शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

इस्लामोफोबिया क्यों ..और कैसे ??

9/11 हमलों के बाद अमेरिकी शह पर #मुस्लिम_विरोध की एक नयी लहर को विस्तार दिया गया है, और इस लहर को नाम दिया गया है 'इस्लामोफोबिया', यानी इस्लाम के खिलाफ घृणा या इस्लाम से असम्यक् भय ! इस्लामोफोबिया शब्द की खोज ब्रिटेन में एक दशक पूर्व 1996 में स्वघोषित कमीशन ऑन ब्रिटिश मुस्लिम एंड इस्लामोफोबिया ने की थी. और अब इसका उपयोग मुसलमानों के विरुद्ध पूर्वाग्रह के रुप में किया जाने लगा है ! जाहिर है एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा किया जा रहा है! न सिर्फ अमेरिका बल्कि यूरोप के कई मुल्क इस इस नकारात्मक भेदभाव वाले लफ्ज़ इस्लामोफोबिया के बहाने मुसलमानो के धार्मिक अधिकारों पर पाबन्दी लगाने में जुट गए, जैसे कि फ़्रांस और बेल्जियम में बुर्क़े पर पाबंदी लगा देना, इसके पीछे कई वाहियात दलीलें दी गयीं हैं, उनका मानना है कि बुर्का बंधनमुक्त समाज की नीति के प्रतिकूल है !

इसके अलावा #पोलैंड #जर्मनी #स्विट्जरलैंड #ऑस्ट्रिया और #ब्रिटेन में भी इस्लामोफोबिया (इस्लाम के खिलाफ घृणा) तेज़ी से फैल रहा है यहाँ के लोग अपने देश में मुसलमानो को शक की नज़र से देखने लगे हैं, वास्तविकता यह है कि इस पूर्वाःग्रह के पीछे #यहूदी लाबी जमकर सक्रिय है, और #करोड़ों_डालर इस इस्लामोफोबिया मुहीम पर खर्च किये जा रहे हैं ! इस्लाम के खिलाफ पैदा किये जाने वाले इस घृणित हव्वे को अब कई देश अपने अपने हिसाब से केश कराने में लगे हैं...यदि #इंटरनेट को खंगाला जाए तो कई आश्चर्यजनक और काफी हद तक वितृष्णा पैदा करने वाले तथ्य सामने आते हैं। दक्षिणपंथी और मुस्लिम विरोधी संगठन...इस हव्वे का अपनी अपनी योजनाओं के हिसाब से भुना रहे हैं, नार्वे में आंद्रे ब्रेविक द्वारा किया गया नर संहार जिसमें तक़रीबन 77 लोगों को उस अकेले ने मौत की घाट उतार दिया था...वजह थी ..सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मुस्लिम विरोधी साइटों से उसका जुड़ा रहना !

ऐसे हालात में मुख्यधारा के #मुसलमानों को #क्या_करना चाहिए ?
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अब वक़्त आ गया है कि #दुनिया_के_मुसलमान इस धृणित लहर इस्लामोफोबिया के खिलाफ एकजुट हो जाएँ, और इसको बे-असर करने - झूठा साबित करने के लिए आगे आयें, और गैर इस्लामी भाइयों को इस्लाम की खूबियों से वाक़िफ़ कराएं, नफरत के इस ज़हर को नफरत और जोश से कम नहीं किया जा सकता, मुसलमानों को अपना आत्मनिरीक्षण करने की भी ज़रुरत है, कोशिश होनी चाहिए कि हम फौरी तौर (तत्काल) पर अपने ही समाज में हिंसक और उग्रवादी तत्वों से लड़ने और उन्हें बेनकाब करने की कोशिश करें। ये खासतौर से नज़रियाती (वैचारिक) तौर पर करना होगा, आखिरकार ये एक नज़रियाती जंग है इन लोगों को अपने धर्म को उग्रवादी मुसलमानों और जाहिल उलमा के हाथों से बचाने की कोशिश करनी चाहिए। मेरे मुताबिक यही एक रास्ता है कि हमें इस्लाम की अमन और सद्भाव के धर्म और बहुलवाद वाले समाजों में सह-अस्तित्व की समझ को स्पष्ट और ज़ोरदार अंदाज़ में प्रचारित करना चाहिए। और इसमें क़ुरान करीम की आयतें और नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहे वसल्लम (स.अ.व.) का करिदार हमारे लिए मददगार होगा। पूरी दुनिया के मुसलमान अगर इस नफरत की मुहीम 'इस्लामोफोबिया' के खिलाफ उठ खड़े हो जाए तो अमरीका और गिनती के यूरोपीय मुल्कों कि क्या मजाल कि इस नफ़रत के पौधे को आगे खाद पानी देने की हिम्मत करे !

#नोट:- अभी हाल ही में हैदराबाद में जनवरी में हुए जमात-ए-इस्लामी हिंद द्वारा यहां आयोजित स्प्रिंग ऑफ इस्लाम सम्मेलन में ब्रिटिश पत्रकार, #मोहतरमा_वॉन्नी_रिडले को वीजा देने से इंकार कर दिया था, बाद में उन्होंने वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए लड़कियों, महिलाओं और पत्रकारों के तीन सत्रों को सम्बोधित किया। यह वही मोहतरमा वॉन्नी रिडले है जिन्हे तालिबान ने 2001 में बंधक बना लिया था और 2003 में रिहाई के बाद खुद उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था, यह वॉन्नी रिडले मोहतरमा भी इसी 'इस्लामोफोबिया के खिलाफ अपनी आवाज़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुलंद किये हुए हैं ! आप इन Yvonne Ridley के बारे में इंटरनेट या फिर WIKIPEDIA पर तफ्सील से पढ़ भी सकते हैं, WIKIPEDIA लिंक यह है :- http://en.wikipedia.org/wiki/Yvonne_Ridley 



Śỹëd Äsîf Älì
February 3' 2014



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