आज कल फेसबुक पर शेरो शायरी के ग्रुप्स और पेजेस की बाढ़ सी आयी हुई है, रोज़ कहीं न कहीं चार पांच ग्रुप्स रोज़ इस विषय पर बनते हैं...और यह सिर्फ one man group होते हैं. फेसबुक पर इसी बात की तो आज़ादी है, विषय और चिंतन का मूल यह है की नयी पीढ़ी क्या हमारी साहित्यिक विरासत को साथ ले कर चल रही है.....चाहे वो उर्दू अदब हो या हिंदी साहित्य,( खासतौर पर फेसबुक की चर्चा इस लिए कर रहा हूँ की यह आज सब से अधिक यूज़र्स वाली साईट हो गयी है...और ORKUT या ibibo का तो ज़िक्र ही करना बेकार है ) तो फेसबुक पर जहाँ भी साहित्य सम्बन्धी ग्रुप या पेज देखा उस एक चीज़ बहुत खटकी...जैसे हिंदी साहित्य या हिंदी शेर-ओ-शायरी या कविता का ग्रुप हो ..तो वहां हिंदी का अकाल देखा, और दूसरा अकाल साहित्यिक समझ का देखा, अधिकतर पोस्ट SMS शायरी जैसी नयी विधा की देखी, जो की एक बेहूदा तुकबंदी और एक text message के अलावा कुछ भी नहीं, और यही बानगी उर्दू अदब और शेर/ग़ज़ल वाले ग्रुप्स और पेजेस में देखने को मिली..वहां भी उर्दू का अकाल देखने को मिला और साहित्यिक समझ और साहित्यिक सुन्दरता नदारद नज़र आयी, वही बेहूदा SMS नुमा दो लाईने या चार लाईने, न कोई तुक न ही बंदी.!
फेसबुक को देश के युवाओं का काफी बड़ा हिस्सा प्रयोग कर रहा है..और उनका प्रतिशत भी अन्य आयु वर्ग के लोगों से काफी अधिक है, और यदि यही वर्ग आज इस सूचना क्रांति के दौर में अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत से दूर होते रहे तो बहुत बुरा होगा....उनकी खुद की अगली पीढ़ी को वो क्या विरासत दे पायेंगे ! कौन याद रखेगा ग़ालिब, मीर को....कौन याद रखेगा प्रेमचंद को, निराला को, रविन्द्रनाथ टेगोर को...??
और फिर वो भी इस दौर में जहाँ आजकल न तो पत्रिकाएं पढने का समय है और न ही शौक... दरअसल इसके मूल में आधुनिकता की भागमभाग और सूचना क्रांति के साधन भी कही न कही negative रोल अदा कर रहे हैं .. और में खड़ा खड़ा पत्थर हो गया....!! जहाँ एक क्लिक से हर मनचाही चीज़ मिल जाए तो पत्रिका और किताबों का क्या ! खैर मूल विषय पर आयें... तो बात फेसबुक की चल रही थी..और अदब और साहित्य की चल रही थी, कहीं भी किसी ग्रुप में जा कर चाहे वो उर्दू ग़ज़लों का हो या शेरों का...आप किसी प्रसिद्द शायर की रचना पोस्ट करिए...फिर देखिये..वहां आपके साथ ऐसा बर्ताव होगा जैसे सड़क पर किसी भिखारी से कतरा कर लोग निकलते हैं....आपकी पोस्ट से भी लोग कतरा के निकल भागते नज़र आयेंगे..और वो पोस्ट एक " like " की आस में ही दम तोड़ देगी...उस पर टिपण्णी तो बहुत दूर की बात होगी...कारण है की...लोगों की साहित्यिक ज्ञान और अदबी समझ रही ही नहीं....वो क्या जाने मीर को, ग़ालिब को, महादेवी वर्मा को, निराला को, प्रेमचंद को....न उनको शुद्ध साहित्य की मिठास की समझ न ही उसकी गहराई से वास्ता....हाँ यदि आप दो लाइन तुकबंदी कर के लिख दें जैसे....
उसने कहा था की मेरा इंतज़ार करना "फ़राज़" ..( ?? )
और में खड़ा खड़ा पत्थर हो गया....!!
अब इस वाहियात शेर पर आपको इतने " like " और इतने कमेंट्स मिलेंगे की दिल बाग़ बाग़ हो जाएगा, और आप चाहें तो "फ़राज़" की जगह "मोहसिन" लगा सकते हैं, "ज़फर" भी चलेगा , और थोड़ी हिम्मत कर के "ग़ालिब" भी लगा सकते हैं...."ग़ालिब" लगाने पर तीन चार कमेंट्स और बढ़ सकते हैं.! और में खड़ा खड़ा पत्थर हो गया....!!
ऐसे में हम तो यही दुआ करते हैं की इस पीढ़ी को कैसे न कैसे कर के अपने उर्दू अदब और हिंदी साहित्य से परिचित कराया जाए, उन को इनकी खूबियाँ , इनका गौरव बताया जाए..जहाँ भी संभव हो ..आप और हम यह प्रण कर लें की जब भी और जहाँ भी मौका मिले इस अनजान पीढ़ी में से किसी एक को भी यदि हमने इस विरासत से परिचित करा दिया तो यह एक अमूल्य योगदान होगा..अदब और साहित्य के लिए! .यह हमारी विरासत है...और यह हमारी ज़िम्मेदारी है की इस को हम बा-वक़ार तरीके से अगली पीढ़ी को सौंप कर गौरवान्वित हों....!!
( यहाँ बशीर बद्र साहब की किताब का चित्र मैंने इसी लिए चुना है की उनको उर्दू और हिंदी में बराबर पढ़ा और सराहा जाता है, और इज्ज़त दी जाती है.)
फेसबुक को देश के युवाओं का काफी बड़ा हिस्सा प्रयोग कर रहा है..और उनका प्रतिशत भी अन्य आयु वर्ग के लोगों से काफी अधिक है, और यदि यही वर्ग आज इस सूचना क्रांति के दौर में अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत से दूर होते रहे तो बहुत बुरा होगा....उनकी खुद की अगली पीढ़ी को वो क्या विरासत दे पायेंगे ! कौन याद रखेगा ग़ालिब, मीर को....कौन याद रखेगा प्रेमचंद को, निराला को, रविन्द्रनाथ टेगोर को...??
और फिर वो भी इस दौर में जहाँ आजकल न तो पत्रिकाएं पढने का समय है और न ही शौक... दरअसल इसके मूल में आधुनिकता की भागमभाग और सूचना क्रांति के साधन भी कही न कही negative रोल अदा कर रहे हैं .. और में खड़ा खड़ा पत्थर हो गया....!! जहाँ एक क्लिक से हर मनचाही चीज़ मिल जाए तो पत्रिका और किताबों का क्या ! खैर मूल विषय पर आयें... तो बात फेसबुक की चल रही थी..और अदब और साहित्य की चल रही थी, कहीं भी किसी ग्रुप में जा कर चाहे वो उर्दू ग़ज़लों का हो या शेरों का...आप किसी प्रसिद्द शायर की रचना पोस्ट करिए...फिर देखिये..वहां आपके साथ ऐसा बर्ताव होगा जैसे सड़क पर किसी भिखारी से कतरा कर लोग निकलते हैं....आपकी पोस्ट से भी लोग कतरा के निकल भागते नज़र आयेंगे..और वो पोस्ट एक " like " की आस में ही दम तोड़ देगी...उस पर टिपण्णी तो बहुत दूर की बात होगी...कारण है की...लोगों की साहित्यिक ज्ञान और अदबी समझ रही ही नहीं....वो क्या जाने मीर को, ग़ालिब को, महादेवी वर्मा को, निराला को, प्रेमचंद को....न उनको शुद्ध साहित्य की मिठास की समझ न ही उसकी गहराई से वास्ता....हाँ यदि आप दो लाइन तुकबंदी कर के लिख दें जैसे....
उसने कहा था की मेरा इंतज़ार करना "फ़राज़" ..( ?? )
और में खड़ा खड़ा पत्थर हो गया....!!
अब इस वाहियात शेर पर आपको इतने " like " और इतने कमेंट्स मिलेंगे की दिल बाग़ बाग़ हो जाएगा, और आप चाहें तो "फ़राज़" की जगह "मोहसिन" लगा सकते हैं, "ज़फर" भी चलेगा , और थोड़ी हिम्मत कर के "ग़ालिब" भी लगा सकते हैं...."ग़ालिब" लगाने पर तीन चार कमेंट्स और बढ़ सकते हैं.! और में खड़ा खड़ा पत्थर हो गया....!!
ऐसे में हम तो यही दुआ करते हैं की इस पीढ़ी को कैसे न कैसे कर के अपने उर्दू अदब और हिंदी साहित्य से परिचित कराया जाए, उन को इनकी खूबियाँ , इनका गौरव बताया जाए..जहाँ भी संभव हो ..आप और हम यह प्रण कर लें की जब भी और जहाँ भी मौका मिले इस अनजान पीढ़ी में से किसी एक को भी यदि हमने इस विरासत से परिचित करा दिया तो यह एक अमूल्य योगदान होगा..अदब और साहित्य के लिए! .यह हमारी विरासत है...और यह हमारी ज़िम्मेदारी है की इस को हम बा-वक़ार तरीके से अगली पीढ़ी को सौंप कर गौरवान्वित हों....!!
( यहाँ बशीर बद्र साहब की किताब का चित्र मैंने इसी लिए चुना है की उनको उर्दू और हिंदी में बराबर पढ़ा और सराहा जाता है, और इज्ज़त दी जाती है.)
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