कांग्रेस की मस्ती और भाजपा की पस्ती के कारण जन्म
लेने वाले IAC (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) ... उसके जनलोकपाल आंदोलन ...और
उसके बाद पैदा हुयी नवजात आम आदमी पार्टी ने न सिर्फ भारतीय राजनीति के
परंपरागत गणित के तौर तरीक़ों को पलटा है बल्कि राजनीति में नए व्यवहारिक
प्रयोग भी प्रारम्भ किये हैं, भले इस इस पार्टी के जन्म और उसके मूलभूत
आधार जनलोकपाल आंदोलन और केजरीवाल के गुरु अन्ना को हाशिये पर धकेले जाने
के कारण कई विवाद आज भी कायम हैं !
हम ज़्यादा पीछे नहीं जाकर यदि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो दिल्ली में इस पार्टी ने विधान सभा चुनावों जो सफलता पायी है, वो भारतीय राजनीति में एक Turning Point की तरह ही कहा जाएगा, झाड़ू ने न सिर्फ बड़े बड़े दिग्गजों का सफाया कर दिया, बल्कि शीला दीक्षित जैसी मुख्यमंत्री को भारी मतों से हार का सामना करना पड़ा, कांग्रेस की करारी शिकस्त हुई, साथ ही भाजपा भी आवाक रह गयी, भले ही कांग्रेस के समर्थन के बाद आ आ पा सत्ता में आयी हो, मगर उसने जो दुंदुभि राजनीति में बजायी है, उससे न सिर्फ बड़े राजनैतिक दलों की नींद उडी है, बल्कि इन बड़े दलों ने आ आ पा के सैद्धांतिक कार्यकलापों का अनुसरण करना भी शुरू कर दिया है !
मगर यही गतिशीलता और जनप्रियता आज आ आ पा के लिए पनौती बन बैठी है, कारण कि न सिर्फ जनता बल्कि मीडिया का भी पूरा रुझान आ आ पा पर ही केंद्रित हो गया है, एक तरफ देश के बड़े खूसट राजनैतिक दलों के निशाने पर हैं, तो दूसरी और आ आ पा की लोकप्रियता से लार टपकाए अवसरवादियों की जमकर पार्टी में घुसपैठ भी हुई है, समय न रहते कोई उचित फ़िल्टर भी काम में न ले सकने के कारण आ आ पा में कई दलों के अवसरवादी घुसपैठिये जा घुसे हैं, साथ ही शीर्ष नेतृत्व में शामिल लोगों द्वारा पार्टी विरोधी गतिविधियां भी समय समय पर संकट का कारण बनती जा रही हैं ! ताज़ा उदाहरण बिन्नी महोदय द्वारा दूसरी बार की गयी अप्रत्यक्ष बगावत, के साथ भाजपा से आ आ पा में गयी टीना शर्मा के बयान हैं !
अब इस नवजात पार्टी पर इस समय सिर्फ चारों और से दबाव बना हुआ है, जनता का, मीडिया का, आ आ पा के सदस्यों का, जीत कर आये लोगों का..और नए शामिल हुए कई क़द्दावर लोगों के समायोजन का भी, वही दूसरी और कांग्रेस और भाजपा के साथ क्षेत्रीय दलों द्वारा लगातार किये जा रहे हमलों का भी दबाव है, साथ ही किये गए वायदों को जल्दी से जल्दी पूरा करने का भी दबाव है !
पिछले विधान सभा चुनावों में और राज्यों में भी अन्य दलों ने जीत दर्ज की है, छत्तीसगढ़ में , मध्य प्रदेश में, राजस्थान में ...मिजोरम में ...वहाँ क्या क्या हुआ....कितने वायदे पूरे हुए...सरकारें क्या कर रही है ? किसी को इससे मतलब नहीं है...इस समय सब के निशाने पर है आम आदमी पार्टी जो कि अभी घुटनो के बल चलकर उठ कर खड़ा होने की कोशिश में है...उससे मीडिया, जनता, विरोधी दल, और समर्थक यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि यह दौड़ कर बताये, जैसा यह कहें कलाबाज़ियाँ खा कर दिखाए ! भले ही आ आ पा के लिए कांग्रेस की B टीम होने का आरोप लगे, या भाजपा की B टीम होने का, राहुल गांधी के खिलाफ बताया जाए या मोदी के खिलाफ, वो जो भी है...उसका पूरा चरित्र तो सामने आने दीजिये...मुठ्ठी तो खुलने दीजिये...तब राय बनाइये, इस नवजात को अपने पांवों पर खड़ा तो होने दीजिये, ऐसी जल्दी भी क्या है, सूचना क्रांति के इस दौर में अब देश और इस देश की जनता इतनी कमज़ोर और मूर्ख नहीं है कि किसी ऐरे गैरे को सर पर बैठाये, यदि किसी को सर पर बैठा सकती है तो उसे धूल भी चटा सकती है...इसके भूत और वर्त्तमान काल में कई बड़े उदाहरण हैं !
उम्मीद करता हूँ कि राजनीति में अभी जो भ्रमित काल चल रहा है जल्दी ही दूर होगा...और वास्तविकता सबके सामने आएगी !
जय हिन्द !
हम ज़्यादा पीछे नहीं जाकर यदि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो दिल्ली में इस पार्टी ने विधान सभा चुनावों जो सफलता पायी है, वो भारतीय राजनीति में एक Turning Point की तरह ही कहा जाएगा, झाड़ू ने न सिर्फ बड़े बड़े दिग्गजों का सफाया कर दिया, बल्कि शीला दीक्षित जैसी मुख्यमंत्री को भारी मतों से हार का सामना करना पड़ा, कांग्रेस की करारी शिकस्त हुई, साथ ही भाजपा भी आवाक रह गयी, भले ही कांग्रेस के समर्थन के बाद आ आ पा सत्ता में आयी हो, मगर उसने जो दुंदुभि राजनीति में बजायी है, उससे न सिर्फ बड़े राजनैतिक दलों की नींद उडी है, बल्कि इन बड़े दलों ने आ आ पा के सैद्धांतिक कार्यकलापों का अनुसरण करना भी शुरू कर दिया है !
मगर यही गतिशीलता और जनप्रियता आज आ आ पा के लिए पनौती बन बैठी है, कारण कि न सिर्फ जनता बल्कि मीडिया का भी पूरा रुझान आ आ पा पर ही केंद्रित हो गया है, एक तरफ देश के बड़े खूसट राजनैतिक दलों के निशाने पर हैं, तो दूसरी और आ आ पा की लोकप्रियता से लार टपकाए अवसरवादियों की जमकर पार्टी में घुसपैठ भी हुई है, समय न रहते कोई उचित फ़िल्टर भी काम में न ले सकने के कारण आ आ पा में कई दलों के अवसरवादी घुसपैठिये जा घुसे हैं, साथ ही शीर्ष नेतृत्व में शामिल लोगों द्वारा पार्टी विरोधी गतिविधियां भी समय समय पर संकट का कारण बनती जा रही हैं ! ताज़ा उदाहरण बिन्नी महोदय द्वारा दूसरी बार की गयी अप्रत्यक्ष बगावत, के साथ भाजपा से आ आ पा में गयी टीना शर्मा के बयान हैं !
अब इस नवजात पार्टी पर इस समय सिर्फ चारों और से दबाव बना हुआ है, जनता का, मीडिया का, आ आ पा के सदस्यों का, जीत कर आये लोगों का..और नए शामिल हुए कई क़द्दावर लोगों के समायोजन का भी, वही दूसरी और कांग्रेस और भाजपा के साथ क्षेत्रीय दलों द्वारा लगातार किये जा रहे हमलों का भी दबाव है, साथ ही किये गए वायदों को जल्दी से जल्दी पूरा करने का भी दबाव है !
पिछले विधान सभा चुनावों में और राज्यों में भी अन्य दलों ने जीत दर्ज की है, छत्तीसगढ़ में , मध्य प्रदेश में, राजस्थान में ...मिजोरम में ...वहाँ क्या क्या हुआ....कितने वायदे पूरे हुए...सरकारें क्या कर रही है ? किसी को इससे मतलब नहीं है...इस समय सब के निशाने पर है आम आदमी पार्टी जो कि अभी घुटनो के बल चलकर उठ कर खड़ा होने की कोशिश में है...उससे मीडिया, जनता, विरोधी दल, और समर्थक यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि यह दौड़ कर बताये, जैसा यह कहें कलाबाज़ियाँ खा कर दिखाए ! भले ही आ आ पा के लिए कांग्रेस की B टीम होने का आरोप लगे, या भाजपा की B टीम होने का, राहुल गांधी के खिलाफ बताया जाए या मोदी के खिलाफ, वो जो भी है...उसका पूरा चरित्र तो सामने आने दीजिये...मुठ्ठी तो खुलने दीजिये...तब राय बनाइये, इस नवजात को अपने पांवों पर खड़ा तो होने दीजिये, ऐसी जल्दी भी क्या है, सूचना क्रांति के इस दौर में अब देश और इस देश की जनता इतनी कमज़ोर और मूर्ख नहीं है कि किसी ऐरे गैरे को सर पर बैठाये, यदि किसी को सर पर बैठा सकती है तो उसे धूल भी चटा सकती है...इसके भूत और वर्त्तमान काल में कई बड़े उदाहरण हैं !
उम्मीद करता हूँ कि राजनीति में अभी जो भ्रमित काल चल रहा है जल्दी ही दूर होगा...और वास्तविकता सबके सामने आएगी !
जय हिन्द !
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