कल मेरी मुलाक़ात नुक्कड़
पर बैठे मन्नू काका से हुयी, वो खुद हाकी और फ़ुटबाल के खिलाडी रहे थे, और
खेलों के प्रति उनका जूनून बुज़ुर्गी में भी कम नहीं हुआ है, मिलते है मैंने
कहा "मुबारक हो मन्नू काका सचिन को क्रिकेट के लिए "खेलों का पहला भारत
रत्न मिल गया है." ! मन्नू काका ने निर्विकार भाव से मुझे देखा और कुछ नहीं
बोले, मैंने उन्हें छेड़ने के लिए फिर कहा : " वैसे इस सम्मान पर पहला हक़
मेजर ध्यान चन्द का बनता है, जैसा कि कुछ माह पहले भारत के खेल मंत्रालय
द्वारा प्रस्तावित भी था, दिया तो मिल्खा सिंह को भी जा सकता था....दोनों
ने ही खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक में देश का नाम रोशन किया है....क्रिकेट
क्या है ? विश्व के 95 प्रतिशत देशों में तो यह खेला ही नहीं जाता, केवल
गिनती के 5 प्रतिशत देश ही इसे खेलते हैं !
झुंझला कर मन्नू काका ने कहा " अमां मियां यह मेजर ध्यान चन्द हैं कौन ? और यह मिल्खा सिंह क्या बला है ? और यह खेलों का महाकुम्भ ओलम्पिक होता क्या है ? सचिन और क्रिकेट के आगे कौन मेजर ध्यान चन्द और कौन मिल्खा सिंह, और कैसा ओलम्पिक ! हम तो 196 देशों से अलग ..दस बारह देशों के बीच पकती इस क्रिकेटिया खिचड़ी से निकले खिलाडियों को ही महिमा मंडित करेंगे...आप होते कौन हो क्रिकेट को कोसने वाले ? राष्ट्रिय खेल हाकी को किसको परवाह है ? मेजर ध्यान चन्द और मिल्खा सिंह जैसों को यहाँ पूछता कौन है, 'भाग मिल्खा भाग' फ़िल्म बना तो ली और क्या चाहिए ?
मुझे उनके अंतर्मन में उठ रही निराशा नज़र आने लगी....मैंने उनसे कहा मन्नू काका देश में क्रिकेट भी तो पापुलर खेल है ? तब इस पर उन्होंने अपने अंदर की पीड़ा ज़ाहिर की ...और बोले :जब खिलाड़ी आपादमस्तक बिकने लगे और खेल का मैदान विज्ञापनों से पट जाए तो फिर यह खेल नहीं व्यापार हो जाता है। दरअसल यह बहुराष्ट्रीय कारपोरेट घरानों की व्यापारिक साजिश ही है जिसने हमारे देश में क्रिकेट को इतना ऊंचा दर्जा दे दिया है। क्रिकेट और खिलाडियों को उत्पाद और ब्रांड के तौर पर पेश करने का षड्यंत्र कामयाब हो गया है, इस षड़यंत्र में सब शामिल हैं: याने सिर्फ माल बनाने और बेचने वाले ही नहीं, बल्कि राजनेता, उद्योगपति, मीडिया मालिक, क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्मी सितारे और सट्टाबाजार के रहस्यमय नियंत्रक भी। इन सबने मिलकर जनता को बेहोश कर बाजार के सामने फेंक दिया है कि जितना नोंच सकते हो नोंच लो, हमारा मुनाफा हमें जरूर मिल जाना चाहिए।
फिर वो बोले क्या हुआ अगर मेजर ध्यानचंद की तो उन्होंने तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया ? क्या हुआ अगर उनको विश्व हॉकी के जादूगर के रूप में जानता है ? क्या हुआ अगर अपने बेजोड़ और अद्भुत खेल के कारण उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक खेलों एम्स्टरडम ओलंपिक 1928, लॉस एंजिलस 1932, बर्लिन ओलंपिक 1936 (कप्तानी) में टीम को तीन स्वर्ण पदक दिलवाए ? और ओलंपिक खेलों में 101 गोल और अंतरराष्ट्रीय खेलों में 300 गोल दाग कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है ? क्या हुआ अगर एम्स्टरडम हॉकी ओलंपिक मैच में 28 गोल किए गए जिनमें से ग्यारह गोल अकेले ध्यानचंद ने ही किए थे ? इस किरकिट आगे सब कुछ बौना ही तो है !
क्या हुआ अगर ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया ? क्या हुआ अगर विदेशों में ध्यानचंद की लोकप्रियता है ? क्या हुआ अगर वियना (आस्ट्रिया) वासियों ने ध्यानचंद की याद में एक मूर्ति स्थापित की, जिसमें उनके चार हाथ हैं और चारों हाथों में हॉकी स्टिक है ? इस किरकिट के भगवान् के आगे तो उनकी औक़ात क्या रह गयी ?
फिर मन्नू काका बोले " क्या हुआ अगर मेजर ध्यान चन्द ने उस दौर में देश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया ?..और और पूरे खेल जगत में इस तिरंगे की धाक जमाई ? हम भी तो दस बारह देशों के बीच खिचड़ी नुमा क्रिकेटिया विश्व कप करा ही लेते हैं...और किरकिट के खिलाडियों का जमकर महिमा मंडन भी कर लेते हैं...और अपने किरकिट के भगवान् भी चुन लेते हैं.....अमरीका, जर्मनी, जापान, फ़्रांस, रूस, चीन जैसी महाशक्तियों ...सहित कितने और देशों में इस किरकिट और इसके भगवान् का डंका बजे या नहीं उससे हमें क्या ? इस किरकिट और इसके भगवानो के बारे में विश्व के कितने देशों को पता है, उससे हमें कोई लेना देना नहीं ? भले ही हम जानते हैं कि उन सैंकड़ों देशों के लिए इस किरकिट की औक़ात क्या है ? जो खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक में न खेला जाता हो, उसे भी हम 'खेल' ही कहते हैं ....हम तो झूमेंगे इस क्रिकेटिये नशे में ...और गढ़े जायेंगे इस किरकिट के भगवान् !
मन्नू काका की इन बातों को सुनकर मैं निरुत्तर हो गया....मुझे लगने लगा कि अब सम्मान भी राजनीति से प्रेरित ...राजनैतिक नफ़ा - नुक़सान राजनैतिक बिसात और माहौल के अनुसार तय किये जाते हैं...भले ही सरदार पटेल को उनके निधन के 41 सालों बाद भारत रत्न से सम्मानित किया गया हो, मगर किरकिट के भगवान् को नियमों में फेर बदल कर आनन् फानन में यह सम्मान दिया गया ....आनन् फानन में दिए गए इस सम्मान और उसके टाइमिंग पर देश में आवाज़ें उठनी शुरू हो ही गयी हैं... काश कि यह सम्मान पहले मेजर ध्यान चन्द को दिया जाता ...जैसा कि खेल मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित भी था....तो यह हमारे वैश्विक हीरो और हमारे राष्ट्रिय खेल को पूरे देश की और से एक सलाम होता, मगर राष्ट्रिय खेल के महान नायक को दरकिनार कर यह सम्मान जिस प्रकार से किरकिट के भगवान् को दिया गया है, उससे तो राष्ट्रिय खेल हाकी के मुंह पर एक करारा तमाचा ही लगा है !! मगर हमें यह भी ख़ुशी है कि हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चन्द का गौरव और सम्मान ...इन राजनेताओं के प्रमाण पत्र और सम्मान का मोहताज नहीं है, वो देश के हीरो थे, और हमेशा रहेंगे...वो पूरे देश का गौरव थे और रहेंगे...वो आम आदमी के भारत रत्न हैं...और हमेशा रहेंगे !!
जय हिन्द !!
झुंझला कर मन्नू काका ने कहा " अमां मियां यह मेजर ध्यान चन्द हैं कौन ? और यह मिल्खा सिंह क्या बला है ? और यह खेलों का महाकुम्भ ओलम्पिक होता क्या है ? सचिन और क्रिकेट के आगे कौन मेजर ध्यान चन्द और कौन मिल्खा सिंह, और कैसा ओलम्पिक ! हम तो 196 देशों से अलग ..दस बारह देशों के बीच पकती इस क्रिकेटिया खिचड़ी से निकले खिलाडियों को ही महिमा मंडित करेंगे...आप होते कौन हो क्रिकेट को कोसने वाले ? राष्ट्रिय खेल हाकी को किसको परवाह है ? मेजर ध्यान चन्द और मिल्खा सिंह जैसों को यहाँ पूछता कौन है, 'भाग मिल्खा भाग' फ़िल्म बना तो ली और क्या चाहिए ?
मुझे उनके अंतर्मन में उठ रही निराशा नज़र आने लगी....मैंने उनसे कहा मन्नू काका देश में क्रिकेट भी तो पापुलर खेल है ? तब इस पर उन्होंने अपने अंदर की पीड़ा ज़ाहिर की ...और बोले :जब खिलाड़ी आपादमस्तक बिकने लगे और खेल का मैदान विज्ञापनों से पट जाए तो फिर यह खेल नहीं व्यापार हो जाता है। दरअसल यह बहुराष्ट्रीय कारपोरेट घरानों की व्यापारिक साजिश ही है जिसने हमारे देश में क्रिकेट को इतना ऊंचा दर्जा दे दिया है। क्रिकेट और खिलाडियों को उत्पाद और ब्रांड के तौर पर पेश करने का षड्यंत्र कामयाब हो गया है, इस षड़यंत्र में सब शामिल हैं: याने सिर्फ माल बनाने और बेचने वाले ही नहीं, बल्कि राजनेता, उद्योगपति, मीडिया मालिक, क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्मी सितारे और सट्टाबाजार के रहस्यमय नियंत्रक भी। इन सबने मिलकर जनता को बेहोश कर बाजार के सामने फेंक दिया है कि जितना नोंच सकते हो नोंच लो, हमारा मुनाफा हमें जरूर मिल जाना चाहिए।
फिर वो बोले क्या हुआ अगर मेजर ध्यानचंद की तो उन्होंने तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया ? क्या हुआ अगर उनको विश्व हॉकी के जादूगर के रूप में जानता है ? क्या हुआ अगर अपने बेजोड़ और अद्भुत खेल के कारण उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक खेलों एम्स्टरडम ओलंपिक 1928, लॉस एंजिलस 1932, बर्लिन ओलंपिक 1936 (कप्तानी) में टीम को तीन स्वर्ण पदक दिलवाए ? और ओलंपिक खेलों में 101 गोल और अंतरराष्ट्रीय खेलों में 300 गोल दाग कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है ? क्या हुआ अगर एम्स्टरडम हॉकी ओलंपिक मैच में 28 गोल किए गए जिनमें से ग्यारह गोल अकेले ध्यानचंद ने ही किए थे ? इस किरकिट आगे सब कुछ बौना ही तो है !
क्या हुआ अगर ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया ? क्या हुआ अगर विदेशों में ध्यानचंद की लोकप्रियता है ? क्या हुआ अगर वियना (आस्ट्रिया) वासियों ने ध्यानचंद की याद में एक मूर्ति स्थापित की, जिसमें उनके चार हाथ हैं और चारों हाथों में हॉकी स्टिक है ? इस किरकिट के भगवान् के आगे तो उनकी औक़ात क्या रह गयी ?
फिर मन्नू काका बोले " क्या हुआ अगर मेजर ध्यान चन्द ने उस दौर में देश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया ?..और और पूरे खेल जगत में इस तिरंगे की धाक जमाई ? हम भी तो दस बारह देशों के बीच खिचड़ी नुमा क्रिकेटिया विश्व कप करा ही लेते हैं...और किरकिट के खिलाडियों का जमकर महिमा मंडन भी कर लेते हैं...और अपने किरकिट के भगवान् भी चुन लेते हैं.....अमरीका, जर्मनी, जापान, फ़्रांस, रूस, चीन जैसी महाशक्तियों ...सहित कितने और देशों में इस किरकिट और इसके भगवान् का डंका बजे या नहीं उससे हमें क्या ? इस किरकिट और इसके भगवानो के बारे में विश्व के कितने देशों को पता है, उससे हमें कोई लेना देना नहीं ? भले ही हम जानते हैं कि उन सैंकड़ों देशों के लिए इस किरकिट की औक़ात क्या है ? जो खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक में न खेला जाता हो, उसे भी हम 'खेल' ही कहते हैं ....हम तो झूमेंगे इस क्रिकेटिये नशे में ...और गढ़े जायेंगे इस किरकिट के भगवान् !
मन्नू काका की इन बातों को सुनकर मैं निरुत्तर हो गया....मुझे लगने लगा कि अब सम्मान भी राजनीति से प्रेरित ...राजनैतिक नफ़ा - नुक़सान राजनैतिक बिसात और माहौल के अनुसार तय किये जाते हैं...भले ही सरदार पटेल को उनके निधन के 41 सालों बाद भारत रत्न से सम्मानित किया गया हो, मगर किरकिट के भगवान् को नियमों में फेर बदल कर आनन् फानन में यह सम्मान दिया गया ....आनन् फानन में दिए गए इस सम्मान और उसके टाइमिंग पर देश में आवाज़ें उठनी शुरू हो ही गयी हैं... काश कि यह सम्मान पहले मेजर ध्यान चन्द को दिया जाता ...जैसा कि खेल मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित भी था....तो यह हमारे वैश्विक हीरो और हमारे राष्ट्रिय खेल को पूरे देश की और से एक सलाम होता, मगर राष्ट्रिय खेल के महान नायक को दरकिनार कर यह सम्मान जिस प्रकार से किरकिट के भगवान् को दिया गया है, उससे तो राष्ट्रिय खेल हाकी के मुंह पर एक करारा तमाचा ही लगा है !! मगर हमें यह भी ख़ुशी है कि हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चन्द का गौरव और सम्मान ...इन राजनेताओं के प्रमाण पत्र और सम्मान का मोहताज नहीं है, वो देश के हीरो थे, और हमेशा रहेंगे...वो पूरे देश का गौरव थे और रहेंगे...वो आम आदमी के भारत रत्न हैं...और हमेशा रहेंगे !!
जय हिन्द !!
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