बुधवार, 15 अप्रैल 2015

राजनीति और क्रिकेट एक सामान ??

राजनीति और क्रिकेट एक सामान हो चली है, जहाँ मोदी का मंदिर बनाकर उनकी मूर्ती को मंदिर में स्थापित किया गया है, वहीँ दूसरी ओर सचिन को उसके प्रशंसकों द्वारा क्रिकेट का भगवान घोषित कर देश पर थोप दिया गया है , भले ही बाक़ी देश वासी इससे सहमत हों या ना हों, दूसरी ओर धोनी के भक्तों ने धोनी को विष्णु अवतार में दिखाने वाला पोस्टर ही जारी कर दिया था, उस वाले पोस्टर पर भी विवाद खड़ा हो गया था, और उनकी गिरफ्तारी वारंट तक निकल गए थे !


अब हाल यह हो गया है की राजनीति और क्रिकेट एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं, लोगों के इस जूनून को बाजार और राजनीति जमकर बेच रहे है, जैसे नेताओं की हर दौर में चांदी है, ठीक उसी तरह क्रिकेट खिलाडियों की चांदी है, न सिर्फ चांदी है बल्कि रोकड़े का अम्बार लगा हुआ है, और इसमें कार्पोरेट मीडिया बड़ा रोल अदा कर रही है, देश का राष्ट्रिय खेल हॉकी और देश के परंपरागत खेल अपने ही घर में उपेक्षित और बदहाल आखरी साँसे गिन रहे हैं, भले ही हाल ही में हॉकी लीग जैसे आयोजनो से राष्ट्रिय खेल को ऑक्सीजन ज़रूर मिली हो, मगर फिर भी उसका वो सम्माननीय स्तर नहीं है, जो क्रिकेट को मिला हुआ है ! इसमें महिला हॉकी की हालत तो और भी खस्ता है ! 


खैर....... राष्ट्रवाद का तक़ाज़ा है ...वर्ल्ड कप क्रिकेट भी चालू है, सो किरकेट की जय जय कार करते रहिये, वरना आप की राष्ट्रभक्ति पर उँगलियाँ उठते देर नहीं लगेंगी ! सचिन की जय, धोनी की जय, विराट की जय !

BCCI की क्रिकेट टीम ज़िंदाबाद !!  पाकिस्तान मुर्दाबाद !! 

आखिर यह #पर्दादारी क्यों ~~~ ???

फेसबुक पर लगभग 30 प्रतिशत यूज़र अपने आपको छुपाकर पेश करते हैं, उसमें सबसे पहले आता है DP , यानी प्रोफाइल पर लगा फोटो ! उसके बाद आता है नाम, कई लोग अपने वास्तविक नाम नहीं रख कर अजीब अजीब नाम रखते हैं, उसके बाद आता है Gender , कई नाम ऐसे होते हैं, जिनका Gender समझ में नहीं आता, उनसे कमेंट में मुखातिब करते समय कन्फ्यूज़ ही रहते हैं कि इन्हे जनाब कहें या फिर मोहतरमा !

कई लोग अपने आपको छुपाने में इतने माहिर होते हैं कि उनकी टाइम लाइन पर अगर आप चार पांच साल पहले की टाइम लाइन पोस्ट से लेकर आज तक की पोस्ट और प्रोफाइल फोटो देखें तो भी उनका एक भी प्रोफाइल फोटो नहीं ढूंढ सकते !

इस पर्दादारी में पुरुष यूज़र्स की संख्या इसमें ज़्यादा है, अधिकांश महिला फेसबुक यूज़र्स अपना वास्तविक फोटो डालने से परहेज़ करती हैं, वजह आप सब जानते हैं, मैं कई ऐसी खूबसूरत महिलाओं को जनता हूँ, जो अपना फोटो न लगाकर कुछ और लगाये हैं !

महिलाएं पर्दादारी करें तो समझ आती है, मगर पुरुष यूज़र्स ऐसा करें तो समझ से बाहर है !

मैं उन दोस्तों की बहुत ज़्यादा क़द्र करता हूँ जो हर कमी - बेशी के साथ अपने वास्तविक फोटो और नाम के साथ मेरी फ्रेंड लिस्ट में मौजूद हैं ! और सभी पुरुष मित्रों से भी यही गुज़ारिश करता हूँ कि जब दोस्त बने हैं तो इतनी पर्दादारी किसलिए ? जहाँ तक हो सके कम से कम अपना वास्तविक फोटो ज़रूर लगाएं भले ही बचपन का ही क्यों ना हो !

(किसी मित्र को #टैग चाहिए तो आवाज़ लगाए :))

दीवार फिल्म के डायलॉग.. AAP की अंतर्कलह पर !!

होली पर लोगों ने सोशल मीडिया पर नेताओं पर खूब चुटकियाँ लीं, सोचा एक चुटकी अपनी भी सही, सो एक व्यंग्य कि यदि दीवार फिल्म के संवाद आप की अंतर्कलह पर फिट किये जाएँ तो कैसा रहे :-
(यहाँ : AK - अरविन्द केजरीवाल / YY - योगेन्द्र यादव/ PB - प्रशांत भूषण)  

पहला दृश्य ~~!!
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AK :- पहले मैं यह जानना चाहता हूँ कि मेरे साथ कोई आपिये बात कर रहे है, या फिर कोई बवाली ?

YY/PB :- जब तक एक आपिया बोलेगा एक आपिया सुनेगा, जब एक घाघ नेता बोलेगा, दूध का दूध ...पानी का पानी करने वाला बोलेगा !

AK :- लगता है हमारे बीच जो दीवार है, वो इस यमुना ब्रिज से कहीं ऊंची है ! YY/PB तुम जानते हो कि दोनों जिस बागी रास्ते पर चल रहे हो उसका अंजाम क्या हो सकता है ?

YY/PB :- जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं उसका अंजाम शायद बुरा भी हो सकता है, लेकिन जिस रस्ते पर तुम चल रहे हो उसका अंजाम सिर्फ बुरा ही होता है भाई AK !
AK : मैं तो अपनी बाज़ी खेल चुका हूँ, अब हारूँ या जीतूं ! लेकिन तुम्हारे पास तो अभी चाँस है, इस पार्टी के अलावा देश में और भी तो पार्टियां हैं, उन्हें ज्वाइन क्यों नहीं कर लेते ?

YY/PB :- नहीं हमारे उसूल हमारे आदर्श इसकी तनिक भी आज्ञा नहीं देते !!

AK :- उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ तुम्हारे उसूल तुम्हारे आदर्श !! किस काम के हैं तुम्हारे आदर्श तुम्हारे उसूल ? तुम्हारे सारे उसूलों को गूंध कर एक महीने का चंदा नहीं मिल सकता ! मेरे इलाज का खर्चा नहीं निकल सकता, क्या दिया है तुम्हारे उसूलों ने आदर्शों ने ? राजनैतिक विश्लेषक का तमगा, आठ दस चमचे, विद्रोही का खिताब ?? देखो इधर देखो, यह वही मैं हूँ और यह वही तुम हो, हम तीनो ने एक साथ पार्टी बनायी थी, लेकिन आज तुम कहाँ रह गए और मैं कहाँ आ गया हूँ, आज मेरे पास अंजलि दामनिया है, कुमार विश्वास है, मनीष सिसोदिया है, आशुतोष है, संजय सिंह है, मुख्यमंत्री पद है, सरकारी बांग्ला है, Z-plus सिक्योरिटी है, सरकारी गाडी है, चमचों की फ़ौज है, पार्टी का चंदा है ! क्या है तुम्हारे पास ?

YY/PB :- हमारे पास देश की जनता का समर्थन है, नैतिकता है, सिद्धांत हैं, पारदर्शिता है, सच्चाई है, और इन सबसे आगे.....हमारे पास मयंक गांधी है, जो ब्लॉग लिख लिख कर तुम्हारी नाक में दम करते रहेंगे !!

दूसरा दृश्य~~~!!
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YY/PB :- AK से, तुम पार्टी संयोजक पद से इस्तीफे पर साइन करोगे या नहीं ?

AK :- हाँ मैं साइन करूंगा, मगर अकेले नहीं करूंगा, जाओ पहले उस आदमी के साइन लेकर आओ जिसकी वजह से मैं नौकरी छोड़ कर राजनीति की कबड्डी खेलने को मजबूर हो गया, जाओ पहले उन लोगों के साइन लेकर आओ जिन्होंने मेरे माथे पर यह ठप्पा लगा दिया कि मैं ही एक मात्र राष्ट्रिय ईमानदार हूँ, उसके बाद मेरे भाइयों तुम दोनों जिस कागज़ पर कहोगे मैं साइन करूंगा !

YY/PB :- दूसरों को घाघ नेता कहने से यह सच्चाई नहीं बदल जाती AK भाई कि अब तुम भी पूरे घाघ नेता बन चुके हो, और यही सच्चाई तुम्हारे हमारे बीच एक दीवार है, और जब तक यह दीवार है, हम तीनो एक पार्टी में नहीं रह सकते, हम PAC से जा तो रहे हैं, मगर अब जो रायता फ़ैल चुका है, उसे कैसे समेटोगे ?? 

(व्यंग्य मात्र है, किसी की भावनाओं को आहत करने का उद्देश्य बिलकुल नहीं है)

सुनो ओ विकास विरोधी किसानो !!!!

यह क्या चिल्ल पों मचा रखी है तुमने ? भूमि अधिग्रहण क़ानून के खिलाफ ..हैं ...? भूल गए क्या मोदी जी ने क्या कहा था ? सबका साथ - सबका विकास, अब विकास के लिए जब मोदी जी तुम्हारा #साथ मांग रहे हैं तो पीछे क्यों हट रहे हो ?

भूल गए मोदी जी की #कड़वी गोली ? किस किस ने खाई हाथ उठाओ ? 

किसी ने नहीं, फिर काहे हल्ला गुल्ला ? बिना कड़वी गोली खाए तुम्हे आवाज़ निकालने का अधिकार नहीं !

क्या कहा मोदी जी के #वायदे ? 

देखो भैया विकास एक सतत प्रक्रिया है, एक दम से नहीं होगा, धीरे धीर होगा, कांग्रेस को साठ साल दिए, मोदी जी को केवल #दस साल नहीं दे सकते क्या ? जिसे देखो मोदी जी के पीछे पड़ा है, अब तुम्हारा भी भेजा सटक गया लगता है, भैया थोड़ी तो प्रतीक्षा करेँ !! 

यह कौन बोला ..... #काला_धन ??
अमित शाह जी ने क्या कहा भूल गए क्या ? वैसे रामदेव जी इस काले धन को लाने के लिए कोई नया आसन इन्वेन्ट करने वाले हैं, वो आसन करने के बाद इस काले धन के आगमन की प्रबल सम्भावना है !


यह #धारा_370 की आवाज़ किधर से आयी, कौन है यह #जाहिल ?
खैर जिसने भी आवाज़ लगाईं है, सुन ले ... शासन चलाना इतना आसान नहीं है, कई समझौत्ते करना पड़ते हैं, दिल्ली तो हाथ से गयी, क्या जम्मू कश्मीर भी हाथ से जाने देते ? 

आईये अब वापस भूमि अधिग्रहण क़ानून पर आते हैं, यह धरती माता, धरती माता क्या लगा रखा है ? सब चुप हो जाओ ..काम की बात अब बता रहे हैं !

देखो तुम सब बावले हो भावनाओं में बह रहे हो, सोचो क्या रखा है खेती बाड़ी में ? बीज लेने के लिए यदि पैसे नहीं तो लोन लेने बैंकों के चक्कर काटोगे, पैसे मिल गए तो यूरिया के लिए लाइन में लगना होगा, डंडे खाना होंगे, अगर यूरिया मिल भी गया तो उसके बाद खेतों में पानी का जुगाड़, और अगर वर्षा ने धोखा दे दिया तो फिर ? हो गया ना सब चौपट !!

इसलिए विकास की अवधारणा को समझो, विकास और अच्छे दिन ऐसे ही थोड़े आएंगे, सरकार तुम्हारी यह फालतू ज़मीने खरीद कर तुम्हे अच्छे पैसे देगी ! 

तुम और तुम्हारे बच्चे कब तक गांवों की कच्ची सड़कों पर बैलगाड़ियों में धक्के खाते फिरेंगे ? उस पैसे से तुम लोग अपने लिए सफारी, डस्टर, फ़ॉर्चूनर जैसी गाड़ियां खरीदो, शहरों में अपार्टमेंट्स लो, बच्चों को छोटी मोटी कारें दिलवाओ, मैकडोनाल्ड्स और kfc खिलाओ !

शेयर मार्किट में पैसा लगाओ, स्मार्ट सिटियाँ देखो, बुलेट ट्रेनों में घूमो, बच्चों को शॉपिंग मॉल दिखाओ, फ़िल्में दिखाओ, डोमिनो पिज़्ज़ा खाकर देखो कभी ! 

तब तुम्हे पता चलेगा कि भूमि अधिग्रहण क़ानून कितना अच्छा था !
आयी बात समझ में कि नहीं ?? 

अबे अब यह U टर्न कौन बोला ?  खबरदार जो किसी ने अब U टर्न का नाम लिया तो !!

(व्यंग्य मात्र है, कृपया अपने विवेक से काम लें)

'AAP' से यह उम्मीद नहीं थी ~~~!!

मुझे आज भी सन 2011 के अन्ना आंदोलन के वो दिन याद हैं जब मेरी बिटिया ने मुझे एक sms कर अन्ना आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा था, उस sms का सार कुछ यह था कि " एक बूढ़ा व्यक्ति देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कई दिन से भूखे पेट अनशन पर है, आप भरे पेट ही सही उस व्यक्ति के लिए घर से निकलिए, उस बूढ़े व्यक्ति की आवाज़ से आवाज़ मिलाइये, सोशल मीडिया पर इस आंदोलन के साथ जुड़िये, ताकि आने वाली पीढ़ियों को जवाब दे सकें कि आप भी इस शुद्धिकरण प्रक्रिया का एक अंग रहे थे ! "


हालांकि बिटिया को यह पता नहीं था कि हम पहले ही मार्च 2011 से इस आंदोलन से जुड़ गए थे, और इस आंदोलन के समर्थन में जमकर आर्टिकल और ब्लॉग लिखे थे ! आज वही बच्चे अन्ना का नाम सुनकर दायें बाएं हो जाते हैं,  कारण लिखना ज़रूरी नहीं है, सभी जानते हैं !


कल फिर से ऐसा ही कुछ हुआ है, राजनीति के क्षितिज में तेज़ी से उभरे केजरीवाल और जनता के बीच विश्वसनीयता बनाये उनकी AAP से फिर से लोगों की ठीक वैसी ही आशा बंधी थी, जैसे कभी अन्ना आंदोलन से बंधी थी, इस बार दिल्ली का चुनाव जीतकर काफी हद तक यह आशाएं पूरी भी हुई थी, मगर जिस प्रकार से AAP में अंतर्कलह सामने आयी  और दो वरिष्ठ सदस्यों को PAC से अपमानित कर निकाला गया उससे काफी समर्थकों और कार्यकर्ताओं में काफी निराशा और भ्रम है !


भले ही इसे कड़े अनुशासन का मुखौटा पहना कर जनता के सामने रखा गया है, मगर यह सच नहीं है, इसके मूल में जो भी कूटनीति है वो भी चौराहे पर आ गयी है ! हर बात जनता से पूछ कर करने वाली पार्टी ने बंद कमरे में बिना कारण बताओं नोटिस के ही इन दोनों को बाहर का रास्ता दिखा दिया, और सबसे बड़ी बात कि खुद पार्टी संयोजक .....ऐसे बड़े निर्णायक समय में स्वास्थ्य लाभ का बहाना कर शामिल नहीं हुए थे, यह तो वही बात हुई कि घर में आग लगी हो और घर का मुखिया दूर जाकर बैठ जाए !


खैर, देश की दलगत राजनीति से अलग राजनीति का जो दावा AAP ने किया था, वो चकनाचूर होता नज़र आ रहा है, मैं, मेरी पार्टी, मेरे समर्थक.........यानी सुप्रीमो वाली बात कहीं न कहीं सच होती नज़र आ रही है, चमचों और चापलूसों का जमावड़ा बढ़ गया है, और आंतरिक लोकतंत्र नाम का गुब्बारा भी फुट चुका है,  सवाल उठाने वाले को पार्टी विरोधी क़रार दिया जाने लगा है, उन्हें अपमानित किया जाने लगा है !!


दूसरी सबसे बड़ी बात यह कि इस आम आदमी पार्टी को हर सदस्य और कार्यकर्ता ने अपने खून पसीने से सींच कर बड़ा किया है, लोगों ने न सिर्फ देश में बल्कि विदेश में भी अपनी बड़ी बड़ी नौकरियां छोड़ी हैं, धंधे छोड़े हैं, और तन मन धन से इस पार्टी के साथ जुड़े हैं, अब ऐसे में जब यह कलह सामने आयी है तो इन सबके सपनो पर कुठाराघात हुआ है, जो कि पार्टी के लिए बिलकुल भी हितकारी नहीं कहा जा सकता, और दूसरी बात कि इस पार्टी में अभी भी कई योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण मौजूद हैं, किस किस को निकालिएगा !!


आज केजरीवाल ....AAP में वही जगह ले चुके हैं, जो कि भाजपा में मोदी की है !! और केजरीवाल के कट्टर समर्थक वही स्थान ले चुके हैं जो कि सोशल मीडिया पर #भक्तों को दिया गया है ! यह AAP के केंद्र में पैदा हुए एक 'ब्लैक होल' के सामान ही एक प्रक्रिया कही जा सकती है !!


राजनीति में एक ताज़ा झोंके की तरह आयी इस पार्टी से कहीं न कहीं जनता को अभी भी उम्मीदें हैं, और सभी यह दुआ कर रहे हैं कि कैसे भी करके इस कलह का सार्थक परिणाम निकले, नींव की ईंटों का दरकना किसी भी मज़बूत से मज़बूत इमारत के लिए सिर्फ हानि और विध्वंस का ही सबब बनता है, निर्माण और स्थायित्व का नहीं, भले ही मरम्मत कर कुछ देर के लिए डैमेज कंट्रोल ही क्यों न कर लिया जाए !!

हम फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते क्यों हैं ??

फेसबुक पर कई लोग फ्रेंड रिक्वेस्ट इसलिए भेजते हैं कि वो हमारी किसी पोस्ट या स्टेटस को पसंद करते हैं, या लिखे गए किसी नोट या शेरो शायरी को पसंद करते हैं, तो कुछ लोग फ्रेंड रिक्वेस्ट सिर्फ और सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि हम उनकी पोस्ट पढ़ें ... कि वो हमारी, कुछ लोग फ्रेंड रिक्वेस्ट इसलिए भेजते हैं कि वो हमें टैग कर सकें, तो कुछ लोग फ्रेंड रिक्वेस्ट इसलिए भेजते हैं कि पोस्ट चोरी कर सकें, तो कुछ लोग फ्रेंड रिक्वेस्ट इसलिए भेजते हैं कि कुछ खुफियापंथी कर सकें ! ऐसे कुछ खुफियापंथी करने वाले लोग फ्रेंड रिक्वेस्ट भजेकर फॉलोवर्स भी बनते देखे गए हैं, मैंने ही 300 से ज़्यादा फॉलोवर्स से छुटकारा पाया है !

कुछ लोग सिर्फ फ्रेंड रिक्वेस्ट इसलिए भेजते हैं कि उनकी फ्रेंड लिस्ट लम्बी हो सके, और कुछ लोग सिर्फ फोटो या नाम देखकर भी फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं.....मगर सिर्फ महिलाओं की ! कुछ लोग फ्रेंड रेक्वेस्ट्स सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि हमें दोस्त बनते ही पकड़ कर किसी ग्रुप में ठेल दें ! वैचारिक आदान प्रदान के लिए ही दोस्त बनाने वालों का प्रतिशत यहाँ दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है !

इसका बड़ा कारण यही है कि कोई भी नया फेसबुक यूज़र महीने भर में स्वघोषित सेलिब्रिटी हो जाता है, जैसे जैसे दोस्तों (समर्थकों) की संख्या बढ़ती जाती है, उनमे सेलिब्रिटी पन आने लगता है, उनका फेसबुकिया व्यवहार बदलने लगता है, ऐसे ही कुछ सेलिब्रिटी टाइप लोग फ़ौरन ही अपना पेज या ग्रुप बना लेता है, जहाँ उसे सदस्यों के बीच पूर्ण संतुष्टि की प्राप्ति होती है ! जैसे जैसे दोस्तों की संख्या बढ़ती जाती है.....उनके कॉलर ऊंचे होते जाते हैं...लोग उनकी एक like के लिए तरस जाते हैं, कमेंट तो बहुत दूर की बात हो जाती है !!

यही एक आम फेसबुकिये दस्तूर हो चला है, इसमें फेसबुक के पीछे का मनोविज्ञान ही काम करता है, यूज़र तो एक खिलौना बन कर अपना किरदार निभाता रहता है !

इन सबके बाद और इस फेसबुकिये दस्तूर से अछूते और शेष बचे खुचे लोग......अपने दोस्तों के सहारे लोग फेसबुक पर अपनी महफ़िलें सजाने की कोशिश करते देखे जाते हैं !!


भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ ज़रूर बनाइये... अगर ...

देश में सरकार बदलने के बाद भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने के लिए पुरज़ोर आवाज़ उठी है, भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सबसे पहले इस के लिए आवाज़ उठाई थी, और इसी बाबत कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने के लिए दायर याचिका ख़ारिज कर दी है !
घर्म ग्रन्थ हर धर्म के लिए आस्था, आदर, गौरव, श्रद्धा और सम्मान के पात्र होते हैं, बात यहाँ भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने की हो रही है, ठीक है......गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कीजिये....अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने से देश की समस्याएं सुलझ जाएँ, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश में औरतों को डायन बता कर मार देना बंद हो जाए, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद अस्पताल के दरवाज़ों पर प्रसूताएं दम तोडना बंद कर दें, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद बेरोज़गारी ख़त्म हो जाए, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद किसान आत्म हत्यायें करना बंद कर दें !
अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश के वृद्ध आश्रम बिलकुल खाली हो जाएँ, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद कोई बेटी दहेज़ की बलिवेदी पर चढ़े, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश में कोई भूखा ना सोये, यदि इस से देश में घोटाले, भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाए, स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन के लिए दर दर भटकना पड़े, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश के सैनिकों को क्रिकेट खिलाडियों से ज़्यादा सम्मान और पैसा मिलने लगे, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद बेटियां कोख में मारना बंद कर दिया जाए ......तो बेशक फ़ौरन ही इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाए, देश का कोई भी नागरिक इसका विरोध नहीं करेगा,बल्कि आगे आकर इसके समर्थन में अपनी आवाज़ उठाएगा !
और यदि मान लीजिये कि भगवद् गीता राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित नहीं होता है, तो भी इस ग्रन्थ के प्रति आस्था कम नहीं होगी, सम्मान और आदर कम नहीं होगा ! आज तक सरकारों ने शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा नहीं दिया तो उनके प्रति हमारा सम्मान और आदर कम तो नहीं हो गया ? आज तक बापू को राष्ट्रपिता का दर्जा किसी सरकार ने नहीं दिया तो क्या उनके आदर और सम्मान में किसी प्रकार की कोई कमी आयी ?
पवित्र धार्मिक ग्रंथों के बहाने राजनैतिक हितों को आस्था का चोला पहना कर जनता को गुमराह नहीं किया जाना चाहिए !
चाहे भगवद् गीता हो या पवित्र क़ुरआन, या बाइबिल या गुरु ग्रन्थ साहिब...इन्हे किसी प्रकार की घोषणा की ज़रा भी आवश्यकता नहीं है, यह सभी पवित्र ग्रन्थ इन सब मान्यताओं और घोषणाओं से काफी ऊपर हैं, इन सब के प्रति आस्था, सम्मान, श्रद्धा और आदर कभी कम हुआ है और ना ही भविष्य में होगा, चाहे सरकारें घोषणा करें या ना करें !!