सोमवार, 20 जनवरी 2014

'माउस मित्रता' ... ज़रा संभल कर ~~~!!

माउस की एक क्लिक पर बनते बिगड़ते रिश्तों की आभासी दुनिया ...सोशल मिडिया ..फेसबुक, ट्वीटर आदि  का हाल अजीब होता जा रहा है, यह 'सोशल साईट' की जगह 'पालिटिकल साईट' नज़र आने लगी है, हम जैसे ज्यादातर पुराने फेसबुक यूज़र इस बदलाव से अचंभित हैं,  फेसबुक, twitter पर जब यूज़र अपना प्रोफाइल बनाता है, तो उसे तलाश होती है  अपने जैसे विचारों वाले मित्रों की...और ज्यादातर लोग आगे जाकर अपने हम ख्याल दोस्तों के समूह में शामिल हो ही जाता है, इसे हम वैचारिक ध्रुवीकरण भी कह सकते हैं, जैसे शायरी और कविता का शौक़ रखने वाले यूज़र वैसे ही ग्रुप और दोस्तों का समूह बना ही लेते हैं, खिलाडी...खिलाडियों के साथ, संगीत प्रेमी, राजनीति, फोटो ग्राफी जैसे अनेक क्षेत्रों की रूचि अनुसार विभाजित होते रहते हैं, और अपनी गतिविधियाँ तथा रुचियाँ शेयर करते हैं, पोस्ट करते हैं...विचार रखते हैं !

मगर कुछेक वर्षों से यह ताना बाना टूटता नजर आने लगा है, सोशल मीडिया पर राजनैतिक दलों के आ धमकने से सब कुछ बदल गया है, ज़यादातर लोग रोज़ इकठ्ठा हो कर जमकर सर फुटव्वल करते हैं, ..और ऐसा आभास होने लगा है कि 2014 में फेसबुक, ट्वीटर पर जमकर राजनैतिक गंध मचने वाली है, शुरुआत हो चुकी है, सभी पार्टियों के नेतागण यहाँ पधार चुके हैं... यह मंच अब पॉलिटिकल अखाड़े में तब्दील होने लगे है ! फेसबुक, ट्वीटर यूज़र्स को चाहिए कि अपने समान विचारों वाले मित्रों, या अच्छे और सकारात्मक विचार वाले मित्रों  को ही सम्मिलित करें...हालांकि सभी के अपने निजी विचार, मत और समझ होती है, मगर यह भी कहीं सच है कि आप जिन दोस्तों के साथ ज्यादा अपना समय बिताते हैं (चाहे वो सोशल साइट्स या वास्तविक दुनिया) उनके विचारों का धीरे धीरे कहीं न कहीं आपके विचारों पर भी प्रभाव तो होता है ! इसलिए ऐसे मित्रों की संगति कीजिये जिनसे आपके विचारों को धनात्मक ऊर्जा मिले ...न कि ...ऋणात्मक !

कुछ यूज़र्स अपनी निजी बातों को धड़ल्ले से फेसबुक या ट्वीटर पर दोस्तों और फालोवर्स के साथ शेयर करते देखे गए हैं, जो कि कहीं न कहीं आगे जा कर हानिकारक भी हो सकती है, सोशल मीडिया को अपने टेबल तक ही रहने दिया जाए तो बेहतर है, इसे बेडरूम में ताँक झाँक करने की गुस्ताखी मत करने दीजिये, किसी भी ऐसी पोस्ट से बचिए जो आपके परिवार या आपकी निजी ज़िन्दगी में खलल पैदा करे, या उसे चौराहे पर लाकर तमाशा बना दे, हाल ही में पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार तथा मंत्री शशि थरूर के ट्वीट्स ..उसके बाद सुनंदा पुष्कर की मौत ..ने जो हंगामा किया है, वो इस बात का साक्षी है कि सोशल मीडिया में निजता को परोसना कभी कितना घातक हो सकता है !

इधर कुछ दिनों से फेसबुक और ट्वीटर पर बहुत बड़ी संख्या में फेक प्रोफाइल वालों की भरमार है, यह लोग ही ज़्यादातर इन सोशल साइट्स पर अराजकता और उत्पात मचाते हैं...और मित्र सूची में सम्मिलित होकर, ग्रुपों तथा पेजों में शामिल हो कर अमर्यादित भाषा, और उकसाने वाली पोस्ट करने में भी नहीं हिचकते ! इसलिए कोशिश कीजिये  कि हम सभी इससे बचे रहें, और प्रयत्न कीजिये कि फेसबुक, ट्वीटर आदि पर हम सबको सकारात्मक दृष्टिकोण, और आला मयार के लोगों की सांगत मिले ...खब्ती...लठैतों और संकीर्ण मानसिकता वालों से छुटकारा मिले ! यह एक बेहतरीन मंच है...इसे सकारात्मकता के लिए काम में लीजिये...दुरावों और दोषारोपण के लिए नहीं, जोड़ने के लिए काम में लीजिये..तोड़ने के लिए नहीं !  ..समय समय पर अपनी मित्र सूची की झाड़ पोंछ करते रहिये, बचते रहिये...बचाते रहिये...अब तो फेसबुक, ट्वीटर पर यह भी नहीं कह सकते कि  :-  ' दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये ' !  'माउस मित्रता' है...सोच समझ कर कीजिये....!!

जय हिन्द !

ज़रा बड़ा तो हो जाने दीजिये 'आप' को !!

कांग्रेस की मस्ती और भाजपा की पस्ती के कारण जन्म लेने वाले IAC (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) ... उसके जनलोकपाल आंदोलन ...और उसके बाद पैदा हुयी नवजात आम आदमी पार्टी ने न सिर्फ भारतीय राजनीति के परंपरागत गणित के तौर तरीक़ों को पलटा है बल्कि राजनीति में नए व्यवहारिक प्रयोग भी प्रारम्भ किये हैं, भले इस इस पार्टी के जन्म और उसके मूलभूत आधार जनलोकपाल आंदोलन और केजरीवाल के गुरु अन्ना को हाशिये पर धकेले जाने के कारण कई विवाद आज भी कायम हैं !
हम ज़्यादा पीछे नहीं जाकर यदि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो दिल्ली में इस पार्टी ने विधान सभा  चुनावों जो सफलता पायी है, वो भारतीय राजनीति में एक Turning Point की तरह ही कहा जाएगा, झाड़ू ने न सिर्फ बड़े बड़े दिग्गजों का सफाया कर दिया, बल्कि शीला दीक्षित जैसी मुख्यमंत्री को भारी मतों से हार का सामना करना पड़ा, कांग्रेस की करारी शिकस्त हुई, साथ ही भाजपा भी आवाक रह गयी, भले ही कांग्रेस के समर्थन के बाद आ आ पा सत्ता में आयी हो, मगर उसने जो दुंदुभि राजनीति में बजायी है, उससे न सिर्फ बड़े राजनैतिक दलों की नींद उडी है, बल्कि इन बड़े दलों ने आ आ पा के सैद्धांतिक कार्यकलापों का अनुसरण करना भी शुरू कर दिया है !

मगर यही गतिशीलता और जनप्रियता आज आ आ पा के लिए पनौती बन बैठी है, कारण कि न सिर्फ जनता बल्कि मीडिया का भी पूरा रुझान आ आ पा पर ही केंद्रित हो गया है, एक तरफ देश के बड़े खूसट राजनैतिक दलों के निशाने पर हैं, तो दूसरी और आ आ पा की लोकप्रियता से लार टपकाए अवसरवादियों की जमकर पार्टी में घुसपैठ भी हुई है, समय न रहते कोई उचित फ़िल्टर भी काम में न ले सकने के कारण आ आ पा में कई दलों के अवसरवादी घुसपैठिये जा घुसे हैं, साथ ही शीर्ष नेतृत्व में शामिल लोगों द्वारा पार्टी विरोधी गतिविधियां भी समय समय पर संकट का कारण बनती जा रही हैं ! ताज़ा उदाहरण बिन्नी महोदय द्वारा दूसरी बार की गयी अप्रत्यक्ष बगावत, के साथ भाजपा से आ आ पा में गयी टीना शर्मा के बयान हैं !

अब इस नवजात पार्टी पर इस समय सिर्फ चारों और से दबाव बना हुआ है, जनता का, मीडिया का, आ आ पा के सदस्यों का, जीत कर आये लोगों का..और नए शामिल हुए कई क़द्दावर लोगों के समायोजन का भी, वही दूसरी और कांग्रेस और भाजपा के साथ क्षेत्रीय दलों द्वारा लगातार किये जा रहे हमलों का भी दबाव है, साथ ही किये गए वायदों को जल्दी से जल्दी पूरा करने का भी दबाव है !

पिछले विधान सभा चुनावों में और राज्यों में भी अन्य दलों ने जीत दर्ज की है, छत्तीसगढ़ में , मध्य प्रदेश में, राजस्थान में ...मिजोरम में ...वहाँ क्या क्या हुआ....कितने वायदे पूरे हुए...सरकारें क्या कर रही है ? किसी को इससे मतलब नहीं है...इस समय सब के निशाने पर है आम आदमी पार्टी जो कि अभी घुटनो के बल चलकर उठ कर खड़ा होने की कोशिश में है...उससे मीडिया, जनता, विरोधी दल, और समर्थक यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि यह दौड़ कर बताये, जैसा यह कहें कलाबाज़ियाँ खा कर दिखाए ! भले ही आ आ पा के लिए कांग्रेस की B टीम होने का आरोप लगे, या भाजपा की B टीम होने का, राहुल गांधी के खिलाफ बताया जाए या मोदी के खिलाफ, वो जो भी है...उसका पूरा चरित्र तो सामने आने दीजिये...मुठ्ठी तो खुलने दीजिये...तब राय बनाइये, इस नवजात को अपने पांवों पर खड़ा तो होने दीजिये, ऐसी जल्दी भी क्या है, सूचना क्रांति के इस दौर में अब देश और इस देश की जनता इतनी कमज़ोर और मूर्ख नहीं है कि किसी ऐरे गैरे को सर पर बैठाये, यदि किसी को सर पर बैठा सकती है तो उसे धूल भी चटा सकती है...इसके भूत और वर्त्तमान काल में कई बड़े उदाहरण हैं !

उम्मीद करता हूँ कि राजनीति में अभी जो भ्रमित काल चल रहा है जल्दी ही दूर होगा...और वास्तविकता सबके सामने आएगी !

जय हिन्द !

काम वाली बाइयों बनाम हमारा संसार !!


ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया ,

माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया !


मशहूर और हरदिल अज़ीज़ शायर जनाब मुनव्वर राना साहब का यह शेर बहुत ही प्रसिद्द है...और इसकी गहराई और मंतव्य को सब मानते हैं, मगर वर्त्तमान दौर में मेट्रो सिटीज़ में उच्च वर्ग...और उच्च माध्यम वर्ग के उन घरों में जहाँ पति पत्नी दोनों नौकरी पेशा हैं...घर में बच्चे हों,  घरों का पूरा काम काज काम वाली बाइयों (Maid) के ही भरोसे रहता हो, जिन घरों में काम वाली बाइयाँ सुबह सवेरे आकर नाश्ते से लेकर बच्चों को स्कूल भेजने तक का काम अपने हाथ में लेती हों, हाँ इस मुनव्वर राना साहब के शेर का वजूद और मायने ही ख़त्म हो जाते हैं !

कई लोगों के लिए यह काम वाली बाइयाँ बहुत बड़ी मजबूरी हैं, तो कहीं यह कुछ लोगों के लिए स्टेटस सिम्बल भी हैं, सुना तो यह भी है कि मुम्बई और दिल्ली जैसे शहरों में तो लोगों ने विदेशी काम वाली बाइयों को भी लोगों पर रौब डालने के लिए नौकरी पर रखा हुआ है ! बड़े शहरों में काम वाली बाइयों की बढ़ती मांग और उनकी अहमियत किसी से छिपी नहीं हैं, नौकरी पेशा पति पत्नी ...जिनके बच्चे भी हों, पूरी तरह से इन बाइयों के भरोसे रहते हैं, सुबह सवेरे यही आकर घर के काम काज को शुरू करती हैं, यदि पति पत्नी अपनी नौकरी पर जल्दी निकलते हैं तो उनके बच्चों को तैयार कर स्कूल बस तक पहुँचाना, उसके बाद घर के बाक़ी काम यही संभालती हैं ! बड़े शहरों की कालोनियों में सुबह सवेरे ही इनकी गतिविधियां शुरू हो जाती हैं, लोग बेसब्री से इनकी आमद का इंतज़ार करते हैं, घडी की सुइयों की तरह हर घर में इनका नियत समय होता है, दस पंद्रह मिनट की देरी से ही घर के सदस्यों का टाइम टेबल अस्त व्यस्त हो जाता है, कई बाइयां तो लम्बी दूरी, सिटी बसों, टैम्पो या लोकल ट्रेनो से तय करके अपनी ड्यूटी चढ़ती हैं !

जिस दिन भी काम वाली बाई पंद्रह मिनट या आधे घंटे किसी कारण वश देरी से आये तो हज़ार सवाल...उसके लिए तैयार रहते हैं, घडी देख .क्या टाइम हुआ है, कहाँ थी अब तक, इतनी देरी कैसे लगी ? आदि इत्यादि ! और जिस दिन अगर किसी घर में अगर काम वाली बाई नहीं आती है, वो दिन सदमे का दिन होता है, सब कुछ ठहर जाता है, घर के सारे काम कौन करे ? कैसे करे ? यह समस्या मुंह बाये खड़ी हो जाती है, पति पत्नी अपनी नौकरी पर जाएँ, या फिर इस घर के लिए रुकें ? पड़ौसी की बाई ऐसे समय और नखरे दिखाती है, उनका सारा गुस्सा काम वाली बाई के प्रति इक्ठ्ठा होता जाता है, और अगले दिन उसके आने पर जमकर फूटता है ! भले ही काम वाली बाई के खुद के घर में कितना ही बड़ा काम या संकट क्यों ना हो, लोगों को उससे कोई मतलब नहीं होता, उनको समय पर बाई चाहिए ही चाहिए !

इन काम वाली बाइयों की भी अपनी निजी ज़िन्दगी होती है, इनके परिवार होते हैं, पति, सास ससुर, बच्चे, ..बीमारी, ख़ुशी गम..... हमारी ज़िन्दगी की तरह सभी कुछ होता है, भले ही रात भर शराबी पति की लड़ाई से जगी हो, मगर सुबह काम पर मुस्तैद नज़र आती है, भले ही उसका बच्चा बीमार हो, भले ही तुरत फुरत काम निबटा कर बाद में उसे अस्पताल ले जाए, काम की खोटी नहीं करती, भले ही उसकी तबियत निढाल हो, काम पर आना ही होता है .पगार काटने का डर जो होता है, और पगार ऐसा माध्यम है, जो उसे कहीं न कहीं एक सम्बल देता है, आंशिक स्वतंत्रता देता है, कुछ अपनी ..कुछ अपने परिवार के लिए मन मर्ज़ी का करने की ..अपने किसी की इच्छा पूरी करने की, थोड़ी ही सही ...मगर अपनी खुद की ज़िन्दगी जीने की ! इस पगार के दम पर यह ऐसे सपनो का संसार बुनती है जहाँ ..पैसा जोड़ कर अपने लिए एक छोटा सा खुद का घर बनाये...आगे जाकर इसकी बेटी पढ़ लिख कर इस लायक़ हो जाए कि उसे अपनी माँ की तरह घर घर जाकर काम न करना पड़े, उसका बेटा खूब पढ़े और आगे जा कर बड़ा अफसर बने ..और इन्ही सपनो का पीछा करते करते वो घर घर दौड़ दौड़ कर काम पूरे करने रोज़ निकल पड़ती है ! जहाँ हम इसका इंतज़ार करते रहते हैं कि कब यह बाई काम पर आये...और हम अपने सपनो को पूरा करने के लिए दिन की शुरुआत करें !!

नंगा राजा, चापलूस दरबारी और भ्रमित जनता ~~!!

बचपन में एक कहानी सुनी थी...कि किसी देश में एक राजा हुआ करता था, वो बहुत ही घमंडी,झूठा, दम्भी, निरंकुश और निर्दयी था...उसे अपनी चापलूसी बहुत ही पसंद थी, उसके दरबारी भी उसके इस दुर्गुणों को भुनाने में पीछे नहीं थे, वो उसके हर करतब में सहमति जताते और वाह वाही करते थे, उस राजा के दुर्गुणो की चर्चा पूरे देश में थी, जनता उसकी बातों को सुनकर हंसती और मज़े लेती थी, लोग एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते थे !

इसी बीच चार ठगों की एक मंडली को भी राजा की इस दुर्गुणों और कमज़ोरी का पता चला, उन्होंने एक योजना बनाई और दरबार के लिए निकल लिए ! वहाँ पहुँच कर उन्होंने राजा से मिलने की इच्छा जताई और बताया कि वो बहुत ही बारीक, नफीस और कमाल का जादुई कपडा बुनने और सिलने में माहिर कारीगर हैं, मगर उनके बुने हुए कपडे सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आते हैं, अगले ही दिन राजा से उनकी मुलाक़ात हुई...राजा उन ठगों का दावा सुनकर खुश हो गया...और उसने उनसे अपने लिए एक शाही जोड़ा तैयार करने का आदेश दिया....बदले में ठगों ने राजा से एक लाख सोने की मोहरों की मांग की...जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, ठगों को उनकी इच्छा के अनुसार उम्दा कमरा...खाना पीना और ऐशो आराम दिया गया !

कुछ दिन बीतने के बाद राजा को अपने तैयार होने वाले जोड़े के बारे में जानने की इच्छा हुयी...उसने अपने महामंत्री से कहा कि जाकर देखकर आओ क्या प्रगति है...महामंत्री ठगों के कमरे में गया ...जैसे ही ठगों को खबर हुई कि महामंत्री शाही जोड़े के प्रगति के बारे में जानने आ रहे हैं...उन्होंने ऐसा अभिनय करना शुरू किया जैसे वो कपडे को थान में लपेट रहे हों....महामंत्री को वहाँ कोई कपडा तो नज़र आया नहीं....मगर ठग बाक़ायदा अपने अभिनय में लगे रहे...महामंत्री ने पूछा कि शाही जोड़े की तैय्यारी कहाँ तक पहुंची...? ठगों ने कहा कि कपडा तो बुन लिया है...और थान  में लपेट रहे हैं...अब सिर्फ सिलाई का काम बाक़ी है, महामंत्री हैरान होकर बोला कि मुझे तो कहीं कोई कपडा नज़र ही नहीं आ रहा, इस पर ठगों ने कहा कि आपको याद है कि हमने कहा था कि वो जादुई कपडा सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आता है, आपको नज़र नहीं आ रहा ....यानि आप या तो नेक नहीं है, ईमानदार नहीं हैं....या फिर वफादार नहीं है, राजा साहब को आपका यह चरित्र शायद पता ही नहीं है ? इस पर महामंत्री घबरा गया....और बोला कि नहीं कपडा बहुत ही बारीक है...इसलिए अब मुझे हल्का हल्का कपडा थान पर नज़र तो आ रहा है....और यह कहता हुआ ...उलटे पाँव वापस भाग लिए !

ऐसे ही चार पांच चक्कर लगवाने के बाद एक दिन ठग मंडली ने दरबार में घोषणा की कि महाराज का जादुई शाही जोड़ा तैयार है, राजा ख़ुशी ख़ुशी उनके कमरे में गया, वहाँ  ठगों ने उनसे कहा कि आप अपने पुराने कपडे उतार दीजिये....आपका जादुई शाही जोड़ा लेकर आते हैं...राजा ने फ़ौरन ही अपने पहने कपडे अलग किये और तैयार हो गया...ठग मंडली के चारों सदस्य दूसरे कमरे से ऐसा अभिनय करते निकले जैसे किसी जोड़े को बहुत ही सम्भाल कर ला रहे हों, राजा अवाक रह गया, उसने कहा कि यह क्या हो रहा है, जादुई शाही जोड़ा कहाँ है....? तब ठगों ने कहा कि महाराज हम वही तो लेकर आ रहे हैं...कहीं ऐसा तो नहीं कि यह जोड़ा आपको नज़र ही नहीं आ रहा हो ?  राजा सन्न रह गया ...फिर उसे ठगों द्वारा कही बातें याद आ गयीं कि यह जादुई जोड़ा सिर्फ सज्जन, ईमानदार, और वफादार लोगों को ही नज़र आता है...उसने सोचा ज़रूर मुझमें कहीं खोट है....जो मुझे यह जोड़ा नज़र नहीं आ रहा ! कुछ हिचकिचाकर उसने कहा मैं तो मज़ाक़ कर रहा था...लाओ पहना दो,  इस पर ठगों ने उसे जोड़ा पहनाने का भरपूर अभिनय किया...और अंत में पायजामे के नाड़े की गाँठ बांघने का अभिनय करते बोले.....लीजिये महाराज ! आपका जादुई शाही जोड़ा तैयार है, अब आप दुनिया में इकलौते ऐसे राजा हैं जिसके पास यह जादुई जोड़ा है ! यह कहते हुए ठगों ने राजा के सर पर उसकी शाही पगड़ी रखी ...और जाने की आज्ञा के साथ अपना मेहनताना एक लाख सोने की मोहरें मांगी...जिसे राजा ने फ़ौरन ही मंगवा कर उनको दीं....एक लाख मोहरें लेकर ठग मंडली ....महल से निकल गयी !

अब महाराज सर पर पगड़ी रखे ...नंगे ही ...ठगों के कमरे से बाहर निकले...और दरबार में जा पहुंचे, राजा को नंगा आते देख सारे दरबारियों की आँखें फटी की फटी रह गयीं और उनकी चीखें निकल गयीं, राजा ने सोचा मेरा जादुई शाही जोड़ा और उसकी सुंदरता देख इनकी चीखें निकल रही है, तभी महामंत्री ने जल्दी जल्दी सभी को बताया कि भूल कर भी सच मत बोल देना...महाराज ने जो जादुई शाही जोड़ा पहन रखा है, वो सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आता है, यदि हमें नज़र नहीं आ रहा ....और हमने राजा से कह दिया ...तो अपनी नौकरी तो गयी...सो भला इसी में है कि जयकारे लगाते रहो...अपनी बला से नंगा ही घूमता फिरे, हमें इससे क्या ...इसी बीच नंगे महाराज अपने सिंहासन पर विराजमान हो चुके थे...और उन्होंने वहाँ से आवाज़ लगाईं....सभी शांत हो जाएँ....और यह बताएं कि मेरा यह जादुई शाही जोड़ा कैसा लग रहा है ? सभी दरबारी अपने नंगे महाराज को देखा और एक सुर में बोले..." वाह वाह महाराज ...आपकी जय हो, इस जादुई जोड़े में तो आप पर निराली छटा छा रही है...आप बहुत ही सुन्दर, शक्ति शाली, आभामय लग रहे हैं !"

यह सुनकर नंगे महाराज ख़ुशी से फूले नहीं समाये...और उन्होंने तुरंत ही घोषणा कर डाली कि ....मैं अभी शहर का दौरा करूंगा....और अपनी प्रजा को इस जादुई शाही जोड़े के दर्शन कराउंगा ...महामंत्री ने तुरंत फुरंत ही नंगे महाराज के दौरे का इंतज़ाम किया, शहर में चुपचाप मुनादी करा दी गयी कि महाराज अपने जादुई शाही जोड़े को पहन कर जनता जनार्दन को दर्शन देने पधार रहे हैं, कोई आवाज़ नहीं करे....जैसा हम कहें और जैसी हम नारे बाज़ी और वाह वाही करें...सभी वैसा ही करें...वर्ना खैर नहीं...क्योंकि यह जोड़ा सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आता है ...इंतज़ाम पूरे होने के बाद एक सजे हुए हाथी पर नंगे महाराज केवल सर पर पड़गी पहने ....शहर के दौरे पर निकल लिए !

जब नंगे महाराज हाथी पर बैठ कर शहर में निकल रहे थे....तो जनता का हंसी के मारे बुरा हाल था...मगर कुछ चापलूसी में तो कुछ भय के कारण....नंगे महाराज के जादुई शाही जोड़े के सम्मान में जयकारे कर रहे थे....तारीफें की जा रही थीं.....वाह वाही हो रही थी....तभी भीड़ में एक छोटा नन्हा बच्चा बाहर आया, उसने जैसे ही राजा को देखा ...तो ठहाके मार कर हंसने लगा ....और चिल्लाया " राजा नंगा.....राजा नंगा...!" लोगों ने हँसते.....झेंपते हुए ....फ़ौरन ही उसके मुंह पर हाथ रख दिया...और भीड़ से बाहर ले गए !

कुल मिलकर यदि इस कहानी को देश के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो ...हमें ऐसे कई नंगे महाराजा बखूबी नज़र आयेंगे, जो मुद्दों से दूर अपनी अपनी ढफली अपने अपने राग लिए जनता के सामने परेड करते नज़र आते हैं ...उन्हें भ्रमित करते नज़र आयेंगे...साथ ही में उनके जयकारे करती ...चापलूस मंडली ....के साथ कई ठग मंडलियां भी अपना उल्लू सीधा करती नज़र आएंगी..... और यदि इनके बीच कोई इनको आईना दिखाने की कोशिश करे तो...उसे कान पकड़ कर धकेल दिया जाता है, या फिर इन नंगे महाराजाओं के चाटुकार और चापलूस उसपर टूट पड़ते हैं...जमकर लठैती होती है ! जनता को ऐसा राजा चाहिए होता है  जो खुद अपने गिरेबान में झाँक सकता हो, चाटुकारिता और चापलूसी से नफरत करता हो, आडम्बर, अभिमान, घमंड से परे हो, .वास्तविकता से परिचित हो, हवा में न रह कर ज़मीन की बात करे...अपने फैसले लेने की क्षमता हो, जनमानस की नब्ज़ पहचानता हो, सुखों और दुखों से भली भाँती परिचित हो, अपनी जनता के दुखों और उनसे जुड़े मुद्दों के लिए प्रतिबद्ध हो, और अपने राज्य के सर्वांगीण विकास, गौरव और सम्मान की बात करे !!
जय हिन्द !!

(Disclaimer :- इस काल्पनिक कहानी का किसी ज़िंदा या मुर्दा ...या तख़्त नशीं या किसी होने वाले राजा से किसी प्रकार का कोई लेना देना नहीं है )

'राष्ट्रिय खेल' के मुंह पर करारा 'तमाचा' !!

कल मेरी मुलाक़ात नुक्कड़ पर बैठे मन्नू काका से हुयी, वो खुद हाकी और फ़ुटबाल के खिलाडी रहे थे, और खेलों के प्रति उनका जूनून बुज़ुर्गी में भी कम नहीं हुआ है, मिलते है मैंने कहा "मुबारक हो मन्नू काका सचिन को क्रिकेट के लिए "खेलों का पहला भारत रत्न मिल गया है." ! मन्नू काका ने निर्विकार भाव से मुझे देखा और कुछ नहीं बोले, मैंने उन्हें छेड़ने के लिए फिर कहा : " वैसे इस सम्मान पर पहला हक़ मेजर ध्यान चन्द का बनता है, जैसा कि कुछ माह पहले भारत के खेल मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित भी था,  दिया तो मिल्खा सिंह को भी जा सकता था....दोनों ने ही खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक में देश का नाम रोशन किया है....क्रिकेट क्या है ? विश्व के 95 प्रतिशत देशों में तो यह खेला ही नहीं जाता, केवल गिनती के 5 प्रतिशत देश ही इसे खेलते हैं !

झुंझला कर मन्नू काका ने कहा " अमां मियां यह मेजर ध्यान चन्द हैं कौन ? और यह मिल्खा सिंह क्या बला है ? और यह खेलों का महाकुम्भ ओलम्पिक होता क्या है ? सचिन और क्रिकेट के आगे कौन मेजर ध्यान चन्द और कौन मिल्खा सिंह, और कैसा ओलम्पिक ! हम तो 196 देशों से अलग ..दस बारह देशों के बीच पकती इस क्रिकेटिया खिचड़ी से निकले खिलाडियों को ही महिमा मंडित करेंगे...आप होते कौन हो क्रिकेट को कोसने वाले ? राष्ट्रिय खेल हाकी को किसको परवाह है ? मेजर ध्यान चन्द और मिल्खा सिंह जैसों को यहाँ पूछता कौन है, 'भाग मिल्खा भाग' फ़िल्म बना तो ली और क्या चाहिए ?

मुझे उनके अंतर्मन में उठ रही निराशा नज़र आने लगी....मैंने उनसे कहा मन्नू काका देश में क्रिकेट भी तो पापुलर खेल है ? तब इस पर उन्होंने अपने अंदर की पीड़ा ज़ाहिर की ...और बोले :जब खिलाड़ी आपादमस्तक बिकने लगे और खेल का मैदान विज्ञापनों से पट जाए तो फिर यह खेल नहीं व्यापार हो जाता है। दरअसल यह  बहुराष्ट्रीय कारपोरेट घरानों की व्यापारिक साजिश ही है जिसने हमारे देश में क्रिकेट को इतना ऊंचा दर्जा दे दिया है। क्रिकेट और खिलाडियों को उत्पाद और ब्रांड के तौर पर पेश करने का षड्यंत्र कामयाब हो गया है, इस षड़यंत्र में सब शामिल हैं: याने सिर्फ माल बनाने और बेचने वाले ही नहीं, बल्कि राजनेता, उद्योगपति, मीडिया मालिक, क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्मी सितारे और सट्टाबाजार के रहस्यमय नियंत्रक भी। इन सबने मिलकर जनता को बेहोश कर बाजार के सामने फेंक दिया है कि जितना नोंच सकते हो नोंच लो, हमारा मुनाफा हमें जरूर मिल जाना चाहिए।

फिर वो बोले क्या हुआ अगर  मेजर ध्यानचंद की तो उन्होंने तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया ?  क्या हुआ अगर उनको विश्व हॉकी के जादूगर के रूप में जानता है ? क्या हुआ अगर अपने बेजोड़ और अद्भुत खेल के कारण उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक खेलों एम्स्टरडम ओलंपिक 1928, लॉस एंजिलस 1932, बर्लिन ओलंपिक 1936 (कप्तानी) में टीम को तीन स्वर्ण पदक दिलवाए ? और ओलंपिक खेलों में 101 गोल और अंतरराष्ट्रीय खेलों में 300 गोल दाग कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है ? क्या हुआ अगर एम्स्टरडम हॉकी ओलंपिक मैच में 28 गोल किए गए जिनमें से ग्यारह गोल अकेले ध्यानचंद ने ही किए थे ? इस किरकिट आगे सब कुछ बौना ही तो है !

क्या हुआ अगर ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया ? क्या हुआ अगर विदेशों में ध्यानचंद की लोकप्रियता है ? क्या हुआ अगर वियना (आस्ट्रिया) वासियों ने ध्यानचंद की याद में एक मूर्ति स्थापित की, जिसमें उनके चार हाथ हैं और चारों हाथों में हॉकी स्टिक है ? इस किरकिट के भगवान् के आगे तो उनकी औक़ात क्या रह गयी ?

फिर मन्नू काका बोले "  क्या हुआ अगर मेजर ध्यान चन्द  ने उस दौर में देश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया ?..और और पूरे खेल जगत में इस तिरंगे की धाक जमाई ? हम भी तो दस बारह देशों के बीच खिचड़ी नुमा क्रिकेटिया विश्व कप करा ही लेते हैं...और किरकिट के खिलाडियों का जमकर महिमा मंडन भी कर लेते हैं...और अपने किरकिट के भगवान् भी चुन लेते हैं.....अमरीका, जर्मनी, जापान, फ़्रांस, रूस, चीन जैसी महाशक्तियों ...सहित कितने और देशों में इस किरकिट और इसके भगवान् का डंका बजे या नहीं उससे हमें क्या ? इस किरकिट और इसके भगवानो के बारे में विश्व के कितने देशों को पता है, उससे हमें कोई लेना देना नहीं ? भले ही हम जानते हैं कि उन सैंकड़ों देशों के लिए इस किरकिट की औक़ात क्या है ? जो खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक में न खेला जाता हो, उसे भी हम 'खेल' ही कहते हैं ....हम तो झूमेंगे इस क्रिकेटिये नशे में  ...और गढ़े जायेंगे इस किरकिट के भगवान् !

मन्नू काका की इन बातों को सुनकर मैं निरुत्तर हो गया....मुझे लगने लगा कि अब सम्मान भी राजनीति से प्रेरित ...राजनैतिक नफ़ा - नुक़सान राजनैतिक बिसात और माहौल के अनुसार तय किये जाते हैं...भले ही सरदार पटेल को उनके निधन के 41 सालों बाद भारत रत्न से सम्मानित किया गया हो, मगर किरकिट के भगवान् को नियमों में फेर बदल कर आनन् फानन में यह सम्मान दिया गया ....आनन् फानन में दिए गए इस सम्मान और उसके टाइमिंग पर देश में आवाज़ें उठनी शुरू हो ही गयी हैं... काश कि यह सम्मान पहले मेजर ध्यान चन्द को दिया जाता ...जैसा कि खेल मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित भी था....तो यह हमारे वैश्विक हीरो और हमारे राष्ट्रिय खेल को पूरे देश की और से एक सलाम होता, मगर राष्ट्रिय खेल के महान नायक को दरकिनार कर यह सम्मान जिस प्रकार से किरकिट के भगवान् को दिया गया है, उससे तो राष्ट्रिय खेल हाकी के मुंह पर एक करारा तमाचा ही लगा है !!  मगर हमें यह भी ख़ुशी है कि हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चन्द का गौरव और सम्मान ...इन राजनेताओं के प्रमाण पत्र और सम्मान का मोहताज नहीं है, वो देश के हीरो थे, और हमेशा रहेंगे...वो पूरे देश का गौरव थे और रहेंगे...वो आम आदमी के भारत रत्न हैं...और हमेशा रहेंगे !!

जय हिन्द !!

हाय .....किरकिट अनाथ भया~~!!

हाहाकारी समाचार.....अब आने वाले दिनों में किरकिट अनाथ हो जाने वाला है, दिल थाम कर रहिये...किरकिट के नाथ ने हाथ ऊंचे कर दिए हैं...और किरकिट को अनाथ कर चल दिए हैं...या खुदा....अब इस देश का क्या होगा...? कहीं किरकिट के भगवान् के संन्यास की खबर सुन कर चाइना या पाकिस्तान हमला नहीं कर दे...? या फिर  शायद ओबामा की भी रुलाई फूट पड़े, या फिर किसी राज्य की सरकार ही न गिर जाए, सेंसेक्स धड़ाम से आ न आ गिरे, विश्व में एक मिनट का मौन न हो जाये, या फिर कहीं कोई किरकिट प्रेमी वानखेड़े स्टेडियम में हाराकिरी न कर ले !

अथाह पैसों के ढेर पर  पर बैठी निरंकुश बीसीसीआई ने अपनी तिजोरी भरने के लिए  क्रिकेट प्रेम के नाम पर जनता को बाज़ार का हिस्सा बना दिया गया है.   क्रिकेट को एक उत्पाद की तरह से बेचा जाने लगा है...और क्रिकेट खिलाडियों को स्टार और आइकन बनाया जा रहा है..एक शतक लगाते या किस मैच में दो-चार विकेट लेते ही मिडिया और उसके पेड एक्सपर्टस किसी खिलाड़ी की तुलना इतिहास के महान खिलाडियों से करने लगते हैं और विज्ञापन के दरवाज़े उनके वास्ते अपने आप ही खुलने लग जाते हैं ! IPL की खेल और खिलाडी मण्डी में खिलाडी नीलाम होते हैं..अपने आकाओं के इशारों पर मैदान में अपने अपने हुनर दिखाते हैं...जिस में फिक्सिंग भी शामिल है....यह भी किरकिट ही है....जहाँ धोनी भी फिक्सिंग पर अपने इंडिया सीमेंट वाले बॉस के खिलाफ मुंह खोलते डरते हैं...और फिक्सिंग के सवाल पर मीडिया के सामने बेशर्म बन कर चुप रहते हैं...और तो और किरकिट के भगवान् भी फिक्सिंग पर फुस्स करके रह जाते हैं....यह भी किरकिट ही है...जिसे देश की जनता की नसों में देश प्रेम के नाम पर ठूंस दिया गया है...और हर जायज़ और नाजायज़ हथकंडों से इसे बेच कर तगड़ा मुनाफा कमाया जा रहा है...यहाँ तक कि दाऊद तक के वारे न्यारे हो रहे हैं....यह भी किरकिट ही है !

अब तो लगने लगा है कि ...कभी महा शतक पर पूरे देश को महा आंदोलित करने वाले कार्पोरेट घराने और TRP और बाज़ार की मारी मीडिया अब महा विदाई का महा कवरेज कर देश की जनता को रुला कर ही छोड़ेगी, कोई बात नहीं आखिर किरकिट के भगवान् रिटायर्ड हो गए हैं...और अब इस अनाथ खेल और किरकिट के भगवान् के लिए दो आंसू तो बनते ही हैं, ...क्या कहा...? देश के बाक़ी खेल ? हा हा हा...अमां मियां जाओ होश की बातें करो ...भाड़ में जाएँ यह सब...किरकिट ज़िंदाबाद...किरकिट के रिटायर्ड भगवान् ज़िंदाबाद ..और श्रीनिवासन ज़िंदाबाद....निरंकुश बीसीसीआई ज़िंदाबाद !

पहले शौचालय.....फिर फेसबुक ~~!!

(सबसे पहले स्पष्टीकरण कि इस ब्लॉग से किसी बाबा, मुल्ला, संत, नेता, मंत्री, संत्री, जाति, धर्म, फेकू, पप्पू ,गप्पू, या किसी पार्टी से पास या दूर तक का कोई लेना देना नहीं है - शर्तें लागू)

एक फेसबुक यूज़र होने के नाते कई बार नोट किया है कि फेसबुक पोस्ट पर प्रात: काल 4 से 6 बजे के बीच भी काफी कमेन्ट और लाइक देखे जाते रहे हैं, भले ही यह Time zone का लोचा हो, मगर अपने देसी हिसाब से तो यह प्रात:काल ही हुआ, और उसी हिसाब से इस विशेष समय को लेकर हम कई बार कन्फ्यूजिया भी गए....हमारी समझदानी में खलबली हुई....और उसी खलबली के दौरान कई प्रश्न इकठ्ठे होकर खली के रूप में सामने खड़े हो गए....और इन सभी प्रश्नों की पोटली लादे हमारे एक चरित्र फेसबुकिये Cool Dude निकल चले :-

यह कूल डूड 2500/-रु. की रसीद कटा कर पहुँच गए सीधे डेढ़ आँख वाले लफंदर बाबा के दरबार में, वहां लफंदर दरबार शबाब पर था...बाबा ऊंचे सजे हुए आसन पर विराजमान थे, और हाथ उठा उठा कर कृपा बरसा रहे थे, कुछ देर में कूल डूड का नंबर आया...चार पांच मुस्टंडे बाड़ी गार्डों ने उन्हें तीन तरफ से घेर लिया...और उनके हाथ में माइक थमा दिया, अब आप पूछेंगे कि चौथी तरफ से क्यों नहीं घेरा...तो भाई...चौथी तरफ से तो लफंदर बाबा को संबोधित करना जो था...खैर ...कूल डूड ने लफंदर बाबा को नमस्कार किया....और बोला :-

प्रणाम बाबा ! में आपको अपने पिछले अनुभव बताने यहाँ दरबार में आया हूँ...अगर बाबा की आज्ञा हो तो बोलूँ ?
लफंदर बाबा :- अवश्य बोलो बच्चा !
कूल  डूड :-  बाबा पिछली बार मैं आपके पास आया था और आपसे निवेदन किया था कि मेरा फेसबुक अकाउंट है....मगर न तो ज्यादा मित्र बनते हैं...और ना ही मेरी किसी भी पोस्ट पर मित्रों के लाइक या कमेन्ट आते हैं...मैं खुद ही तीन चार फर्जी प्रोफाइल बनाकर अपनी ही पोस्ट को लाइक करता और कमेन्ट करता था... तब आपने मुझ पर कृपा की थी....और मेरी फेसबुकिया ज़िन्दगी संवर गयी बाबा, जमकर कमेन्ट और लाइक आ रहे हैं, अब मैंने अपने तीनो फर्जी प्रोफाइल भी डिलीट कर दिए हैं बाबा...!

लफंदर बाबा कुछ नहीं बोले...केवल उनकी गर्दन और ऊंची हो गयी और कृत्रिम मुस्कराहट होंठों पर खिंच गयी.....उन्होंने अपना हाथ कृपा बरसाने के लिए उठाया ही था कि कूल डूड ने फिर मुंह खोला...और बोला :- मगर एक समस्या है बाबा !!

लफंदर बाबा :- बोलो बच्चा ...
कूल डूड : - मेरी मित्र सूची में महिला मित्रों की संख्या बहुत कम है बाबा ...कोई उपाय बताइये !

लफंदर बाबा :- यह बताओ ...तुम्हारा मानीटर LCD है, या वही पुराना वाला बक्सा ?
कूल डूड :- LCD है बाबा !
लफंदर बाबा :- हूँ.....तुम्हारा माउस wire less तो नहीं है...समझ रहे हो न...बिना तार वाला ?
कूल डूड :- नहीं बाबा ...तार वाला है !
लफंदर बाबा :- इन्टरनेट कौनसा वाला है....MTS, Airtel, Reliance, Docomo या MTNL ?
कूल डूड :- BSNL का है बाबा !
लफंदर बाबा :- फेसबुक सोफे पर बैठ कर चलाते हो या कुर्सी पर ?
कूल डूड :- पिछली बार आपके लफंदर दरबार की फीस के चक्कर में कुर्सी बेच डाली थी बाबा....अब एक लकड़ी का स्टूल है, उसी पर उकडू बैठ कर फेसबुक चलता हूँ बाबा !
लफंदर बाबा :- यह बताओ सुबह उठते ही सबसे पहला काम क्या करते हो ?
कूल डूड :- सीधा कम्प्युटर पर टूट पड़ता हूँ बाबा....और फेसबुक खोल कर अपने notifications , कमेन्ट और लाइक देखता हूँ बाबा !

लफंदर बाबा का कृपया के लिए उठा हाथ 45 डिग्री के एंगल पर काफी देर से रुका हुआ था ...और दर्द करने लगा था...इसी बीच किसी मच्छर ने उनके चूड़ी दार पायजामे के नीचे खुली एडी मैं शरारत कर डाली, बाबा का उठा हुआ हाथ अचानक से नीचे आया और उन्होंने अपने पाँव का जूता निकाल लिया...पाँव खुजाने के लिए...कूल डूड...बेचारा घबरा कर लडखडाया ..मगर तीनो और से घेरे खड़े बाडी गार्डों ने उसको पकड़ कर सीधा खड़ा कर दिया...जब बाबा अपनी एडी खुजा कर संतुष्ट हुए तो ...उन्होंने अगला सवाल दाग दिया...>

लफंदर बाबा :- यह बताओ जब फेसबुक आन करते हो तो क्या पूरे कपडे में होते हो...?
कूल डूड :- नहीं बाबा  कभी लुंगी...कभी पायजामा तो कभी सिर्फ कच्छे में ही शुरू हो जाता हूँ !
लफंदर बाबा : - ह्म्म्म अच्छा यह बताओ वो पायजामा ...नाड़े वाला होता है, या इलास्टिक वाला ?
कूल डूड :- दोनों नहीं होते बाबा....पायजामे पर बेल्ट बाँध कर काम चलाता हूँ !
लफंदर बाबा का कृपा वाला हाथ फिर से 45 डिग्री के एंगल पर आकर रुक गया था...मगर 90 डिग्री तक के सफ़र में लफंदर बाबा को इस कूल डूड ने पसीना पसीना कर दिया था...फिर अन्दर से घबराये लफंदर बाबा ने कूल डूड से पूछा ..
लफंदर बाबा :- ह्म्म्म्म ...यह मुझे लोटा और टोंटी क्यों नज़र आ रही है ? आँख खुलते ही सबसे पहला काम क्या करते हो ?
कूल डूड :- वही ....फेसबुक बाबा !
लफंदर बाबा :- नहीं.....बच्चा....पहले शौचालय फिर फेसबुक ! नहाइये धोइये ...फिर शुरू होइये ...(अब बाबा के हाथ का एंगल बढ़ने लगा था)
कूल डूड :- जैसी आज्ञा बाबा !
लफंदर बाबा :- एक बात और.....
कूल डूड :- जी बाबा जी ...
लफंदर बाबा :- फेसबुक आन करने से पहले Deo स्प्रे ज़रूर लगाना ! और वो भी Musk वाला, Musk नहीं हो तो लेवेंडर भी चलेगा...लड़कियों को यही दोनों ज्यादा पसंद हैं, कृपा अवश्य होगी !
कूल डूड :- अवश्य बाबा .....!
और अंत में लाफ्रंदर बाबा का हाथ पूरे 90 डिग्री के एंगल पर आया और उन्होंने कृपा उस कूल डूड की और फेंकी.....जिसे लपक कर वो  पीछे कुर्सी पर जाकर बैठ गया....और अपना खाली पर्स खोल लिया....ताकि...इधर उधर से आ रही कृपा से उसका बटुवा भर जाए....और अगले लफंदर दरबार में आने की फीस का जुगाड़ हो जाए !

वो ....खुला दरवाज़ा ~~~!!


एक बस्ती के आखरी छोर पर एक कच्चा मकान था, उस मकान का दरवाज़ा हमेशा बंद रहता था...उसमें गरीब बुज़ुर्ग माँ बाप अपनी जवान बेटी के साथ रहते थे, बेटी की शादी के साथ दहेज़ की चिंता में गरीब बूढ़े की कमर झुक गयी थी, चेहरे पर झुर्रियां बढ़ गयी थीं, कांपते हाथों से बूढी पत्नी भी पति के साथ मिलकर घर में कागज़ की थैलियाँ तैयार करती थी, बेटी भी उनका हाथ बंटाती थी, जिसे वो बूढा रोज़ झुकी कमर लिए...खांसते थूकते...दूकान दूकान जाकर बेचने निकल जाता था, रोज़ उनका दरवाज़ा खुलता और वो बूढा थके थके क़दमो से कागज़ की थैलियाँ बेचने निकल जाता...और दरवाज़ा फिर से बंद हो जाता !

एक दिन लोगों ने देखा कि वो दरवाज़ा खुला हुआ है....बस्ती में हलचल हुई कि ऐसा कैसे हुआ...हमेशा बंद रहने वाला दरवाज़ा ..आज कैसे खुला पड़ा है..? काना फूसी हुई, तब किसी ने चुपके से कहा कि कल रात इन बूढ़े माता पिता की इकलौती बेटी...किसी के साथ चली गयी है, कभी लौट कर नहीं आने के लिए.....फिर लोगों ने देखा कि वही बूढा अपनी झुकी हुई कमर के साथ कांपते हुए....आँखों में लरजते आंसू लिए ..कागज़ की थैलियाँ बेचने निकल रहा है, और घर के अन्दर बुज़ुर्ग माँ अपने आंसू पोंछते और खांसते हुए कागज़ की थैलियों का सामान समेट रही है... आज उसने दरवाज़ा बंद नहीं किया है... दहेज़ के दानव ने....उनका दरवाज़ा हमेशा के लिए खुला छोड़ दिया है !!

'शौचालय' से भी पहले 'विद्यालय' बनवाइए साहब !!

नरेन्द्र मोदी का बयान आया था कि 'पहले शौचालय फिर देवालय' ..कुछ ऐसे ही बयान जयराम रमेश पहले भी दे चुके हैं, जिसके कारण उन्हें भारी विरोध का सामना भी करना पडा था, उनके बयानों के अनेक अर्थ निकाले गए थे, आज जो मोदी के इस बयान पर गाल और तालियाँ बजा रहे हैं, उन्होंने ही उत्पात मचाया था...खैर ...अब मोदी जी ने बयान दे दिया है तो समर्थन तो करना ज़रूरी है ही, क्योंकि यह बयान मोदी ने जो दिया है, कई लोग तो इस बयान के समर्थन में बहुत ही हास्यास्पद तर्क और तथ्य दे रहे हैं ! मोदी ने अपने आप को इलेक्ट्रोनिक मीडिया / पी.आर. एजेंसी और सोशल मीडिया द्वारा स्थापित तो कर लिया है मगर उनके कई बयानों और विचारों पर उनकी पार्टी को ही कई बार बेक फुट पर आना पड़ा  है, और एक बात कि मोदी सिर्फ समस्याएं बताते हैं...तर्क संगत समाधान नहीं, बल्कि समाधान की जगह अपने आप को रख देते हैं, जो कि व्यावहारिक बिलकुल नहीं है, आप यदि समस्या बता रहे हैं ...तो उसके एक दो तर्कपूर्ण हल/समाधान तो बताना ही होगा... किसी के दुर्गुणों को आप सीढ़ी नहीं बना सकते !

अब मोदी ने 'पहले शौचालय फिर देवालय' का नारा दे तो दिया है, मगर उस पर बहस भी चल पड़ी है, क्यों शौचालय पर इतना जोर दिया मोदी ने....और क्या शौचालयों से ज्यादा ज़रूरी देश में कुछ भी नहीं है ? या फिर शौचालय के बाद प्राथमिकता पर सिर्फ देवालय ही क्यों आता है ? शौचालयों से पहले या बाद में यदि विद्यालयों को और उसके बाद देवालयों को रख दिया जाए तो क्या हर्ज है, यह भी तो शिक्षा के देवालय हैं...हमारे देश में शिक्षा का भी हाल बुरा है, गरीबी, विद्यालयों की कमी, शिक्षकों की कमी, माध्यमिक विधयालों में मूल-भूत सुविधायों की कमी आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे देश शिक्षा में पिछड़ा हुआ है, गाँव में स्कूल ना होने के कारण लगभग 20% बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाते, उनमें से लड़कियों की संख्या अधिक है ! प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर ही यदि शिक्षा क्षत विक्षत है....तो नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी ? और यदि शिक्षित नहीं होगी तो उनको रोज़गार कैसे मिलेगा ? बेरोज़गारी कैसे दूर होगी ?

अशिक्षा ...शौचालय नहीं होने से ज्यादा हानिप्रद है, शौचालय का जुगाड़ तो लोग निजी तौर पर करते चले आ रहे हैं, और अब इस विषय पर लोगों में खुद ही जागरूकता भी आ रही है, मगर विद्यालय का जुगाड़ निजी तौर पर संभव नहीं है, यह सभी जानते हैं, इसके लिए सभी संसाधनों के लिए प्रशासन और सरकार ही ज़िम्मेदार है,  शिक्षित युवा ही देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश को उन्नति, प्रगति के पथ पर ले जाने वाले...देश का गौरव बढ़ने वाले होते हैं, देश में जितने अधिक विद्यालय होंगे जितने अच्छे पढ़ाई के संसाधन होंगे...युवा पीढ़ी उतनी ही शिक्षित और संस्कारवान होगी !

इसलिए मेरे विचार से देश में शौचालयों से काफी पहले विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, महा विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, बेहतर स्वास्थ्य के लिए  रूग्णालयों (अस्पतालों) का निर्माण होना चाहिए, देश में रोज़गार के अवसरों का बढाने का प्रयास होना चाहिए....देश की उन्नति और प्रगति के लिए यह अत्यंत आवशयक हैं...बेहतर और उन्नत शिक्षा/स्वास्थ्य और रोज़गार से बेहतर/समर्थ और शिक्षित युवा आगे जाकर शक्तिशाली नागरिक बनेंगे और देश का मान बढ़ाएंगे !

मंदिर मस्जिद के झगड़ों की भूल भुलैयां में देश ...और देश के युवाओं की सोच कहीं भटक कर रह गयी है....देश की प्रगति, उन्नति और गौरव के लिए ...आइये इन झगड़ों से ऊपर उठ कर देश के लिए कुछ सकारात्मक और सार्थक करें....क्योंकि ...>

मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाए,
हर मज़हब को बहुत सजाया, आओ मिलकर देश सजाएं !

मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने लाखों दिल घायल कर डाले,
अपने आप को बहुत हंसाया, आओ मिलकर देश हसाएँ !

मालिक, खालिक, दाता है वो, सदा रहे मन-मंदिर में,
उसका घर है बसा बसाया, आओ मिलकर देश बसाएँ !

गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है ?
इतना प्यारा देश हमारा, आओ मिलकर देश चलाएं !

(शाहनवाज़ सिद्दीकी ‘साहिल’)

जय हिन्द !!

चिंता को नी करो 'बापू' सा~~!!

चिंता को नी करो बापू सा....पहले भी आप ही के आश्रम के दो बच्चों की मौत का झूठ आरोप लगा कर आपको बदनाम किया था, क्या हुआ ? कुछ नहीं ना ! सो अब इस बार आपको नाबालिग बच्ची से बलात्कार के झूठे आरोप लगा बदनाम कर रहे हैं, आपके पुत्र महोदय भी कह रहे थे कि मानसिक बीमार बच्ची है...उसका क्या. ? उस बेचारी को  क्या पता कि यौन अपराध क्या होता है, या बलात्कार क्या होता है ? शायद उस नाबालिग बच्ची का पिता भी पागल है जो अपनी बिटिया की इज्ज़त पूरे देश में उछालता  फिर रहा है...? या फिर शायद कोई षड्यंत्र ? आप ही कह रहे थे ना कि किसी मेडम का किया धरा है, क्या करें शायद मेडम को कोई और काम भी तो नहीं है, आप से बड़ा राह का काँटा शायद ही कोई और हो उनके लिए,  इसी लिए शायद आपके दरवाज़े पर राजस्थान पुलिस 7 घंटे समन देने के लिए बैठी रही ? और शायद इसी लिए आप को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया, सिर्फ पूछताछ के लिए ही बुलाया है ? वो भी घटना घटित होने के इतने दिन बाद ! अब जब आपसे लोग पालिटिकल बदला लेने उतारू हो गए हैं तो चिंता काहे की.....आपके बचाव लिए भी तो पालिटिकल लोग घटना के प्रारंभ से ही साथ तो हैं, आपके निर्दोष होने की दुहाइयां तो पहले दिन से ही दी जाने लगी हैं...सो डोन्ट वरी बापू सा !

आपके पास तो दिव्य शक्ति है, जैसा कि आपने भक्तों को बताया था कि कैसे आपने आपके क्रेश होते हुए हेलीकाप्टर को ध्वस्त होने से बचाया, और लोगों सहित खुद को भी सकुशल धरती पर ले आये... जब इतनी दिव्य शक्ति है,  तो घबराने का नहीं ! खैर छोडिये...चिंतित मत होइये ....आप निर्मल बाबा को ही देखिये ..कितना बदनाम किया इन्ही लोगों ने, देश का सारा प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया उनके पीछे पंजे झाड कर पड़ा हुआ था.....क्या हुआ ?? कुछ नहीं ना...आज भी देश के बड़े बड़े न्यूज़ चेनल अपने Prime Time में निर्मल बाबा का दरबार live दिखा रहे हैं, कृपा खूब ठाठ बाँट से बँट रही है, और बांटी जा रही है, ...इधर भी उधर भी....सो, चिंता नी कोई बात नही...यदि कल जेल चले भी गए तो आपका रुतबा कम थोड़े ही होगा, ना ही आपकी दिव्य शक्ति कम होगी...फिर आपके लाखों भक्तगण हैं ना दोबारा आपको सर आँखों पर बैठाने के लिए...फिर से वही आश्रम होगा...फिर से आप अपने सभी लीलाओं और पुराने कार्य कलापों के लिए स्वतंत्र होंगे, सो टेंशन लेने का बिलकुल नहीं !!

चिल्लाओ कि 'राष्ट्रवादी' हो ~~!!

कभी सोचा नहीं था कि ऐसा दौर भी आएगा कि लोगों को अपने आपको राष्ट्रवादी होने का बखान करने के लिए चिल्लाना भी होगा, चीख चीख कर जनता को बताना होगा कि वो राष्ट्रवादी हैं, अब वो चाहें नेता हों उनके समर्थक हों, कोई भी संगठन हो या फिर आम हिंदुस्तानी ! देखा जा रहा है कि हर कोई अपने आपको राष्ट्रवादी बताने की होड़ में लगा है, रोज़ राष्ट्रवाद  की नयी परिभाषाएं गढ़ी जा रही हैं,  हर कोई अपने अपने राष्ट्रवाद का झंडा उठाये दौड़ा चला जा रहा है, पूछताछ पर राष्ट्रवाद के झंडे से डंडा निकाल लिया जाता है !

अब सवाल यह उठता है कि जो देशवासी अपने आपको राष्ट्रवादी होने के लिए चिल्ला नहीं रहे हैं और ख़ामोशी से राष्ट्रवाद के कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं,  तो क्या वो राष्ट्रविरोधी घोषित हो गए ? क्या किसी माँ के बच्चों में से कोई बच्चा मातृत्व प्रेम की अपनी अपनी परिभाषाएं गढ़ता है ?  चीख चीख कर शेष परिवार को यह जताता हैं कि सिर्फ वही मातृत्व का सम्मान करता है, प्यार करता है, शेष  मातृत्व का अपमान करते हैं, या प्रेम नहीं करते  ?

इसको क्या दिखावा नहीं कहा जा सकता, या कुछ और बात है ? राष्ट्रवाद किसी दिखावे या किसी प्रतीकात्मकता का मोहताज नहीं है, यह तो एक जज्बा होता है एक विचार होता है, जो रगों में खून के साथ दौड़ता है !

अब तो लगने लगा है कि राष्ट्रवाद का भी राजनीतिकरण हो चला है, राजनैतिक दल अपनी अपनी सहूलियत और वोटों के समीकरण के आधार पर राष्ट्रवाद की परिभाषाएं गढ़ रहे हैं, सबके राष्ट्रवाद के अपने अपने झंडे हैं अपनी अपनी परिभाषाएं हैं, और इन परिभाषाओं की जंग में जमकर चीख पुकार मची है, होड़ सी लगी है, त्राहिमाम मचा है, लगने लगा है कि चिल्ला चिल्ला कर अपने आपको राष्टवादी बताना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है, इसका एक अप्रत्यक्ष सन्देश शायद यह भी हो कि जो चिल्ला कर अपने आपको राष्ट्रवादी घोषित नहीं कर रहे ....वो शायद कहीं न कहीं राष्ट्र विरोधी हैं !

राष्ट्रवाद एक विचारधारा है, एक सशक्त भावना है, राष्ट्र के प्रति एक  अगाध निष्ठा की भावना है, सामूहिकता की भावना का दृढीकरण है, और यह भावना, विचारधारा और निष्ठा किसी दिखावे, शोर शराबे या किसी राजनैतिक दल/नेता या संगठन की कतई  मोहताज नहीं है !

जय हिन्द !!

बेलगाम होता सोशल मीडिया ~~~!!

हमारे देश में सोशल मीडिया का चेहरा अचानक से बदलने लगा है, देखने में आ रहा है कि यहाँ धीरे धीरे साम्प्रदायिक और चरमपंथी संगठनो और उनसे जुड़े लोगों का जमावड़ा बढ़ने लगा है,  ये लोग इस मंच को एक घृणा का माध्यम और एक हथियार के रूप में प्रयोग करने लगे हैं, और अपनी घृणित योजनाएं और युवाओं को ब्रेन वाश करने का जरिया भी बना रहे हैं, और सोशल मीडिया पर कई जगह धार्मिक भावनाए भड़काने वाली पोस्ट और फोटो नज़र आना आम बात हो गयी है !

यह  साम्प्रदायिक और चरमपंथी जो कुछ भी इस मंच पर कर रहे हैं, वो कहीं न कहीं देश की अखंडता और हमारे आपसी सौहार्द के लिए हानिकारक है, जर्मनी में भी यही कहानी दोहराई जा रही है, यहाँ जर्मन नवनाजी इस मंच का जमकर दुरूपयोग कर रहे हैं,  मगर वहां अब इस पर नकेल कसनी शुरू हो चुकी है ..देखिये यह लिंक :-

http://www.dw.de/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%9C%E0%A4%B0/a-16941520

हमारे देश में कई बार कई जगह सोशल मीडिया पर आपत्ति जनक पोस्ट/सामग्री के खिलाफ उपद्रव/प्रदर्शन हुए हैं, और गाहे बगाहे जारी भी हैं, अब क्या यह ज़रूरी नहीं लगता कि सोशल मीडिया पर ऐसे दक्षिणपंथी और साम्प्रदायिक संगठनो और उनसे जुड़े लोगों पर नकेल कसने के लिए कुछ प्रावधान लाना चाहिए ! इन्टरनेट के इस मायाजाल से निबटने के लिए न सिर्फ राष्ट्रिय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोशिशें करनी होंगी, फेसबुक, ट्वीटर और गूगल जैसे प्रदाताओं से सहयोग लेना होगा, अभी हाल ही में बोधगया ब्लास्ट के बाद इन्डियन मुजाहिदीन के ट्वीटर एकाउंट का पाक कनेक्शन इस बात का सबूत है, कि इस समस्या को राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोशिश कर जल्दी ही काबू में लाना होगा, कोई हल निकालना होगा !

मैं क्या आप में से कोई भी इस सोशल मीडिया पर पूर्ण अंकुश या प्रतिबन्ध के पक्ष में बिलकुल नहीं होंगे...बल्कि  प्रावधान ऐसा हो कि पूरा नियंत्रण न होकर ऐसी हरकतों और लोगों/संगठनो पर अंकुश लग सके, और इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि आम आदमी की अभिव्यक्ति की आज़ादी को भी चोट नहीं पहुंचे, कुछ ऐसा प्रावधान ऐसी नकेल जिससे आपत्तिजनक, सांप्रदायिक और चरमपंथी गतिविधियों में लिप्त लोगों और संगठनो पर कड़ी नज़र रखी जा सके, उनको धरा जा सके और दण्डित किया जा सके, ताकि आप और हम इस नायाब मंच का सदुपयोग कर सकें !!

हमारी सुपर मोंम बनाम बाज़ार की सुपर मोंम !!

देश में हर चीज़ का बाज़ार खडा हो गया है, मुनाफे के लिए किसी भी चीज़ को मुलम्मा चढ़ा कर जनता के सामने ग्लेमरस ढंग से परोसा जाने लगा है, इधर कुछ दिनों से जी टी.वी. पर DID सुपर मोंम का एक रियलिटी शो शुरू हुआ है, जिसमें कई मम्मियां अपने पति परमेश्वरों और अपने बच्चों के साथ अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाने आयी हुई हैं..उनको उपाधि दी गयी है...सुपर मोंम की !

हिंदुस्तानी समाज में माँ का स्थान बहुत ऊंचा और आदरणीय रहा है, हर धर्म में माँ को आदर और सम्मान दिया गया है, अपने आँखों के तारे पुत्र चन्दन का बलिदान देकर स्वामिभक्ति का परिचय देने वाली वीरांगना पन्ना धाय से लेकर आपकी और हमारी माताएं...सभी कहीं न कहीं सुपर मोंम से किसी भी तरह कम नहीं हैं, हमारी यह सभी माताएं अपना कर्तव्य बखूबी निबाहती चली आ रही हैं !

हर व्यक्ति के लिए उसकी माँ ही सबसे बड़ी सुपर मोंम होती है, किस घर में सुपर मोंम नहीं है ? हमारे आस पास और देश में ऐसी लाखों करोड़ों सुपर मोंम होंगी जो अपनी गृहस्थी में मग्न हो कर अपना कर्तव्य पालन कर रही हैं, दूसरी और देखा जाए तो करोड़ों माताएं कामकाजी हैं,  लाखों बड़े बड़े पदों पर आसीन हैं, राजनीति से लेकर सेना और बेंकिंग से लेकर पुलिस और प्रशासनिक सेवाओं तक...सब जगह उन्होंने गृहस्थी और नौकरी में बढ़िया सामंजस्य बैठा रखा है, वो न केवल एक आदर्श माँ , एक आदर्श पत्नी, एक आदर्श बहू, बल्कि एक आदर्श कामकाजी मोंम से किसी भी प्रकार से कम नहीं हैं, न किसी कर्तव्य में पीछे हैं, न ही उनकी प्रतिभा किसी की मोहताज है !

टी.वी. और बाज़ार के अपने फंडे होते हैं, उन्होंने जो सुपर मोम्स पेश की हैं, उनकी प्रतिभा और टी.वी. तथा बाज़ार के समीकरण के अनुसार वो सुपर मोंम हो सकती हैं, मगर असली सुपर मोम्स तो हमारी आपकी माताएं हैं, जो अनेको प्रतिभाओं के होते हुए भी बेलोस ढंग से पारिवारिक कर्तव्यों का निबाह रही हैं...एक माँ, एक बहु, एक पत्नी, अनेक रूपों में अपने घर परिवार को अपने प्यार और संस्कारों से सींच रही हैं..!

टी.वी. और बाज़ार की सुपर मोंम आज पर्दे पर हैं तो कल पर्दे से गायब हो कर भुला दी जाएँगी, मगर आपकी और हमारी सुपर मोम्स और उनके आशीर्वाद, उनके संस्कार सदा हमारे साथ रहेंगे !

हम सब अपनी सुपर मोम्स ( जो किसी टी.वी. या बाज़ार की मोहताज नहीं हैं) को उनकी प्रतिभा उनके नि:स्वार्थ समर्पण, उनके जज्बे, उनके प्यार को सलाम करते हैं,  !!

अपने अपने Disaster Managements ~~~!!


हमारे देश में Disaster Management दो तरह का होता है, एक तो देश - जनता के लिए ..जैसे प्राकृतिक या भोगोलिक विपदा सम्बन्धी ...दूसरा होता है ..राजनैतिक दलों का आंतरिक Disaster Management !

इनमें अंतर यह है कि देश में जब ही कोई प्राकृतिक या भोगौलिक Disaster होता है तो देश का Disaster Management ...Disaster हो जाने के काफी समय बाद हरकत में आता है, जब तक कि अच्छी खासी जानी और माली हानि हो चुकी होती है ! यानी Disaster हो जाने के बाद हरकत में आने वाले मेनेजमेंट को ही Disaster Management कहा जाता है ! शायद यह जानबूझ कर नहीं किया जाता हो, और सम्बंधित एजेंसियों के आपसी तालमेल के कारण ऐसा होता हो !

वही राजनैतिक दलों का आंतरिक Disaster Management ग़ज़ब का होता है, यहाँ किसी भी प्रकार के Disaster या कहिये किसी भी टूट फुट के होने से पहले ही उसकी पूर्व सूचना के भरपूर स्त्रोत होते हैं, और पोलिटिकल पार्टियों में होने वाले किसी भी Disaster को होने से पहले ही रोके जाने के कई उदाहरण सामने हैं...! हाँ कुछ राजनैतिक mutual Disasters सभी की आपसी  सहमती से होने देने के भी कई उदाहरण देखने को मिले हैं..!!
देखने वाली बात यह है कि इन दोनों प्रकार के मेनेजमेन्ट्स की बागडोर राजनेताओं के हाथ में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से होती है, मगर यहाँ अपने अपने Disasters होते हैं...और अपने अपने हितों के अनुसार ही ढीले और त्वरित मेनेजमेन्ट्स किये जाते हैं..!!

(मेरा यहाँ #उत्तराखंड त्रासदी और उसके Disaster Management में कोई मीन मेख निकलने का कोई मकसद नहीं है, { सेना के जांबाज़ और लोगों को बचाने का उनका जूनून सारा देश सगर्व देख रहा है }  बल्कि दोनों प्रकार के मेनेजमेन्ट्स पर एक विचार प्रकट किया है, आशा है पाठक इसे अन्यथा नहीं लेंगे, धन्यवाद ! )

"मोदी गान" से कांग्रेस लाभान्वित ??

वर्तमान में राष्ट्रिय राजनैतिक परिदृश्य में जो अचानक से उठा पटक देखने में आयी है, उसमें प्रमुख है भाजपा द्वारा अपने तथाकथित लोह्पुरुष और भीष्म पितामाह का राजनैतिक वध कर उन्हें हाशिये पर धकेल ...मोदी को अपना चेहरा बना लेना, इसका चरम गोवा में तब देखने को मिला जब मोदी को अडवाणी की अनुपस्थिति में भाजपा के प्रचार अभियान समिति प्रमुख बनाने की घोषणा करना और इसके बाद अडवाणी का इस्तीफ़ा और उसके बाद NDA गठबंधन से JDU का अलग हो जाना !

मोदी को अप्रत्यक्ष रूप से प्रधान मंत्री के लिए आगे किये जाने से न केवल भाजपा में आंतरिक कलह खुल कर सामने आयी है, बल्कि उसके बड़े सहयोगी भी किनारा करने लगे हैं, जबकि प्रत्यक्ष रूप से भाजपा खुल कर भी मोदी को अगले भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर पा रही है, इसके पीछे भी कई कारण हैं...जो समय आने पर सामने आते रहेंगे !

मगर भाजपा के इस मोदी गान से अभी तक देखा जाए तो नुकसान में सिर्फ भाजपा ही रही है, चाहे वो आंतरिक कलह हो, या अडवाणी का इस्तीफ़ा या JDU का 17 साल पुराना गठबंधन टूटना, आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा केवल मोदी के सहारे जीतने की आशा कर रही है, मगर शायद गठबंधन और विखंडित जनादेश के इस दौर भाजपा मोदी के दम पर आगामी लोकसभा चुनावों में बहुमत हासिल कर सके, मुश्किल नज़र आ रहा है, कारण यह कि भाजपा के पास इस समय कोई ज्वलंत मुद्दा नहीं है, भ्रष्टाचार हो या काल धन...दोनों मुद्दे अन्ना/केजरीवाल और बाबा रामदेव ने पहले ही लपक लिए हैं,  राम मंदिर का मुद्दा खुद भाजपा ही उठा कर ठन्डे बसते में डाले बैठी है, अब केवल विकास और विकास पुरुष ही उसके पास एक आसरा हैं...जो कि शायद ही 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता को आकर्षित कर पाए, हाँ यह बात दीगर है कि इस बार राम मंदिर के बजाय मोदी को चेहरा बना कर वोटों का ध्रुवीकरण करने की भाजपा की मंशा हो, मगर राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों और बंटे हुए जनमानस के कारण मोदी फेक्टर समूचे देश में हिलोरें लेने लगे तो यह भी संभव नज़र नहीं आता !

UPA 2 सरकार में हुए घोटालों से आक्रोशित जनता के आक्रोश के दोहन का सुनहरा मौक़ा भाजपा के हाथ से फिसलता नज़र आ रहा है, क्योंकि पीछे देखें तो पाएंगे कि कांग्रेस ने अन्ना/बाबा रामदेव और केजरीवाल के भ्रष्टाचार और काले धन के विरुद्ध लगातार किये गए आन्दोलनो, उपवासों, क्रांतियों के बावजूद उत्तराखंड,  हिमाचल से लेकर कर्णाटक तक सरकारें बनाई हैं,  कांग्रेस द्वारा जीते गए इन राज्यों के चुनाव नतीजे आगामी लोकसभ चुनावों पर प्रभाव डाल पायें या ना डाल पायें ..मगर भाजपा को इससे नसीहत लेने की आवश्यकता ज़रूरी है !

अब जबकि अडवाणी ने इस्तीफ़ा वापस ले लिए है, और इधर JDU से 17 साल पुराना रिश्ता टूट गया है, और नीतीश आने वाले दिनों में निर्दलीय विधायको के समर्थन से पुन: विश्वास मत हासिल कर लेंगे...तो ऐसे में अब भाजपा को फिर से नए सिरे पर नयी रणनीति बनानी होगी..क्योंकि अभी तक ..मोदी को आगे करने का नुकसान केवल और केवल भाजपा को ही हुआ है, रही JDU की बात तो वो किसी नुकसान में नज़र नहीं आ रहा, इधर सबसे ज्यादा लाभान्वित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस हुई है...चाहे वो राष्ट्रिय राजनीति में सिकुड़ती भाजपा हो, या उसकी आंतरिक कलह, या अडवाणी का इस्तीफ़ा या फिर JDU गठबंधन का टूट जाना, कांग्रेस इस नूरा कुश्ती के तमाशे को अपने हित में परिवर्तित करती नज़र आ रही है !

ऐसे में अब 2014 के आगामी लोकसभा चुनावों और उसके जनादेश के लिए किस मुद्दे पर कौनसी पार्टी कैसे समीकरण बैठाती है, किन किन मुद्दों पर चुनाव लडती हैं, जनता की बैचैनी, उसकी उम्मीद और समस्याओं का सकारात्मक निराकरण किस प्रकार करती है, यह देखना है, कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जनता परिवर्तन के लिए वोट देती है, साथ ही चुनावों से राजनैतिक शुद्धिकरण की आशा भी जनता करती है, ऐसे में देश के बड़े राजनैतिक दलों, और सभी के दलों के नेताओं के साथ देश की जनता का भी यह कर्तव्य बनता है कि देश को एक साफ़ सुथरी, प्रगतिशील, विकासोन्मुख और शक्तिशाली सरकार देने की भरपूर कोशिश करें...जय हिन्द !!

देख तेरे फेसबुक की हालत क्या हो गई जुकरबर्ग !!

देश में सोशल साइट्स देखा जाए तो राजनीति का अखाड़ा ज्यादा ...और सोशल कम नज़र आने लगी हैं...इसमें फेसबुक भी शामिल हो गया है...जिस तरह से आज फेसबुक पर विगत कुछ वर्षों में ...क्रिया कलापों में अंतर आया है, उसके सभी पुराने यूज़र साक्षी होंगे, कभी एक समय था जब अधिकांश यूज़र्स आपस में यहाँ एक दूजे से खूब संवाद करते थे, फोटो, वीडियो शेरो शायरी आप बीती जग बीती शेयर करते थे, राजनैतिक गुटुर गूं ना के बराबर ही होती थी ...ना ही कोई ऐसे सम्बंधित ख़ास ग्रुप या पेजेज़ थे !

मगर साल 2011 के आरम्भ होते ही जैसे ही मिस्र में तहरीर चौक क्रांति का आग़ाज़ हुआ...और उस क्रांति में सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका के प्रभाव को ..पूरी दुनिया ने देखा, भारत में भी इस सोशल मिडिया को अपने अपने हितों के लिए साधने की मुहीम प्रारंभ हो गयी, इसका सबसे बड़ा उदाहरण कहा जाए तो वो है अन्ना हजारे टीम द्वारा फेसबुक पर गठित इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) ग्रुप ! जिसने आगे जाकर जनलोकपाल आन्दोलन ...और उसके बाद केजरीवाल और फिर आम आदमी पार्टी को भी जन्म दिया !

इस IAC की नींव रखते ही इसका धुंवा धार प्रचार सोशल मीडिया के साथ धीरे धीरे न्यूज़ चेनलों पर भी होने लगा, तो अन्य दलों, संगठनो के कान भी खड़े हुए...और नतीजा यह निकला कि हर राजनैतिक दल, हर प्रकार के धार्मिक, सामजिक संगठन, NGO's, नेता ..अभिनेता ..सभी इस पर टूट पड़े, और धीरे धीरे यह फेसबुक एक अखाड़े में तब्दील होने लगा, आज यहाँ हर राजनैतिक दल, और उन दलों से जुड़े संगठन...उनके कार्यकर्त्ता अपने अपने दलों के प्रचार के लिए मोजूद हैं !

मगर इसके साथ ही कई अवांछित लोग, संगठन भी यहाँ धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने के लिए कमर कसे बैठे हैं, कई बार सुनने में और देखने में आया है कि कुछ मति भ्रष्ट लोग किसी धर्म के खिलाफ कुछ भी लिख देते है, या कई बार आपत्तिजनक फोटो आदि भी पोस्ट कर देते हैं, जो कि बहुत ही घृणित मानसिकता का धोतक है !

अब फेसबुक पर लोग एक दूसरे को किसी न किसी ऐसे राजनैतिक या धार्मिक ग्रुप में घसीट कर ले ही जाते हैं. फेक प्रोफाइल की भरमार हो चली है, अब यहाँ रोज़ कोई न कोई क्रांति का बिगुल बजाया जाने लगा है, रोज़ किसी आन्दोलन की हुंकार भरी जाती नज़र आने लगी है, ..लगने लगा है कि देश यहीं से चलाया जा रहा है, चुनाव में यही से विजय घोषित होगी ...रोज़ इस आभासी दुनिया में राजनैतिक और धार्मिक विषयों पर जमकर हंगामा और लठैती होती है !

यह सही है कि सूचना क्रांति के इस हाई टेक दौर में सोशल मीडिया के इस नायाब मंच का बहुत बड़ा योगदान है, यदि इसका सदुपयोग ....सार्थक राजनीति, धार्मिक और सामजिक गतिविधियों के लिए किया जाए तो यह बहुत ही प्रभावकारी हो सकता है, परन्तु यदि इसके उलट इसका दुरूपयोग देश हित, देश की संप्रभुता, धार्मिक सद्भावना, सामजिक मूल्यों के विरुद्ध या अराजकता फैलाने के लिए होने लगे तो यह चिंतनीय है !!

BCCI को खेल अधिनियम और RTI के दायरे में लाया जाए !!

IPL 6 में हुए फिक्सिंग काण्ड के बाद से क्रिकेट प्रेमियों में निराशा और दुःख का माहौल बना हुआ है...वही दूसरी और राजस्थान रायल्स के तीन खिलाडियों की गिरफ़्तारी और उसके बाद बिंदु दारा सिंह के साथ BCCI चीफ श्रीनिवासन के दामाद मयप्पन की गिरफ्तारी ने पूरे देश को चौंका ही दिया, साथ ही एक के बाद एक सट्टेबाजों की गिरफ्तारी और उनके तार BCCI के साथ IPL की टीमों और खिलाडियों से जुड़ने के सबूत भी सामने आने लगे हैं, फिर भी छोटी मछलियाँ फंस रही हैं, बड़ी मछलियों पर कोई आंच नहीं आ पायी !

इन सबके बाद BCCI अध्यक्ष श्रीनिवासन पर इस्तीफे का दबाव भी बढ़ गया है, दामाद की गिरफ्तारी के बाद भी श्रीनिवासन अपना इस्तीफ़ा नहीं देने पर अड़े हैं, अब धीरे धीरे राज्य संघों ने भी इस्तीफे के लिए आवाज़ उठानी आरम्भ कर दी है !

मगर केवल श्रीनिवासन के इस्तीफे से ही बात नहीं बनने वाली, BCCI ने आरम्भ से अपने आपको बड़ी चतुराई से किसी भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखा है, जबकि BCCI करोड़ों रुपयों की मनोरंजन कर में छूट सरकार से ही लेती है, इसके अलावा लीज़ पर ज़मीनें, और दूसरी और BCCI  इनकम टेक्स, कस्टम ड्यूटी और अन्य कई प्रकार की छूट सरकार से ही लेती है, और हर छोटे बड़े खेल आयोजन पर सुरक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं की ज़िम्मेदार भी सरकार ही उठाती आयी है !

अब जब कि IPL जैसे आयोजन में ललित मोदी के समय से जमकर लूटा खसोटी, सट्टेबाजी, खिलाडियों का इसमें लिप्त होने जैसी खबरें निकल कर बाहर आयीं हैं, तो भी BCCI हर पिछले काण्ड की तरह लीपा पोती पर उतर आया है, बात यहाँ श्रीनिवासन के इस्तीफे की हो रही थी, मगर केवल इस्तीफ़ा ही पर्याप्त नहीं होगा...BCCI को खेल अधिनियम और RTI के दायरे में भी लाया जाए, बोर्ड में खिलाडियों को ज्यादा तरजीह दी जाए, राजनीतिज्ञों का हस्तक्षेप बिलकुल ख़त्म हो, हर IPL और अन्य आयोजनों में पारदर्शिता लाने के लिए आयोजन से पहले ही सतर्कता कमिटी बनाई जाए, जिसमें गृह मंत्रालय के अफसरों के साथ पूर्व क्रिकेट खिलाडियों के साथ BCCI और खेल मंत्रालय के अफसर भी शामिल हों...ताकि आगे से कोई भी ऐसा काण्ड नहीं हो जिससे भारत की  क्रिकेट का नाम विश्व में बदनाम हो !

और यह तभी संभव हो पायेगा जब BCCI को दिग्गजों, राजनीतिज्ञों, से मुक्त किया जाए, इनकी जगह पूर्व क्रिकेट खिलाडियों को अधिक से अधिक बागडोर सौंपी जाए, फ्रेंचाइज़ी से आने वाले पैसों और जाने वाले पैसों के प्रवाह पर कड़ी नज़र रखी जाए,    ...और इस स्वच्छंद हो चुके BCCI नामक घोड़े को खेल अधिनियम और RTI की लगाम से काबू में किया जा सके !!

आने दो...IPL-7 को भी~~!!


IPL 6 में हुए फिक्सिंग ड्रामे के बाद BCCI की आज हुई बैठक की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बैठक में IPL कमिश्नर राजीव शुक्ला उपस्थित नहीं थे, मीटिंग से जो लब्बो लुबाब निकल कर बाहर आया वो कोई हैरानी वाला नहीं था, क्योंकि BCCI ने हमेशा से ही ऐसे मामलों पर लीपा पोती करने की कोशिश की है, और आगे भी जारी रहेगी, शायद IPL के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी का नाम सभी जानते होंगे, अब वो देश से रफू चक्कर हैं...उनका IPL में किया गया 470 करोड़ रुपए के गबन का मामला भी ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया है !
 
IPL के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी ने 470 करोड़ रुपए का गबन किया था...श्री मोदी के खिलाफ लगाये गये मुख्य आरोपो में मीडिया अधिकारों में 425 करोड़ रुपये का गबन , सुरक्षा मामलों पर 25 करोड़ और निशुल्क प्रसारण के व्यापारिक अधिकारों में 29 करोड़ रुपये का गबन शामिल है। BCCI ने उस समय भी ढुलमुल रवैय्या अपनाया था...क्योंकि उनको पता था कि ललित मोदी ने अगर सच बताना शुरू किया तो कई सफेदपोश चेहरे भी बेनकाब होंगे...कई बड़े नाम सामने आयेंगे...और यही कारण रहा कि ललित मोदी कुछ BCCI और कुछ राजनैतिक ढील के कारण अब तक आज़ाद हैं...अब IPL में हुए इतने बड़े गबन और घोटाले के बाद भी IPL बदस्तूर चालू है...और इस वर्ष IPL 6 में फिर फिक्सिंग का लोचा सामने आ गया है, और इसी फिक्सिंग लोचे से यह बात भी निकल कर बाहर आयी है कि IPL - 5 में भी फिक्सिंग हुई थी !


मगर जैसा कि ललित मोदी मामले में हुआ है...BCCI सहित सभी मुनाफाखोरों ने इस मुद्दे को भी धीरे धीरे ठंडा करने का मन्त्र ढून्ढ ही लिया है...क्योंकि वो बखूबी जानते हैं कि इस क्रिकेटिया नशे को लोगों की नसों में बहुत ही गहराई तक इंजेक्ट किया जा चुका है...जस्टिस काटजू के 90 % भारतियों को मूर्ख कहने से बहुत पहले ही शायद BCCI ने यह सत्य भांप लिया था, इसी लिए उसने क्रिकेट को IPL जैसे उत्पाद में परिवर्तित कर दिया ! इसलिए जब खरीदार सहमत है तो बेचने वाले क्यों पीछे रहें....तो जमकर बेचिए इस क्रिकेटिया नशे को ....और आने दीजिये...IPL - 7 को भी....!!

IPL में चौका, छक्का लगे तो उठिए और नाचिये ...!!

आजकल टी वी पर IPL के लिए किया गया फरहा खान का एक विज्ञापन बहुत दिखाया जा रहा है, जिसमें वो किसी के भी घर, दफ्तर, कमरे में बेन्ड बाजे के साथ घुसकर ...वहां मोजूद बन्दों को आदेश देती नज़र आती है...वो फरमाती है..." IPL में जब भी चौका या छक्का लगे...तो ऐसे नाचने का " ..फिर उनके साथ आया बेन्ड धुन बजाता है... जिसे विशाल शेखर ने कम्पोज़ किया ....जिसे खुद फरहा खान ने कोरियोग्राफ किया ...और फरहा खान अपना भौंडा सिग्नेचर नाच शुरू करती है..."दिल जम्पक जम्पक जंपिंग जपांग ..गीली गीली ".. फिर इसके बाद वो सामने वाले बन्दों को आदेश देती हैं कि शुरू हो जाओ...बेचारे ...फरहा खान के आदेश के बाद वो भी उस भौंडे नाच की बेहूदा नक़ल करते हैं....जब लोगों के वाहियात ठुमके पूरे हो जाते हैं ...तो फिर फरहा खान...उनको डांट कर कहती हैं...ढंग से कर....फिर सामने वाले लोग बेचारे..उस बेहूदा नाच और धुन पर ठुमकते नज़र आते हैं, बाद में जाते जाते फरहा खान एक और आदेश दे कर जाती हैं..." सिर्फ देखने का नहीं ..और रही सही कसर आँख मार कर पूरी कर जाती हैं !

राष्ट्रिय खेल की वाट लगाने हाकी तथा देश के परंपरागत खेलों को निगलने वाले और देशप्रेम की चाशनी में डूबे हुए इस बिकते हुए खेल क्रिकेट को जमकर बेचा जा रहा है, खिलाड़ियों की बोलियाँ लग रही हैं...तो सब कुछ जायज़ है भाई ... यानी कुल मिलाकर अब यदि आप इस क्रिकेटिया नशे के आदी हैं, और घर पर IPL देखना चाहते हैं...तो याद रखिये...सिर्फ देखने का नहीं...हर चौके और छक्के पर उठिए ...साथ वालों को भी उठाइये...और नाचिये...और साथ में गाइये भी..." दिल जम्पक जम्पक जंपिंग जपांग ..गीली गीली ." .....आखिर क्रिकेटिया लत जो है...और उस पर तुर्रा यह कि फरहा खान का आदेश है, और सबसे बड़ी बात ...IPL जो है भाई !!

सोशल मीडिया पर देश खतरे में जो है ~~~~!!

फेसबुक पर वो भी क्या दिन थे ..जब यहाँ किसी प्रकार का कोई राजनैतिक ग्रुप नहीं था...सभी यूज़र आपस में हंसी ठिठोली करते थे, शेरो शायरी करते थे, फोटो शेयर करते थे, एक दूसरे से सुख दुःख बांटते थे, जमकर जश्न होता था...बुरा हो इस IAC ग्रुप का...जिसने यहाँ क़दम रखा...और इसके बाद तो जैसे होड़ लग गयी, पे-दर-पे ...एक के बाद एक ग्रुप और पेज खुलने शुरू हुए ...तो अभी तक पान बीडी के खोमचों की तरह रोज़ ही एक दो खुलते ही रहते हैं,  देशभक्ति का बुखार सा चढ़ आया.....शरीर देशभक्ति से तपने लगे हैं...अब रोज़ यहाँ जोशीले नारे लगते हैं !

आन लाइन होते ही यहाँ रोज़ सैंकड़ों डिजिटल क्रांतिकारी पैदा होते हैं, और लोग आउट करते ही गायब हो जाते हैं, अब फेसबुक पर किसी भी यूज़र को इधर उधर नहीं देखने दिया जा रहा, ना ही कुछ ज्यादा सोचने दिया जा रहा है, ..देश खतरे में जो है...हर यूज़र अपने मित्र को किसी भी राजनैतिक ग्रुप में घसीट लाता है, और उस से जय कारे लगवाता है...रोज़ इस डिजिटल दुनिया में ...जिसमें फेसबुक के साथ ट्वीटर भी शामिल है...पर लाखों यूज़र ...और अलग अलग ग्रुप के सदस्य और राजनैतिक दलों के समर्थक ....आमने सामने होते हैं...जमकर लठैती होती है...दलों और नेताओं के समर्थकों में कुश्ती कबड्डी होना रोज़ की बात है..सोशल साइट्स एक अखाड़े में तब्दील हो गया है....देश खतरे में जो है...ज़रा भी चूके ...कि देश का बंटा धार ...इसी लिए...लगे रहिये...देश फेसबुक - ट्वीटर से ही तो चल रहा है....झूझिये देश को बचाने के लिए ..क्रान्ति... बस होने ही वाली है....चूकिएगा नहीं....देश खतरे में जो है...!!

रिश्ते नाते वेंटिलेटर पर, जज़्बात कोमा में ~~!!


इक्कीसवीं सदी और वैश्वीकरण के इस दौर में हमें हर ओर प्रगति और उन्नति देखने को मिल रही है, चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो, ज़बरदस्त दौड़ जारी है, मगर भौतिकतावाद के इस दौर में जहां शारीरिक सुख बढ़े हैं, वहीं लोगों का व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन तनावग्रस्त भी हुआ है, साथ ही पारिवारिक संबंधो की जटिलताएं भी बढ़ी हैं !
 
इसका मूल कारण है कि संबंधों को नापने तौलने का पैमाना बदल गया है, पैसा, ओहदा, समाज में रसूख, बंगला, गाडी और राजनैतिक पहुँच जैसे कई नए पैमाने बन चुके हैं, इनमें सबसे प्रमुख है "पैसा", हर रिश्ते को सबसे पहले पैसे का चश्मा लगा कर देखा परखा जाने लगा है, नए दौर में पैसों के भगवान जैसा बन जाने की वजह से रिश्तों की गर्माहट अब पहले जैसी नहीं रही, पैसों की खनक हो तो आपके रिश्ते भी औरों के साथ  खनकदार होंगे,  आपकी जेब गरम है तो रिश्ते और जज़्बात भी गर्माहट भरे होंगे, बाक़ी  रिश्ते तो सिर्फ दिखाने के लिए होते हैं, और सिर्फ घसीटे ही जाते हैं !

 आगे निकलने की अंधी दौड़, शान-ओ-शौकत, दिखावे की होड़ की वजह से  टूटते-बिखरते पारिवारिक रिश्तों की कई कहानियां अपने आस पास ही देखने सुनने को मिलती है, परिवारों में क्लेश, टूटते बिखरते परिवार, कहीं पति पत्नी में अनबन है, तो कहीं भाई भाई में, तो कहीं माता पिता द्वारा ही औलादों के साथ पैसों, रसूख और ओहदों के कारण भेदभाव !

हाल ही में हुआ पोंटी चड्ढा हत्याकांड इस गिरते, मरते, और घिसटते  पारिवारिक मूल्यों का सटीक उदाहरण है, सोचकर बहुत हैरानी होती है कि आज के दौर में पैसा खून के रिश्तों से ज्यादा ताकतवर हो गया है !

 यह एक कडवी सच्चाई है कि रिश्तों की नि:स्वार्थ गर्माहट एक तरह से गायब होती चली जा रही है, आपसी प्यार और लगाव को तरसते लोगों को परिवारों में देखा जा सकता है, भौतिकतावाद की  बलि चढ़ते इन रिश्ते नातों और जज्बातों के कारण पारिवारिक विखंडन बढ़ने लगा है, खून के रिश्ते भी किताबी से नज़र आने लगे हैं, नैतिक  पतन के साथ पारिवारिक मूल्यों का निरंतर पतन जारी है.....और इसके रुकने के कोई आसार नज़र भी नहीं आ रहे हैं...लग रहा है जैसे पारिवारिक मूल्य आई सी यू में हों,  रिश्ते नाते वेंटिलेटर पर हों, और जज़्बात कोमा में चले गए हों...शायद इसी से आहत होकर शायर दिनेश रघुवंशी जी ने यह अशआर कहे होंगे....>
 
मिलते हैं पर मिल के बात नहीं करते,
करते हैं तो दिल से बात नहीं करते !

ख़ुद से ही बतियाता रहता है अक्सर,
उसके अपने उससे बात नहीं करते !

पैसा, पैसा, पैसा, करने वाले सुन,
इंसानों से पैसे बात नहीं करते~~!!