एक लोकतांत्रिक नागरिक सरकार के लिए मिश्र के लोग लगातार कोशिश कर रहे हैं, मगर मिश्र में इस समय जो फौजी नेतृत्व है, उस के शीर्ष कमांडर मोहम्मद तनतावी भी होस्नी मुबारक के चहेते रहे हैं, कल से लेकर आज तक 36 लोग मारे जा चुके हैं और फिर एक बार मिश्र में एक बार फिर तहरीर चौक जिंदा हो गया है, लोग सैनिक सरकार के खिलाफ और जल्द चुनाव की मांग को लेकर Million 's March निकालने जा रहा हैं, मिश्र के सामान ही तानाशाह से छुटकारा पाए ट्यूनीशिया के चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो चुके हैं, l लेकिन मिस्र से जो संकेत मिल रहे हैं, वे बहुत अच्छे नहीं हैं। वहां की फौज के हाथों में इस वक्त सत्ता की बागडोर है और ऐसा महसूस हो रहा है कि एक स्वस्थ लोकतांत्रिक बदलाव को प्रोत्साहित करने के बजाय उसे अपनी सत्ता बचाए रखने में कहीं अधिक दिलचस्पी है। अमेरिका मिस्र को सालाना 1.3 अरब डॉलर की सैन्य सहायता देता है, ऐसे में ओबामा प्रशासन की उससे यह अपेक्षा जायज है कि मिस्र का फौजी नेतृत्व इजरायल के साथ 1979 के शांति समझौते का सम्मान बदस्तूर जारी रखे। लेकिन ओबामा प्रशासन को इन बातों के लिए भी मिस्र की सेना पर दबाव बनाना चाहिए कि वह मुल्क में निष्पक्ष चुनाव की गारंटी दे और सत्ता से हटने की तिथि की भी घोषणा करे। मिस्र में नई संसद के चुनाव के लिए 28 नवंबर को वोट पड़ने वाले हैं। लेकिन जो योजना फौजी जनरलों ने तैयार की है, वह चकरा देने वाली है।..
इसके मुताबिक पूरी चुनाव प्रक्रिया तीन महीने तक चलेगी। उसके बाद ही मिस्रवासी एक परिषद का चुनाव करेंगे, जिस पर नया संविधान तैयार करने की जिम्मेदारी होगी। उस संविधान पर परिषद जनमत-संग्रह कराएगी और उसके पश्चात नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी। इस तरह, फौज को एक और वर्ष या उससे अधिक वक्त तक सत्ता पर काबिज रहने का मौका मिल जाएगा। फौजी जनरलों के एजेंडे को लेकर संदेह उस वक्त और गहरा गया, जब उन्होंने अमेरिकी फौज द्वारा मिस्र के चुनावकर्मियों व तमाम राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की कोशिश पर अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने चुनावों में अंतरराष्ट्रीय ऑब्जर्वरों की तैनाती को भी बाधित करने की कोशिश की। दर असल इन सबके पीछे दो तीन मुख्य कारण विशेष हैं, पहला तो सब जानते हैं...इजराईल की चिंता, दूसरा मिश्र में Muslim Brotherhood नामक संगठन, जिस की गतिविधियाँ साफ़ तौर पर अमेरिका विरोधी रही हैं, इस बार सत्ता में चुनाव जीत कर सरकार बना सकता है, तीसरा कारण है सैन्य सरकार को किसी भी सूरत में कमज़ोर नहीं करना, क्योंकि अमेरिका मिश्री सेना को अरबों की मदद इसी लिए देता है कि वो मिश्र से ज्यादा अमेरिकी हितों का ध्यान रखे....ऐसे में लगता तो नहीं है कि अंतरिम सरकार के इस्तीफे के बाद भी निष्पक्ष चुनाव और लोकतान्त्रिक सरकार का गठन मिश्र में हो पायेगा....जब तक अमेरिका कि हरी झंडी नहीं मिलती...तहरीर चौक बार बार सुलगता ही रहेगा.....!!
इसके मुताबिक पूरी चुनाव प्रक्रिया तीन महीने तक चलेगी। उसके बाद ही मिस्रवासी एक परिषद का चुनाव करेंगे, जिस पर नया संविधान तैयार करने की जिम्मेदारी होगी। उस संविधान पर परिषद जनमत-संग्रह कराएगी और उसके पश्चात नए राष्ट्रपति का चुनाव करेगी। इस तरह, फौज को एक और वर्ष या उससे अधिक वक्त तक सत्ता पर काबिज रहने का मौका मिल जाएगा। फौजी जनरलों के एजेंडे को लेकर संदेह उस वक्त और गहरा गया, जब उन्होंने अमेरिकी फौज द्वारा मिस्र के चुनावकर्मियों व तमाम राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की कोशिश पर अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने चुनावों में अंतरराष्ट्रीय ऑब्जर्वरों की तैनाती को भी बाधित करने की कोशिश की। दर असल इन सबके पीछे दो तीन मुख्य कारण विशेष हैं, पहला तो सब जानते हैं...इजराईल की चिंता, दूसरा मिश्र में Muslim Brotherhood नामक संगठन, जिस की गतिविधियाँ साफ़ तौर पर अमेरिका विरोधी रही हैं, इस बार सत्ता में चुनाव जीत कर सरकार बना सकता है, तीसरा कारण है सैन्य सरकार को किसी भी सूरत में कमज़ोर नहीं करना, क्योंकि अमेरिका मिश्री सेना को अरबों की मदद इसी लिए देता है कि वो मिश्र से ज्यादा अमेरिकी हितों का ध्यान रखे....ऐसे में लगता तो नहीं है कि अंतरिम सरकार के इस्तीफे के बाद भी निष्पक्ष चुनाव और लोकतान्त्रिक सरकार का गठन मिश्र में हो पायेगा....जब तक अमेरिका कि हरी झंडी नहीं मिलती...तहरीर चौक बार बार सुलगता ही रहेगा.....!!
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