मशहूर शायर निदा फाजली साहब ने यह शेर कुछ देख सोच कर ही कहा होगा..
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी ...
जब भी किसी को देखना कई बार देखना..!!
और अब इस शेर कि सच्चाई पर साइंस ने भी मोहर लगा दी है...!! अमेरिका में एक बहुत बड़े मनोचिकित्सक हुए, डॉ. एरिक बर्न। उन्होंने सैकड़ों मरीजों का उपचार किया और उसके बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि इंसान एक अखंड व्यक्तित्व नहीं है, उसके अंदर कई केंद्र होते हैं, जो तरह-तरह के व्यक्तित्व बनकर उभरते हैं। अपने अनुभवों की बुनियाद पर उसने एक किताब लिखी: ‘गेम्स पीपुल्स प्ले।’ हालांकि किताब के नाम से मैं सहमत है हूँ, क्योंकि यह गेम आदमी नहीं खेलते, यह तो एक मनोवैज्ञानिक पहलू से सम्बंधित घटना होती है, इस पर आदमी का कोई बस नहीं होता...!
बर्न एक वकील का इलाज कर रहे थे, जो उस समय का प्रसिद्ध और संपन्न वकील था। एक सम्मोहन सत्र के दौरान वह बोला, ‘मैं वकील नहीं हूं, मैं एक छोटा बच्चा हूं।’ फिर अगले सत्रों में कई बार वकील बर्न से पूछता, ‘आप वकील से बोल रहे हैं या बच्चे से ?’ यह देखकर बर्न का कौतूहल जगा। उन्होंने धीरे-धीरे अन्य मरीजों के विश्लेषण के दौरान भी पाया कि एक व्यक्ति में कम से कम तीन लोग बसते हैं, बच्चा, मां-बाप और वयस्क। और ये तीन लोग क्रमश: बदलते रहते हैं। कब बच्चा उभरता है और कब मां-बाप बोलने लगते हैं, कहा नहीं जा सकता। यह बदलाव सिर्फ शब्दों में प्रकट नहीं होता, बल्कि शब्दों से तो बहुत कम कहा जाता है, चेहरे के हाव-भाव, देह भाषा, शरीर के तापमान और अन्य कई शब्दातीत संकेतों से उस व्यक्ति की मंशा का पता चलता है। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब कोई भी इंसान बोलता है, तो संप्रेषण केवल उसके शब्दों से ही नहीं होता, जिस तरह शब्द कहे जाते हैं, उससे होता है। चेहरे की भंगिमा द्वारा भी संप्रेषण होता है। जब हम बचपन में अपने से बड़ों के विचार, भाव और आचरण का अनुकरण कर रहे हों, तब पहला केंद्र सक्रिय होता है। भारतीय लोगों में यह केंद्र बहुत अधिक सक्रिय होता है, क्योंकि यहां बच्चों पर मां-बाप का गहरा असर होता है। आदमी वयस्क तब होता है, जब जीवन को सीधे संवेदित करता है। यह तब होता है, जब हम भूतकाल से प्रभावित नहीं होते या उसके प्रभाव को मिटा देते हैं।
अब यह बात साइंस ने भी मान ली है कि कोई भी व्यक्तित्व एकल नहीं होता, उस के अन्दर दो तीन व्यक्तित्व छुपे होते हैं, और जो समय समय पर अपना रूप प्रकट करते रहते हैं, तो रहिये तैयार अपने अन्दर के अन्य व्यक्तित्व के केन्द्रों को सहेजने के लिए....!!By : Syed Asif Ali Hashmi
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी ...
जब भी किसी को देखना कई बार देखना..!!
और अब इस शेर कि सच्चाई पर साइंस ने भी मोहर लगा दी है...!! अमेरिका में एक बहुत बड़े मनोचिकित्सक हुए, डॉ. एरिक बर्न। उन्होंने सैकड़ों मरीजों का उपचार किया और उसके बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि इंसान एक अखंड व्यक्तित्व नहीं है, उसके अंदर कई केंद्र होते हैं, जो तरह-तरह के व्यक्तित्व बनकर उभरते हैं। अपने अनुभवों की बुनियाद पर उसने एक किताब लिखी: ‘गेम्स पीपुल्स प्ले।’ हालांकि किताब के नाम से मैं सहमत है हूँ, क्योंकि यह गेम आदमी नहीं खेलते, यह तो एक मनोवैज्ञानिक पहलू से सम्बंधित घटना होती है, इस पर आदमी का कोई बस नहीं होता...!
बर्न एक वकील का इलाज कर रहे थे, जो उस समय का प्रसिद्ध और संपन्न वकील था। एक सम्मोहन सत्र के दौरान वह बोला, ‘मैं वकील नहीं हूं, मैं एक छोटा बच्चा हूं।’ फिर अगले सत्रों में कई बार वकील बर्न से पूछता, ‘आप वकील से बोल रहे हैं या बच्चे से ?’ यह देखकर बर्न का कौतूहल जगा। उन्होंने धीरे-धीरे अन्य मरीजों के विश्लेषण के दौरान भी पाया कि एक व्यक्ति में कम से कम तीन लोग बसते हैं, बच्चा, मां-बाप और वयस्क। और ये तीन लोग क्रमश: बदलते रहते हैं। कब बच्चा उभरता है और कब मां-बाप बोलने लगते हैं, कहा नहीं जा सकता। यह बदलाव सिर्फ शब्दों में प्रकट नहीं होता, बल्कि शब्दों से तो बहुत कम कहा जाता है, चेहरे के हाव-भाव, देह भाषा, शरीर के तापमान और अन्य कई शब्दातीत संकेतों से उस व्यक्ति की मंशा का पता चलता है। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब कोई भी इंसान बोलता है, तो संप्रेषण केवल उसके शब्दों से ही नहीं होता, जिस तरह शब्द कहे जाते हैं, उससे होता है। चेहरे की भंगिमा द्वारा भी संप्रेषण होता है। जब हम बचपन में अपने से बड़ों के विचार, भाव और आचरण का अनुकरण कर रहे हों, तब पहला केंद्र सक्रिय होता है। भारतीय लोगों में यह केंद्र बहुत अधिक सक्रिय होता है, क्योंकि यहां बच्चों पर मां-बाप का गहरा असर होता है। आदमी वयस्क तब होता है, जब जीवन को सीधे संवेदित करता है। यह तब होता है, जब हम भूतकाल से प्रभावित नहीं होते या उसके प्रभाव को मिटा देते हैं।
अब यह बात साइंस ने भी मान ली है कि कोई भी व्यक्तित्व एकल नहीं होता, उस के अन्दर दो तीन व्यक्तित्व छुपे होते हैं, और जो समय समय पर अपना रूप प्रकट करते रहते हैं, तो रहिये तैयार अपने अन्दर के अन्य व्यक्तित्व के केन्द्रों को सहेजने के लिए....!!By : Syed Asif Ali Hashmi
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