बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

सेक्यूलर कीड़ों का इमोशनल लोचा~~~!!


देश में कुछ  मज़हबी ठेकेदार और धार्मिक दुकानदार  बहुत ही परेशान और चिंतित चल रहे हैं...उनको एक प्रजाति बहुत ही परेशान कर रही है..और इनका धंधा ही चौपट कर डाला है...इन धार्मिक  दुकानदारों ने उस प्रजाति को बड़ा ही अजीब  नाम दिया है..." सेक्युलर कीड़े "...जी हाँ सही सुना...ऐसी धार्मिक दुकानों से सम्बन्ध रखने वाले काफी दुकानदार/ग्राहक और इन्टरनेट पर प्रायोजित ग्रुपों में विज़िट करने वाले  इस शब्द से भली भाँती परिचित होंगे....क्योंकि फासीवादी प्रजाति के लोग इन्टरनेट पर इस नाम को भली भाँती प्रयोग कर रहे हैं.... अब इस नाम के पीछे क्या लोजिक है...यह वही बता सकते हैं..मगर सभी धर्मों में पाए जाने वाले  इन सेक्युलर कीड़ों की वजह से इन दुकानदारों का धंधा चौपट हुआ जा रहा है...यह दुकानदार भी हर धर्म और विचार धारा के हैं..और काफी समय से सभी धर्मो के इन सेक्युलर कीड़ों के लिए एंटी डोज़ ढूँढने रहे हैं...इनके इमोशनल लोचे की काट ढूंढ रहे हैं...मगर कामयाब नहीं हो पा रहे हैं.....एक बार की घटना है एक ऐसा ही सेक्यूलर जीव अपने पड़ोसियों के साथ होली मना रहा था...रंगों से उसका चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था...उसकी बेगम कौतूहल से उस भीड़ में अपने शौहर को तलाश कर रही थी...उसके बच्चे पिचकारी लिए रंगों की बौछार करते दूसरे बच्चों के साथ होली का मज़ा ले रहे थे...मैंने पूछा कि भाई ..यह तो तुम्हारा त्यौहार नहीं है...तुम्हारे धर्म में तो शायद मनाही होगी..?.उसने चेहरे का रंग साफ़ करके मुझे देखा ...और ठहाका मार कर हंस दिया...बोला ..मियाँ जाओ किसी और को उपदेश दो... हमारे पडोसी सुबह होते ही...कुण्डी बजा कर बुला लेते हैं...हमारे पुरखे सालों से इस  त्यौहार के रंग में रंगते चले आये हैं...तो वही कीटाणु हमारे में भी हैं..हम भी हमारे साथियों के साथ इस त्यौहार को मना कर आपस में खुश हो रहे ...आपको क्यों तकलीफ हो रही है...? मुझसे जवाब न बन सका ...मैं आवाक सा मूंह खोले उस सेक्यूलर जीव की बेबाक भावना और जज्बे को देखता ...उलटे क़दम...वापस लौट गया..!

कुछ दिन बाद   ईद के त्यौहार पर मेरे पडोसी को सज धज कर परिवार सहित खान साहब के घर जाते देखा तो ...कुछ अचरज हुआ..मैंने उस सेक्यूलर जीव से पूछ ही डाला ...कि आज आप उनके घर क्या करने जा रहे हैं...उस सेक्यूलर जीव ने मुझे तुच्छ नज़रों से देखा  ..और बोला...क्या तुम्हें मालूम नहीं...आज ईद है...मैंने कहा..तभी तो पूछ रहा हूँ....उसने कहा...तो फिर परेशानी क्या है...? मैंने कहा...यह आपका त्यौहार तो नहीं है...फिर...? उस सेक्यूलर जीव ने कहा...भाई...हम हर ईद पर इनके घर बुलाये जाते हैं...और सेवइयां खाने जाते हैं...पूरा साल हम सब को इस त्यौहार का इंतज़ार रहता है...कि खान साहब के घर की सेवैय्याँ खाएं...बरसों से हम पड़ोसियों में यह परंपरा चली आ रही है...और हाँ...यदि बकरा ईद होती है...तो भी खान साहब...हमारे लिए..अलग से वेज खाने और सेवइयां ज़रूर बनाते हैं,  मैं हैरान सा अपना मूंह लिए खड़ा रहा...और वो परिवार सहित खान साहब के घर की और चल दिए..!  फिर एक दिन दोनों प्रकार के सेक्यूलर जीव मेरे घर आ बैठे....चाय पान करते हुए...बोले आप इस शहर में नए आये हो...कुछ दिन से परेशान से लग रहे हैं....वैसे हम आपके सवालों से  समझ गए कि आप क्यों परेशान हैं...वे बोले..देखिये..हम एक दूसरे के त्योहारों में उत्साह और प्रेम से भाग लेते हैं, ..सुख दुःख में एक दूसरे के काम आते हैं..पहले हम इंसान हैं...बाद में हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई...हमारी संस्कृति अनेकता में एकता की रही है...यही साझा सांस्कृति और एकता देश को अभी तक बांधे हुए है...साम्प्रदायिक एकता और साझा संस्कृति ही हमारे देश की शक्ति है.....वास्तव में साझा संस्कृति के अनेक महत्वपूर्ण तत्व आज भी जिंदा हैं और जब तक सभ्यता रहेगी तब तक जिंदा रहेंगे।  फिर वो बोले कि आप  कभी स्कूल में जाकर देखिये ... जब बच्चों का लंच होता है...उस समय सब बच्चे अपने टिफन खोल कर साथ बैठते हैं...और एक साथ मिलकर एक दूसरे के टिफन से खाना बाँट कर खाते हैं...उस समय ना कोई.....हिन्दू होता है, मुसलमान, न सिख, न इसाई, न पिछड़ी जाति और ना ही अगड़ी जाति...उस समय सब हिन्दुस्तानी बच्चे होते हैं...ऐसा लगता है...जैसे धीरे धीरे ..सफ़ेद, हरा, केसरिया, पीला, नीला, लाल...सब रंग मिल कर एक इन्द्रधनुष का रूप ले रहे हों...वो इन्द्रधनुष जो कि एकता और शांति का ..अनेकता में एकता का प्रतीक है...और यही हमारी पहचान भी है....... आप और हम मिल कर ही इस सतरंगी इन्द्रधनुष रुपी देश की रचना करते हैं...और इसको सुन्दर बनाते हैं...फिर उन  सेक्यूलर जीवों ने मुझे यह रचना सुनाई :--

लोग अपने अपने को अलग छांट रहें हैं..
मज़बह के नाम पर इंसानों को बांट रहे हैं,

ज़रा इनकी नादानी पर तो ग़ौर कीजिये जनाब..
ये जिस शाख़ पर बैठे है उसे ही काट रहे हैं,,,।।

मैं उनकी बात सुनकर निरुत्तर हो गया...मुझे अब  इन सेक्युलर कीड़ों के इमोशनल लोचे  का पता चल गया....इनकी रगों में इनके विचारों में .. इस देश की साझा सांस्कृति, सौहार्द, सद्भावना, शान्ति, एकता और इंसानियत का टानिक दौड़ रहा है..और इसी लिए किसी भी मज़हबी दुकानदार का कोई भी एंटी डोज़ इन तथाकथित सेक्यूलर कीड़ों पर असर नहीं कर पा रहा ......और शायद आगे भी यह बिलकुल ही बे-असर ही साबित हो...!!

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