डॉ. जेन गुडॉल (Jane Goodall) का नाम विश्व के सम्माननीय जंतु वैज्ञानिक (Zoologist) के रूप में लिया जाता है। जेन गुडाल का जन्म 3 अप्रेल 1934 को लन्दन में हुआ था, उन्होंने डार्विन कालेज, केम्ब्रिज और न्यूहेम कालेज, कैम्ब्रिज से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी, शिक्षा पूरी करने के बाद जेन गुडाल ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जॉब किया उसके बाद वो अपने एक मित्र की मार्फ़त केन्या में मशहूर anthropologist ....Louis Leakey के संपर्क में आयीं और उसके बाद उनको साथ एंथ्रोपोलॉजी से सम्बंधित शोध भी किया, इसी दौरान उन्हें चिम्पेनजियों पर भी काम करने के लिए दिए गए ! अफ्रीका में जेन गुडाल ने न सिर्फ वहाँ के वन्य जीवन को बहुत नज़दीकी से देखा...बल्कि चिम्पेनजियों के संकट ग्रस्त जीवन ने भी उनको बहुत प्रभावित किया !
उन्होंने तय कर लिया कि वो खुद अपने दम पर अफ्रीका के इन चिम्पेनजियों के जीवन को बचने और उनके पुनर्वास लिए काम करेंगी, और आखिर में उनको इस कार्य के लिए ग्रानाडा टेलिविज़न के रूप में स्पांसर भी मिल गए जो कि उनके इस एनीमल डॉक्युमेंट्री प्रोजेक्ट के लिए धन तथा अन्य सुविधाएँ देने को राज़ी हो गए, डा. जेन गुडाल ने अपनी माँ और एक अफ्रीकी रसोइये के साथ जुलाई 1960 को अपना काम अफ्रीकी देश तंजानिया के गोम्बे स्ट्रीम नेशनल पार्क शुरू किया जो कि अभी तक जारी है...डा. जेन गुडाल ने चिपेन्जियों के लिए अफ्रीका में 1960 से लेकर 1995 तक काम किया था !
डा. जेन गुडाल ने घने जंगलों में रहकर चिंपाजियों के साथ व्यतीत किया और उनपर शोध कार्य किया। उन्होंने अपने शोध के द्वारा बताया कि हम मानवों की तरह चिंपैंजी भी साथ-साथ खेलना, काम करना, लड़ना आदि काम करते हैं, ज गुडॉल विश्व भर में गोम्ब जैसे कई स्थानों के जंगलों को नष्ट करने वाले लोगों से बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं। उनके द्वारा स्थापित संस्था ‘रूट्स एण्ड शूट्स’ (Roots & Shoots) 70 देशों के स्कूल एवं कॉलेजों को पर्यावरण पशु और जनजाति की रक्षा के लिए प्रेरित कर ही है। एक चिप रिसर्चर होने के नाते वे संयुक्त राष्ट्र की शांति की संदेशवाहक (UN Messenger of Peace) भी हैं ! नेशनल जियोग्राफिक मेगज़ीन के कवर पेजो पर डा. जेन गुडाल की चिम्पैंजियों के साथ वाली कई फोटो को स्थान मिला !
26 वर्ष की अवस्था में चिम्पैंजियों पर शोध कार्य प्रारम्भ करने वाली डा. जेन गुडॉल की बदौलत इंसान के सबसे नज़दीकी इस चिम्पैंजी के जीवन के छिपे हुए हर पहलू को विज्ञान तक पहुँचाया है...और इस प्रजाति को विलुप्ति के कगार से बचाया भी है...इनके अद्वितीय कार्यों के लिए जेन गुडाल को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने पी,एच,डी, की उपाधि प्रदान की है, और इसके अलावा उन्हें कई बड़े प्रतिष्ठित विश्व विख्यात पुरस्कार भी मिल चुके हैं : इनको मिले विश्व विख्यात पुरस्कारों की लाइन इतनी लम्बी है कि यहाँ देने से यह लेख बहुत ही लम्बा हो जाएगा...संक्षिप्त में आप इस लिंक पर क्लिक कर उनके जीवन और कार्यों तथा पुरस्कारों के बारे में विस्तार से पढ़ सकते हैं...लिंक यह है :- http://en.wikipedia.org/wiki/Jane_Goodall !
डा. जेन गुडाल आजकल कई फार्मास्यूटिकल कंपनियों में व्यस्त हैं तथा उसके साथ ही साथ पर्यावरण संरक्षण के कार्य में भी लगी हुई हैं। गुडॉल ने अपने अध्ययनों का निचोड़ स्वयं द्वारा रचित दो किताबों ‘वाइल्ड चिम्पैंजीस’ (Wild Chimpanzees), ‘इन द शैडो ऑफ मैन’ (In the shadow of man) में दिए हैं। इसके अतिरिक्त उनके पुस्तकें 'अफ्रीका इन माई ब्लड' (Africa in my blood) एवं 'हार्वेस्ट फॉर होप: एक गाइड टू माइंडफुल ईटिंग' (Harvest for Hope : A Guide to Mindful Eating) भी काफी चर्चित हैं !
आज उनके कार्यों को विश्व भर में मान्यता मिल रही है तथा अफ्रीका के घने वर्षा वनों में चिपेन्जियों का जीवन सुरक्षित होने लगा है...तथा चिंपैंजियों की अठखेरियां एक बार फिर जीवंत हो गई हैं !
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