बुधवार, 21 दिसंबर 2011

असली तानाशाह और हत्यारा कौन~~~~??

कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की मौत के साथ लीबिया में एक नए दौर की शुरुआत होगी या नहीं  ? यह बात अलग है कि भावी युग कैसा होगा, इस बारे में अभी भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कर्नल गद्दाफी ने लीबिया पर 42 साल तक शासन किया। इ दो महीने पहले राजधानी त्रिपोली से उन्हें खदेड़ने के बाद जिस राष्ट्रीय संक्रमणकालीन परिषद ने सत्ता संभाली, और जिसने फ्रांस, ब्रिटेन एवं अमेरिका के सहयोग से आखिरकार गद्दाफी के आखिरी गढ़ सर्त पर कब्जा करते हुए उन्हें मार डाला, वह कबीलाई वफादारी एवं गद्दाफी खेमे से पाला बदलने वाले सैनिक अधिकारियों को लेकर बनी है। इसलिए यह सवाल अपनी जगह कायम है कि अब लीबिया में किस प्रकार के और किस हद तक लोकतंत्र का प्रयोग होगा, जो पिछले दस महीनों से पश्चिम एशिया एवं उत्तर अफ्रीका के देशों में जारी अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा sponsored  जन विद्रोह की मुख्य मांग है।
अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा प्रायोजित और तेल के खेल के लिए, बदलाव के नाम पर यह लहर लीबिया से पहले ट्यूनिशिया और मिस्र के तानाशाहों को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक चुकी है और फिलहाल सीरिया, यमन और बहरीन में उसकी उथल-पुथल जारी है। और इसका सीधा लक्ष्य सीरिया और फिर मुख्य रूप से ईरान है, इस अमेरिकी और ब्रिटिश रण नीति के दो फायदे हैं, एक तो तेल के भंडारों पर क़ब्ज़ा जमाना, और दूसरा सीरिया और ईरान से इजराइल को सुरक्षित करना.
मगर पश्चिमी देशों का दोहरे मानदंडों पर आधारित दखल और उस क्षेत्र की तेल संपदा पर उनकी निगाह ने इस पूरी परिघटना को उलझा रखा है। तानाशाहों के पतन के बाद ईराक का बुरा हाल पूरी दुनिया देख रही है, और  मिस्र एवं ट्यूनिशिया के घटनाक्रम भी उम्मीद से ज्यादा आशंकाओं को जन्म देते रहे हैं। ऐसे में गद्दाफी का अंत नई संभावनाओं का आगाज भले हो, लेकिन उनका अंजाम क्या होगा- इसकी चिंता से दुनिया अभी मुक्त नहीं हो सकती।


मीडिया में गद्दाफी की मौत और उसके negative पहलू को लेकर काफी चर्चाएँ हो रही हैं, और यह सब यूरोपियन मीडिया का दिया और परोसा कूड़ा है, जो हू बा हू जनता को पेश किया जा रहा है..!
लेकिन अगर सच्चाई को सही मायने में देखा जाये तो गद्दाफी एक राष्ट्र भक्त था गद्दाफी के बारे में दुनिया वही  जानती है जो पश्चिम की मौका परस्त मिडिया ने दिखाया ...अपने देश के दुश्मनों को कौन नहीं कुचलता है गद्दाफी ने भी उन्ही को कुचला जो अमेरिका व नाटो का साथ दे रहे थे ... अमेरिका ने  केवल अपनी तेल की प्यास मिटने के लिए इराक व् उसके बाद लीबिया में यह  काण्ड किया,.. आज लीबिया में जो लोग जश्न मना रहे है वो भी एक दिन इराक की जनता की तरह मातम मनाएंगे ...!

१. अगर हमारे देश में कोई दूसरा  देश यंहा के
नागरिको को हथियार व पैसा देकर देश
विरोधी काम करवाए तो क्या हमें उन्हें
नहीं कुचलना चाहिए , गदाफी ने
भी वही  किया जो एक देश के शासक
को करना चाहिए , लेकिन भारत की तरह
उसने अपने यंहा कसाब व् अफजल की तरह
मेहमान बनाकर नहीं रखा..!!

२. गद्दाफी ही अरब में एक ऐसा राष्ट्र
वादी शासक था जिसने अमेरिका और ब्रिटेन के तलवे
चाटने से मना कर दिया उसी के कारण आज
उसको सजा ऐ मौत मिली यही सद्दाम के साथ हुआ था और आज ईराक
वालोँ को इसका एहसास हो गया है..!!

अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, और फ़्रांस ने लगातार अरब देशों में तानाशाहों को कुचलने के नाम पर या लोकतंत्र का टुकड़ा दिखा कर जो अफरा तफरी और हिंसा मचाई है, उससे तो साफ़ ज़ाहिर होता है की इस समय पूरे विश्व में केवल एक ही चौधरी और एक ही तानाशाह है...और वो है अमेरिका !!

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