हमारे देश में Disaster Management दो तरह का होता है, एक तो देश - जनता के लिए ..जैसे प्राकृतिक या भोगोलिक विपदा सम्बन्धी ...दूसरा होता है ..राजनैतिक दलों का आंतरिक Disaster Management !
इनमें अंतर यह है कि देश में जब ही कोई प्राकृतिक या भोगौलिक Disaster होता है तो देश का Disaster Management ...Disaster हो जाने के काफी समय बाद हरकत में आता है, जब तक कि अच्छी खासी जानी और माली हानि हो चुकी होती है ! यानी Disaster हो जाने के बाद हरकत में आने वाले मेनेजमेंट को ही Disaster Management कहा जाता है ! शायद यह जानबूझ कर नहीं किया जाता हो, और सम्बंधित एजेंसियों के आपसी तालमेल के कारण ऐसा होता हो !
वही राजनैतिक दलों का आंतरिक Disaster Management ग़ज़ब का होता है, यहाँ किसी भी प्रकार के Disaster या कहिये किसी भी टूट फुट के होने से पहले ही उसकी पूर्व सूचना के भरपूर स्त्रोत होते हैं, और पोलिटिकल पार्टियों में होने वाले किसी भी Disaster को होने से पहले ही रोके जाने के कई उदाहरण सामने हैं...! हाँ कुछ राजनैतिक mutual Disasters सभी की आपसी सहमती से होने देने के भी कई उदाहरण देखने को मिले हैं..!!
देखने वाली बात यह है कि इन दोनों प्रकार के मेनेजमेन्ट्स की बागडोर राजनेताओं के हाथ में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से होती है, मगर यहाँ अपने अपने Disasters होते हैं...और अपने अपने हितों के अनुसार ही ढीले और त्वरित मेनेजमेन्ट्स किये जाते हैं..!!
(मेरा यहाँ #उत्तराखंड त्रासदी और उसके Disaster Management में कोई मीन मेख निकलने का कोई मकसद नहीं है, { सेना के जांबाज़ और लोगों को बचाने का उनका जूनून सारा देश सगर्व देख रहा है } बल्कि दोनों प्रकार के मेनेजमेन्ट्स पर एक विचार प्रकट किया है, आशा है पाठक इसे अन्यथा नहीं लेंगे, धन्यवाद ! )
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