हाल ही में हुए देश में हुए दो बड़े आंदोलनों जनलोकपाल
और काले धन का विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट नज़र आता है कि यह दोनों आन्दोलन
विपक्ष की पस्ती और सरकार की मस्ती की ही देन है, जहाँ भाजपा ने अपना आधार
खोया है, आपसी फूट और अंदरूनी कलह के कारण भाजपा राष्ट्रीय हितों से
ज्यादा पार्टी के झगडे सुलटाने में ही व्यस्त नज़र आयी है, वो चाहे भावी
प्रधान मंत्री का पद हो या हाल ही में हुए गडकरी मामले की फजीहत !
उधर वर्तमान मिली जुली सरकार के शासन काल में हुए घोटालों के कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से उछला और आगे जाकर इसने आन्दोलन को जन्म दिया, आन्दोलन के जन्म पर भी छीना झपटी हुई थी ...अडवानी जी ने कहा की इस आन्दोलन का झंडा सबसे पहले मैंने उठाया था ..उधर बाबा रामदेव का कहना था की भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन उनकी देन है, देखा जाए तो यहाँ विपक्ष के निठल्लेपन के कारण यह मुद्दा (भ्रष्टाचार) आन्दोलन के रूप में परिवर्तित हुआ, जो कार्य विपक्ष को करना चाहिए था उसको एक आन्दोलन के रूप में परिवर्तित कर अन्ना ने जनलोकपाल आन्दोलन प्रारंभ किया और इसको व्यापक जनसमर्थन मिला !
मगर बाद में टीम अन्ना निजी टकराव के कारण बिखरी और टीम केजरीवाल का जन्म हुआ ...यह एक प्रबल प्रवाह के विभाजित होने जैसा हादसा ही कहा जा सकता है, इस विभाजन से कई समर्पित लोगों की आशाओं पर कुठाराघात भी हुआ, केजरीवाल ने अपनी पार्टी बना कर राजनीति में कूदने का ऐलान किया और एक के बाद एक खुलासे कर कुछ समय के लिए जनता का ध्यान आकर्षित किया, मगर जहाँ एक के बाद हुए खुलासों से पिछले खुलासे दबते गए, वहीँ इन खुलासों के निष्कर्ष और इन पर तर्क सम्मत कानूनी दबाव बनाने में टीम केजरीवाल की मंशा बिलकुल नज़र नहीं आयी !
आन्दोलनों से लोकतंत्र का शुद्धिकरण होता है, आमजन की देश के प्रति जागरूकता बढती है, सहभागिता बढती है, जो की बहुत ज़रूरी है, भारत जैसे देश में आन्दोलन के नाम पर या किसी लुभावने नारे पर जनता को घरों से निकालना बहुत मुश्किल होता है, मगर जब जनता घरों से निकल कर सड़कों पर आ जाती है, तो उसके आक्रोश के प्रवाह को सार्थक निष्कर्ष तक पहुँचाना भी आन्दोलनकारियों का कर्तव्य होता है ! जिसमें कि अभी तक असफलता ही नज़र आई है, हाँ यह बात ज़रूर है कि सरकार पर दबाव बना है, लोकपाल पर बनी कमेटी ने कुछ संशोधनों के साथ अंतिम मसौदा सरकार को दिया है, और दूसरी और देश में इन ज्वलंत मुद्दों पर जागरूकता बढ़ी है और राजनैतिक पार्टियाँ भी खूब सचेत हुई हैं।
केजरीवाल महोदय आज से राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं ...मगर राजनीति के अखाड़े में बहुत कुछ और भी होता है, सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी नारे मात्र से ही कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता, चुनावों में मुद्दे इसके अलावा भी बहुत होते हैं, इसका जीता जागता उदाहरण उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम हैं, जहाँ न कांग्रेस का जादू चला न भाजपा का, न मायावती का, न बाबा के काले धन आन्दोलन का और न ही अन्ना के जनलोकपाल आन्दोलन का !
अब आज केजरीवाल ने अपनी पार्टी "आम आदमी पार्टी " ( जिसे अंग्रेजी में देखा जाए तो " AAP " (आप) जैसा भान भी होता है )...की घोषणा की है ..तो मुझे लगता है कि इसे पिछले आंदोलनों की सफलता, असफलता, आपसी मनमुटाव, टीम विभाजन के बाद इसको एक आशा की किरण ही कहा जा सकता है, मगर बहुत धूमिल, देखना है कि इस किरण को वो कितना प्रज्जवलित करते हैं ...और घरों से निकली ...आंदोलनों की नूरा कुश्ती से हतप्रभ और भ्रमित जनता के सपनो को यथार्थ में बदलते है ...आशा और शुभक��मनाओं के साथ !!
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उधर वर्तमान मिली जुली सरकार के शासन काल में हुए घोटालों के कारण भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से उछला और आगे जाकर इसने आन्दोलन को जन्म दिया, आन्दोलन के जन्म पर भी छीना झपटी हुई थी ...अडवानी जी ने कहा की इस आन्दोलन का झंडा सबसे पहले मैंने उठाया था ..उधर बाबा रामदेव का कहना था की भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन उनकी देन है, देखा जाए तो यहाँ विपक्ष के निठल्लेपन के कारण यह मुद्दा (भ्रष्टाचार) आन्दोलन के रूप में परिवर्तित हुआ, जो कार्य विपक्ष को करना चाहिए था उसको एक आन्दोलन के रूप में परिवर्तित कर अन्ना ने जनलोकपाल आन्दोलन प्रारंभ किया और इसको व्यापक जनसमर्थन मिला !
मगर बाद में टीम अन्ना निजी टकराव के कारण बिखरी और टीम केजरीवाल का जन्म हुआ ...यह एक प्रबल प्रवाह के विभाजित होने जैसा हादसा ही कहा जा सकता है, इस विभाजन से कई समर्पित लोगों की आशाओं पर कुठाराघात भी हुआ, केजरीवाल ने अपनी पार्टी बना कर राजनीति में कूदने का ऐलान किया और एक के बाद एक खुलासे कर कुछ समय के लिए जनता का ध्यान आकर्षित किया, मगर जहाँ एक के बाद हुए खुलासों से पिछले खुलासे दबते गए, वहीँ इन खुलासों के निष्कर्ष और इन पर तर्क सम्मत कानूनी दबाव बनाने में टीम केजरीवाल की मंशा बिलकुल नज़र नहीं आयी !
आन्दोलनों से लोकतंत्र का शुद्धिकरण होता है, आमजन की देश के प्रति जागरूकता बढती है, सहभागिता बढती है, जो की बहुत ज़रूरी है, भारत जैसे देश में आन्दोलन के नाम पर या किसी लुभावने नारे पर जनता को घरों से निकालना बहुत मुश्किल होता है, मगर जब जनता घरों से निकल कर सड़कों पर आ जाती है, तो उसके आक्रोश के प्रवाह को सार्थक निष्कर्ष तक पहुँचाना भी आन्दोलनकारियों का कर्तव्य होता है ! जिसमें कि अभी तक असफलता ही नज़र आई है, हाँ यह बात ज़रूर है कि सरकार पर दबाव बना है, लोकपाल पर बनी कमेटी ने कुछ संशोधनों के साथ अंतिम मसौदा सरकार को दिया है, और दूसरी और देश में इन ज्वलंत मुद्दों पर जागरूकता बढ़ी है और राजनैतिक पार्टियाँ भी खूब सचेत हुई हैं।
केजरीवाल महोदय आज से राजनीति में प्रवेश कर रहे हैं ...मगर राजनीति के अखाड़े में बहुत कुछ और भी होता है, सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी नारे मात्र से ही कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता, चुनावों में मुद्दे इसके अलावा भी बहुत होते हैं, इसका जीता जागता उदाहरण उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम हैं, जहाँ न कांग्रेस का जादू चला न भाजपा का, न मायावती का, न बाबा के काले धन आन्दोलन का और न ही अन्ना के जनलोकपाल आन्दोलन का !
अब आज केजरीवाल ने अपनी पार्टी "आम आदमी पार्टी " ( जिसे अंग्रेजी में देखा जाए तो " AAP " (आप) जैसा भान भी होता है )...की घोषणा की है ..तो मुझे लगता है कि इसे पिछले आंदोलनों की सफलता, असफलता, आपसी मनमुटाव, टीम विभाजन के बाद इसको एक आशा की किरण ही कहा जा सकता है, मगर बहुत धूमिल, देखना है कि इस किरण को वो कितना प्रज्जवलित करते हैं ...और घरों से निकली ...आंदोलनों की नूरा कुश्ती से हतप्रभ और भ्रमित जनता के सपनो को यथार्थ में बदलते है ...आशा और शुभक��मनाओं के साथ !!
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