अन्ना ने अप्रेल 2011 को जब इस आन्दोलन का बिगुल बजाया
...तो अपार समर्थन मिली...और इस सफलता के मद में चूर हो कर सबसे
पहले...टीम अन्ना ने IAC के founder member बाबा रामदेव को बाहर का रास्ता
दिखा दिया...यह उनकी पहली गलती थी....दूसरी गलती ...हिसार में केजरीवाल का
खुलकर कांग्रेस के खिलाफ बडबोला पन...भी सभी को पता है..और यूं.पी चुनावों
में अन्ना फेक्टर का फेल होना....फिर तो बाद के आन्दोलनों में ऐसा लगने
लगा कि यह आन्दोलन अन्ना का नहीं होकर ...केजरीवाल का है...जो अपने
राजनैतिक महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं....और
इसकी झलक...कोर कमिटी से लगातार निकाले गए पुराने सदस्य...( स्वामी
अग्निवेश को छोड़कर) के रूप में नज़र आने लगी...जो भी केजरीवाल के आड़े
आया...उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया...यह गलती भी आन्दोलन को पलीता
लगाने में सहायक हुई....!
25 अगस्त को टीम अन्ना ने जनलोकपाल पर " आर-पार " की घोषणा के साथ जंतर मंतर पर डेरा जमा लिया...और उनके पुराने अंदाज़...कविताएं, भजन, और सरकार को कोसने का खेल शुरू हो गया....इस बार जनलोकपाल के बजाय...14 दागी मंत्रियों के खिलाफ SIT पर जोर रहा....सरकार ने इस बार इन को इन कि असली हैसियत बताने की शायद ठान ही ली थी.....सो कोई खैर खबर नहीं ली गयी. दूसरी बात सेनापति केजरीवाल ने भी अनशन की घोषणा कर डाली...और बैठ गए.....मगर तीन चार दिन बाद ही हालत बिगड़ी......तो भर्ती होने से इनकार भी किया ...और साथ में ही यह भी चाहा कि कहीं मर न जाए....यानी बलिदान देने से भी परहेज़.....यानी वो निगमानंद नहीं बनना चाहते थे....और साथ में यह भी चाहते थे कि...जनता उनको मसीहा माने.....सो तय हुआ कि...23 गणमान्य व्यक्तियों के प्रायोजित पत्र को लेकर..इस बार श्री श्री ..की जगह अनुपम खेर साहब पधारे और .अनशन तुडवाने की मनुहार का ड्रामा किया ...और वही हुआ.....अचानक से ही 3 अगस्त को शाम 5 बजे अनशन तोड़ने की घोषणा और खुद का राजनैतिक दल बनाने की घोषणा के बाद यह घोषणा हुई कि अब जनता दो दिन में हमें राय दे कि हम क्या राजनीति में आये....या नहीं.....? यानी आज़ादी की दूसरी लड़ाई के नाटक का अफसोसनाक पटाक्षेप....फिर तीसरी लड़ाई के लिए कौन निकलेगा.....?
यानी जैसा कि देश के काफी प्रबुद्ध गण पहले से ही उम्मीद कर रहे थे....वही हुआ...टीम अन्ना का राजनैतिक एजेंडा सामने आ ही गया...यदि यह आन्दोलन तीन दिन और खींच लिया जाता तो नक्शा ही दूसरा होता...मगर बलिदान कौन करे....? सो तय यह हुआ कि ...इस आन्दोलन की बलि दे दी जाए....जो कि पहले से ही तय था...कह सकते हैं कि जनलोकपाल....वो सीढ़ी थी....जिसकी बदौलत टीम अन्ना ने अपने राजनैतिक निवेश को मज़बूत किया....और अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षा को पूरा किया...!
टीम अन्ना के सदस्यों ने ...विशेषकर...केजरीवाल, कुमार विश्वास, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी ने ...इस आन्दोलन से जुड़े करोडो लोगो की भावनाओं से खिलवाड़ किया गया है, ठगा है...मूर्ख बनाया गया है.....टीम अन्ना के सदस्यों ने न केवल जनता को बेवकूफ बनाया है...बल्कि अन्ना को भी इस्तेमाल किया है...अँधेरे में रखा है......और अपने शब्द उनके मूँह से कहलवाए हैं... अब यह लोग केजरीवाल को बचाने के लिए...जनता को SMS पोल ...यानी अपनी राय के झुनझुने में उलझाये हैं....कि हम यह करें या वो करें....? करना इनको वही है....जो यह ठाने हुए हैं...यानी अपनी राजनैतिक पार्टी बनाना., इन लोगों ने न केवल एक जन आन्दोलन को बहुत शर्मनाक मौत दी है...बल्कि भविष्य में होने वाले आंदोलनों का मार्ग भी कहीं न कहीं अवरुद्ध किया है...!!
25 अगस्त को टीम अन्ना ने जनलोकपाल पर " आर-पार " की घोषणा के साथ जंतर मंतर पर डेरा जमा लिया...और उनके पुराने अंदाज़...कविताएं, भजन, और सरकार को कोसने का खेल शुरू हो गया....इस बार जनलोकपाल के बजाय...14 दागी मंत्रियों के खिलाफ SIT पर जोर रहा....सरकार ने इस बार इन को इन कि असली हैसियत बताने की शायद ठान ही ली थी.....सो कोई खैर खबर नहीं ली गयी. दूसरी बात सेनापति केजरीवाल ने भी अनशन की घोषणा कर डाली...और बैठ गए.....मगर तीन चार दिन बाद ही हालत बिगड़ी......तो भर्ती होने से इनकार भी किया ...और साथ में ही यह भी चाहा कि कहीं मर न जाए....यानी बलिदान देने से भी परहेज़.....यानी वो निगमानंद नहीं बनना चाहते थे....और साथ में यह भी चाहते थे कि...जनता उनको मसीहा माने.....सो तय हुआ कि...23 गणमान्य व्यक्तियों के प्रायोजित पत्र को लेकर..इस बार श्री श्री ..की जगह अनुपम खेर साहब पधारे और .अनशन तुडवाने की मनुहार का ड्रामा किया ...और वही हुआ.....अचानक से ही 3 अगस्त को शाम 5 बजे अनशन तोड़ने की घोषणा और खुद का राजनैतिक दल बनाने की घोषणा के बाद यह घोषणा हुई कि अब जनता दो दिन में हमें राय दे कि हम क्या राजनीति में आये....या नहीं.....? यानी आज़ादी की दूसरी लड़ाई के नाटक का अफसोसनाक पटाक्षेप....फिर तीसरी लड़ाई के लिए कौन निकलेगा.....?
यानी जैसा कि देश के काफी प्रबुद्ध गण पहले से ही उम्मीद कर रहे थे....वही हुआ...टीम अन्ना का राजनैतिक एजेंडा सामने आ ही गया...यदि यह आन्दोलन तीन दिन और खींच लिया जाता तो नक्शा ही दूसरा होता...मगर बलिदान कौन करे....? सो तय यह हुआ कि ...इस आन्दोलन की बलि दे दी जाए....जो कि पहले से ही तय था...कह सकते हैं कि जनलोकपाल....वो सीढ़ी थी....जिसकी बदौलत टीम अन्ना ने अपने राजनैतिक निवेश को मज़बूत किया....और अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षा को पूरा किया...!
टीम अन्ना के सदस्यों ने ...विशेषकर...केजरीवाल, कुमार विश्वास, मनीष सिसोदिया और किरण बेदी ने ...इस आन्दोलन से जुड़े करोडो लोगो की भावनाओं से खिलवाड़ किया गया है, ठगा है...मूर्ख बनाया गया है.....टीम अन्ना के सदस्यों ने न केवल जनता को बेवकूफ बनाया है...बल्कि अन्ना को भी इस्तेमाल किया है...अँधेरे में रखा है......और अपने शब्द उनके मूँह से कहलवाए हैं... अब यह लोग केजरीवाल को बचाने के लिए...जनता को SMS पोल ...यानी अपनी राय के झुनझुने में उलझाये हैं....कि हम यह करें या वो करें....? करना इनको वही है....जो यह ठाने हुए हैं...यानी अपनी राजनैतिक पार्टी बनाना., इन लोगों ने न केवल एक जन आन्दोलन को बहुत शर्मनाक मौत दी है...बल्कि भविष्य में होने वाले आंदोलनों का मार्ग भी कहीं न कहीं अवरुद्ध किया है...!!
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