नरेन्द्र मोदी का बयान आया था कि 'पहले शौचालय फिर देवालय'
..कुछ ऐसे ही बयान जयराम रमेश पहले भी दे चुके हैं, जिसके कारण उन्हें
भारी विरोध का सामना भी करना पडा था, उनके बयानों के अनेक अर्थ निकाले गए
थे, आज जो मोदी के इस बयान पर गाल और तालियाँ बजा रहे हैं, उन्होंने ही
उत्पात मचाया था...खैर ...अब मोदी जी ने बयान दे दिया है तो समर्थन तो करना
ज़रूरी है ही, क्योंकि यह बयान मोदी ने जो दिया है, कई लोग तो इस बयान के
समर्थन में बहुत ही हास्यास्पद तर्क और तथ्य दे रहे हैं ! मोदी ने अपने आप
को इलेक्ट्रोनिक मीडिया / पी.आर. एजेंसी और सोशल मीडिया द्वारा स्थापित तो
कर लिया है मगर उनके कई बयानों और विचारों पर उनकी पार्टी को ही कई बार बेक
फुट पर आना पड़ा है, और एक बात कि मोदी सिर्फ समस्याएं बताते
हैं...तर्क संगत समाधान नहीं, बल्कि समाधान की जगह अपने आप को रख देते हैं,
जो कि व्यावहारिक बिलकुल नहीं है, आप यदि समस्या बता रहे हैं ...तो उसके
एक दो तर्कपूर्ण हल/समाधान तो बताना ही होगा... किसी के दुर्गुणों को आप
सीढ़ी नहीं बना सकते !
अब मोदी ने 'पहले शौचालय फिर देवालय' का नारा दे तो दिया है, मगर उस पर बहस भी चल पड़ी है, क्यों शौचालय पर इतना जोर दिया मोदी ने....और क्या शौचालयों से ज्यादा ज़रूरी देश में कुछ भी नहीं है ? या फिर शौचालय के बाद प्राथमिकता पर सिर्फ देवालय ही क्यों आता है ? शौचालयों से पहले या बाद में यदि विद्यालयों को और उसके बाद देवालयों को रख दिया जाए तो क्या हर्ज है, यह भी तो शिक्षा के देवालय हैं...हमारे देश में शिक्षा का भी हाल बुरा है, गरीबी, विद्यालयों की कमी, शिक्षकों की कमी, माध्यमिक विधयालों में मूल-भूत सुविधायों की कमी आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे देश शिक्षा में पिछड़ा हुआ है, गाँव में स्कूल ना होने के कारण लगभग 20% बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाते, उनमें से लड़कियों की संख्या अधिक है ! प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर ही यदि शिक्षा क्षत विक्षत है....तो नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी ? और यदि शिक्षित नहीं होगी तो उनको रोज़गार कैसे मिलेगा ? बेरोज़गारी कैसे दूर होगी ?
अशिक्षा ...शौचालय नहीं होने से ज्यादा हानिप्रद है, शौचालय का जुगाड़ तो लोग निजी तौर पर करते चले आ रहे हैं, और अब इस विषय पर लोगों में खुद ही जागरूकता भी आ रही है, मगर विद्यालय का जुगाड़ निजी तौर पर संभव नहीं है, यह सभी जानते हैं, इसके लिए सभी संसाधनों के लिए प्रशासन और सरकार ही ज़िम्मेदार है, शिक्षित युवा ही देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश को उन्नति, प्रगति के पथ पर ले जाने वाले...देश का गौरव बढ़ने वाले होते हैं, देश में जितने अधिक विद्यालय होंगे जितने अच्छे पढ़ाई के संसाधन होंगे...युवा पीढ़ी उतनी ही शिक्षित और संस्कारवान होगी !
इसलिए मेरे विचार से देश में शौचालयों से काफी पहले विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, महा विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, बेहतर स्वास्थ्य के लिए रूग्णालयों (अस्पतालों) का निर्माण होना चाहिए, देश में रोज़गार के अवसरों का बढाने का प्रयास होना चाहिए....देश की उन्नति और प्रगति के लिए यह अत्यंत आवशयक हैं...बेहतर और उन्नत शिक्षा/स्वास्थ्य और रोज़गार से बेहतर/समर्थ और शिक्षित युवा आगे जाकर शक्तिशाली नागरिक बनेंगे और देश का मान बढ़ाएंगे !
मंदिर मस्जिद के झगड़ों की भूल भुलैयां में देश ...और देश के युवाओं की सोच कहीं भटक कर रह गयी है....देश की प्रगति, उन्नति और गौरव के लिए ...आइये इन झगड़ों से ऊपर उठ कर देश के लिए कुछ सकारात्मक और सार्थक करें....क्योंकि ...>
मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाए,
हर मज़हब को बहुत सजाया, आओ मिलकर देश सजाएं !
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने लाखों दिल घायल कर डाले,
अपने आप को बहुत हंसाया, आओ मिलकर देश हसाएँ !
मालिक, खालिक, दाता है वो, सदा रहे मन-मंदिर में,
उसका घर है बसा बसाया, आओ मिलकर देश बसाएँ !
गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है ?
इतना प्यारा देश हमारा, आओ मिलकर देश चलाएं !
(शाहनवाज़ सिद्दीकी ‘साहिल’)
जय हिन्द !!
अब मोदी ने 'पहले शौचालय फिर देवालय' का नारा दे तो दिया है, मगर उस पर बहस भी चल पड़ी है, क्यों शौचालय पर इतना जोर दिया मोदी ने....और क्या शौचालयों से ज्यादा ज़रूरी देश में कुछ भी नहीं है ? या फिर शौचालय के बाद प्राथमिकता पर सिर्फ देवालय ही क्यों आता है ? शौचालयों से पहले या बाद में यदि विद्यालयों को और उसके बाद देवालयों को रख दिया जाए तो क्या हर्ज है, यह भी तो शिक्षा के देवालय हैं...हमारे देश में शिक्षा का भी हाल बुरा है, गरीबी, विद्यालयों की कमी, शिक्षकों की कमी, माध्यमिक विधयालों में मूल-भूत सुविधायों की कमी आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे देश शिक्षा में पिछड़ा हुआ है, गाँव में स्कूल ना होने के कारण लगभग 20% बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाते, उनमें से लड़कियों की संख्या अधिक है ! प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर ही यदि शिक्षा क्षत विक्षत है....तो नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी ? और यदि शिक्षित नहीं होगी तो उनको रोज़गार कैसे मिलेगा ? बेरोज़गारी कैसे दूर होगी ?
अशिक्षा ...शौचालय नहीं होने से ज्यादा हानिप्रद है, शौचालय का जुगाड़ तो लोग निजी तौर पर करते चले आ रहे हैं, और अब इस विषय पर लोगों में खुद ही जागरूकता भी आ रही है, मगर विद्यालय का जुगाड़ निजी तौर पर संभव नहीं है, यह सभी जानते हैं, इसके लिए सभी संसाधनों के लिए प्रशासन और सरकार ही ज़िम्मेदार है, शिक्षित युवा ही देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश को उन्नति, प्रगति के पथ पर ले जाने वाले...देश का गौरव बढ़ने वाले होते हैं, देश में जितने अधिक विद्यालय होंगे जितने अच्छे पढ़ाई के संसाधन होंगे...युवा पीढ़ी उतनी ही शिक्षित और संस्कारवान होगी !
इसलिए मेरे विचार से देश में शौचालयों से काफी पहले विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, महा विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, बेहतर स्वास्थ्य के लिए रूग्णालयों (अस्पतालों) का निर्माण होना चाहिए, देश में रोज़गार के अवसरों का बढाने का प्रयास होना चाहिए....देश की उन्नति और प्रगति के लिए यह अत्यंत आवशयक हैं...बेहतर और उन्नत शिक्षा/स्वास्थ्य और रोज़गार से बेहतर/समर्थ और शिक्षित युवा आगे जाकर शक्तिशाली नागरिक बनेंगे और देश का मान बढ़ाएंगे !
मंदिर मस्जिद के झगड़ों की भूल भुलैयां में देश ...और देश के युवाओं की सोच कहीं भटक कर रह गयी है....देश की प्रगति, उन्नति और गौरव के लिए ...आइये इन झगड़ों से ऊपर उठ कर देश के लिए कुछ सकारात्मक और सार्थक करें....क्योंकि ...>
मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाए,
हर मज़हब को बहुत सजाया, आओ मिलकर देश सजाएं !
मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने लाखों दिल घायल कर डाले,
अपने आप को बहुत हंसाया, आओ मिलकर देश हसाएँ !
मालिक, खालिक, दाता है वो, सदा रहे मन-मंदिर में,
उसका घर है बसा बसाया, आओ मिलकर देश बसाएँ !
गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है ?
इतना प्यारा देश हमारा, आओ मिलकर देश चलाएं !
(शाहनवाज़ सिद्दीकी ‘साहिल’)
जय हिन्द !!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें