वर्तमान में राष्ट्रिय राजनैतिक परिदृश्य में जो अचानक
से उठा पटक देखने में आयी है, उसमें प्रमुख है भाजपा द्वारा अपने तथाकथित
लोह्पुरुष और भीष्म पितामाह का राजनैतिक वध कर उन्हें हाशिये पर धकेल
...मोदी को अपना चेहरा बना लेना, इसका चरम गोवा में तब देखने को मिला जब
मोदी को अडवाणी की अनुपस्थिति में भाजपा के प्रचार अभियान समिति प्रमुख
बनाने की घोषणा करना और इसके बाद अडवाणी का इस्तीफ़ा और उसके बाद NDA गठबंधन
से JDU का अलग हो जाना !
मोदी को अप्रत्यक्ष रूप से प्रधान मंत्री के लिए आगे किये जाने से न केवल भाजपा में आंतरिक कलह खुल कर सामने आयी है, बल्कि उसके बड़े सहयोगी भी किनारा करने लगे हैं, जबकि प्रत्यक्ष रूप से भाजपा खुल कर भी मोदी को अगले भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर पा रही है, इसके पीछे भी कई कारण हैं...जो समय आने पर सामने आते रहेंगे !
मगर भाजपा के इस मोदी गान से अभी तक देखा जाए तो नुकसान में सिर्फ भाजपा ही रही है, चाहे वो आंतरिक कलह हो, या अडवाणी का इस्तीफ़ा या JDU का 17 साल पुराना गठबंधन टूटना, आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा केवल मोदी के सहारे जीतने की आशा कर रही है, मगर शायद गठबंधन और विखंडित जनादेश के इस दौर भाजपा मोदी के दम पर आगामी लोकसभा चुनावों में बहुमत हासिल कर सके, मुश्किल नज़र आ रहा है, कारण यह कि भाजपा के पास इस समय कोई ज्वलंत मुद्दा नहीं है, भ्रष्टाचार हो या काल धन...दोनों मुद्दे अन्ना/केजरीवाल और बाबा रामदेव ने पहले ही लपक लिए हैं, राम मंदिर का मुद्दा खुद भाजपा ही उठा कर ठन्डे बसते में डाले बैठी है, अब केवल विकास और विकास पुरुष ही उसके पास एक आसरा हैं...जो कि शायद ही 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता को आकर्षित कर पाए, हाँ यह बात दीगर है कि इस बार राम मंदिर के बजाय मोदी को चेहरा बना कर वोटों का ध्रुवीकरण करने की भाजपा की मंशा हो, मगर राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों और बंटे हुए जनमानस के कारण मोदी फेक्टर समूचे देश में हिलोरें लेने लगे तो यह भी संभव नज़र नहीं आता !
UPA 2 सरकार में हुए घोटालों से आक्रोशित जनता के आक्रोश के दोहन का सुनहरा मौक़ा भाजपा के हाथ से फिसलता नज़र आ रहा है, क्योंकि पीछे देखें तो पाएंगे कि कांग्रेस ने अन्ना/बाबा रामदेव और केजरीवाल के भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध लगातार किये गए आन्दोलनो, उपवासों, क्रांतियों के बावजूद उत्तराखंड, हिमाचल से लेकर कर्णाटक तक सरकारें बनाई हैं, कांग्रेस द्वारा जीते गए इन राज्यों के चुनाव नतीजे आगामी लोकसभ चुनावों पर प्रभाव डाल पायें या ना डाल पायें ..मगर भाजपा को इससे नसीहत लेने की आवश्यकता ज़रूरी है !
अब जबकि अडवाणी ने इस्तीफ़ा वापस ले लिए है, और इधर JDU से 17 साल पुराना रिश्ता टूट गया है, और नीतीश आने वाले दिनों में निर्दलीय विधायको के समर्थन से पुन: विश्वास मत हासिल कर लेंगे...तो ऐसे में अब भाजपा को फिर से नए सिरे पर नयी रणनीति बनानी होगी..क्योंकि अभी तक ..मोदी को आगे करने का नुकसान केवल और केवल भाजपा को ही हुआ है, रही JDU की बात तो वो किसी नुकसान में नज़र नहीं आ रहा, इधर सबसे ज्यादा लाभान्वित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस हुई है...चाहे वो राष्ट्रिय राजनीति में सिकुड़ती भाजपा हो, या उसकी आंतरिक कलह, या अडवाणी का इस्तीफ़ा या फिर JDU गठबंधन का टूट जाना, कांग्रेस इस नूरा कुश्ती के तमाशे को अपने हित में परिवर्तित करती नज़र आ रही है !
ऐसे में अब 2014 के आगामी लोकसभा चुनावों और उसके जनादेश के लिए किस मुद्दे पर कौनसी पार्टी कैसे समीकरण बैठाती है, किन किन मुद्दों पर चुनाव लडती हैं, जनता की बैचैनी, उसकी उम्मीद और समस्याओं का सकारात्मक निराकरण किस प्रकार करती है, यह देखना है, कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जनता परिवर्तन के लिए वोट देती है, साथ ही चुनावों से राजनैतिक शुद्धिकरण की आशा भी जनता करती है, ऐसे में देश के बड़े राजनैतिक दलों, और सभी के दलों के नेताओं के साथ देश की जनता का भी यह कर्तव्य बनता है कि देश को एक साफ़ सुथरी, प्रगतिशील, विकासोन्मुख और शक्तिशाली सरकार देने की भरपूर कोशिश करें...जय हिन्द !!
मोदी को अप्रत्यक्ष रूप से प्रधान मंत्री के लिए आगे किये जाने से न केवल भाजपा में आंतरिक कलह खुल कर सामने आयी है, बल्कि उसके बड़े सहयोगी भी किनारा करने लगे हैं, जबकि प्रत्यक्ष रूप से भाजपा खुल कर भी मोदी को अगले भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर पा रही है, इसके पीछे भी कई कारण हैं...जो समय आने पर सामने आते रहेंगे !
मगर भाजपा के इस मोदी गान से अभी तक देखा जाए तो नुकसान में सिर्फ भाजपा ही रही है, चाहे वो आंतरिक कलह हो, या अडवाणी का इस्तीफ़ा या JDU का 17 साल पुराना गठबंधन टूटना, आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा केवल मोदी के सहारे जीतने की आशा कर रही है, मगर शायद गठबंधन और विखंडित जनादेश के इस दौर भाजपा मोदी के दम पर आगामी लोकसभा चुनावों में बहुमत हासिल कर सके, मुश्किल नज़र आ रहा है, कारण यह कि भाजपा के पास इस समय कोई ज्वलंत मुद्दा नहीं है, भ्रष्टाचार हो या काल धन...दोनों मुद्दे अन्ना/केजरीवाल और बाबा रामदेव ने पहले ही लपक लिए हैं, राम मंदिर का मुद्दा खुद भाजपा ही उठा कर ठन्डे बसते में डाले बैठी है, अब केवल विकास और विकास पुरुष ही उसके पास एक आसरा हैं...जो कि शायद ही 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता को आकर्षित कर पाए, हाँ यह बात दीगर है कि इस बार राम मंदिर के बजाय मोदी को चेहरा बना कर वोटों का ध्रुवीकरण करने की भाजपा की मंशा हो, मगर राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों और बंटे हुए जनमानस के कारण मोदी फेक्टर समूचे देश में हिलोरें लेने लगे तो यह भी संभव नज़र नहीं आता !
UPA 2 सरकार में हुए घोटालों से आक्रोशित जनता के आक्रोश के दोहन का सुनहरा मौक़ा भाजपा के हाथ से फिसलता नज़र आ रहा है, क्योंकि पीछे देखें तो पाएंगे कि कांग्रेस ने अन्ना/बाबा रामदेव और केजरीवाल के भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध लगातार किये गए आन्दोलनो, उपवासों, क्रांतियों के बावजूद उत्तराखंड, हिमाचल से लेकर कर्णाटक तक सरकारें बनाई हैं, कांग्रेस द्वारा जीते गए इन राज्यों के चुनाव नतीजे आगामी लोकसभ चुनावों पर प्रभाव डाल पायें या ना डाल पायें ..मगर भाजपा को इससे नसीहत लेने की आवश्यकता ज़रूरी है !
अब जबकि अडवाणी ने इस्तीफ़ा वापस ले लिए है, और इधर JDU से 17 साल पुराना रिश्ता टूट गया है, और नीतीश आने वाले दिनों में निर्दलीय विधायको के समर्थन से पुन: विश्वास मत हासिल कर लेंगे...तो ऐसे में अब भाजपा को फिर से नए सिरे पर नयी रणनीति बनानी होगी..क्योंकि अभी तक ..मोदी को आगे करने का नुकसान केवल और केवल भाजपा को ही हुआ है, रही JDU की बात तो वो किसी नुकसान में नज़र नहीं आ रहा, इधर सबसे ज्यादा लाभान्वित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस हुई है...चाहे वो राष्ट्रिय राजनीति में सिकुड़ती भाजपा हो, या उसकी आंतरिक कलह, या अडवाणी का इस्तीफ़ा या फिर JDU गठबंधन का टूट जाना, कांग्रेस इस नूरा कुश्ती के तमाशे को अपने हित में परिवर्तित करती नज़र आ रही है !
ऐसे में अब 2014 के आगामी लोकसभा चुनावों और उसके जनादेश के लिए किस मुद्दे पर कौनसी पार्टी कैसे समीकरण बैठाती है, किन किन मुद्दों पर चुनाव लडती हैं, जनता की बैचैनी, उसकी उम्मीद और समस्याओं का सकारात्मक निराकरण किस प्रकार करती है, यह देखना है, कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जनता परिवर्तन के लिए वोट देती है, साथ ही चुनावों से राजनैतिक शुद्धिकरण की आशा भी जनता करती है, ऐसे में देश के बड़े राजनैतिक दलों, और सभी के दलों के नेताओं के साथ देश की जनता का भी यह कर्तव्य बनता है कि देश को एक साफ़ सुथरी, प्रगतिशील, विकासोन्मुख और शक्तिशाली सरकार देने की भरपूर कोशिश करें...जय हिन्द !!
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