देश में अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की आड़ लेकर कुछ मसीहा, विचारक, और क्रांतिकारी योजनाबद्ध तरीके से बापू की विचार धारा का अंतिम संस्कार करने में जुट गए हैं...वैचारिक आतंकवाद बोया जा रहा है...नवयुवकों को देशप्रेम के नाम से, परिवर्तन के नाम से उकसाया जा रहा है, संविधान, संसद और लोकतंत्र को कोसने का मन्त्र दिया जा रहा है...संविधान और लोकतंत्र को गालियाँ दी जा रही हैं....केवल सरकार ही इनको देशद्रोही और लोकतंत्र की हत्यारी नज़र आ रही है....बाक़ी दलों और राजनेताओं को नेपथ्य में रखा जा रहा है...और उन सबको एकदम दूध के धुले और देशप्रेमी बताया जा रहा है... ....फासीवादी या दक्षिण पंथी विचारधारा को देशप्रेम का चोला पहना कर लोगों को परोसा जा रहा है...कई संगठन अचानक से सक्रीय हो गए हैं...सौहार्द, शान्ति और भाई चारे की बातें करने वालों को उक्त स्वयंभू मसीहा.....सेक्यूलर कीड़ों की संज्ञा दे रहे हैं...बापू के निर्वाण दिवस को गोडसे के शौर्य दिवस के रूप में मनाये जाने और गोडसे की फोटो अपने घरों में लगाए जाने की वकालत होने लगी है... और अपरिपक्व नवयुवकों को नए राष्ट्र और दूसरी आज़ादी के सपने दिखाए जा रहे हैं... यह कौनसी देश भक्ति है....और देश को यह कर्णधार कहाँ ले जाना चाहते हैं....?
सूचना क्रान्ति के इस दौर में...सब कुछ आईने की तरह साफ़ है....एक खुली किताब की तरह ...पटल पर सब कुछ मोजूद है....इन्टरनेट से लेकर गलियों तक क्या बोया जा रहा है...और क्या काटना चाह रहे हैं.....किस किस संगठन के क्या क्या एजेंडे हैं......अब किसी से छुपा नहीं है...मगर इसके परिणाम काफी हानि प्रद और भयंकर होने वाले हैं....ऐसी फासीवादी और विघटन वादी विचार धारा से देश में कुछ ब्रेनवाश हुए सर फिरे लोगों की जमात के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला .!इन्टरनेट जैसा हथियार यदि गलत हाथों में पड़ जाए...या कोई संगठन यदि उसका ढंग से दुरूपयोग करे...तो कितना हानिप्रद हो सकता है...इसका ताज़ा उदाहरण पिछले वर्ष नार्वे में आंद्रे ब्रेविक नामक सर फिरे युवक द्वारा किये गए नरसंहार से मिलता है.....और उसका भारतीय कनेक्शन भी जग ज़ाहिर है....और भारत में भी ऐसा वैचारिक आतंकवाद आरम्भ हो चुका है, और इसके पीछे छिपे संगठन, स्वयंभू क्रांतिकारी, मसीहा....भी सब की नज़रों में आ चुके हैं...और हैरत नहीं होना चाहिए...की निकट भविष्य में देश में उपद्रव, हिंसा, अराजकता या किसी राजनैतिक हत्याओ के लिए इस विघटन वादी विचारधारा का ही पूर्ण योगदान हो ..!
.मगर यह सब शायद यह भूल जाते हैं..की गाँधी आज भी प्रसांगिक है...सद्भावना, भाईचारे और एकता से ही हमने फल पाए हैं, और उन्नति की है....विकास किया है....हमारे देश में आपसी सहनशीलता और मजहबी भाईचारे की एक अटूट परपंरा रही है। अनेकता और बहुलता की इज्जत करना हमारी तहजीब और सभ्यता का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, हम सब को इस विरासत को मजबूत तौर पर बनाए रखना है, उन्नति, प्रगति की राह हमेशा ही अमन और शान्ति से निकली है...न की अतिवाद,अराजकता या विघटन से ।अब आवयश्कता है आपसी मैत्री को नष्ट करने वालों की पहचान करने की. अब समय है सुख, चैन और शांति छिनने वालों के नकाब उतारने का, क्योंकि जैसा की इकबाल ने कहा था की :- ‘शक्ति भी शान्ति भी भक्तों के गीत में है, धरती के वासियों की मुक्ति प्रीत में है’. आज हमें देश के विकास, उन्नति और विश्व गुरु बनने के लिए...और नए गाँधी व कलाम चाहिए...मगर ..अब और गोडसे... बिलकुल नहीं....कतई नहीं....!!
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