वुडरो विल्सन ने एक बार कहा था, ‘जिस देश पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाएँ, या उस का बहिष्कार कर दिया जाए, वो जल्द ही आत्मसमर्पण कर देता है. इस सस्ते, शांतिपूर्ण, शांत और घातक उपाय को अपनाओ तो बल प्रयोग की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. यह एक भयानक उपाय है. जिस देश पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है..या जिस देश का बहिष्कार किया जाता है, उसके बाहर किसी की जान नहीं जाती, मगर मेरे विचार से इससे देश पर इतना दबाव पड़ता है, कि कोई भी आधुनिक राष्ट्र इसका मुकाबला नहीं कर सकता.’ दशकों बाद इसके जवाब में गैबॉन के पूर्व राष्ट्रपति उमर बॉन्गो ने प्रतिबंध का विरोध करते हुए कहा था, ‘... यह बात समझना जरूरी है कि जब अमेरिका, यूरोप या संयुक्त राष्ट्र किसी सरकार पर प्रतिबंध लगाते हैं तो आमतौर पर लाखों लोगों को सीधे तौर पर सजा झेलनी पड़ती है.’ समय के साथ प्रतिबंध लगाने के कारणों में पूरी तरह परिवर्तन आ चुका है और अब यह ज्यादातर अपने हितों और सामरिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है....!
.आतंकवादी संगठनों को संरक्षण देने और ओसामा बिन लादेन को शरण देने की वजह से पाकिस्तान का नाम पूरी दुनिया में बदनाम है. लेकिन किसी भी तरह का प्रतिबंध इन दोनों देशों पर नहीं लगाया गया. इसकी क्या वजह है? क्योंकि वे अमेरिकी आदेशों का अक्षरश: पालन करते रहे हैं! ठीक यही बात तालिबान के साथ भी है, जिसे अमेरिका ने ही पैदा किया है.. .इराक और अफगानिस्तान को बर्बाद करने के बाद, ईरान की तेल संपदा पर कब्जे करने के लिए अमेरिका पूरी कोशिश कर रहा है. आखिरकार, सभी ओपेक देश उसके नियंत्रण में हैं, सिवाय ईरान के. लेकिन ओबामा का यह कदम आसान नहीं होगा, क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक तौर पर ईरान, अपनी तरह के तमाम अन्य देशों की तुलना में ज्यादा कुछ झेल सकने की क्षमता रखता है. अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए, आत्मसम्मान के प्रति ईरान के समर्पण, अकेले लडऩे के साहस और नाटो की ताकत की परवाह न कर आज उसने परमाणु औद्ध्योगिकी में सक्षमता हासिल कर पूरे विश्व में तहलका मचा दिया है...और ईरान ने अमेरिका और इजराइल के अतिवाद, दुष्प्रचार और प्रतिबन्ध को एक करार तमाचा मारा है....जिसको दोनों अतिवादी देश काफी देर तक सहलाते रहेंगे....!!
प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट 'बहती गंगा' पर आप सादर आमंत्रित हैं।
जवाब देंहटाएंप्रेम सरोवर जी....हार्दिक आभार.....'बहती गंगा' को follow करता हूँ....यह मेरा सौभाग्य है...!
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