, जिनका खेल से कोई नाता नहीं रहा है। व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए कुछ नेता और उद्योगपति खेल संगठनों में मठाधीश बने हुए हैं।
शायद इसी वजह से भारत कई बार गोल्ड मेडल जीत चुका है, उस हॉकी जैसे राष्ट्रीय खेल के प्रदर्शन में गिरावट आई है, और आज भारतीय हॉकी टीम को ओलम्पिक के लिए क्वालिफाय करने में भी मुश्किलें आ रही हैं।
सरकार इन खेल संगठनों पर कभी अंकुश नहीं लगा पाई है और हर एक संगठन किसी न किसी विवाद में फंसा हुआ है और खेल के मैदान पर ध्यान देने के बदले कोर्ट की लड़ाइयों में उलझा हुआ है।
नेताओं को खेल संगठनों से दूर रहना चाहिए और इन संगठनों में खिलाड़ियों को शामिल करने पर जोर दिया जाना चाहिए।”
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और हॉकी इन्डिया के केस की सुनवाई के दौरान खेल संगठनों में नेताओ की भूमिका पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसी ही कड़ी भाषा में निंदा की थी, पर तब से लेकर अब तक इन किसी भी नेता ने आगे आकर सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हुए खेल संगठनों में अपना पद नहीं छोड़ा !
ऐसे भी थे नेता जो खेल भी जानते थे और संगठन चलाना भी :-
1954 में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और केबिनेट मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ऑल इंडिया लॉन्ग टेनिस ऐसोसिएशन की अध्यक्ष चुनी गई। युवावस्था में एक अच्छी टेनिस खिलाड़ी रह चुकी अमृत कौर ने टेनिस ऐसोसिएशन में चल रहे घपलों को बड़ी ही गंभीरता से लिया और उन्होनें पूरे प्रयास किए की इन गड़बड़ियों के बदले अच्छे खेल की वजह से ऐसोसिएशन पहचाना जाना जाए।
वो पांच कदम जो भारत को पदक दिला सकते हैं :-
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भारत को ऐसे पांच कौन से क़दम उठाने चाहिए कि उसकी चीन से बराबरी न सही कम से कम पदक तालिका बेहतर हो पाए :-
पैसा :
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कुछ समय पहले 2008 के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा ने ट्वीट करके कहा कि टीम जीबी के हर पदक के पीछे 50 लाख पौंड स्टर्लिंग का निवेश होता है !
उन्होंने भारत को पदक जीतने से पहले खेलों में ढेर सारे पैसे निवेश करने की सलाह दी !
अभिनव बिंद्रा टीम जीबी के बारे में सोलह आने सही हैं.
ब्रिटिश सरकार नेशनल लाटरी के ज़रिये बहुत पैसे कमाती है, इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा खेलों को बढ़ावा देने पर खर्च किया जाता है !
सरकार 18 साल की एक योजना के तहत लाटरी की कमाई खेलों में झोंक रही है.नतीजा सब के सामने है.
भारत सरकार भी स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया को पैसे देती है ताकि खेलों को बढ़ावा मिले. लेकिन ये पैसे न केवल कम हैं बल्कि सिस्टम में भ्रष्टाचार के कारण पूरे पैसे खेलों में खर्च भी नहीं हो पाते हैं !
केवल ढेर सारे पैसों का निवेश काफी नहीं होगा. पदक का लक्ष्य तय करना होगा और इसकी ज़वाबदेही भी तय करनी पड़ेगी !
एक करियर के रूप में खेल :-
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जैसे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए युवा और उनके परिवार वाले पूरी ताक़त लगा देते हैं वैसे ही खेलों को भी अगर वो करियर की तरह देखें तो देश में खेल संस्कृति पैदा होगी !
खेलों को बड़ी कंपनियों की अधिक स्पॉन्सरशिप मिल सकेगी. अगर टारगेट 2020 या 2024 में कुछ खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करना है तो काम अभी से शुरू करना होगा !
ध्यान क्रिकेट से आगे :-
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अगर क्रिकेट ओलंपिक खेलों में शामिल होता तो भारत को स्वर्ण पदक मिल सकता था. लेकिन क्रिकेट एक टीम स्पोर्ट है !
ये आपको केवल एक ही पदक दिला सकता है. इसके बावजूद पूरा देश क्रिकेट का दीवाना है !
अगर ओलंपिक में पदक हासिल करना है तो ये दीवानगी थोड़ी कम करनी पड़ेगी !
जीतने वाली मानसिकता :-
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खेलों के कई विशेषज्ञ कहते हैं कि भारतीय खिलाड़ियों में कुछ कर दिखाने की प्रवृति नहीं दिखाई देती ~
जीत की मानसिकता और किलर स्टिंक्ट के कारण चौथे स्थान पाने वाले खिलाड़ी तीसरे नंबर पर आ सकते हैं और पदक तालिका बढ़ाई जा सकती है !
यह मानसिकता पैदा करने के लिए यूरोप और अमरीका में अलग से प्रोग्राम चलाये जाते हैं !
सुविधाएं :-
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अगरतला में दीपा कर्मकार को हासिल सुविधाएं अफ़सोसनाक हैं, अगर ये सुविधाएँ अन्तरराष्ट्रीय स्तर की होती तो शायद दीपा आज एक पदक लेकर देश वापस लौटती !
ये सभी जानते हैं कि भारत में खेलों की सुविधाएं बहुत कम हैं, लेकिन ओलंपिक खेलों के बाद इस पर चर्चा तक नहीं होती !
क्या आपको मालूम है कि 2024 ओलंपिक खेलों को आयोजित करने की भारत में सलाहियत क्यों नहीं है ?
क्योंकि यहाँ ओलंपिक स्तर की सुविधाएं नहीं हैं.
भारत को अगर ओलंपिक की महिमा चाहिए तो सुविधाओं में इज़ाफ़ा करना होगा !
इसके इलावा अच्छे कोच, अच्छी ख़ुराक और अच्छी वर्ज़िश पर भी ध्यान देना होगा !!
Data Source :-
http://khabar.ibnlive.com/blogs/parun/sports-organizations-political-leader-436911.html
http://www.bbc.com/hindi/india/2016/08/160824_olympics_india_za?ocid=socialflow_twitter