सोमवार, 4 अप्रैल 2016

और भी ग़म हैं दुनिया में क्रिकेट के सिवा !!

क्रिकेट से और उसके बाद विज्ञापनों से लाखों करोड़ों कमाते और उसके बाद IPL के लिए करोड़ों में बिकते क्रिकेट खिलाडियों के वारे न्यारे हो रहे हैं ! क्रिकेट को जब से बाजार का साथ मिला है, क्रिकेट एक उत्पाद की तरह बिकना शुरू हो गया है, क्रिकेट विक्रेताओं ने इस पर राष्ट्रवाद की चाशनी चढ़ा कर इसे एक जूनून के तौर पर परोसना शुरू कर दिया है ! इस चकाचौंध भरे खेल ने देश के बाक़ी खेलों और खिलाडियों का क्या हाल किया है ज़रा एक नज़र उस पर भी :-

1. यह फोटो भारतीय महिला फुटबॉल अंडर 14 की कप्तान रह चुकी सोनी की है जो इसी कच्ची झोपड़ी में रहतीं हैं ! देश का नाम रोशन करने वाली सोनी व उसके परिजन को शौच के लिए आज भी खुले में जाना पड़ता है ! 2010 से फुटबॉल खेल रही सोनी अब तक सोनी कई देशों में जाकर खेल चुकी है !


2. यह फोटो गुजरात की नेशनल लेवल की शूटर पुष्पा गुप्ता का है जो सड़क किनारे नूडल्स बेच रही हैं, पुष्पा का कहना है कि शूटिंग में आगे बढ़ने के लिए उन्हें पैसे की जरूरत थी, इसलिए वह यह छोसी-सी दुकान चला रही हैं ! 21 साल की पुष्पा का कहना है, “अब जबकि मेरे पास अपने पैशन को आगे बढ़ाने के लिए पैसे नहीं तो मैंने यह दुकान खोल ली !” पुष्पा के जीते गए मेडल्स भी उनकी दुकान पर लटके नजर आते हैं !


पुष्पा के पिता दिनेश कहते हैं, “पीएम मोदी महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, लेकिन ये सब टीवी और न्यूजपेपर तक ही रह जाता है। जमीनी हकीकत कुछ और है ! हमें इससे कोई फायदा नहीं हुआ।”
- “हम जहां रहते हैं वहां की विधायक महिला हैं ! सीएम भी महिला हैं। हमें सरकार या स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री से कुछ मदद मिलती तो आज नूडल्स नहीं बेच रहे होते !”


3. यह फोटो16 साल की हरियाणा स्टेट मुक्केबाजी चैम्पियन रिशु मित्तल का है जो कि घरों में झाड़ू-पोछा लगाकर अपना खर्चा चलाती हैं ! रिशू हरियाणा के कैथल से हैं, उन्होंने पिछले साल राज्य मुक्केबाजी प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था ! रिशु बताती हैं कि वह सुबह-शाम बड़ी लगन और मेहनत से मुक्केबाजी का अभ्यास करती हैं। कोच की मदद और कठिन परिश्रम से उसने स्टेट चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता ! रिशु मित्तल बेहद गरीब परिवार से हैं, उसके पास दूध, दही, पनीर और फल खाना तो दूर एक वक्त की रोटी खाने के लिए भी पैसे नहीं होते ! जानकारों का मानना है कि अगर इस खिलाड़ी को यदि पूरी डाइट मिल जाए तो देश की दूसरी ‘मैरीकॉम’बन सकती है !


रिशु ने सितंबर 2014 में राज्य स्तर पर 46 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता ! दिसबंर 2014 में उन्होंने ग्वालियर में हुए राष्ट्रीय खेलों में प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया ! इससे पूर्व 2013 में फरीदाबाद और 2012 में भिवानी में हुए राज्य स्तरीय खेलों में बॉक्सिंग में ही कांस्य पदक भी प्राप्त किया !

4. सड़क पर कचरा उठाते इस खिलाडी का नाम है कमल कुमार, यह  बॉक्सिंग के राज्यस्तरीय खिलाड़ी हैं, कमल कुमार ने 1991 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता और 1993 में यूपी ओलिंपिक में कांस्य पदक और उसी साल जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप अहमदाबाद में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया !इसके बाद 2004 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में रजत और 2006 के राज्य खेलों में कांस्य पदक जीता ! इन सभी उपलब्धियों के बाद भी सूबे के इस बॉक्सर को अपने परिवार का पेट पालने के लिए एक अदद नौकरी की दरकार थी, लेकिन सरकार ने इस खिलाड़ी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया ! आखिरकार उसे कूड़ा उठाने का काम करना पड़ा !


कमल कुमार कानपुर के ग्वालटोली इलाके में वह रिक्शे पर घर-घर जाकर कूड़ा उठाते हैं और बचे हुए समय में पान की दुकान लगाते हैं !
कमल को तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा और राज्य खेलों में पूर्व मंत्री कलराज मिश्रा ने कांस्य पदक से सम्मानित किया था, लेकिन गरीबी के चलते खेल पीछे छूट गया और कहीं सरकारी नौकरी भी न मिली ! इसके बाद जब परिवार पर भूखे मरने की नौबत आई तो कमल ने सारे मेडल घर में टांग दिए और स्नातक की डिग्री भी धरी की धरी रह गई !

5. कार धोने वाले इस खिलाडी का नाम है भारत कुमार जो जिन्होंने प्रकृति से भरत को सिर्फ एक हाथ दिया लेकिन बावजूद इसके न उनके हौंसले कम हुए और न ऊंचे सपनों की उड़ान. एक हाथ और अभावों में भी उन्होंने तैराना सीखा और देश के लिए लिए 50 अंतरराष्ट्रीय पदक भी जीते. उनका सपना है कि वो पैरा ओलंपिक में तैराकी में भारत का प्रतिनिधित्व करें ! DU में पढ़ने वाले भरत आज पैसों की किल्लत से जूझ रहे हैं. अपना पेट पालने के लिए वो रोज़ सुबह गाड़ियां धोते हैं. मदद के लिए उन्होंने PM मोदी से मदद भी मांगी है !!


6. यह फोटो राष्ट्रिय स्टार पर रिकॉर्ड बनाने वाली सिंगुर पश्चिम बंगाल की रहने वाली आशा रॉय का है, जो कि महज़ 11.85 सेकेंड में अपनी दौड़ पूरी करने वाली सबसे तेज़ भारतीय महिला धावक हैं. 2011 कोलकाता में हुए 51 वें राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 200 और 400 मीटर रिले दौड़ में हिस्सा लेकर शानदार प्रदर्शन किया !


अपनी रोज़ाना की ज़िंदगी के लिए आज आशा सब्जियां बेचती हैं. इससे न तो उनकी ज़रूरतें पूरी हो पाती हैं और न ही एथलेटिक्स के लिए भोजन की मांग. लाख गुहार के बाद भी राजनीतिक दलों से उन्हें सिर्फ आश्वासन मिले. इन्हीं हालातों के कारण वो अपने करियर को अलविदा कह चुकी हैं !

7. यह फोटो रेवा मध्य प्रदेश की रहने वाली सीता का है जिनसे कि  2011 एथेंस में हुए स्पेशल ओलंपिक में दो कास्य पदक जीतकर देश को गौरवांवित किया था. सीता ने 200 और 1600 मीटर दौड़ में ये मुकाम पाया था लेकिन इतने शानदार प्रदर्शन के बाद भी आज उसके हालात झकझोर देने वाले हैं !

जीत के बाद शुरूआत में उसे कुछ मदद ज़रूर मिली लेकिन वो इतनी काफी नहीं थी कि उसके ख़्वाबों को उड़ान दे सके. आज वो सड़क पर गोलगप्पे बेचकर अपनी मां का हाथ बंटाती है !

8. यह फोटो पान की दूकान चलाने वाली रश्मिता का है, 12 साल की उम्र में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन करने वालीजो कि अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंची. उनकी टीम ने 2008 मलेशिया में हुए अंडर 16 एशियन फुटबॉल कंफेडेरशन कप में हिस्सा लिया !

2010 में उनके शानदार प्रदर्शन की बदौलत ओडिशा टीम ने राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता जीती. वो एशियन फुटबॉल कंफेडेरशन (AFC) में पहुंचने वाली सीनियर टीम का हिस्सा भी रहीं.  फुटबॉल में उनके वो स्वर्णिम दिन जैसे बीते वक्त की बात हो गई है. आज वो एक गृहणी और मां हैं. अपना घर चलाने के लिए पान की दुकान चलाती है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि फुटबॉल उनके खून में है लेकिन गरीबी ने उसे ख़त्म कर दिया !

9. सब्ज़ी बेचती इस खिलाडी का नाम है शान्ति देवी, कभी देश की महिला कबड्डी टीम की शान रहीं शांति देवी उस दौर की खिलाड़ी थी, जब महिला खिलाड़ी मुश्किल से ही मिलती थीं. 1976 से अपने करियर की शुरुआत करने वाली शांति देवी ने अपने प्रदेश की टीम को 10 से ज़्यादा बार राष्ट्रीय खेलों में प्रतिनिधित्व किया. गुवाहटी राष्ट्रीय कबड्डी लीग में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता था !

अपनी दौर की बेहतरीन खिलाड़ी रहीं शांति देवी आज अपना पेट पालने के लिए सब्जी बेच रही हैं. जमशेदपुर के बाज़ार में उन्हें सब्जी बेचते हुए आज भी देखा जा सकता है. गरीबी का दंश उनके जीवन पर इतना गहरा था कि एक शानदार खिलाड़ी से आज वो एक मज़दूर सी ज़िंदगी बिता रही हैं !

देश में ऐसे ना जाने कितने प्रतिभाशाली खिलाडी अभावों के चलते या तो अपना खेल छोड़ चुके हैं या फिर अपने ही दम पर हाड़तोड़ मेहनत कर जैसे तैसे अपने खेल के जूनून को पूरा कर रहे हैं !

खेल संगठनों की बेरुखी, खेल अधिकारीयों के लचर र'वैये और खेल के नाम पर केवल क्रिकेट को बढ़ावा देने वाले नेताओं का इसमें बराबर का दोष है, यहाँ तक कि देश के राष्ट्रिय खेल की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है, साथ ही भारत के पारम्परिक खेलों और उसके खिलाडियों की लगातार अनदेखी की जा रही है !

प्रसिद्द अंतर्राष्ट्रीय धावक मिल्खा सिंह जी ने ठीक ही कहा था कि क्रिकेट ने देश के सभी खेलों को तबाह कर दिया है !

अगली बार कभी क्रिकेट के लिए चियर्स करें तो उससे पहले एक बार इन पान बेचते, कचरा उठाते, झाड़ू पोंछा करती, सड़क ठेले पर मैडल टांक कर नूडल्स बेचते इन प्रतिभाशाली खिलाडियों के केरियर और उपलब्धियों पर नज़र डालिए और इनकी वर्तमान हालत पर एक बार ज़रूर गौर कीजिये !!

{Source :- दैनिक भास्कर, न्यूज़फ्लिक्स हिंदी}

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