सोशल मीडिया पर मुसलमानो द्वारा कन्हैया के समर्थन में आने पर कई मुस्लिम बुद्धिजीवी, ओवैसी समर्थक, और कुछ राष्ट्रिय मुस्लिम मंच टाइप के मुसलमान ऊँगली उठा रहे हैं !
इनमें कुछ तो इस्लाम की दुहाई देकर, 'राष्ट्रप्रेम' की हिज्जे कर मुसलमानो को इस मुहीम से अलग करने की नाकाम कोशिश करते देखे गए हैं, तो कुछ वामदलों के इतिहास की दुहाई देकर इस मुहीम को फेल करने में लगे नज़र आये !
क्योंकि मैं इन तीनो चारों श्रेणियों में से ना हो कर एक आम सोशल मीडिया यूज़र हूँ, इस नाते यहाँ जो सालों से देखा और महसूस किया उसके हिसाब से इसमें कोई बुराई नहीं होना चाहिए !
देश का मुसलमान अपनी विचारधारा और राजनैतिक समझ के अनुसार कई हिस्सों में बंटा हुआ है, यहाँ सोशल मीडिया पर कांग्रेस, भाजपा, AAP , सपा, बसपा, वामदल और कई क्षेत्रीय दलों के समर्थक मुसलमान मौजूद हैं !
ऐसे में अगर कोई ओवैसी समर्थक यह ऐतराज़ करे कि इससे अच्छी स्पीच तो ओवैसी ने हज़ार बार दे डाली, मुसलमानो ने क्यों वाह वाही नहीं की ?
यहाँ बात गौर करने की यह है कि कन्हैया एक गरीब घर का युवक है, एक छात्र है, उसकी तुलना खाते पीते, बैरिस्टर और घाघ नेता ओवैसी से या उनके भाषणो से क्यों ? क्या कन्हैया कोई चुनाव लड़ने जा रहा है, या मुस्लिम वोट बैंक छीन कर भाग रहा है ?
रही बात ओवैसी समर्थकों की या उनके भाषणो की तो यहाँ सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों के हल्लेबाज़ी कम नहीं है, वो सब कुछ यहाँ कई बार शेयर कर चुके हैं और वाह वाही करा चुके हैं !
कन्हैया तो बाद में गिरफ्तार हुआ है, यहाँ सोशल मीडिया पर यही मुसलमान रोहित वेमुला के मुद्दे पर भी रोहित के समर्थन में एकजुट थे, तब किसी को क्यों आपत्ति नहीं हुई ?
यहाँ रोहित वेमुला या कन्हैया या फिर उमर खालिद के मुद्दे पर मुसलमानो के एकजुट हो जाने का मतलब उनकी तथाकथित वाम विचारधारा का समर्थन कैसे मान लिया जाए ?
यह थोपे जा रहे छद्म राष्ट्रवाद और संघ के साम्प्रदायिक एजेंडे के प्रति प्रतिरोध के खिलाफ आवाज़ है जिसके लिए मुसलमान एकजुट हो कर कन्हैया की आवाज़ में आवाज़ मिला रहे हैं !
हालिया दौर अस्थिर, साम्प्रदायिक उन्माद, और ज़बर राष्ट्रवादी लठैती का दौर है, ऐसे में अगर मुसलमान सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कन्हैया की आवाज़ में सुर मिला रहे हैं तो मेरे ख्याल से किसी को ऐतराज़ नहीं होना चाहिए !
ओवैसी साहब अपना काम करते रहें, उनके समर्थक (अगर वाक़ई दिल से हैं) तो कहीं भागकर नहीं जाने वाले, और जो समर्थक नहीं है, वो ऐसी नसीहतों से समर्थक नहीं बनने वाले !
इसलिए अगर कोई अन्याय के और व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठा रहा है, तो उसकी आवाज़ में आवाज़ मिलाने का अधिकार सबको है, इसपर रोक लगाना मेरे ख्याल से लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन ही कहा जायेगा !
फिर भी मुसलमानो को ऐसे मुद्दों पर इस या आगे किसीऔर कन्हैया का समर्थन करने से रोकेंगे तो फिर भक्तों में आप लोगों में क्या फ़र्क़ रह जायेगा भला ?
इनमें कुछ तो इस्लाम की दुहाई देकर, 'राष्ट्रप्रेम' की हिज्जे कर मुसलमानो को इस मुहीम से अलग करने की नाकाम कोशिश करते देखे गए हैं, तो कुछ वामदलों के इतिहास की दुहाई देकर इस मुहीम को फेल करने में लगे नज़र आये !
क्योंकि मैं इन तीनो चारों श्रेणियों में से ना हो कर एक आम सोशल मीडिया यूज़र हूँ, इस नाते यहाँ जो सालों से देखा और महसूस किया उसके हिसाब से इसमें कोई बुराई नहीं होना चाहिए !
देश का मुसलमान अपनी विचारधारा और राजनैतिक समझ के अनुसार कई हिस्सों में बंटा हुआ है, यहाँ सोशल मीडिया पर कांग्रेस, भाजपा, AAP , सपा, बसपा, वामदल और कई क्षेत्रीय दलों के समर्थक मुसलमान मौजूद हैं !
ऐसे में अगर कोई ओवैसी समर्थक यह ऐतराज़ करे कि इससे अच्छी स्पीच तो ओवैसी ने हज़ार बार दे डाली, मुसलमानो ने क्यों वाह वाही नहीं की ?
यहाँ बात गौर करने की यह है कि कन्हैया एक गरीब घर का युवक है, एक छात्र है, उसकी तुलना खाते पीते, बैरिस्टर और घाघ नेता ओवैसी से या उनके भाषणो से क्यों ? क्या कन्हैया कोई चुनाव लड़ने जा रहा है, या मुस्लिम वोट बैंक छीन कर भाग रहा है ?
रही बात ओवैसी समर्थकों की या उनके भाषणो की तो यहाँ सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों के हल्लेबाज़ी कम नहीं है, वो सब कुछ यहाँ कई बार शेयर कर चुके हैं और वाह वाही करा चुके हैं !
कन्हैया तो बाद में गिरफ्तार हुआ है, यहाँ सोशल मीडिया पर यही मुसलमान रोहित वेमुला के मुद्दे पर भी रोहित के समर्थन में एकजुट थे, तब किसी को क्यों आपत्ति नहीं हुई ?
यहाँ रोहित वेमुला या कन्हैया या फिर उमर खालिद के मुद्दे पर मुसलमानो के एकजुट हो जाने का मतलब उनकी तथाकथित वाम विचारधारा का समर्थन कैसे मान लिया जाए ?
यह थोपे जा रहे छद्म राष्ट्रवाद और संघ के साम्प्रदायिक एजेंडे के प्रति प्रतिरोध के खिलाफ आवाज़ है जिसके लिए मुसलमान एकजुट हो कर कन्हैया की आवाज़ में आवाज़ मिला रहे हैं !
हालिया दौर अस्थिर, साम्प्रदायिक उन्माद, और ज़बर राष्ट्रवादी लठैती का दौर है, ऐसे में अगर मुसलमान सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कन्हैया की आवाज़ में सुर मिला रहे हैं तो मेरे ख्याल से किसी को ऐतराज़ नहीं होना चाहिए !
ओवैसी साहब अपना काम करते रहें, उनके समर्थक (अगर वाक़ई दिल से हैं) तो कहीं भागकर नहीं जाने वाले, और जो समर्थक नहीं है, वो ऐसी नसीहतों से समर्थक नहीं बनने वाले !
इसलिए अगर कोई अन्याय के और व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठा रहा है, तो उसकी आवाज़ में आवाज़ मिलाने का अधिकार सबको है, इसपर रोक लगाना मेरे ख्याल से लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन ही कहा जायेगा !
फिर भी मुसलमानो को ऐसे मुद्दों पर इस या आगे किसीऔर कन्हैया का समर्थन करने से रोकेंगे तो फिर भक्तों में आप लोगों में क्या फ़र्क़ रह जायेगा भला ?
बेहतरीन पोस्ट.... बिलकुल सटीक विश्लेषण..
जवाब देंहटाएंबहोत बेहतरीन सटीक एकदम
जवाब देंहटाएंबहोत बेहतरीन सटीक एकदम
जवाब देंहटाएंबढ़िया....👍👍👍
जवाब देंहटाएंबढ़िया....👍👍👍
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