जिस तरह से तगड़ी मार्केटिंग के ज़रिये बाजार में किसी भी प्रकार का उत्पाद जमकर बेचा जा सकता है, उसी तर्ज़ पर अब राजनीति में भी करोड़ों खर्च कर मार्केटिंग के ज़रिये सपनो के बेचने की परंपरा चल निकली है, मार्केटिंग का मूल मन्त्र यही होता है, कि बेचे जाने वाले उत्पाद को दूसरी कंपनी के उत्पादों से किसी भी तरह से बेहतर साबित करना, और कैसे भी करके ग्राहक को यह विश्वास दिलाना कि यदि वो यह उत्पाद खरीद लेगा तो बहुत ही फायदे में रहेगा ! इसके लिए बड़े बड़े दावे किये जाते हैं, अन्य कंपनियों के उत्पादों की कमियां बताकर अपने उत्पाद को श्रेष्ठ बताया जाता है !
जब यह मार्केटिंग सफल हो जाती है तो कंपनी के उत्पादों की जमकर खरीदारी होती है, कंपनी मालामाल हो जाती है, साथ ही एक नियम यह भी होता है कि उत्पाद बेचे जाने के साथ ही कम्पनियाँ अपने अपने सर्विस सेंटर स्थापित करती है ताकि ग्राहक को उत्पाद की बिक्री के बाद आने वाले किसी भी समस्या या तकनीकी परेशानी से मुक्ति मिल सके !
अब राजनीति में ठीक इसी फंडे को आज़माया जाने लगा है, लोगों को जमकर सपने बेचे जाने लगे हैं, जनता की दुखती नब्ज़ पर हाथ रख कर नारे तय किये जाने लगे हैं, उनके आक्रोश के अनुसार सपने तैयार किये जाने लगे हैं, और पी.आर. एजेंसीज की मदद से तगड़ी मार्केटिंग के ज़रिये यह साबित किया जाने लगा है कि हमारे सपने उच्च श्रेणी के हैं, और यदि आप राज़ी हैं तो न सिर्फ आप बल्कि समाज और देश भी निहाल हो जायेगा !
पिछले सपनो के पूरे ना होने या नए लुभावने सपनो की चाहत लिए जनता मन्त्र मुग्ध हो कर सपने खरीद लेती है, वो यह नहीं देखती कि यह किस प्रकार से पूरे होंगे, वो यह भी नहीं देखती कि इन सपनो की ऑफ्टर सेल्स सर्विस का भी कोई इंतज़ाम है या नहीं, जहाँ वो किसी सपने की तकनीकी खामी के लिए शिकायत तो कर सकता हो, या इन के पूरे ना होने या असफल होने की स्थिति में कोई अन्य विकल्प तो मौजूद हो !
राजनीति में सपनो के बेचे जाने के बाद उनके पूरा किये जाने का कोई नियम लागू होता भी नहीं है, भले ही जनता सड़कों पर ऊतर आये, बड़े बड़े किये गए वायदे उस समय बहानो में तब्दील होते नज़र आते हैं, और ठीक बाजार की परंपरा के अनुसार जनता को यह समझाया जाता है कि हेड आफिस को इस बाबत सूचना भेज दी गयी है, सबर रखिये, या फिर सम्बंधित डीलरों पर मामला टाल दिया जाता है, या फिर यह कहा जाता है कि फ़लाँ फ़लाँ कंपनी के तो फ़लाँ उत्पाद में यह कमी पायी गयी थी, कौनसी नयी बात है !
और असहाय जनता हर बार की तरह खरीदे गए सपनो को किरचों की तरह चूर चूर होता हुआ देख निढाल हो कर रह जाती है, कोई चारा नहीं रह जाता है, क्योंकि सपनो की क्षति पूर्ती तो नहीं हो सकती ...ना ही इनका कोई अन्य विकल्प हो सकता है, और ना ही इन टूटे हुए सपनो के लिए कोई ऑफ्टर सेल्स सर्विस सेंटर होता है !!
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