भोपाल में आरटीआई कार्यकर्ता शेहला मसूद की मौत से पूरे देश में सूचना का अधिकार आंदोलन स्तब्ध है। शेहला ने अनेक शीर्ष अफसरों के खिलाफ आरटीआई कानून के तहत जानकारी मांगी थी। इसीलिए उनकी मौत पर रहस्य का साया है।
पुलिस जांच से असंतुष्ट शेहला के परिवार ने सीबीआई जांच की मांग की है। गौरतलब है कि बीते महीनों में देश के विभिन्न हिस्सों में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले और उन्हें धमकाने की घटनाएं बढ़ती गई हैं। पिछले डेढ़ साल में ऐसे नौ कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है।
आरटीआई कानून को लेकर बढ़ती जागरूकता बहुत से लोगों को सार्वजनिक महत्व की जानकारियां हासिल करने के लिए प्रेरित कर रही है, तो दूसरी तरफ उन सूचनाओं के सामने आने से जिनके भ्रष्ट कारनामे उजागर होते हैं, वे प्रतिशोध में ज्यादा आक्रामक होते जा रहे हैं।
अक्सर प्रशासन ऐसे मामलों में लापरवाह रहता है, जिससे पारदर्शिता के लिए संघर्षरत कार्यकर्ताओं के लिए जोखिम बढ़ता जा रहा है। लगता है कि अब तक गोपनीयता के आवरण में अवैध धंधे चलाने वाले लोग सूचना से समाज को जागरूक करने वाले कार्यकर्ताओं को आतंकित करने पर उतर आए हैं।
यह अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और बढ़ेंगी। नागरिक जब अपने अधिकारों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करेंगे, तो उससे निहित स्वार्थी तत्वों की करतूत बेनकाब होगी। ऐसे तत्वों द्वारा आपराधिक प्रतिक्रिया करना अस्वाभाविक नहीं है।
इसलिए गड़बड़ियों को सामने लाने वाले प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की सुरक्षा अब बेहद जरूरी मसला बन गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारें इसके प्रति उदासीन हैं। व्हिसलब्लोअर कानून की चर्चा जरूर है, लेकिन कानून पर अमल की भी कारगर व्यवस्था होनी चाहिए। इस पूरे संदर्भ में शेहला मसूद का मामला एक टेस्ट केस है। इस प्रकरण की पूरी सच्चाई सामने आनी चाहिए !!
पुलिस जांच से असंतुष्ट शेहला के परिवार ने सीबीआई जांच की मांग की है। गौरतलब है कि बीते महीनों में देश के विभिन्न हिस्सों में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले और उन्हें धमकाने की घटनाएं बढ़ती गई हैं। पिछले डेढ़ साल में ऐसे नौ कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है।
आरटीआई कानून को लेकर बढ़ती जागरूकता बहुत से लोगों को सार्वजनिक महत्व की जानकारियां हासिल करने के लिए प्रेरित कर रही है, तो दूसरी तरफ उन सूचनाओं के सामने आने से जिनके भ्रष्ट कारनामे उजागर होते हैं, वे प्रतिशोध में ज्यादा आक्रामक होते जा रहे हैं।
अक्सर प्रशासन ऐसे मामलों में लापरवाह रहता है, जिससे पारदर्शिता के लिए संघर्षरत कार्यकर्ताओं के लिए जोखिम बढ़ता जा रहा है। लगता है कि अब तक गोपनीयता के आवरण में अवैध धंधे चलाने वाले लोग सूचना से समाज को जागरूक करने वाले कार्यकर्ताओं को आतंकित करने पर उतर आए हैं।
यह अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और बढ़ेंगी। नागरिक जब अपने अधिकारों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करेंगे, तो उससे निहित स्वार्थी तत्वों की करतूत बेनकाब होगी। ऐसे तत्वों द्वारा आपराधिक प्रतिक्रिया करना अस्वाभाविक नहीं है।
इसलिए गड़बड़ियों को सामने लाने वाले प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की सुरक्षा अब बेहद जरूरी मसला बन गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकारें इसके प्रति उदासीन हैं। व्हिसलब्लोअर कानून की चर्चा जरूर है, लेकिन कानून पर अमल की भी कारगर व्यवस्था होनी चाहिए। इस पूरे संदर्भ में शेहला मसूद का मामला एक टेस्ट केस है। इस प्रकरण की पूरी सच्चाई सामने आनी चाहिए !!
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