स्मार्ट फोन हमारी ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा होने के साथ साथ हमारी कमज़ोरी भी बनते जा रहे हैं, और साथ ही हमें वास्तविक दुनिया से काटने का जरिया भी बनते नज़र आ रहे हैं, हम सड़कों पर, बस स्टैंड्स, रेलवे स्टेशंस पर, शादियों में, पार्टियों में....लोगों को आस पास के लोगों से बेखबर अपनी आभासी दुनिया में खोया हुआ देख सकते हैं !
पहले हम पारिवारिक आयोजनो में जाने अनजाने लोगों से मिलने जुलने में जितना समय बिताते थे, अब उस समय में कहीं कटौती नज़र आने लगी है ! हर आदमी अब स्मार्ट फोन को अधिक समय देता नज़र आने लगा है ! हर आदमी कहीं न कहीं अकेला अपने स्मार्ट फोन को सहलाता नज़र आता है !
इसके साथ ही हर वक्त अपडेट-अपडेट देखना, नया अपलोड करना है, किसने क्या, कमैंट किया है, ये ऐसी चीजें हो गई हैं जो हर समय दिमाग में घूमती रहती हैं, यह सब साइबर सिकनेस, फेसबुक डिप्रैशन और इंटरनैट एडिक्शन डिसऑर्डर जैसी मनोवैज्ञानिक बीमारियां ही हैं, जिन्हें इसके आदी लोग मानने को तैयार नहीं होते !
इस साइबर सिकनेस का बड़ा कारण इंटरनेट और सोशल मीडिया है, जिसे वैज्ञानिकों ने डिजिटल शराब का भी खिताब दिया है, युवा पीढ़ी इस लत के खुमार का सबसे ज़्यादा शिकार नज़र आ रही है ! यह भी सच है कि सूचना क्रांति के इस दौर में हम सब इससे अछूते नहीं रह सकते, मगर इस लत पर कंट्रोल करना हमारे ही हाथ में है, कोशिश करना चाहिए कि इस लत की गुलामी से आज़ाद होने के तरीकों को वक़्त वक़्त पर आज़माया जाए, और बच्चों को भी इसके दुष्प्रभावों से बचाने की कोशिश की जाए !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें