पाकिस्तान को पीट दो,आतंक का बदला क्रिकेट से,पाकिस्तान को धूल चटा दो,मौका मत चूको,पुरानी हार का बदला लो,अभी नहीं तो कभी नहीं,महारथियों की महा टक्कर,प्रतिद्वंद्वियों में घमासान,क्रिकेट का महाभारत….ये महज चंद उदाहरण है जो इन दिनों न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्रों में छाये हुए हैं.मामला केवल इतना सा है कि विश्व कप क्रिकेट के सेमीफाइनल में भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने-सामने हैं.लेकिन मीडिया की खबरों,चित्रों,रिपोर्टिंग,संवाददाताओं की टिप्पणियों और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं से ऐसा लग रहा है मानो इन दोनों देशों के बीच क्रिकेट का मैच नहीं बल्कि युद्ध होने जा रहा है.हर दिन उत्तेजना का नया वातावरण बनाया जा रहा है,एक दूसरे के खिलाफ तलवार खीचनें के लिए उकसाया जा रहा है और महज एक स्टेडियम में दो टीमों के बीच होने वाले मुकाबले को दो देशों की जंग में बदल दिया गया है.रही सही कसर सरकार और राजनीतिकों ने पूरी कर दी है. “क्रिकेट डिप्लोमेसी” जैसे नए-नए शब्द हमारे बोलचाल का हिस्सा बन रहे हैं.राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक और मुख्यमंत्री से लेकर बाबूओं तक पर क्रिकेट का जादू सर चढकर बोल रहा है.
यह क्रिकेट के प्रति दीवानगी है या जंग जैसे माहौल का असर कि अब हर नेता,अभिनेता,व्यवसायी और रसूखदार व्यक्ति इस मैच को देखना चाहता है भले ही उसे क्रिकेट की ‘ए बी सी डी..’ भी नहीं आती हो. देश और जनकल्याण के कामों के लिए चंद मिनट नहीं निकाल सकने वाले लोग इस मैच के लिए पूरा दिन बर्बाद करने को तत्पर हैं.देश की समस्याओं के प्रति उदासीन रहने वाले आम लोग,साधू-संत,छुटभैये नेता और जेल में बंद क़ैदी तक मीडिया की सुर्खियाँ बटोरने के लिए हवन-पूजन का दिखावा कर रहे हैं.कोई अज़ीबोगरीब ढंग से बाल कटा रहा है तो कोई अधनंगी पीठ पर देश का नक्शा बनवा रहा है.मध्यप्रदेश में तो विधानसभा में कामकाज बंद कर मैच देखने की छुट्टी दे दी गयी है.पहले से ही काम नहीं करने के लिए बदनाम सरकारी दफ्तरों को भी काम से पल्ला झाड़ने के लिए क्रिकेट का बहाना मिल गया है.इस दौरान कई सवाल भी उठ रहे हैं जैसे मैच को युद्ध में बदलने से और वीवीआईपी के जमघट पर होने वाले करोड़ों रूपए के सुरक्षा तामझाम का खर्च कौन उठाएगा?अपने आप को देश के नियम-क़ानूनों से परे मानने वाले बीसीसीआई के खजाने के भरने से देश को क्या लाभ होगा?क्रिकेट हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं है और इसपर देश के अन्य खेलों का काम-तमाम करने का आरोप तक लग रहा है उसे इतना प्रोत्साहन क्यों?लाखों-करोड़ों रूपए रोज कमाने वाले क्रिकेटरों के सरकारी महिमामंडन से बाक़ी खेलों के लिए जवानी दांव पर लगा रहे खिलाडियों की मानसिकता क्या होगी?
इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत सहित दुनिया के कई मुल्कों में क्रिकेट अत्यधिक लोकप्रिय खेल है और क्रिकेटरों को भगवान का दर्ज़ा तक हासिल है.इस खेल के मनोरंजक तत्वों को भी झुठलाया नहीं जा सकता परन्तु खेल को खेल की ही तरह खेलने देने में क्या बुराई है? खेल के नाम पर यह तनाव और युद्ध जैसा वातावरण बनाने का क्या औचित्य है? खिलाडियों के बीच मैच के दौरान स्वावाभिक रूप से रहने वाले तनाव को हमने देश भर में फैला दिया है और इससे बढ़ने वाली धार्मिक और सामुदायिक वैमनस्यता के परिणाम आने वाले समय में भी भुगतने पड़ सकते हैं.सरकार या नेताओं का तो समझ में आता है कि वे आम लोगों का ध्यान देश की मूलभूत समस्याओं से हटाने के लिए कोई न कोई बहाना तलाशते रहते हैं.अब इस मैच को जंग में बदलवाकर उन्होंने देश का ध्यान टू-जी स्पेक्ट्रम,कामनवेल्थ,विकिलीक्स,महंगाई जैसे तमाम तात्कालिक मुद्दों से हटा दिया है परन्तु देश के ज़िम्मेदार मीडिया का भी पथभ्रष्ट होना समझ से परे है…..इन न्यूज़ चेनलों का भी राखी सवान्तिकरण हो गया लगता है...