बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

मैं तो चला बाबा बनने~~~~~!!


दोस्तों कई दिनों से मन ललचा सा रहा है...सोच के घोड़े लगातार दौड़ लगा रहे हैं...मन में वैराग सा पैदा हो रहा है...मगर यह वैराग जीवन से नहीं ...अपनी बेंक स्टेटमेंट स्लिप से है....बचत खाते में .कोने में दुबके पड़े कुछ हज़ार रुपयों की चीखों से उपजा है  ....देश में सोचा  जाए तो पढ़ लिख कर आदमी या तो दस बीस हज़ार की सरकारी नौकरी कर पाता है...या किसी अमीर के घर जन्म लिया हो तो डाक्टर..इंजिनीयर ..सोफ्ट वेयर कंसल्टेंट..आदि बनने का पूरा जुगाड़ होता  है...परन्तु इन को भी किसी न किसी के अधीन तो काम करना ही होता है...सर पर कोई आला अधिकारी डंडा लिए खड़ा ही होता है...और दूसरे ...देखा जाए तो धंधा या बिजनेस करने के लिए तगड़ा रोकड़ा अंटी में होना चाहिए....उसके बाद भी धंधा चल निकलने की कोई फुल गारंटी नहीं है...इन्वेस्ट करने के बाद भी घाटे का डर सताता ही रहता है ! तो बात हो रही थी मन ललचाने की... सोच के घोड़ों की दौड़ की...बात यह हुई कि जीवन की आपा धापी और दस बीस हज़ार की नौकरी के बाद भी आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैय्या वाली कहावत एक कान से होकर दूसरे से रोज़ निकल रही थी...कि एक दिन टी.वी. पर व्यस्त टाइम स्लोट में एक न्यूज़ चेनल पर देखा कि एक सज्जन विशाल कुर्सी पर बैठ कर पढ़े लिखे लोगों को हाथ उठा उठा कर आशीर्वाद दे रहे थे... कुछ देर देखने और सुनने  पर पाता चला कि यह सज्जन तो एक बाबा हैं....नाम है निर्मल बाबा....और यह उनका दरबार है....और मज़े की बात यह थी कि इस दरबार का नाम भी निर्मल दरबार था...दरबार में उपस्थित प्रजा हज़ारों में थी...सब पढ़े लिखे और खाते पीते घरों के लग रहे थे...आधे घंटे में मुझे सारा गणित समझ आ गया...!

गूगल बाबा से सलाह ली तो पाता चला कि यह निर्मल बाबा प्रति प्रजा 2000/- रूपये लेते हैं...तभी दरबार में प्रवेश मिलता है...सोच के घोड़े अपनी लगाम तुडवाने लगे...मन कुलांटे मारने लगा...कहाँ दस बीस हज़ार की नौकरी...और कहाँ इन बाबा का अपार व्यापार...कोई जीवन जीने की कला सिखा कर करोड़ों कमा रहे हैं...कोई योग ...कोई भोग...कोई तावीज़, कोई भभूत  कोई गण्डा करके धन कुबेर बन बैठे हैं...और तो और देश में और समाज में रुतबा बढ़ा सो अलग......पहले तो नेतागिरी में लोग पिट पिटा कर भी जाने को तैयार हो जाते थे...मगर अब यह बाबा गिरी का धंधा इतना ज़बरदस्त चमका है कि नेता भी इनके चरणों में नज़र आने लगे हैं.... बस तय कर लिया कि अब और अपना जीवन व्यर्थ नहीं होने दूंगा....जल्दी ही बाबा गिरी का धंधा पकड़ना होगा.... ना किसी की चाकरी ...ना ही कोई बोस न कोई अफसर...ना बिजनेस में घाटे का लोचा..वर्तमान समय में बाबागिरी से अच्छा कोई धंधा नहीं है,
.खूब फल फूल रहा है... इसके कई फायदे हैं,  सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि इसमें आपको कोई निवेश  नहीं करना है, मतलब यह व्यवसाय बिना पैसों के शुरू किया जा सकता है...न किसी डिग्री की ज़रुरत न किसी शारीरिक मापदंड की ..बस शर्त यही है कि आपकी ज़बान केंची की तरह चलनी चाहिए...मस्तिष्क उससे भी तेज़...कुछ हाथ की सफाई के करतब भी आते हों तो सोने पे सुहागा  !

शुरू में दस बीस किराए भाड़े के चेले और चेलियाँ साथ में लेना होगा...कुछ दिन इधर उधर गाँव में तम्बू लगा कर प्रवचन...जीवन ज्ञान...संस्कारों पर दो चार भाषण...और काम शुरू...हर गाँव में एक एक कमीशन एजेंट रखना होगा...जो कि आये दिन इश्तिहार छपवा कर ...प्रचार प्रसार करता रहे...और बार बार तम्बू लगवाकर चढ़ावे का इंतज़ाम करता रहे...हर गाँव और शहर में कुछ धनी भक्तों का जुगाड़ हुआ...दो चार छुट भैय्ये नेता तम्बू प्रवचन अटेंड कर गए तो समझो....अपन तर गए...कुछ दिन बाद शहर में आश्रम का जुगाड़ हो जाएगा...एक कुटिया...छोटी सी बगीची दो चार लाल पीले झंडे...कुछ अगर बत्तियां...एक लाउड स्पीकर...सुबह शाम प्रवचन...धंधा शुरू...बन गए अपन भी गुरु...!  बीते कुछ वर्षों से देखा गया है कि मंदिरों और बाबाओं को अपार चढ़ावा मिला है...किसी भी बाबा का जब भी कही पैसा कौड़ी के बारे में ज़िक्र आता है...तो 400 या 500 करोड़ से नीचे की तो बात ही नहीं होती....एक बाबा हैं बाबा खालिद बंगाली...सुना है उनके मोबाइल का बिल लाख रूपये प्रतिमाह से कम नहीं आता...बाप रे...किसी के पास राल्स रायस गाड़ियों का काफिला निकलता है...तो किसी के पास अरबों का सोना...साथ में आश्रम और आश्रम की भूमि अलग...किसी के पास राष्ट्र पति तक शीश झुकाने जाते हैं....तो किसी के पास प्रधान मंत्री ..से लेकर टाटा और अम्बानी .और फरहा खान, आमिर खान .शिल्पा शेट्टी ..तक....!


तो फिर लानत है दस बीस हज़ार की नौकरी को.....और धंधे पानी को...बाबागिरी जिंदाबाद...जब भेड़ों जैसी मानसिकता के भक्तो गण अपनी खून पसीने की कमाई बाबाओं पर लुटा रहे हों...तो अपुन क्यों स्टेंड बाई मोड़ में रहें... हींग लगे न फिटकरी ...रंग चोखा ...अब मैं तो चला बाबा बनने.... नाम भी रख लिया है....बाबा असमंजस दास...कोई रोके नहीं ...कोई टोके नहीं.....!!

सेक्यूलर कीड़ों का इमोशनल लोचा~~~!!


देश में कुछ  मज़हबी ठेकेदार और धार्मिक दुकानदार  बहुत ही परेशान और चिंतित चल रहे हैं...उनको एक प्रजाति बहुत ही परेशान कर रही है..और इनका धंधा ही चौपट कर डाला है...इन धार्मिक  दुकानदारों ने उस प्रजाति को बड़ा ही अजीब  नाम दिया है..." सेक्युलर कीड़े "...जी हाँ सही सुना...ऐसी धार्मिक दुकानों से सम्बन्ध रखने वाले काफी दुकानदार/ग्राहक और इन्टरनेट पर प्रायोजित ग्रुपों में विज़िट करने वाले  इस शब्द से भली भाँती परिचित होंगे....क्योंकि फासीवादी प्रजाति के लोग इन्टरनेट पर इस नाम को भली भाँती प्रयोग कर रहे हैं.... अब इस नाम के पीछे क्या लोजिक है...यह वही बता सकते हैं..मगर सभी धर्मों में पाए जाने वाले  इन सेक्युलर कीड़ों की वजह से इन दुकानदारों का धंधा चौपट हुआ जा रहा है...यह दुकानदार भी हर धर्म और विचार धारा के हैं..और काफी समय से सभी धर्मो के इन सेक्युलर कीड़ों के लिए एंटी डोज़ ढूँढने रहे हैं...इनके इमोशनल लोचे की काट ढूंढ रहे हैं...मगर कामयाब नहीं हो पा रहे हैं.....एक बार की घटना है एक ऐसा ही सेक्यूलर जीव अपने पड़ोसियों के साथ होली मना रहा था...रंगों से उसका चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था...उसकी बेगम कौतूहल से उस भीड़ में अपने शौहर को तलाश कर रही थी...उसके बच्चे पिचकारी लिए रंगों की बौछार करते दूसरे बच्चों के साथ होली का मज़ा ले रहे थे...मैंने पूछा कि भाई ..यह तो तुम्हारा त्यौहार नहीं है...तुम्हारे धर्म में तो शायद मनाही होगी..?.उसने चेहरे का रंग साफ़ करके मुझे देखा ...और ठहाका मार कर हंस दिया...बोला ..मियाँ जाओ किसी और को उपदेश दो... हमारे पडोसी सुबह होते ही...कुण्डी बजा कर बुला लेते हैं...हमारे पुरखे सालों से इस  त्यौहार के रंग में रंगते चले आये हैं...तो वही कीटाणु हमारे में भी हैं..हम भी हमारे साथियों के साथ इस त्यौहार को मना कर आपस में खुश हो रहे ...आपको क्यों तकलीफ हो रही है...? मुझसे जवाब न बन सका ...मैं आवाक सा मूंह खोले उस सेक्यूलर जीव की बेबाक भावना और जज्बे को देखता ...उलटे क़दम...वापस लौट गया..!

कुछ दिन बाद   ईद के त्यौहार पर मेरे पडोसी को सज धज कर परिवार सहित खान साहब के घर जाते देखा तो ...कुछ अचरज हुआ..मैंने उस सेक्यूलर जीव से पूछ ही डाला ...कि आज आप उनके घर क्या करने जा रहे हैं...उस सेक्यूलर जीव ने मुझे तुच्छ नज़रों से देखा  ..और बोला...क्या तुम्हें मालूम नहीं...आज ईद है...मैंने कहा..तभी तो पूछ रहा हूँ....उसने कहा...तो फिर परेशानी क्या है...? मैंने कहा...यह आपका त्यौहार तो नहीं है...फिर...? उस सेक्यूलर जीव ने कहा...भाई...हम हर ईद पर इनके घर बुलाये जाते हैं...और सेवइयां खाने जाते हैं...पूरा साल हम सब को इस त्यौहार का इंतज़ार रहता है...कि खान साहब के घर की सेवैय्याँ खाएं...बरसों से हम पड़ोसियों में यह परंपरा चली आ रही है...और हाँ...यदि बकरा ईद होती है...तो भी खान साहब...हमारे लिए..अलग से वेज खाने और सेवइयां ज़रूर बनाते हैं,  मैं हैरान सा अपना मूंह लिए खड़ा रहा...और वो परिवार सहित खान साहब के घर की और चल दिए..!  फिर एक दिन दोनों प्रकार के सेक्यूलर जीव मेरे घर आ बैठे....चाय पान करते हुए...बोले आप इस शहर में नए आये हो...कुछ दिन से परेशान से लग रहे हैं....वैसे हम आपके सवालों से  समझ गए कि आप क्यों परेशान हैं...वे बोले..देखिये..हम एक दूसरे के त्योहारों में उत्साह और प्रेम से भाग लेते हैं, ..सुख दुःख में एक दूसरे के काम आते हैं..पहले हम इंसान हैं...बाद में हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई...हमारी संस्कृति अनेकता में एकता की रही है...यही साझा सांस्कृति और एकता देश को अभी तक बांधे हुए है...साम्प्रदायिक एकता और साझा संस्कृति ही हमारे देश की शक्ति है.....वास्तव में साझा संस्कृति के अनेक महत्वपूर्ण तत्व आज भी जिंदा हैं और जब तक सभ्यता रहेगी तब तक जिंदा रहेंगे।  फिर वो बोले कि आप  कभी स्कूल में जाकर देखिये ... जब बच्चों का लंच होता है...उस समय सब बच्चे अपने टिफन खोल कर साथ बैठते हैं...और एक साथ मिलकर एक दूसरे के टिफन से खाना बाँट कर खाते हैं...उस समय ना कोई.....हिन्दू होता है, मुसलमान, न सिख, न इसाई, न पिछड़ी जाति और ना ही अगड़ी जाति...उस समय सब हिन्दुस्तानी बच्चे होते हैं...ऐसा लगता है...जैसे धीरे धीरे ..सफ़ेद, हरा, केसरिया, पीला, नीला, लाल...सब रंग मिल कर एक इन्द्रधनुष का रूप ले रहे हों...वो इन्द्रधनुष जो कि एकता और शांति का ..अनेकता में एकता का प्रतीक है...और यही हमारी पहचान भी है....... आप और हम मिल कर ही इस सतरंगी इन्द्रधनुष रुपी देश की रचना करते हैं...और इसको सुन्दर बनाते हैं...फिर उन  सेक्यूलर जीवों ने मुझे यह रचना सुनाई :--

लोग अपने अपने को अलग छांट रहें हैं..
मज़बह के नाम पर इंसानों को बांट रहे हैं,

ज़रा इनकी नादानी पर तो ग़ौर कीजिये जनाब..
ये जिस शाख़ पर बैठे है उसे ही काट रहे हैं,,,।।

मैं उनकी बात सुनकर निरुत्तर हो गया...मुझे अब  इन सेक्युलर कीड़ों के इमोशनल लोचे  का पता चल गया....इनकी रगों में इनके विचारों में .. इस देश की साझा सांस्कृति, सौहार्द, सद्भावना, शान्ति, एकता और इंसानियत का टानिक दौड़ रहा है..और इसी लिए किसी भी मज़हबी दुकानदार का कोई भी एंटी डोज़ इन तथाकथित सेक्यूलर कीड़ों पर असर नहीं कर पा रहा ......और शायद आगे भी यह बिलकुल ही बे-असर ही साबित हो...!!

माँ बाप दोराहे पर~~~~बच्चे चौराहे पर~~~!!


आज के दौर में जब भी अपने चारों और नज़र डालता हूँ तो अपने अनजाने future की तरफ  बेतहाशा भागते हुए मशीनी  बच्चों और नौजवानों को देख कर अजीब सा महसूस होता है,  competition के इस दौर में बच्चे एक robot की तरह से नज़र आने लगे हैं, जो की एक मकसद के लिए ही program किये गए हैं, बड़ी से बड़ी post हासिल करना और बड़ी से बड़ी डिग्री हासिल करना, और इन सब के बीच एक चीज़ लगातार ग़ायब होती जा रही है और वो है उनके संस्कार, और social values के बारे में जानकारी!  जो तहज़ीब और values हमारे बुजुर्गों में थी और लगभग हमारी पीढ़ी तक आने के बाद अब शायद एक बड़ा  gap सा आ गया है,  और इस gap को बढ़ने में कहीं न कहीं एक माँ बाप के रूप में हम भी इसके कुसूरवार हैं, क्योंकि जो तहज़ीब, संस्कार और social values हमें अपने बुजुर्गों से विरासत में मिली थी हम उनको आगे बढाने में नाकाम होते जा रहे हैं, और इसकी वजह साफ़ तौर पर इस भागम भाग और मार काट वाली प्रतियोगिता ही है !

बचपन में परिवारों में बुज़ुर्ग और माँ बाप अपने बच्चों को motivational stories सुनाते थे, बच्चों को अच्छी अच्छी कहानियां और किस्से सुना कर उसमें संस्कार और समझ भरी जाती थी, परिवार से ही उसको काफी बुनियादी बातें और उंच नीच , झूठ और सच, अल्लाह और इश्वर, सबके बारे में किस्से और कहानियों और बातों के ज़रिये, धार्मिक किताबों के ज़रिये ...अच्छी तरह से समझा दिया जाता था, मगर अब यह सब बातें एक black & White फिल्म की तरह से ख़त्म हो सी गयी हैं, इसके लिए देखा जाए तो बदलते हुए दौर, मारा मारी, busy life , कठिन मुकाबला और भी कई बातें ज़िम्मेदार हैं...आज जहाँ nuclear family का दौर चल निकला है, जहाँ माँ बाप और दो बच्चों को ही एक परिवार कहा जाता है, संयुक्त परिवार गायब होते जा रहे हैं, और इसके साथ ही बुजुर्गों की जगह भी ऐसे परिवारों से गायब होती जा रही है, ऐसे Nuclear families में जहाँ माता पिता दोनों ही नौकरी करते हों, और बच्चे घर के नौकरों के हवाले हों, वहां कौन इन नन्हे मुन्नों को यह सारी शिक्षा, संस्कार, तहज़ीब, और social values के बारे में बताये...? और फिर दूसरी बात आजकल के इस दौर में हर आदमी मशीनी हो गया है, हर काम एक सोचे समझे प्रोग्राम के तहत होता है, यहाँ तक की बच्चा भी ...और फिर उसको पैदा होने के बाद कौनसे स्कूल में  registration कराना है, और फिर स्कूल के बाद कौनसे कालेज में, और फिर कितना donation दे कर क्या बनाना है, यह सब उसके पैदा होने से पहले ही program कर लिया जाता है, या पैदा होते ही तय हो जाता है, यानि बच्चा एक computerized रोबोट हो गया, उसकी पूरी लाइफ का प्रोग्राम बना कर उसको उसी software के हिसाब से टाइम टेबल में फिट कर दिया जाता है, और फिर यह मशीनी बच्चा दिन भर एक मशीन की तरह सुबह उठ कर, टिफन लेकर स्कूल, फिर tuition , फिर yoga क्लास, फिर swimming , फिर जुडो क्लास, फिर घर आकर होम वर्क, और फिर थक कर सो जाना....!

माता पिता बच्चे से चाह कर भी फुर्सत से बैठ कर बात नहीं कर सकते क्योंकि वैसे तो खुद उनके पास ही वक़्त नहीं है, और अगर है...तो फिर बच्चों के पास नहीं है, क्योंकि अगर बच्चों को वक़्त मिलता है तो उसके लिए मनोरंजन के इतने साधन हैं कि वो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होगा...हमारे समय में बुज़ुर्ग फुर्सत के वक़्त हमें अपनी ज़िन्दगी का निचोड़ और अच्छी अच्छी बातें बताते थे, पढने को अच्छी अच्छी किताबें और कामिक्स हुआ करती थीं, मगर आज के बच्चों के पास मनोरंजन के  लिए कंप्यूटर game हैं, इन्टरनेट है, विडिओ गेम हैं, मोबाइल है, और उसकी दुनिया भी यही है...!

अब ऐसे बच्चों को कैसे किसी अच्छी और बुरी बात के बारे में या संस्कार और social values के बारे में तरीके से बताया जाए, यह लोग अपनी विरासत से दूर होते जा रहे हैं, अच्छा क्या है, बुरा क्या है,  समझने का वक़्त नहीं है, और अगर वक़्त कभी निकल भी आये तो माता पिता के पास वक़्त नहीं होता, जबकि हर माता पिता यही चाहता है कि वो अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाये और उसको हर अच्छी बुरी बातों से   परिचित कराया जाए, मगर इस competition भरे  दौर की मारा मारी में सब ख्याल कहीं दब कर रह जाते हैं, माता पिता अपने नौकरी और घर के बीच balance बनाते बनाते एक pendulum कि तरह हो रहे हैं, और बच्चे अपने आप को इस दौर के लायक बनाने के लिए पढ़ाई, इन्टरनेट, coaching , Jim ,  योगा की क्लास  के गोल गोल पहिये में घूम रहा है, एक चमकीले future और अच्छी  नौकरी, और एक बेहतरीन ज़िन्दगी के लिए लगातार हर दिशा में दौड़ लगा रहा है..और इस भाग दौड़, competition , और आपा धापी में इनका नन्हा बचपन कही कुचल कर रह गया है...!

इस दौर की इस त्रासदी को मैं तो यही कह सकता हूँ कि ....माँ बाप दोराहे पर~~~~~और ~~~बच्चे चौराहे पर~~~~~!!

एक पत्र आदरणीय श्री विजय सिंह जी पालीवाल जी और IAC के नाम के नाम~~~~!!



विजय सिंह जी नमस्कार...आपसे बात किये काफी समय हो चुका है, फेसबुक पर भी और फेसबुक से बाहर भी...मुझे मालूम है..आपको बहुत कुछ बुरा लगा होगा...मैं दो तीन दिन से आपको लिखने का सोच रहा था....25 मार्च' 2012 के आपको IAC वाले कार्र्यक्रम में मैं नहीं आ सकूंगा...इसका मुझे बहुत ही अफ़सोस है...मगर मेरी दुआएं और शुभकामनाएं आपके साथ है....आप एक नेक इंसान हैं...मेरे लिए आप आदरणीय हैं...और एक नेक मकसद के लिए कोटा शहर में अलख जगाये हैं...मैंने आपका dedication देखा है...महसूस किया है....मैं चाहता हूँ कि आप जिस नेक मकसद के लिए लड़ रहे हैं...आपको उसमें सफलता मिले ...और उम्मीद भी है कि आपकी मेहनत रंग लाएगी...!

रही मेरी बात तो विजय सिंह जी...मैं भी टूट कर कभी अन्ना आन्दोलन के साथ जुड़ा था...खूब जोर शोर से फेसबुक और ब्लॉग में इस के समर्थन में लड़ाई लड़ी थी...मगर अब जैसा कि मैंने पहले भी आपसे कहा था...इस आन्दोलन में बहुत कुछ ऐसा शामिल हो गया कि काफी लोगों का मोह भंग हो गया है...जैसा कि लोगों का बहुमत था...और भविष्य वाणी भी थी ...कि अन्ना ने साम्प्रदायिक और चरमपंथी शक्तियों से हाथ मिलायेंगे ...आखिर मिला ही लिए...जैसे कि मुझे भी आशंका थी.....बाबा रामदेव के बारे में कौन नहीं जानता...उनके एजेंडे को कौन नहीं जानता...बाबा ने सुब्रमनियम स्वामी के साथ सांठ गाँठ कर के चरमपंथी एजेंडे को अमलीजामा पहनाने का पूरा इंतज़ाम कर रखा है...इन्टरनेट पर सब मोजूद है...ऐसे में अब अन्ना के आन्दोलन में ऐसे लोगों ...और उनके समर्थकों कि उपस्थिति बहुत ही खतरनाक संकेत है....और मेरे विचार और विचारधारा इसकी इजाज़त नहीं देती कि अब मैं इस स्तर पर आ चुके अन्ना जी के आन्दोलन के साथ रहूँ...इसका मुझे काफी पहले से अंदेशा था...इसी लिए मैंने दूरी बना ली थी, और अब मुझे लग रहा है कि मुखे ठगा गया है...मेरे जज्बातों को भुनाया गया है...धोखा दिया गया है...मैं ही नहीं देश के ना जाने मेरे जैसे कितने लोग होंगे ...जिनको यह महसूस हो रहा होगा.....और यही कारण है कि...अब मैं इस आन्दोलन की असलियत बताने वाले लोगों की कतार में शामिल हो गया हूँ...भले ही दिल में अफ़सोस रहा हो.!

विजय सिंह जी...मेरी इन सब बातों से और फेसबुक पर मेरी पोस्ट से आपको दुःख तो हुआ होगा....मैं इन सब बातों के लिए आप से क्षमा प्रार्थी हूँ....अपने अपने विचार हैं...विचारधाराएँ हैं...मगर हम एक दूसर से दिल से जुड़े हैं..... मेरी और से किसी बात से आपका दिल दुख हो तो यह छोटा भाई आपसे माफ़ी चाहता है....भले ही मैं अन्ना आन्दोलन से दूर हो गया हूँ...मगर मुझे उम्मीद है कि आप के दिल से दूर नहीं जा सकता....!

अदूरदर्शी निर्णयों की सूली पर काँग्रेस की विश्विस्नीयता~~~!!


हमारा आज देश एकाधिक समस्याओं से जूझ रहा है। देश की सत्ताधारी सरकार आज  विपक्ष और अन्य सहयोगी दलों  के प्रहारों से लहूलुहान है। अनेक प्रकार की विसंगतियां सरकार के अंतर्विरोधी और अदूरदर्शी निर्णयों के कारण पैदा हो गयी हैं। सरकार की उलझाने न बढ़ती जा रहीं हैं. सरकार अपनी ही कुछ अदूरदर्शी निर्णयों और नीतियों के जाल में फंसती जा रही है. प्रतिपक्ष भी अपनी आवाज अनेक मुद्दों पर बुलंद कर रहा है जो कि संसद की सामान्य कार्यवाही में बाधक बन रहा है। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने की राजनीति में उलझाते जा रहेहैं। सरकार के द्वारा प्रतिपादित अनेक मुद्दे इधर विवादास्पद हो गए हैं, जिन पर प्रतिपक्ष जनता की आम राय के अनुकूल सदन में ( संसद में ) सरकार की नीतियों का विरोध कर रहा है। केंद्र सरकार के एक के बाद एक लिए गए तरफ़ा निर्णयों से गठबंधन सरकार के सहयोगी दलों की नाराजगी बढ़ गयी है....और अब तो लगातार बढती ही जा रही है...कारण यही रहा कि सहयोगी दलों को विश्वास में नहीं लिया गया......एक तरफ़ा निर्णय लिया गया....परिणिती हुई ..फैसला वापस लेने की... विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के मामले में सरकार को अपना फैसला टालना पडा है, देश में इस नीति के प्रति मिली जुली प्रतिक्रया दिखाई पड़ी। इसके बाद पांच राज्यों के चुनावों के नतीजो से हैरान कांग्रेस ने अपनी झोली में आये उत्तराखंड राज्य पर अदूरदर्शी निर्णय लेकर बवाल खड़ा कर दिया...जो कि अब तक जारी है...पैराशूट मुख्यमंत्री बहुगुणा को बना कर ..हरीश रावत समर्थकों से नाराजगी ही मोल नहीं ली...बल्कि भाजपा के लिए " अभी भी चांस है " वाली स्थिति पैदा कर दी है...!

अदूरदर्शी निर्णय लेना यहीं नहीं रुका...NCTC पर सहयोगी दलों, के साथ राज्यों को भी विश्वास में नहीं लिया गया...निर्णय से पहले सलाह मशविरा ज़रूरी होता है...विशेष कर जब कि...सरकार गठबंधन की हो....बात यहीं नहीं रुकी....इसमें एक और प्रहसन और जुड़ गया...रेल बजट का....इसमें रेल मंत्री की तो बलि हो ही गयी.....सरकार की भी तगड़ी फजीहत हुई है....इन सब के पीछे एक ही कारण है...और वो है....निर्णय क्षमता की कमी...और अदूरदर्शी निर्णय..! इन सब फजीहतों के पीछे देखा जाए तो कांग्रेस का घमंड ही कहा जाए कि उसने न तो FDI न ही NTSC और ना ही रेल बजट पर लचीला रुख अपनाया बल्कि सहयोगी दलों को भी तुच्छ समझा...इसका बदला सहयोगी दलों के साथ गैर कांग्रेसी राज्यों ने जम कर लिया...और नतीजा निकला कि ...सरकार की विश्वसनीयता पर देश में प्रश्न चिन्ह लग गया....जो कि एक गंभीर बात है...यदि आगे भी ऐसे अदूरदर्शी निर्णय होते रहे तो दूर नहीं जब कि देश मध्यावधि चुनाव में झोंक दिया जाए...जिसके लिए विपक्षी दल भाजपा  को ही नहीं....अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को भी  बेचैनी से इंतज़ार है...और जहाँ तक यूं पी के जनादेश से निकली आवाज़ को सुना जाए तो कोई भी बड़ा राष्ट्रिय दल अभी इस हालत में नहीं है...कि बहुमत से सरकार बना ले....हाँ तीसरा मोर्चा ज़रूर अंगडाइयां ले रहा है....अब भी सरकार के हाथ में बहुत कुछ है...नीतियों और  निर्णयों से पहले सहयोगी दलों को विश्वास में ले...छोटे क्षेत्रीय दलों को इज्ज़त दे..और आपसे रजामंदी से नीतियाँ....और निर्णय लागू करे...वरना विश्वसनीयता यदि ख़त्म हो गयी तो  2014 के चुनाव लोहे के चने ही साबित होंगे...!!

दीदी तेरा तेवर पुराना~~~~~!!


टाटा मोटर्स के नैनो कार के प्लांट को बंगाल से बाहर कर देने वाली ममता बेनर्जी को अर्थ व्यवस्था की शायद ABCD भी नहीं मालूम...  अपने सनकी व झक्की स्वभाव और तुनुकमिजाजी के लिए ख्यात ममता बनर्जी ने एक बार फिर केन्द्र की यूपीए गठबंधन की सरकार को परेशानी में डाल दिया है। देश के संसदीय इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि रेलमंत्री द्वारा संसद में बजट पेश करने के बाद मंत्री के ही अपने दल ने न केवल बजट का विरोध किया बल्कि प्रधानमंत्री को उसे हटाने के लिए भी कह दिया। ‘गरीबों की मसीहा’ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह नहीं चाहती कि रेल के किराये में तनिक भी वृध्दि हो जिससे गरीबों पर बोझ बढ़े। ऐसा प्रतीत होता है कि ममता बनर्जी को इस बात की कोई परवाह नहीं है कि रेलवे की खस्ता आर्थिक हालत को कैसे सुधारा जाये।  पिछले 9 वर्ष से रेल किराये में कोई वृध्दि नहीं हुई। लालू यादव और स्वयं ममता बनर्जी ने सस्ती वाहवाही लूटने के लिए लोक लुभावन बजट पेश करने की मानसिकता के कारण रेल किराये में कुछ भी वृध्दि करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। लालू यादव के समय रेलवे को भारी मुनाफा होने का जो दावा किया गया था वह लेखाविधि का छलयोजन और धोखाधड़ी था, यह बाद में उजागर हो गया। खैर बेचारे दिनेश त्रिवेदी जी की बलि तो ले ली गयी....और शायद अब TMC पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया जाए....!

ममता स्वभाव से निरंकुश हैं और अपनी पार्टी की सर्वेसर्वा हैं। अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए वह कोई भी निर्णय ले सकती हैं। उनकी पार्टी में कोई सिर उठाकर नहीं चल सकता। मजेदार बात यह है कि उनकी पार्टी के एक नेता और केन्द्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुलतान अहमद ने बजट का स्वागत करते हुए कहा कि बिना धनराशि का जुगाड़ किये रेलवे का विश्वस्तरीय आधारतंत्र तैयार नहीं किया जा सकता। लेकिन जैसे ही उन्हें मालूम हुआ कि ममता ने किराया वृध्दि का विरोध किया है वह एकाएक पलट गये। क्या ममता बनर्जी यह बतायेंगी कि रेलवे को अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए ? ममता बनर्जी केन्द्र सरकार को जिस प्रकार बार-बार डिक्टेशन दे रही हैं उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस से उनका रिश्ता जल्दी ही टूट सकता है। प्राप्त संकेतों के अनुसार कांग्रेस नेता मुलायम सिंह यादव से बात कर रहे हैं ताकि 19 सांसदों की तृणमूल पार्टी के स्थान पर उन्हें 22 सांसदों की समाजवादी पार्टी का समर्थन मिल जाये। मुलायम भी चाहेंगे कि केन्द्र में वह अपना रुतबा बढ़ावें। ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय राजनीति में जल्दी ही कुछ परिवर्तन होंगे...बिसात पर गुणा भाग जारी है..!!

पंगु विपक्षी दल.....और सत्ता के सपनो की चिल्ल पों ~~~~!!


सरकार वेंटिलेटर पर.....सरकार आई सी यूं  में.....और ना जाने क्या क्या...उत्तराखंड में यदि कांग्रेस में कोई आपसी मतभेद होता है....तो भाजपा और मीडिया को सरकार केंद्र में अस्थिर नज़र आने लगती है,  रेलवे बजट और ममता की धमकियों से भाजपा और प्रायोजित मीडिया को लगता है कि सरकार वेंटिलेटर पर है...पंगु भाजपा खुद ही  वर्षों से आई सी यूं में  वेंटिलेटर पर थी....अन्ना, बाबा और एस. स्वामी  ने इंजेक्शन लगा कर होश में क्या ला दिया...कि अब यदि मुख्तार नकवी को या सुषमा स्वराज जी को यदि सोते में उठा कर बोलने को कहा जाए तो उनके मुंह से केवल एक ही नारा निकलेगा...सरकार को तुरंत इस्तीफ़ा दे देना चाहिए...बिल्ली को ख्वाब में भी छिछ्ड़े ही नज़र आते हैं...!

सत्ता के सेमी फाइनल (उत्तर प्रदेश) में भाजपा को ना तो रामदेव के प्रचार का फायदा मिल सका और ना ही टीम अन्ना का जनलोकपाल का झुनझुना बज सका....सपा सीना ठोंक कर बहुमत में आयी...उलटा भाजपा को 20 वर्षों से क़ब्ज़ा जमाये अपने राम मंदिर आन्दोलन के गढ़ अयोध्या सीट से हाथ धोना पड़ा...अब ऐसे में यदि वो सरकार से इस्तीफ़ा मांगती है तो यह क्या दर्शाता है...?  राम मंदिर मुद्दा भी गया...अन्ना और बाबा के आन्दोलन की सवारी भी काम नहीं आयी...अब आगे क्या....? विकल्प क्या है...? केवल सरकार गिराना ही कोई हल नहीं होता.....उसका विकल्प भी तो देना होगा.....! रही सरकार के अस्थिर होने की ....या टी एम् सी (ममता) की धमकियों का तो सरकार के पास बहुत सारे विकल्प हैं...मुलायम सिंह हमेशा ऐसे समय में कांग्रेस के लिए ढाल बन कर खड़े हुए हैं....और यदि ममता दीदी ने सीमा पार की तो...सरकार को उनकी हद बताकर उनको बाहर का रास्ता भी शायद जल्दी ही दिखा दिया जाए.....मुलायम ...सरकार के साथ हैं...!  ऐसे में कौन वेंटिलेटर पर है....और कौन आई सी यूं में.....सब कुछ साफ़ हो जाएगा....सरकारें कोई मेज़ कुर्सी नहीं होती कि जब चाहे गिरा दिया जाए...जब चाहे पलट दिया जाए...हाँ सत्ता के सपने देखने की सब दलों को आज़ादी है....इस पर कोई रोक नहीं है...चाहें तो दिन में भी देख सकते हैं.....!!

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नापने के अपने अपने थर्मा मीटर~~~~~!!


" अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ...यह एक ऐसा शब्द है...जो सभी को तब तक मनभावन  लगता है....जब तक उसकी भावनाएं तृप्त हो  रही हों....या वो सहमत हो...इसको परिभाषित करने के लिए वैसे तो शब्दों का  जाल है...मगर कभी कभी यह....परिभाषा की परिधि से बाहर भी निकल जाता है...हमारे देश में इस के समर्थन और विरोध/दमन पर हालिया वर्षों में काफी नूरा कुश्ती हुई है....जैसे कि :--

1 . 30सितंबर 2005 में डेनमार्क के एक समाचार पत्र में एक कार्टूनिस्ट द्वारा इस्लाम धर्म के पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब के आपत्तिजनक कार्टून प्रकाशित किया जाना ...   " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "...?  कई मुस्लिम देशों सहित भारत में विरोध...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

2 . सलमान रश्दी द्वारा सेटेनिक वर्सेस उपन्यास लिखना.." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "    ?  .और उसके बाद राजस्थान में लिटरेचर फेस्टिवल में आने पर रोक ... " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

3 .  स्व: एम्.ऍफ़. हुसैन की  विवादित पेंटिंग्स ..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ...?  देश में विरोध....." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

4 .  रुचिका मर्डर केस के आरोपी पुलिस अधिकारी...राठौर का प्रेस को बयान..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ... उत्सव नामक युवक का हमला...." " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी....?

5 .  अन्ना टीम के सदस्य प्रशांत भूषन का कश्मीर पर बयान ....." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ". ...?

6 . प्रशांत भूषण की पिटाई....." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ". ...या ..... " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी....?

7 . तसलीमा नसरीन की विवादित पुस्तक.... "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "..?  .बंगला देश से देश निकाला..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

8 .  गुजरात  दंगों पर फिल्म परज़ानिया.....का बनना...."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "..? ....गुजरात में इस फिल्म पर रोक...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

9 . जनता पार्टी के नेता सुब्रमणियम स्वामी द्वारा पिछले दिनों एक लेख लिखा गया जिसमें उन्होंने भारतीय मुसलमानों को मतदान से वंचित किए जाने जैसा अपना ‘बेशकीमती’ मत पूरी स्वतंत्रता से अभिव्यक्त किया..."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ?.....हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने स्वामी के उन विचारों को विश्वविद्यालय के स्तर व नीतियों के विरुद्ध मानते हुए उन्हें विश्वविद्यालय के visiting प्रोफेसर के पद से हटा दिया...भारत में भी केस दायर हुआ.." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

10 . अरविंद केजरीवाल ने कल कहा था कि संसद में चोर, लुटेरे और बलात्कारी बैठे हैं...."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ".?  विशेषाधिकार हनन  नोटिस की धमकी... ...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

11 . शरद पंवार पर पड़े थप्पड़ पर अन्ना की प्रतिक्रिया....एक ही मारा....अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ?

12 . फिल्म गली गली चोर है के बाद अन्ना का " चमाट मारो."..वाला बयान..."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "   प्रेस में उछल जाने के बाद पलट जाना..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

13 . किरन बेदी...और अभिनेता ओमपुरी द्वारा रामलीला मैदान में नेताओं पर छींटा कशी ..."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ....बाद में अवमानना का नोटिस...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

14 . मुंबई में ठाकरे परिवार द्वारा उत्तर भारतीयों के खिलाफ विष वमन..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "? 

15 . पूनम पांडे का भारतीय क्रिकेट टीम के लिए ट्वीटर पर बार बार कपडे उतारने की जिद करना...व इन्टरनेट पर अश्लील फोटो डालना... ..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "?

16. सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने वाले और देश विरोधी कन्टेन्ट डालना.....अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  ?   सरकार द्वारा इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खिलाफ कार्रवाही ....अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबन्दी ??

और भी कई ऐसे समर्थन और विरोध के उदाहरण हमारे देश में मिल जायेंगे...हो सकता है काफी उदाहरण छूट गए हों, कुछ इस समय याद भी नहीं आ रहे....परन्तु हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खुल्ला खेल बखूबी खेला जा रहा है...दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है..और इस स्वतंत्रता को नापने का  का हर देश, धर्म,  आदमी, पार्टी, संगठन ..का अपना अलग पैमाना है, अलग थर्मा मीटर है,  खुद के ही मापक यंत्र है, खुद ही मापते हैं...और उचित अनुचित की घोषणा कर डालते हैं.. और ठीक वैसा ही  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का  गला घोंटने का मन्त्र भी हर देश, धर्म,  आदमी, पार्टी, संगठन  के पास मोजूद है.....यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अपने मायने अपने अपने अर्थ हैं....और अपने अपने अनर्थ भी हैं...कोई एकमत नहीं है...सीमा निर्धारण अपने अपने नफा नुकसान से तय किये जाते रहे हैं... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  की सीमा  की दशकों से चली आ रही उहापोह के मध्य आज तक यह निर्धारित नहीं किया जा सका है कि आखिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं क्या हों ? और इन सीमाओं का निर्धारण ऐसे किन लोगों के द्वारा किया जाए जो कि देश, दुनिया व समाज के सभी वर्गों के लोगों द्वारा स्वीकार्य हों..!!

ओ.. मसीहाओं, कर्णधारों, क्रांतिकारियों ! हमें नए गाँधी, नए कलाम चाहिए...और गोडसे नहीं~~~!!


देश में अन्ना के  भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की आड़ लेकर कुछ  मसीहा, विचारक, और क्रांतिकारी योजनाबद्ध तरीके से बापू की विचार धारा का अंतिम संस्कार करने में जुट गए हैं...वैचारिक आतंकवाद बोया जा रहा है...नवयुवकों को देशप्रेम के नाम से, परिवर्तन के नाम से उकसाया जा रहा है, संविधान, संसद और लोकतंत्र को कोसने का मन्त्र दिया जा रहा है...संविधान और लोकतंत्र को गालियाँ दी जा रही हैं....केवल  सरकार ही इनको देशद्रोही और लोकतंत्र की  हत्यारी  नज़र आ रही है....बाक़ी दलों और राजनेताओं को नेपथ्य में रखा जा रहा है...और उन सबको एकदम दूध के धुले और देशप्रेमी बताया जा रहा है... ....फासीवादी या दक्षिण पंथी विचारधारा को देशप्रेम का चोला पहना कर लोगों को परोसा जा रहा है...कई संगठन अचानक से सक्रीय हो गए हैं...सौहार्द, शान्ति और भाई चारे की बातें करने वालों को उक्त स्वयंभू   मसीहा.....सेक्यूलर कीड़ों की संज्ञा दे रहे हैं...बापू के निर्वाण दिवस को गोडसे के शौर्य दिवस के रूप में मनाये जाने और गोडसे की फोटो अपने घरों में लगाए जाने की वकालत होने लगी है... और अपरिपक्व नवयुवकों को नए राष्ट्र और दूसरी आज़ादी के सपने दिखाए जा रहे हैं... यह कौनसी देश भक्ति है....और देश को यह कर्णधार कहाँ ले जाना चाहते हैं....?

सूचना क्रान्ति के  इस दौर में...सब कुछ आईने की तरह साफ़ है....एक खुली किताब की तरह ...पटल पर सब कुछ मोजूद है....इन्टरनेट से लेकर गलियों तक क्या बोया जा रहा है...और क्या काटना चाह रहे हैं.....किस किस  संगठन के क्या क्या एजेंडे हैं......अब किसी से छुपा नहीं है...मगर इसके परिणाम काफी हानि प्रद और भयंकर होने वाले हैं....ऐसी फासीवादी और विघटन वादी विचार धारा से देश में कुछ ब्रेनवाश हुए सर फिरे लोगों की जमात के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला .!इन्टरनेट जैसा हथियार यदि गलत हाथों में पड़ जाए...या कोई संगठन यदि उसका ढंग से दुरूपयोग करे...तो कितना हानिप्रद हो सकता है...इसका ताज़ा उदाहरण पिछले वर्ष नार्वे में आंद्रे ब्रेविक नामक सर फिरे युवक द्वारा किये गए नरसंहार से मिलता है.....और उसका भारतीय कनेक्शन भी जग ज़ाहिर है....और भारत में भी  ऐसा वैचारिक आतंकवाद आरम्भ हो चुका है,  और इसके पीछे छिपे संगठन, स्वयंभू  क्रांतिकारी, मसीहा....भी सब की नज़रों में आ चुके हैं...और हैरत नहीं होना चाहिए...की निकट भविष्य में देश में उपद्रव, हिंसा, अराजकता या किसी राजनैतिक  हत्याओ के लिए इस  विघटन वादी विचारधारा का ही पूर्ण योगदान हो ..!

.मगर यह सब शायद यह भूल जाते हैं..की गाँधी आज भी प्रसांगिक है...सद्भावना, भाईचारे और एकता से ही हमने फल पाए हैं, और उन्नति की है....विकास किया है....हमारे देश में आपसी सहनशीलता और मजहबी भाईचारे की एक अटूट परपंरा रही है। अनेकता और बहुलता की इज्जत करना हमारी तहजीब और सभ्यता का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, हम सब को इस विरासत को मजबूत तौर पर बनाए रखना है, उन्नति, प्रगति की राह हमेशा ही अमन और शान्ति से निकली है...न की अतिवाद,अराजकता या विघटन से ।अब आवयश्कता है आपसी मैत्री को नष्ट करने वालों की पहचान करने की. अब समय है सुख, चैन और शांति छिनने वालों के नकाब उतारने का, क्योंकि जैसा की इकबाल ने कहा था की :-  ‘शक्ति भी शान्ति भी भक्तों के गीत में है, धरती के वासियों की मुक्ति प्रीत में है’. आज हमें देश के विकास, उन्नति और विश्व गुरु बनने के लिए...और नए गाँधी व कलाम चाहिए...मगर ..अब और गोडसे... बिलकुल नहीं....कतई नहीं....!!