जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये..
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये,
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़..
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये,
जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को..
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये..!!
(अदम गोंडवी)
यह रचना खुद-ब-खुद ही उनके विचार और तेवर बयान कर देती है...साहित्य जगत के यह बहुत बड़ी क्षति है...!
प्रगतिशील धारा के हिंदी के बहुचर्चित गज़लकार अदम गोंडवी यानी रामनाथ सिंह का आज सुबह 5.10 बजे निधन हो गया। उन्हें जिगर की बिमारी थी।
उनका जन्म 22 अक्टूबर 1947 को आटा ग्राम, परसपुर, गोंडा, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने हिंदी गजल को अलग पहचान दी। मुशायरों में घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफ़ेद गमछा डाले जब वह गंवई अंदाज में पहुंचते थे तो लोग बहुत ध्यान नहीं देते थे, पर जब वह गजल-कविता सुनाता तो लोग हैरान रह जाते थे। ‘धरती की सहत पर’, ‘समय से मुठभेड़’ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
22 अक्तूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के आटा परसपुर गांव में जन्में अदम गोंडवी के दो संग्रह धरती की सतह पर और समय से मुठभेड़ प्रकाशित हुये थे लेकिन उनकी जनवादी कवितायें पूरे हिंदी प्रदेश में लोकप्रिय रही हैं. “काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में, राम राज उतरा विधायक निवास में” और “जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में, गांव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में” जैसी कविताओं के लिये मशहूर अदम गोंडवी उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के अटा परसपुर गांव में रहते थे और वहीं खेती करते थे. अदम गोंडवी और उनकी कविताओं पर कई विद्यार्थियों ने पीएचडी की थी !
ऐसे नामवर और ज़मीन से जुड़े शायर को हम सभी की और से भावभीनी और अश्रुपूरित श्रद्धांजलि....!!
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये,
जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़..
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये,
जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को..
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये..!!
(अदम गोंडवी)
यह रचना खुद-ब-खुद ही उनके विचार और तेवर बयान कर देती है...साहित्य जगत के यह बहुत बड़ी क्षति है...!
प्रगतिशील धारा के हिंदी के बहुचर्चित गज़लकार अदम गोंडवी यानी रामनाथ सिंह का आज सुबह 5.10 बजे निधन हो गया। उन्हें जिगर की बिमारी थी।
उनका जन्म 22 अक्टूबर 1947 को आटा ग्राम, परसपुर, गोंडा, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने हिंदी गजल को अलग पहचान दी। मुशायरों में घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफ़ेद गमछा डाले जब वह गंवई अंदाज में पहुंचते थे तो लोग बहुत ध्यान नहीं देते थे, पर जब वह गजल-कविता सुनाता तो लोग हैरान रह जाते थे। ‘धरती की सहत पर’, ‘समय से मुठभेड़’ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं।
22 अक्तूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के आटा परसपुर गांव में जन्में अदम गोंडवी के दो संग्रह धरती की सतह पर और समय से मुठभेड़ प्रकाशित हुये थे लेकिन उनकी जनवादी कवितायें पूरे हिंदी प्रदेश में लोकप्रिय रही हैं. “काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में, राम राज उतरा विधायक निवास में” और “जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में, गांव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में” जैसी कविताओं के लिये मशहूर अदम गोंडवी उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के अटा परसपुर गांव में रहते थे और वहीं खेती करते थे. अदम गोंडवी और उनकी कविताओं पर कई विद्यार्थियों ने पीएचडी की थी !
ऐसे नामवर और ज़मीन से जुड़े शायर को हम सभी की और से भावभीनी और अश्रुपूरित श्रद्धांजलि....!!
घर में ठन्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
जवाब देंहटाएंबताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है
बगावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है
....बेमिसाल कवि को श्रद्धासुमन.
शुक्रिया इस पोस्ट के लिए.
विद्या जी, अदम गोंडवी जी हमेशा हिंदी साहित्य में अपनी बेबाक शेली और तेवरों के लिए याद किये जाते रहेंगे...आपकी टिपण्णी के लिए शुक्रिया...!
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