बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

मैं तो चला बाबा बनने~~~~~!!


दोस्तों कई दिनों से मन ललचा सा रहा है...सोच के घोड़े लगातार दौड़ लगा रहे हैं...मन में वैराग सा पैदा हो रहा है...मगर यह वैराग जीवन से नहीं ...अपनी बेंक स्टेटमेंट स्लिप से है....बचत खाते में .कोने में दुबके पड़े कुछ हज़ार रुपयों की चीखों से उपजा है  ....देश में सोचा  जाए तो पढ़ लिख कर आदमी या तो दस बीस हज़ार की सरकारी नौकरी कर पाता है...या किसी अमीर के घर जन्म लिया हो तो डाक्टर..इंजिनीयर ..सोफ्ट वेयर कंसल्टेंट..आदि बनने का पूरा जुगाड़ होता  है...परन्तु इन को भी किसी न किसी के अधीन तो काम करना ही होता है...सर पर कोई आला अधिकारी डंडा लिए खड़ा ही होता है...और दूसरे ...देखा जाए तो धंधा या बिजनेस करने के लिए तगड़ा रोकड़ा अंटी में होना चाहिए....उसके बाद भी धंधा चल निकलने की कोई फुल गारंटी नहीं है...इन्वेस्ट करने के बाद भी घाटे का डर सताता ही रहता है ! तो बात हो रही थी मन ललचाने की... सोच के घोड़ों की दौड़ की...बात यह हुई कि जीवन की आपा धापी और दस बीस हज़ार की नौकरी के बाद भी आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैय्या वाली कहावत एक कान से होकर दूसरे से रोज़ निकल रही थी...कि एक दिन टी.वी. पर व्यस्त टाइम स्लोट में एक न्यूज़ चेनल पर देखा कि एक सज्जन विशाल कुर्सी पर बैठ कर पढ़े लिखे लोगों को हाथ उठा उठा कर आशीर्वाद दे रहे थे... कुछ देर देखने और सुनने  पर पाता चला कि यह सज्जन तो एक बाबा हैं....नाम है निर्मल बाबा....और यह उनका दरबार है....और मज़े की बात यह थी कि इस दरबार का नाम भी निर्मल दरबार था...दरबार में उपस्थित प्रजा हज़ारों में थी...सब पढ़े लिखे और खाते पीते घरों के लग रहे थे...आधे घंटे में मुझे सारा गणित समझ आ गया...!

गूगल बाबा से सलाह ली तो पाता चला कि यह निर्मल बाबा प्रति प्रजा 2000/- रूपये लेते हैं...तभी दरबार में प्रवेश मिलता है...सोच के घोड़े अपनी लगाम तुडवाने लगे...मन कुलांटे मारने लगा...कहाँ दस बीस हज़ार की नौकरी...और कहाँ इन बाबा का अपार व्यापार...कोई जीवन जीने की कला सिखा कर करोड़ों कमा रहे हैं...कोई योग ...कोई भोग...कोई तावीज़, कोई भभूत  कोई गण्डा करके धन कुबेर बन बैठे हैं...और तो और देश में और समाज में रुतबा बढ़ा सो अलग......पहले तो नेतागिरी में लोग पिट पिटा कर भी जाने को तैयार हो जाते थे...मगर अब यह बाबा गिरी का धंधा इतना ज़बरदस्त चमका है कि नेता भी इनके चरणों में नज़र आने लगे हैं.... बस तय कर लिया कि अब और अपना जीवन व्यर्थ नहीं होने दूंगा....जल्दी ही बाबा गिरी का धंधा पकड़ना होगा.... ना किसी की चाकरी ...ना ही कोई बोस न कोई अफसर...ना बिजनेस में घाटे का लोचा..वर्तमान समय में बाबागिरी से अच्छा कोई धंधा नहीं है,
.खूब फल फूल रहा है... इसके कई फायदे हैं,  सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि इसमें आपको कोई निवेश  नहीं करना है, मतलब यह व्यवसाय बिना पैसों के शुरू किया जा सकता है...न किसी डिग्री की ज़रुरत न किसी शारीरिक मापदंड की ..बस शर्त यही है कि आपकी ज़बान केंची की तरह चलनी चाहिए...मस्तिष्क उससे भी तेज़...कुछ हाथ की सफाई के करतब भी आते हों तो सोने पे सुहागा  !

शुरू में दस बीस किराए भाड़े के चेले और चेलियाँ साथ में लेना होगा...कुछ दिन इधर उधर गाँव में तम्बू लगा कर प्रवचन...जीवन ज्ञान...संस्कारों पर दो चार भाषण...और काम शुरू...हर गाँव में एक एक कमीशन एजेंट रखना होगा...जो कि आये दिन इश्तिहार छपवा कर ...प्रचार प्रसार करता रहे...और बार बार तम्बू लगवाकर चढ़ावे का इंतज़ाम करता रहे...हर गाँव और शहर में कुछ धनी भक्तों का जुगाड़ हुआ...दो चार छुट भैय्ये नेता तम्बू प्रवचन अटेंड कर गए तो समझो....अपन तर गए...कुछ दिन बाद शहर में आश्रम का जुगाड़ हो जाएगा...एक कुटिया...छोटी सी बगीची दो चार लाल पीले झंडे...कुछ अगर बत्तियां...एक लाउड स्पीकर...सुबह शाम प्रवचन...धंधा शुरू...बन गए अपन भी गुरु...!  बीते कुछ वर्षों से देखा गया है कि मंदिरों और बाबाओं को अपार चढ़ावा मिला है...किसी भी बाबा का जब भी कही पैसा कौड़ी के बारे में ज़िक्र आता है...तो 400 या 500 करोड़ से नीचे की तो बात ही नहीं होती....एक बाबा हैं बाबा खालिद बंगाली...सुना है उनके मोबाइल का बिल लाख रूपये प्रतिमाह से कम नहीं आता...बाप रे...किसी के पास राल्स रायस गाड़ियों का काफिला निकलता है...तो किसी के पास अरबों का सोना...साथ में आश्रम और आश्रम की भूमि अलग...किसी के पास राष्ट्र पति तक शीश झुकाने जाते हैं....तो किसी के पास प्रधान मंत्री ..से लेकर टाटा और अम्बानी .और फरहा खान, आमिर खान .शिल्पा शेट्टी ..तक....!


तो फिर लानत है दस बीस हज़ार की नौकरी को.....और धंधे पानी को...बाबागिरी जिंदाबाद...जब भेड़ों जैसी मानसिकता के भक्तो गण अपनी खून पसीने की कमाई बाबाओं पर लुटा रहे हों...तो अपुन क्यों स्टेंड बाई मोड़ में रहें... हींग लगे न फिटकरी ...रंग चोखा ...अब मैं तो चला बाबा बनने.... नाम भी रख लिया है....बाबा असमंजस दास...कोई रोके नहीं ...कोई टोके नहीं.....!!

सेक्यूलर कीड़ों का इमोशनल लोचा~~~!!


देश में कुछ  मज़हबी ठेकेदार और धार्मिक दुकानदार  बहुत ही परेशान और चिंतित चल रहे हैं...उनको एक प्रजाति बहुत ही परेशान कर रही है..और इनका धंधा ही चौपट कर डाला है...इन धार्मिक  दुकानदारों ने उस प्रजाति को बड़ा ही अजीब  नाम दिया है..." सेक्युलर कीड़े "...जी हाँ सही सुना...ऐसी धार्मिक दुकानों से सम्बन्ध रखने वाले काफी दुकानदार/ग्राहक और इन्टरनेट पर प्रायोजित ग्रुपों में विज़िट करने वाले  इस शब्द से भली भाँती परिचित होंगे....क्योंकि फासीवादी प्रजाति के लोग इन्टरनेट पर इस नाम को भली भाँती प्रयोग कर रहे हैं.... अब इस नाम के पीछे क्या लोजिक है...यह वही बता सकते हैं..मगर सभी धर्मों में पाए जाने वाले  इन सेक्युलर कीड़ों की वजह से इन दुकानदारों का धंधा चौपट हुआ जा रहा है...यह दुकानदार भी हर धर्म और विचार धारा के हैं..और काफी समय से सभी धर्मो के इन सेक्युलर कीड़ों के लिए एंटी डोज़ ढूँढने रहे हैं...इनके इमोशनल लोचे की काट ढूंढ रहे हैं...मगर कामयाब नहीं हो पा रहे हैं.....एक बार की घटना है एक ऐसा ही सेक्यूलर जीव अपने पड़ोसियों के साथ होली मना रहा था...रंगों से उसका चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था...उसकी बेगम कौतूहल से उस भीड़ में अपने शौहर को तलाश कर रही थी...उसके बच्चे पिचकारी लिए रंगों की बौछार करते दूसरे बच्चों के साथ होली का मज़ा ले रहे थे...मैंने पूछा कि भाई ..यह तो तुम्हारा त्यौहार नहीं है...तुम्हारे धर्म में तो शायद मनाही होगी..?.उसने चेहरे का रंग साफ़ करके मुझे देखा ...और ठहाका मार कर हंस दिया...बोला ..मियाँ जाओ किसी और को उपदेश दो... हमारे पडोसी सुबह होते ही...कुण्डी बजा कर बुला लेते हैं...हमारे पुरखे सालों से इस  त्यौहार के रंग में रंगते चले आये हैं...तो वही कीटाणु हमारे में भी हैं..हम भी हमारे साथियों के साथ इस त्यौहार को मना कर आपस में खुश हो रहे ...आपको क्यों तकलीफ हो रही है...? मुझसे जवाब न बन सका ...मैं आवाक सा मूंह खोले उस सेक्यूलर जीव की बेबाक भावना और जज्बे को देखता ...उलटे क़दम...वापस लौट गया..!

कुछ दिन बाद   ईद के त्यौहार पर मेरे पडोसी को सज धज कर परिवार सहित खान साहब के घर जाते देखा तो ...कुछ अचरज हुआ..मैंने उस सेक्यूलर जीव से पूछ ही डाला ...कि आज आप उनके घर क्या करने जा रहे हैं...उस सेक्यूलर जीव ने मुझे तुच्छ नज़रों से देखा  ..और बोला...क्या तुम्हें मालूम नहीं...आज ईद है...मैंने कहा..तभी तो पूछ रहा हूँ....उसने कहा...तो फिर परेशानी क्या है...? मैंने कहा...यह आपका त्यौहार तो नहीं है...फिर...? उस सेक्यूलर जीव ने कहा...भाई...हम हर ईद पर इनके घर बुलाये जाते हैं...और सेवइयां खाने जाते हैं...पूरा साल हम सब को इस त्यौहार का इंतज़ार रहता है...कि खान साहब के घर की सेवैय्याँ खाएं...बरसों से हम पड़ोसियों में यह परंपरा चली आ रही है...और हाँ...यदि बकरा ईद होती है...तो भी खान साहब...हमारे लिए..अलग से वेज खाने और सेवइयां ज़रूर बनाते हैं,  मैं हैरान सा अपना मूंह लिए खड़ा रहा...और वो परिवार सहित खान साहब के घर की और चल दिए..!  फिर एक दिन दोनों प्रकार के सेक्यूलर जीव मेरे घर आ बैठे....चाय पान करते हुए...बोले आप इस शहर में नए आये हो...कुछ दिन से परेशान से लग रहे हैं....वैसे हम आपके सवालों से  समझ गए कि आप क्यों परेशान हैं...वे बोले..देखिये..हम एक दूसरे के त्योहारों में उत्साह और प्रेम से भाग लेते हैं, ..सुख दुःख में एक दूसरे के काम आते हैं..पहले हम इंसान हैं...बाद में हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई...हमारी संस्कृति अनेकता में एकता की रही है...यही साझा सांस्कृति और एकता देश को अभी तक बांधे हुए है...साम्प्रदायिक एकता और साझा संस्कृति ही हमारे देश की शक्ति है.....वास्तव में साझा संस्कृति के अनेक महत्वपूर्ण तत्व आज भी जिंदा हैं और जब तक सभ्यता रहेगी तब तक जिंदा रहेंगे।  फिर वो बोले कि आप  कभी स्कूल में जाकर देखिये ... जब बच्चों का लंच होता है...उस समय सब बच्चे अपने टिफन खोल कर साथ बैठते हैं...और एक साथ मिलकर एक दूसरे के टिफन से खाना बाँट कर खाते हैं...उस समय ना कोई.....हिन्दू होता है, मुसलमान, न सिख, न इसाई, न पिछड़ी जाति और ना ही अगड़ी जाति...उस समय सब हिन्दुस्तानी बच्चे होते हैं...ऐसा लगता है...जैसे धीरे धीरे ..सफ़ेद, हरा, केसरिया, पीला, नीला, लाल...सब रंग मिल कर एक इन्द्रधनुष का रूप ले रहे हों...वो इन्द्रधनुष जो कि एकता और शांति का ..अनेकता में एकता का प्रतीक है...और यही हमारी पहचान भी है....... आप और हम मिल कर ही इस सतरंगी इन्द्रधनुष रुपी देश की रचना करते हैं...और इसको सुन्दर बनाते हैं...फिर उन  सेक्यूलर जीवों ने मुझे यह रचना सुनाई :--

लोग अपने अपने को अलग छांट रहें हैं..
मज़बह के नाम पर इंसानों को बांट रहे हैं,

ज़रा इनकी नादानी पर तो ग़ौर कीजिये जनाब..
ये जिस शाख़ पर बैठे है उसे ही काट रहे हैं,,,।।

मैं उनकी बात सुनकर निरुत्तर हो गया...मुझे अब  इन सेक्युलर कीड़ों के इमोशनल लोचे  का पता चल गया....इनकी रगों में इनके विचारों में .. इस देश की साझा सांस्कृति, सौहार्द, सद्भावना, शान्ति, एकता और इंसानियत का टानिक दौड़ रहा है..और इसी लिए किसी भी मज़हबी दुकानदार का कोई भी एंटी डोज़ इन तथाकथित सेक्यूलर कीड़ों पर असर नहीं कर पा रहा ......और शायद आगे भी यह बिलकुल ही बे-असर ही साबित हो...!!

माँ बाप दोराहे पर~~~~बच्चे चौराहे पर~~~!!


आज के दौर में जब भी अपने चारों और नज़र डालता हूँ तो अपने अनजाने future की तरफ  बेतहाशा भागते हुए मशीनी  बच्चों और नौजवानों को देख कर अजीब सा महसूस होता है,  competition के इस दौर में बच्चे एक robot की तरह से नज़र आने लगे हैं, जो की एक मकसद के लिए ही program किये गए हैं, बड़ी से बड़ी post हासिल करना और बड़ी से बड़ी डिग्री हासिल करना, और इन सब के बीच एक चीज़ लगातार ग़ायब होती जा रही है और वो है उनके संस्कार, और social values के बारे में जानकारी!  जो तहज़ीब और values हमारे बुजुर्गों में थी और लगभग हमारी पीढ़ी तक आने के बाद अब शायद एक बड़ा  gap सा आ गया है,  और इस gap को बढ़ने में कहीं न कहीं एक माँ बाप के रूप में हम भी इसके कुसूरवार हैं, क्योंकि जो तहज़ीब, संस्कार और social values हमें अपने बुजुर्गों से विरासत में मिली थी हम उनको आगे बढाने में नाकाम होते जा रहे हैं, और इसकी वजह साफ़ तौर पर इस भागम भाग और मार काट वाली प्रतियोगिता ही है !

बचपन में परिवारों में बुज़ुर्ग और माँ बाप अपने बच्चों को motivational stories सुनाते थे, बच्चों को अच्छी अच्छी कहानियां और किस्से सुना कर उसमें संस्कार और समझ भरी जाती थी, परिवार से ही उसको काफी बुनियादी बातें और उंच नीच , झूठ और सच, अल्लाह और इश्वर, सबके बारे में किस्से और कहानियों और बातों के ज़रिये, धार्मिक किताबों के ज़रिये ...अच्छी तरह से समझा दिया जाता था, मगर अब यह सब बातें एक black & White फिल्म की तरह से ख़त्म हो सी गयी हैं, इसके लिए देखा जाए तो बदलते हुए दौर, मारा मारी, busy life , कठिन मुकाबला और भी कई बातें ज़िम्मेदार हैं...आज जहाँ nuclear family का दौर चल निकला है, जहाँ माँ बाप और दो बच्चों को ही एक परिवार कहा जाता है, संयुक्त परिवार गायब होते जा रहे हैं, और इसके साथ ही बुजुर्गों की जगह भी ऐसे परिवारों से गायब होती जा रही है, ऐसे Nuclear families में जहाँ माता पिता दोनों ही नौकरी करते हों, और बच्चे घर के नौकरों के हवाले हों, वहां कौन इन नन्हे मुन्नों को यह सारी शिक्षा, संस्कार, तहज़ीब, और social values के बारे में बताये...? और फिर दूसरी बात आजकल के इस दौर में हर आदमी मशीनी हो गया है, हर काम एक सोचे समझे प्रोग्राम के तहत होता है, यहाँ तक की बच्चा भी ...और फिर उसको पैदा होने के बाद कौनसे स्कूल में  registration कराना है, और फिर स्कूल के बाद कौनसे कालेज में, और फिर कितना donation दे कर क्या बनाना है, यह सब उसके पैदा होने से पहले ही program कर लिया जाता है, या पैदा होते ही तय हो जाता है, यानि बच्चा एक computerized रोबोट हो गया, उसकी पूरी लाइफ का प्रोग्राम बना कर उसको उसी software के हिसाब से टाइम टेबल में फिट कर दिया जाता है, और फिर यह मशीनी बच्चा दिन भर एक मशीन की तरह सुबह उठ कर, टिफन लेकर स्कूल, फिर tuition , फिर yoga क्लास, फिर swimming , फिर जुडो क्लास, फिर घर आकर होम वर्क, और फिर थक कर सो जाना....!

माता पिता बच्चे से चाह कर भी फुर्सत से बैठ कर बात नहीं कर सकते क्योंकि वैसे तो खुद उनके पास ही वक़्त नहीं है, और अगर है...तो फिर बच्चों के पास नहीं है, क्योंकि अगर बच्चों को वक़्त मिलता है तो उसके लिए मनोरंजन के इतने साधन हैं कि वो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होगा...हमारे समय में बुज़ुर्ग फुर्सत के वक़्त हमें अपनी ज़िन्दगी का निचोड़ और अच्छी अच्छी बातें बताते थे, पढने को अच्छी अच्छी किताबें और कामिक्स हुआ करती थीं, मगर आज के बच्चों के पास मनोरंजन के  लिए कंप्यूटर game हैं, इन्टरनेट है, विडिओ गेम हैं, मोबाइल है, और उसकी दुनिया भी यही है...!

अब ऐसे बच्चों को कैसे किसी अच्छी और बुरी बात के बारे में या संस्कार और social values के बारे में तरीके से बताया जाए, यह लोग अपनी विरासत से दूर होते जा रहे हैं, अच्छा क्या है, बुरा क्या है,  समझने का वक़्त नहीं है, और अगर वक़्त कभी निकल भी आये तो माता पिता के पास वक़्त नहीं होता, जबकि हर माता पिता यही चाहता है कि वो अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाये और उसको हर अच्छी बुरी बातों से   परिचित कराया जाए, मगर इस competition भरे  दौर की मारा मारी में सब ख्याल कहीं दब कर रह जाते हैं, माता पिता अपने नौकरी और घर के बीच balance बनाते बनाते एक pendulum कि तरह हो रहे हैं, और बच्चे अपने आप को इस दौर के लायक बनाने के लिए पढ़ाई, इन्टरनेट, coaching , Jim ,  योगा की क्लास  के गोल गोल पहिये में घूम रहा है, एक चमकीले future और अच्छी  नौकरी, और एक बेहतरीन ज़िन्दगी के लिए लगातार हर दिशा में दौड़ लगा रहा है..और इस भाग दौड़, competition , और आपा धापी में इनका नन्हा बचपन कही कुचल कर रह गया है...!

इस दौर की इस त्रासदी को मैं तो यही कह सकता हूँ कि ....माँ बाप दोराहे पर~~~~~और ~~~बच्चे चौराहे पर~~~~~!!

एक पत्र आदरणीय श्री विजय सिंह जी पालीवाल जी और IAC के नाम के नाम~~~~!!



विजय सिंह जी नमस्कार...आपसे बात किये काफी समय हो चुका है, फेसबुक पर भी और फेसबुक से बाहर भी...मुझे मालूम है..आपको बहुत कुछ बुरा लगा होगा...मैं दो तीन दिन से आपको लिखने का सोच रहा था....25 मार्च' 2012 के आपको IAC वाले कार्र्यक्रम में मैं नहीं आ सकूंगा...इसका मुझे बहुत ही अफ़सोस है...मगर मेरी दुआएं और शुभकामनाएं आपके साथ है....आप एक नेक इंसान हैं...मेरे लिए आप आदरणीय हैं...और एक नेक मकसद के लिए कोटा शहर में अलख जगाये हैं...मैंने आपका dedication देखा है...महसूस किया है....मैं चाहता हूँ कि आप जिस नेक मकसद के लिए लड़ रहे हैं...आपको उसमें सफलता मिले ...और उम्मीद भी है कि आपकी मेहनत रंग लाएगी...!

रही मेरी बात तो विजय सिंह जी...मैं भी टूट कर कभी अन्ना आन्दोलन के साथ जुड़ा था...खूब जोर शोर से फेसबुक और ब्लॉग में इस के समर्थन में लड़ाई लड़ी थी...मगर अब जैसा कि मैंने पहले भी आपसे कहा था...इस आन्दोलन में बहुत कुछ ऐसा शामिल हो गया कि काफी लोगों का मोह भंग हो गया है...जैसा कि लोगों का बहुमत था...और भविष्य वाणी भी थी ...कि अन्ना ने साम्प्रदायिक और चरमपंथी शक्तियों से हाथ मिलायेंगे ...आखिर मिला ही लिए...जैसे कि मुझे भी आशंका थी.....बाबा रामदेव के बारे में कौन नहीं जानता...उनके एजेंडे को कौन नहीं जानता...बाबा ने सुब्रमनियम स्वामी के साथ सांठ गाँठ कर के चरमपंथी एजेंडे को अमलीजामा पहनाने का पूरा इंतज़ाम कर रखा है...इन्टरनेट पर सब मोजूद है...ऐसे में अब अन्ना के आन्दोलन में ऐसे लोगों ...और उनके समर्थकों कि उपस्थिति बहुत ही खतरनाक संकेत है....और मेरे विचार और विचारधारा इसकी इजाज़त नहीं देती कि अब मैं इस स्तर पर आ चुके अन्ना जी के आन्दोलन के साथ रहूँ...इसका मुझे काफी पहले से अंदेशा था...इसी लिए मैंने दूरी बना ली थी, और अब मुझे लग रहा है कि मुखे ठगा गया है...मेरे जज्बातों को भुनाया गया है...धोखा दिया गया है...मैं ही नहीं देश के ना जाने मेरे जैसे कितने लोग होंगे ...जिनको यह महसूस हो रहा होगा.....और यही कारण है कि...अब मैं इस आन्दोलन की असलियत बताने वाले लोगों की कतार में शामिल हो गया हूँ...भले ही दिल में अफ़सोस रहा हो.!

विजय सिंह जी...मेरी इन सब बातों से और फेसबुक पर मेरी पोस्ट से आपको दुःख तो हुआ होगा....मैं इन सब बातों के लिए आप से क्षमा प्रार्थी हूँ....अपने अपने विचार हैं...विचारधाराएँ हैं...मगर हम एक दूसर से दिल से जुड़े हैं..... मेरी और से किसी बात से आपका दिल दुख हो तो यह छोटा भाई आपसे माफ़ी चाहता है....भले ही मैं अन्ना आन्दोलन से दूर हो गया हूँ...मगर मुझे उम्मीद है कि आप के दिल से दूर नहीं जा सकता....!

अदूरदर्शी निर्णयों की सूली पर काँग्रेस की विश्विस्नीयता~~~!!


हमारा आज देश एकाधिक समस्याओं से जूझ रहा है। देश की सत्ताधारी सरकार आज  विपक्ष और अन्य सहयोगी दलों  के प्रहारों से लहूलुहान है। अनेक प्रकार की विसंगतियां सरकार के अंतर्विरोधी और अदूरदर्शी निर्णयों के कारण पैदा हो गयी हैं। सरकार की उलझाने न बढ़ती जा रहीं हैं. सरकार अपनी ही कुछ अदूरदर्शी निर्णयों और नीतियों के जाल में फंसती जा रही है. प्रतिपक्ष भी अपनी आवाज अनेक मुद्दों पर बुलंद कर रहा है जो कि संसद की सामान्य कार्यवाही में बाधक बन रहा है। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने की राजनीति में उलझाते जा रहेहैं। सरकार के द्वारा प्रतिपादित अनेक मुद्दे इधर विवादास्पद हो गए हैं, जिन पर प्रतिपक्ष जनता की आम राय के अनुकूल सदन में ( संसद में ) सरकार की नीतियों का विरोध कर रहा है। केंद्र सरकार के एक के बाद एक लिए गए तरफ़ा निर्णयों से गठबंधन सरकार के सहयोगी दलों की नाराजगी बढ़ गयी है....और अब तो लगातार बढती ही जा रही है...कारण यही रहा कि सहयोगी दलों को विश्वास में नहीं लिया गया......एक तरफ़ा निर्णय लिया गया....परिणिती हुई ..फैसला वापस लेने की... विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के मामले में सरकार को अपना फैसला टालना पडा है, देश में इस नीति के प्रति मिली जुली प्रतिक्रया दिखाई पड़ी। इसके बाद पांच राज्यों के चुनावों के नतीजो से हैरान कांग्रेस ने अपनी झोली में आये उत्तराखंड राज्य पर अदूरदर्शी निर्णय लेकर बवाल खड़ा कर दिया...जो कि अब तक जारी है...पैराशूट मुख्यमंत्री बहुगुणा को बना कर ..हरीश रावत समर्थकों से नाराजगी ही मोल नहीं ली...बल्कि भाजपा के लिए " अभी भी चांस है " वाली स्थिति पैदा कर दी है...!

अदूरदर्शी निर्णय लेना यहीं नहीं रुका...NCTC पर सहयोगी दलों, के साथ राज्यों को भी विश्वास में नहीं लिया गया...निर्णय से पहले सलाह मशविरा ज़रूरी होता है...विशेष कर जब कि...सरकार गठबंधन की हो....बात यहीं नहीं रुकी....इसमें एक और प्रहसन और जुड़ गया...रेल बजट का....इसमें रेल मंत्री की तो बलि हो ही गयी.....सरकार की भी तगड़ी फजीहत हुई है....इन सब के पीछे एक ही कारण है...और वो है....निर्णय क्षमता की कमी...और अदूरदर्शी निर्णय..! इन सब फजीहतों के पीछे देखा जाए तो कांग्रेस का घमंड ही कहा जाए कि उसने न तो FDI न ही NTSC और ना ही रेल बजट पर लचीला रुख अपनाया बल्कि सहयोगी दलों को भी तुच्छ समझा...इसका बदला सहयोगी दलों के साथ गैर कांग्रेसी राज्यों ने जम कर लिया...और नतीजा निकला कि ...सरकार की विश्वसनीयता पर देश में प्रश्न चिन्ह लग गया....जो कि एक गंभीर बात है...यदि आगे भी ऐसे अदूरदर्शी निर्णय होते रहे तो दूर नहीं जब कि देश मध्यावधि चुनाव में झोंक दिया जाए...जिसके लिए विपक्षी दल भाजपा  को ही नहीं....अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को भी  बेचैनी से इंतज़ार है...और जहाँ तक यूं पी के जनादेश से निकली आवाज़ को सुना जाए तो कोई भी बड़ा राष्ट्रिय दल अभी इस हालत में नहीं है...कि बहुमत से सरकार बना ले....हाँ तीसरा मोर्चा ज़रूर अंगडाइयां ले रहा है....अब भी सरकार के हाथ में बहुत कुछ है...नीतियों और  निर्णयों से पहले सहयोगी दलों को विश्वास में ले...छोटे क्षेत्रीय दलों को इज्ज़त दे..और आपसे रजामंदी से नीतियाँ....और निर्णय लागू करे...वरना विश्वसनीयता यदि ख़त्म हो गयी तो  2014 के चुनाव लोहे के चने ही साबित होंगे...!!

दीदी तेरा तेवर पुराना~~~~~!!


टाटा मोटर्स के नैनो कार के प्लांट को बंगाल से बाहर कर देने वाली ममता बेनर्जी को अर्थ व्यवस्था की शायद ABCD भी नहीं मालूम...  अपने सनकी व झक्की स्वभाव और तुनुकमिजाजी के लिए ख्यात ममता बनर्जी ने एक बार फिर केन्द्र की यूपीए गठबंधन की सरकार को परेशानी में डाल दिया है। देश के संसदीय इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि रेलमंत्री द्वारा संसद में बजट पेश करने के बाद मंत्री के ही अपने दल ने न केवल बजट का विरोध किया बल्कि प्रधानमंत्री को उसे हटाने के लिए भी कह दिया। ‘गरीबों की मसीहा’ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह नहीं चाहती कि रेल के किराये में तनिक भी वृध्दि हो जिससे गरीबों पर बोझ बढ़े। ऐसा प्रतीत होता है कि ममता बनर्जी को इस बात की कोई परवाह नहीं है कि रेलवे की खस्ता आर्थिक हालत को कैसे सुधारा जाये।  पिछले 9 वर्ष से रेल किराये में कोई वृध्दि नहीं हुई। लालू यादव और स्वयं ममता बनर्जी ने सस्ती वाहवाही लूटने के लिए लोक लुभावन बजट पेश करने की मानसिकता के कारण रेल किराये में कुछ भी वृध्दि करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। लालू यादव के समय रेलवे को भारी मुनाफा होने का जो दावा किया गया था वह लेखाविधि का छलयोजन और धोखाधड़ी था, यह बाद में उजागर हो गया। खैर बेचारे दिनेश त्रिवेदी जी की बलि तो ले ली गयी....और शायद अब TMC पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया जाए....!

ममता स्वभाव से निरंकुश हैं और अपनी पार्टी की सर्वेसर्वा हैं। अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए वह कोई भी निर्णय ले सकती हैं। उनकी पार्टी में कोई सिर उठाकर नहीं चल सकता। मजेदार बात यह है कि उनकी पार्टी के एक नेता और केन्द्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुलतान अहमद ने बजट का स्वागत करते हुए कहा कि बिना धनराशि का जुगाड़ किये रेलवे का विश्वस्तरीय आधारतंत्र तैयार नहीं किया जा सकता। लेकिन जैसे ही उन्हें मालूम हुआ कि ममता ने किराया वृध्दि का विरोध किया है वह एकाएक पलट गये। क्या ममता बनर्जी यह बतायेंगी कि रेलवे को अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए ? ममता बनर्जी केन्द्र सरकार को जिस प्रकार बार-बार डिक्टेशन दे रही हैं उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस से उनका रिश्ता जल्दी ही टूट सकता है। प्राप्त संकेतों के अनुसार कांग्रेस नेता मुलायम सिंह यादव से बात कर रहे हैं ताकि 19 सांसदों की तृणमूल पार्टी के स्थान पर उन्हें 22 सांसदों की समाजवादी पार्टी का समर्थन मिल जाये। मुलायम भी चाहेंगे कि केन्द्र में वह अपना रुतबा बढ़ावें। ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय राजनीति में जल्दी ही कुछ परिवर्तन होंगे...बिसात पर गुणा भाग जारी है..!!

पंगु विपक्षी दल.....और सत्ता के सपनो की चिल्ल पों ~~~~!!


सरकार वेंटिलेटर पर.....सरकार आई सी यूं  में.....और ना जाने क्या क्या...उत्तराखंड में यदि कांग्रेस में कोई आपसी मतभेद होता है....तो भाजपा और मीडिया को सरकार केंद्र में अस्थिर नज़र आने लगती है,  रेलवे बजट और ममता की धमकियों से भाजपा और प्रायोजित मीडिया को लगता है कि सरकार वेंटिलेटर पर है...पंगु भाजपा खुद ही  वर्षों से आई सी यूं में  वेंटिलेटर पर थी....अन्ना, बाबा और एस. स्वामी  ने इंजेक्शन लगा कर होश में क्या ला दिया...कि अब यदि मुख्तार नकवी को या सुषमा स्वराज जी को यदि सोते में उठा कर बोलने को कहा जाए तो उनके मुंह से केवल एक ही नारा निकलेगा...सरकार को तुरंत इस्तीफ़ा दे देना चाहिए...बिल्ली को ख्वाब में भी छिछ्ड़े ही नज़र आते हैं...!

सत्ता के सेमी फाइनल (उत्तर प्रदेश) में भाजपा को ना तो रामदेव के प्रचार का फायदा मिल सका और ना ही टीम अन्ना का जनलोकपाल का झुनझुना बज सका....सपा सीना ठोंक कर बहुमत में आयी...उलटा भाजपा को 20 वर्षों से क़ब्ज़ा जमाये अपने राम मंदिर आन्दोलन के गढ़ अयोध्या सीट से हाथ धोना पड़ा...अब ऐसे में यदि वो सरकार से इस्तीफ़ा मांगती है तो यह क्या दर्शाता है...?  राम मंदिर मुद्दा भी गया...अन्ना और बाबा के आन्दोलन की सवारी भी काम नहीं आयी...अब आगे क्या....? विकल्प क्या है...? केवल सरकार गिराना ही कोई हल नहीं होता.....उसका विकल्प भी तो देना होगा.....! रही सरकार के अस्थिर होने की ....या टी एम् सी (ममता) की धमकियों का तो सरकार के पास बहुत सारे विकल्प हैं...मुलायम सिंह हमेशा ऐसे समय में कांग्रेस के लिए ढाल बन कर खड़े हुए हैं....और यदि ममता दीदी ने सीमा पार की तो...सरकार को उनकी हद बताकर उनको बाहर का रास्ता भी शायद जल्दी ही दिखा दिया जाए.....मुलायम ...सरकार के साथ हैं...!  ऐसे में कौन वेंटिलेटर पर है....और कौन आई सी यूं में.....सब कुछ साफ़ हो जाएगा....सरकारें कोई मेज़ कुर्सी नहीं होती कि जब चाहे गिरा दिया जाए...जब चाहे पलट दिया जाए...हाँ सत्ता के सपने देखने की सब दलों को आज़ादी है....इस पर कोई रोक नहीं है...चाहें तो दिन में भी देख सकते हैं.....!!

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नापने के अपने अपने थर्मा मीटर~~~~~!!


" अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ...यह एक ऐसा शब्द है...जो सभी को तब तक मनभावन  लगता है....जब तक उसकी भावनाएं तृप्त हो  रही हों....या वो सहमत हो...इसको परिभाषित करने के लिए वैसे तो शब्दों का  जाल है...मगर कभी कभी यह....परिभाषा की परिधि से बाहर भी निकल जाता है...हमारे देश में इस के समर्थन और विरोध/दमन पर हालिया वर्षों में काफी नूरा कुश्ती हुई है....जैसे कि :--

1 . 30सितंबर 2005 में डेनमार्क के एक समाचार पत्र में एक कार्टूनिस्ट द्वारा इस्लाम धर्म के पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब के आपत्तिजनक कार्टून प्रकाशित किया जाना ...   " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "...?  कई मुस्लिम देशों सहित भारत में विरोध...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

2 . सलमान रश्दी द्वारा सेटेनिक वर्सेस उपन्यास लिखना.." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "    ?  .और उसके बाद राजस्थान में लिटरेचर फेस्टिवल में आने पर रोक ... " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

3 .  स्व: एम्.ऍफ़. हुसैन की  विवादित पेंटिंग्स ..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ...?  देश में विरोध....." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

4 .  रुचिका मर्डर केस के आरोपी पुलिस अधिकारी...राठौर का प्रेस को बयान..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ... उत्सव नामक युवक का हमला...." " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी....?

5 .  अन्ना टीम के सदस्य प्रशांत भूषन का कश्मीर पर बयान ....." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ". ...?

6 . प्रशांत भूषण की पिटाई....." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ". ...या ..... " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी....?

7 . तसलीमा नसरीन की विवादित पुस्तक.... "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "..?  .बंगला देश से देश निकाला..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

8 .  गुजरात  दंगों पर फिल्म परज़ानिया.....का बनना...."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "..? ....गुजरात में इस फिल्म पर रोक...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

9 . जनता पार्टी के नेता सुब्रमणियम स्वामी द्वारा पिछले दिनों एक लेख लिखा गया जिसमें उन्होंने भारतीय मुसलमानों को मतदान से वंचित किए जाने जैसा अपना ‘बेशकीमती’ मत पूरी स्वतंत्रता से अभिव्यक्त किया..."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ?.....हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने स्वामी के उन विचारों को विश्वविद्यालय के स्तर व नीतियों के विरुद्ध मानते हुए उन्हें विश्वविद्यालय के visiting प्रोफेसर के पद से हटा दिया...भारत में भी केस दायर हुआ.." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

10 . अरविंद केजरीवाल ने कल कहा था कि संसद में चोर, लुटेरे और बलात्कारी बैठे हैं...."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ".?  विशेषाधिकार हनन  नोटिस की धमकी... ...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

11 . शरद पंवार पर पड़े थप्पड़ पर अन्ना की प्रतिक्रिया....एक ही मारा....अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ?

12 . फिल्म गली गली चोर है के बाद अन्ना का " चमाट मारो."..वाला बयान..."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "   प्रेस में उछल जाने के बाद पलट जाना..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

13 . किरन बेदी...और अभिनेता ओमपुरी द्वारा रामलीला मैदान में नेताओं पर छींटा कशी ..."अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " ....बाद में अवमानना का नोटिस...." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता " पर पाबन्दी...?

14 . मुंबई में ठाकरे परिवार द्वारा उत्तर भारतीयों के खिलाफ विष वमन..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "? 

15 . पूनम पांडे का भारतीय क्रिकेट टीम के लिए ट्वीटर पर बार बार कपडे उतारने की जिद करना...व इन्टरनेट पर अश्लील फोटो डालना... ..." अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "?

16. सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने वाले और देश विरोधी कन्टेन्ट डालना.....अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  ?   सरकार द्वारा इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खिलाफ कार्रवाही ....अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबन्दी ??

और भी कई ऐसे समर्थन और विरोध के उदाहरण हमारे देश में मिल जायेंगे...हो सकता है काफी उदाहरण छूट गए हों, कुछ इस समय याद भी नहीं आ रहे....परन्तु हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खुल्ला खेल बखूबी खेला जा रहा है...दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है..और इस स्वतंत्रता को नापने का  का हर देश, धर्म,  आदमी, पार्टी, संगठन ..का अपना अलग पैमाना है, अलग थर्मा मीटर है,  खुद के ही मापक यंत्र है, खुद ही मापते हैं...और उचित अनुचित की घोषणा कर डालते हैं.. और ठीक वैसा ही  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का  गला घोंटने का मन्त्र भी हर देश, धर्म,  आदमी, पार्टी, संगठन  के पास मोजूद है.....यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अपने मायने अपने अपने अर्थ हैं....और अपने अपने अनर्थ भी हैं...कोई एकमत नहीं है...सीमा निर्धारण अपने अपने नफा नुकसान से तय किये जाते रहे हैं... अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  की सीमा  की दशकों से चली आ रही उहापोह के मध्य आज तक यह निर्धारित नहीं किया जा सका है कि आखिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं क्या हों ? और इन सीमाओं का निर्धारण ऐसे किन लोगों के द्वारा किया जाए जो कि देश, दुनिया व समाज के सभी वर्गों के लोगों द्वारा स्वीकार्य हों..!!

ओ.. मसीहाओं, कर्णधारों, क्रांतिकारियों ! हमें नए गाँधी, नए कलाम चाहिए...और गोडसे नहीं~~~!!


देश में अन्ना के  भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की आड़ लेकर कुछ  मसीहा, विचारक, और क्रांतिकारी योजनाबद्ध तरीके से बापू की विचार धारा का अंतिम संस्कार करने में जुट गए हैं...वैचारिक आतंकवाद बोया जा रहा है...नवयुवकों को देशप्रेम के नाम से, परिवर्तन के नाम से उकसाया जा रहा है, संविधान, संसद और लोकतंत्र को कोसने का मन्त्र दिया जा रहा है...संविधान और लोकतंत्र को गालियाँ दी जा रही हैं....केवल  सरकार ही इनको देशद्रोही और लोकतंत्र की  हत्यारी  नज़र आ रही है....बाक़ी दलों और राजनेताओं को नेपथ्य में रखा जा रहा है...और उन सबको एकदम दूध के धुले और देशप्रेमी बताया जा रहा है... ....फासीवादी या दक्षिण पंथी विचारधारा को देशप्रेम का चोला पहना कर लोगों को परोसा जा रहा है...कई संगठन अचानक से सक्रीय हो गए हैं...सौहार्द, शान्ति और भाई चारे की बातें करने वालों को उक्त स्वयंभू   मसीहा.....सेक्यूलर कीड़ों की संज्ञा दे रहे हैं...बापू के निर्वाण दिवस को गोडसे के शौर्य दिवस के रूप में मनाये जाने और गोडसे की फोटो अपने घरों में लगाए जाने की वकालत होने लगी है... और अपरिपक्व नवयुवकों को नए राष्ट्र और दूसरी आज़ादी के सपने दिखाए जा रहे हैं... यह कौनसी देश भक्ति है....और देश को यह कर्णधार कहाँ ले जाना चाहते हैं....?

सूचना क्रान्ति के  इस दौर में...सब कुछ आईने की तरह साफ़ है....एक खुली किताब की तरह ...पटल पर सब कुछ मोजूद है....इन्टरनेट से लेकर गलियों तक क्या बोया जा रहा है...और क्या काटना चाह रहे हैं.....किस किस  संगठन के क्या क्या एजेंडे हैं......अब किसी से छुपा नहीं है...मगर इसके परिणाम काफी हानि प्रद और भयंकर होने वाले हैं....ऐसी फासीवादी और विघटन वादी विचार धारा से देश में कुछ ब्रेनवाश हुए सर फिरे लोगों की जमात के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला .!इन्टरनेट जैसा हथियार यदि गलत हाथों में पड़ जाए...या कोई संगठन यदि उसका ढंग से दुरूपयोग करे...तो कितना हानिप्रद हो सकता है...इसका ताज़ा उदाहरण पिछले वर्ष नार्वे में आंद्रे ब्रेविक नामक सर फिरे युवक द्वारा किये गए नरसंहार से मिलता है.....और उसका भारतीय कनेक्शन भी जग ज़ाहिर है....और भारत में भी  ऐसा वैचारिक आतंकवाद आरम्भ हो चुका है,  और इसके पीछे छिपे संगठन, स्वयंभू  क्रांतिकारी, मसीहा....भी सब की नज़रों में आ चुके हैं...और हैरत नहीं होना चाहिए...की निकट भविष्य में देश में उपद्रव, हिंसा, अराजकता या किसी राजनैतिक  हत्याओ के लिए इस  विघटन वादी विचारधारा का ही पूर्ण योगदान हो ..!

.मगर यह सब शायद यह भूल जाते हैं..की गाँधी आज भी प्रसांगिक है...सद्भावना, भाईचारे और एकता से ही हमने फल पाए हैं, और उन्नति की है....विकास किया है....हमारे देश में आपसी सहनशीलता और मजहबी भाईचारे की एक अटूट परपंरा रही है। अनेकता और बहुलता की इज्जत करना हमारी तहजीब और सभ्यता का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, हम सब को इस विरासत को मजबूत तौर पर बनाए रखना है, उन्नति, प्रगति की राह हमेशा ही अमन और शान्ति से निकली है...न की अतिवाद,अराजकता या विघटन से ।अब आवयश्कता है आपसी मैत्री को नष्ट करने वालों की पहचान करने की. अब समय है सुख, चैन और शांति छिनने वालों के नकाब उतारने का, क्योंकि जैसा की इकबाल ने कहा था की :-  ‘शक्ति भी शान्ति भी भक्तों के गीत में है, धरती के वासियों की मुक्ति प्रीत में है’. आज हमें देश के विकास, उन्नति और विश्व गुरु बनने के लिए...और नए गाँधी व कलाम चाहिए...मगर ..अब और गोडसे... बिलकुल नहीं....कतई नहीं....!!

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

अमेरिकी, इजराइली अतिवाद और प्रतिबन्ध पर ईरान का तमाचा ~~!!

वुडरो विल्सन ने एक बार कहा था, ‘जिस देश पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाएँ, या उस का बहिष्कार कर दिया जाए, वो जल्द ही आत्मसमर्पण कर देता है. इस सस्ते, शांतिपूर्ण, शांत और घातक उपाय को अपनाओ तो बल प्रयोग की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. यह एक भयानक उपाय है. जिस देश पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है..या जिस देश का बहिष्कार किया जाता है, उसके बाहर किसी की जान नहीं जाती, मगर मेरे विचार से इससे देश पर इतना दबाव पड़ता है, कि कोई भी आधुनिक राष्ट्र इसका मुकाबला नहीं कर सकता.’ दशकों बाद इसके जवाब में गैबॉन के पूर्व राष्ट्रपति उमर बॉन्गो ने प्रतिबंध का विरोध करते हुए कहा था, ‘... यह बात समझना जरूरी है कि जब अमेरिका, यूरोप या संयुक्त राष्ट्र किसी सरकार पर प्रतिबंध लगाते हैं तो आमतौर पर लाखों लोगों को सीधे तौर पर सजा झेलनी पड़ती है.’ समय के साथ प्रतिबंध लगाने के कारणों में पूरी तरह परिवर्तन आ चुका है और अब यह ज्यादातर अपने हितों और सामरिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता है....!



.आतंकवादी संगठनों को संरक्षण देने और ओसामा बिन लादेन को शरण देने की वजह से पाकिस्तान का नाम पूरी दुनिया में बदनाम है. लेकिन किसी भी तरह का प्रतिबंध इन दोनों देशों पर नहीं लगाया गया. इसकी क्या वजह है? क्योंकि वे अमेरिकी आदेशों का अक्षरश: पालन करते रहे हैं! ठीक यही बात तालिबान के साथ भी है, जिसे अमेरिका ने ही पैदा किया है..      .इराक और अफगानिस्तान को बर्बाद करने के बाद, ईरान की तेल संपदा पर कब्जे करने के लिए अमेरिका पूरी कोशिश कर रहा है. आखिरकार, सभी ओपेक देश उसके नियंत्रण में हैं, सिवाय ईरान के. लेकिन ओबामा का यह कदम आसान नहीं होगा, क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक तौर पर ईरान, अपनी तरह के तमाम अन्य देशों की तुलना में ज्यादा कुछ झेल सकने की क्षमता रखता है. अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए, आत्मसम्मान के प्रति ईरान के समर्पण, अकेले लडऩे के साहस और नाटो की ताकत की परवाह न कर आज उसने परमाणु औद्ध्योगिकी में सक्षमता हासिल कर पूरे विश्व में तहलका मचा दिया है...और ईरान ने अमेरिका और इजराइल के अतिवाद, दुष्प्रचार  और प्रतिबन्ध को एक करार तमाचा मारा है....जिसको दोनों अतिवादी देश काफी देर तक सहलाते रहेंगे....!!

इजराइली आतंकवाद....और तबाह बर्बाद फिलस्तीन....!!

अगर पिछली सदी से अब तक जमीन पर कोई सबसे बड़ा नाजायज कब्जा कहा जाएगा तो वो इजराइल का फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा होगा। 1948 में जंग करके इजराइल फिलिस्तीनी जमीन के करीब आधे से ज्यादा हिस्से पर काबिज हो गया। जर्मनी के हिटलर का कहर 60 लाख से ज्यादा यहूदियों पर टूटा था। दुनिया की हमदर्दी उनके साथ थी, सियासत हमदर्दी से ज्यादा आगे का सोचकर चल रही थी। इजराइली उस जंग को आजादी की जंग कहते हैं और फिलिस्तीनी उसे नकबा यानी महाविनाश कहते हैं।

अत्याचार से पीड़ित, भयानक यातना की स्मृतियों से भरे यहूदी लोग कहीं छांव की तलाश में थे और उन्होंने इसके लिए दूसरों के घर उजाड़ दिये। इजराइली सेना ने 13,80,000 फिलिस्तीनी लोगों को अपनी जमीन से खदेड़ दिया। ये फिलिस्तीन की तब की आधी आबादी थी।
फिर 1967 में इजराइल ने जंग जीत कर अपना कब्जा फिर बढ़ाया। इस दौरान फिर ढाई लाख फिलिस्तीन लोग खदेड़े गये। साथ के नक्शे को अगर देखें तो अब वेस्ट बैंक और गाजा में कुल मिलाकर करीब 35-40 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं लेकिन उनके पास जमीन का दस प्रतिशत से भी कम हिस्सा बचा है। धर्म और सुविधाओं के नाम पर दुनिया के कोने-कोने से यहूदी लोग इजराइल में जाकर बसे हैं और आज अकेले इजराइल में दुनिया के 41 फीसदी से ज्यादा यहूदी बसे हुए हैं। इजराइल की कुल आबादी का 80 फीसदी सिर्फ यहूदी हैं।

फिलिस्तीन की पूरी जमीन पर 1922 में 11 फीसदी यहूदी थे, जो दूसरे विश्वयुध्द के अंत तक 33 फीसदी हुए और 1948 से 1958 के दस साल के वक्फे में इजराइल की आबादी 8 लाख से 20 लाख हो गई। इनमें से अधिकांश लोग उजाड़ हालात में शरणार्थी बनकर खाली हाथ आए थे। इजराइल ने कानून बनाकर इन यहूदियों को 49 साल के पट्टे पर वही जमीनें जोतने के लिए दीं, जिनसे फिलिस्तीनी अरबों को खदेड़ा था।

इजराइल-फिलिस्तीन का मसला बेहद पेचीदा है। इसके सूत्रों को तलाशें तो फ्रांस और इंग्लैंड के स्वेज नहर से जुड़े स्वार्थ, अमेरिका के पश्चिम एशिया में अपना मजबूत वफादार बनाने की साजिश, धर्म के नाम पर फैलायी जा रही लड़ाई का सैनिक नाभिक, सब कुछ सामने आता है। जो छिप जाती है, वो है बेगुनाह, आत्मसम्मान के साथ जीना चाह रहे फिलिस्तीनी अरबों की चाह। उनकी लाखों लाशें और, जिंदगी और मौत के फर्क को भूल चुकीं करीब तीन पीढ़ियां। आज दुनिया में ताकत के समीकरणों में अमेरिका और इजराइल सबसे निकट के सहयोगी हैं।

अमेरिका के योजना खर्च का एक बड़ा हिस्सा इजराइल को मदद के तौर पर जाता है। अमेरिकी हथियारों का न केवल सबसे बड़ा खरीदार इजराइल है, बल्कि पूरे अरब विश्व में वह अमेरिकी हितों का सबसे बड़ा पहरेदार भी है। इसीलिए इजराइल द्वारा किये गये किसी भी अत्याचार पर या तो अमेरिका चुप रहता है या उसे खुलकर समर्थन देता है।

हाल में गाजा पर हुए इजराइली हमले में करीब 1000 फिलिस्तीनी मारे गये और 10000 से ज्यादा घायल हुए। इजराइल के गाजा पर किये गये हमले पर उसके अमेरिकी मौसेरे भाई ने व्हाइट हाउस से ये बयान दिया कि इजराइल तो महज आत्म रक्षात्मक कार्रवाई कर रहा है। साथ ही अमेरिका ने फिलिस्तीनियों को लुटेरा और आतंकवादी बताया। पिछले आठ वर्षों में इजराइल ने 5000 से ज्यादा फिलिस्तीनियों को लाशों में बदल दिया जबकि इसी दौरान फिलिस्तीनी हमलों में मारे गये इजरायलियों की तादाद बहुत कम है। इजराइल का हाल का हमला गाजा के सबसे भीड़ भरे इलाके में हुआ, जहां बाजार था, गरीबों की तंग घनी आबादी थी और उस वक्त बच्चों का झुंड स्कूल से घर लौट रहा था। यह सन् 2008 का जाता हुआ सप्ताह है जिसमें हम हिंसा को इस वर्ष जमा हुई बेगुनाहों की लाशों के ढेर पर अट्टाहास करता देख रहे हैं।

इस वक्त सिर्फ हिंसा को सेलिब्रेट किया जा रहा है, बगैर ये जाने कि कौन सी हिंसा बचाव की है और कौन सी जुल्म की। इसीलिए हिंदुस्तान में भी आमतौर पर इजराइली हमले की प्रतिक्रिया में ये सुनने को मिल रहा है कि जैसे इजराइल फिलिस्तीनी आतंकवादियों से निपट रहा है, वैसे ही पूरी बेदर्दी से भारत को भी पाकिस्तान से निपटना चाहिए। ये जाने बगैर कि इजराइल द्वारा की गई कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि खुद आतंकवादी कार्रवाई है। मुंबई पर हुए आतंकी हमले के हरे घाव में उन्मादियों को सबसे अच्छा मौका मिला है कि वो पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक आधे-अधूरे विकृत सच फैलाकर जुल्मी का नकाब मजलूम को और मजलूम का नकाब जुल्मी को पहना सकें।

अपनी ही जमीन पर कीड़े-मकोड़ों से बदतर जिंदगी जीने को अभिशप्त फिलिस्तीनी लोग लंबे वक्त तक अहिंसा व बातचीत के सहारे विश्व मंचों पर अपनी आवाज उठाते रहे। याद हो कि फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन के नेता यासेर अराफात को उनकी फौजी पोशाक के बावजूद शांति का अग्रदूत माना जाता है और कोट-पेंट-टाई पहने रीगन-बुश-क्लिंटन या एरियल शेरोन सारी दुनिया में सबसे ज्यादा अमानवीयताओं व आतंकवाद को फैलाने वालों के तौर पर कुख्यात हैं।

हिंदुस्तान और फिलिस्तीन का रिश्ता नया नहीं है। महात्मा गांधी ने फिलिस्तीनियों पर ढहाये गये अत्याचारों की निंदा की थी। नेहरू फिलिस्तीन मुक्ति के पक्ष में थे। आजादी के भी पहले, 1947 में ही नेहरू ने निर्विवाद स्वर में पहले एशियाई संबंध सम्मेलन में कहा था - ''फिलिस्तीन बिना शक अरबों का देश है और उन्हें विश्वास में लिए बगैर कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए।


यहूदियों की अपना देश होने की चाहत का शिकार फिलिस्तीनियों को हर्गिज नहीं बनाया जाना चाहिए।' भारत ही वो पहला देश था जिसने अराफात को बिना किसी देश का अध्यक्ष होते हुए भी राष्टाध्यक्ष का दर्जा दिया और पीएलओ को दिल्ली में अपना दूतावास खोलने की अनुमति दी।

अमेरिका की मदद से पूरे मध्य पूर्व में लठैती करते इस देश इजराईल और उसके आतंक और करतूतों के शिकारों में देखा जाए तो...सद्दाम से लेकर....गद्दाफी तक हैं....और इन दोनों लठैतों का अगला निशाना अब सीरिया और ईरान है...यह पूरा विश्व देख और समझ रहा है....मगर जहाँ ईरान ने सद्दाम का और उसके बाद ईराक का हश्र देख लिए है....तो ऐसे में अब इजराइल की दाळ शायद गलने वाली नहीं है...!!

आंदोलनों और अनशनो में अपार धन की रेलम पेल ~~~क्या है असली खेल~~~~~??

बाबा रामदेव के  रामलीला मैदान के फाइव स्टार अनशन के इंतजाम पर कुल  18 करोड़ रुपए खर्च हुए थे .. बाबा ने सिर्फ मैदान के भाड़े पर करीब सवा 2 करोड़ रुपए खर्च किए थे । ठीक इधर अन्ना हजारे के मुंबई अनशन का हश्र है...यहाँ उनके अनशन के लिए एमएमआरडीए मैदान के लिए 3.5 लाख रुपए प्रति दिन के किराए और 17 लाख रूपये अग्रिम पर बुक कराया था...भले ही बाद में कुछ कमी बेशी हुई हो.....यह केवल उनके मुंबई स्थित  एमएमआरडीए मैदान वाले अनशन का ही खर्चा है...(इसके पहले के  अनशन और  तामझाम  अलग हैं.)..और यह तो मूल खर्चा है...जो कि सामने है....इसके अतिरिक्त ऐसे बड़े ताम झाम में और भी सैंकड़ों प्रकार के खर्चे आते हैं...इसमें टेंट से लेकर...पानी बिजली...बसों कि व्यवस्था सहित और भी कई मद ऐसे हैं...जो कि ऐसे विशाल आयोजनों में बहुत ही ज़रूरी होते हैं...उनका खर्चा भी काफी बड़ा होता है...अब चाहे मोदी का सद्भावना उपवास हो...जिसमें तीन दिनों के इस सद्भावना उपवास में 60 करोड़ से अधिक का खर्च बैठा था...जिस हॉल में यह उपवास आयोजित किया गया था उसका किराया पांच लाख रुपये प्रतिदिन था ..10 से 12 हजार पुलिसकर्मी, 4 त्‍वरित कार्रवाई दल, 2 चेतक कमांडो टीम, 9 एसआरपीएफ कमांडो, 10 आईपीएस अधिकारी, एसपी स्तर के 20 अधिकारी सद्भावना उपवास स्थल पर बैठे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में तैनात किये गए थे. इसके अलावा 50 सीसीटीवी कैमरे, 35 छोटे कैमरे, ग्राउंड में 10 वॉच टावर, 2000 कार पार्किंग वीआईपी के लिए, दो से चार हजार कारें, आठ से 10 हजार बाइक और 1500 भारी वाहन जीएमडीसी ग्राउंड में बनाए गए थे. मेडिकल टीम में 10-15 फिजिशियन, एनेसेथेसिस्‍ट, कार्डियोलॉजिस्‍ट, टेक्‍नीशियन, मोबाइल आईसीयू चौबीसों घंटे तैनात. 10 प्‍लाज्‍मा टीवी, पांच एलईडी टीवी और कई बड़ी स्‍क्रीन ताकि नरेंद्र मोदी लोगों को करीब से दिखाई देते रहें..!

हैरान है देश की जनता....कि .गाँधी के देश में गाँधी के अस्त्र ...अनशन और उपवास को इन हाई प्रोफाइल आन्दोलनकारियों और अनशन कारियों ने किस रूप में परिवर्तित कर दिया..है , यह सारा देश और देश की जनता देख देख कर हैरान है, लाखों ..करोड़ों रुपयों की यह रेलम पेल क्यों ? क्या बिना पैसे या इतने बड़े ताम झाम के बिना अनशन और उपवास नहीं हो सकता...विरोध नहीं हो सकता...?  यह आधुनिक और डिज़ाईनर अनशनकारी और आन्दोलनकारी... इन करोड़ों ..लाखों रुपयों को पानी की तरह क्यों बहा रहे हैं...? इन करोड़ों ..लाखों रुपयों का स्त्रोत क्या है....?  यह कैसे अनशन, कैसे आन्दोलन और कैसे उपवास हैं...?  गाँधी जी ने तो कभी ऐसा नहीं किया था...!यह विरोध की अभिव्यक्ति का कौनसा नया प्रकार उभर कर सामने आ रहा है....? और अब जिस प्रकार के यह ताम झाम वाले अनशन, उपवास और आन्दोलन और एकएक चकाचौंध भरे शो की तरह धूम धडाके के साथ..एक TRP और दर्शकों से भरे मैदान के साथ शुरू तो होते हैं...मगर जल्दी ही अपना आधार भी खो बैठते हैं....इसके पीछे जो मूल कारण हैं....उन से यह आन्दोलनकारी, अनशनकारी, और उपवास करने वाले भी भली भाँती पर्रिचित हैं...फिर भी उन कारणों का निवारण नहीं कर रहे हैं.....? यह और भी अचरज की बात है....मगर इससे एक हानि यह हो रही है...की आम जनता में इन आंदोलनों, उपवासों और अनशनो की पृष्ठभूमि, उद्देह्श्य, आधार और नीयत पर संदेह बढ़ता ही जा रहा है...क्योंकि यह सब बीच रास्ते में दम तोड़ते नज़र आये हैं....और दूसरी हानि भविष्य में यदि कोई सार्थक और नेकनीयत से आन्दोलन करने आगे आएगा...तो उसके लिए हर बार की तरह जनता बाहर निकलने में बहुत संकोच करेगी....जो की इस गाँधी के इस अस्त्र और शानदार परिपाटी के लिए और साथ ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था की शुद्धिकरण के लिए बहुत ही नुकसानदेह साबित होगा.....!!

चुनावी चौसर पर टीम अन्ना क्या हो रही है ...बेअसर ....??

लखनऊ में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के संयोजक अखिलेश सक्सेना टीम अन्ना के दिशा निर्देशों के तहत जनता का घोषणा पत्र बांट रहे है और अब तक सौ से ज्यादा लोगों तक वे पहुँच चुके है । लखनऊ में नौ विधान सभा क्षेत्र है और हर क्षेत्र में तीन से साढ़े तीन लाख मतदाता है जो सभी क्षेत्र मिलाकर पच्चीस लाख से ऊपर बैठता है। ऐसे में इस मुहिम की रफ़्तार से किसी तरह का असर चुनाव पर पड़ेगा यह नहीं लगता । अन्ना आन्दोलन के दौरान सबसे ज्यादा फोकस उत्तर प्रदेश पर था और टीम अन्ना लोकपाल बिल को लेकर कांग्रेस को लगातार धमकाती रही कि लोकपाल पास नहीं हुआ तो कांग्रेस का सफाया कर देने के लिए खुद अन्ना हजारे उत्तर प्रदेश का दौरा करंगे । कांग्रेस को हराने के साथ ही कई तरह के कार्यक्रम जो जेपी आंदोलन के थे उन्हें भी लागू करने की बात कही गई थी


लखनऊ में दो गुट है ,एक गुट हिसार वाली लाइन यानी "कांग्रेस को हराओं" पर चल रहा है तो दूसरा गुट मतदाताओं को जागरूक करने में जुटा है जो काम मतदाता मंच कई दशकों से कर रहा है और उसका कोई असर कभी पड़ा नहीं । अन्ना आंदोलन के नेता अखिलेश सक्सेना से इस बारे में पूछने पर उनका जवाब था -हम मतदाताओं को जागरूक करेंगे ,किसे वोट दें है यह तो उन्हें ही तय करना होगा । यह पूछने पर कि अगर आपका जनता घोषणा पत्र किसी क्षेत्र में तीन चार उम्मीदवारों ने मान लिया तो किसे वोट देने को कहेंगे ,इसपर जवाब था -यह सब जनता को तय करना है । राजनैतिक टीकाकार सीएम शुक्ल ने कहा -टीम अन्ना तो बुरी तरह फंसी हुई है और इतनी भ्रमित है कि उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा, हिसार में कांग्रेस का विरोध  बड़ी गलती थी जिसके चलते आंदोलन पर राजनैतिक होने  का जो ठप्पा लगा उसका नतीजा सामने है । आज इस आंदोलन के लोगों के सामने न कोई दिशा है और न कोई कार्यक्रम ,साथ ही उल जलूल बयान देकर आए दिन  अन्ना या कोई न कोई टीम का सदस्य फंसता जा रहा है जिसका असर कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है ।
ऐसे में देखना होगा कि टीम अन्ना अपने पर लगे इस गहरे राजनीतिक दाग को कैसे साफ़ करती है,  और इस  चुनावी चौसर पर  क्या जौहर दिखला सकती है...वैसे भी  उम्मीद पर तो पूरी दुनिया ही कायम है......!!

कौनसे 121 करोड़ लोगों की आवाज़ हैं आप~~~??

मारी आबादी के नए आंकड़े अभी-अभी आए हैं. एक अरब 121 करोड़ यानी लगभग सवा अरब. इस सवा अरब लोगों में से  केवल एक लाख लोग भी अन्ना या बाबा के लिए जंतर मंतर या इंडिया गेट पर इकट्ठे नहीं हो पाए हैं...और मुंबई में तो सारे अनुमान ही औंधे मुँह गिर पड़े... जब की इन्टरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन्होने और इनकी पीठ थपथपाने वालों ने एडी छोटी का जोर एक साल से लगा रखा है...उस पर यह हाल....फिर भी यह दोनों ही मसीहा यह दावा करते हैं की हम 121 करोड़ लोगों की आवाज़ हैं...... !



मिस्र की आबादी से तुलना करके देखें, वहाँ की कुल आबादी है आठ करोड़ से भी कम. यानी अपने आंध्र प्रदेश की आबादी से भी कम.लेकिन, वहाँ तहरीर चौक पर एकबारगी लाखों-लाखों लोग इकट्ठे होते रहे. उन्हें वहाँ इकट्ठा करने के लिए किसी नेता की ज़रुरत नहीं पड़ी. वे ख़ुद वहाँ आए और शिद्दत से आये...क्योंकि उन्हें लगा क्योंकि परिवर्तन उनकी अपनी ज़रुरत है...ब्रिटेन के एक पत्रकार ने अचरज से लोगों से पूछा कि दिल्ली में ही एक करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं और जितने लोग इकट्ठे हो रहे हैं वो तो बहुत ज़्यादा नहीं है, तो क्या अभी लोगों को भ्रष्टाचार अपना मुद्दा नहीं लगता ?  या जनता को लगने लगा है की यह सब एक प्रायोजित राजनैतिक आन्दोलन हैं...? या फिर कहीं न कहीं लोगों को इन आंदोलनों के मसीहाओं की नीयत पर संदेह होने लगा है..?? कहीं न कहीं...कोई तो बात है.......!!

यह वो तहरीर चौक नहीं है ~~~!!

मिस्र की राजधानी काहिरा का अब तक नामालूम सा एक चौक जो देखते ही देखते दुनिया भर की मुक्तिकामी और तरक्कीपसंद जनता के सपनों और संघर्ष का पहले प्रतीक, और फिर मील-पत्थर बन गया. ऐसे कि तहरीर चौक से उठती आवाजों का जब जवाब आया तो तमाम सरहदों और उनके अन्दर रहने वाले हुक्मरानों की हिफाजत को खड़ी फौजों को रौंद के आया....इस आन्दोलन में कुल 45 निहत्थे नागरिकों की जाने जा चुकी हैं...और 500 से अधिक गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं... यह संघर्ष वहां की जनता ने तानाशाही से मुक्ति और लोकतंत्र की स्थापना के लिए किया था..जिससे  की मिश्री जनता एक वर्ष होने के पश्चात भी  वंचित है...कई देशों में इस आन्दोलन से सनसनी फैली...और विश्व पटल पर एक अदृश्य सी लहर ने उथल पुथल मचा डाली थी....!

फिर अचानक एक दिन भारत में ....काहिरा का तहरीर चौक बरास्ते टीवी चैनल्स दिल्ली के जंतर मंतर से होता हुआ हमारे बेडरूमों में उतर आया. चाहे काहिरा में उमड़ती लाखों की भीड़ के सामने जंतर मंतर के चंद हजार लोग किसी गिनती में न हों, बावजूद इस सच के कि काहिरा में कम से कम तानाशाही के अंत की ख्वाहिश लिए अपनी जान दांव पर लगा कर सड़कों पर उतर आई भीड़ के सामने भारत में पुलिस से कोई खतरा ना होने की आश्वस्ति पाकर ही घर से निकले इन लोगों का तहरीर चौक के संघर्षों से दूर दूर तक कोई साझा न हो. अपने को तहरीर चौक कहने वाला, और इलेक्ट्रानिक मीडिया के अन्दर अपने कारिंदों से कहलवाने पर आमादा यह कुछ अजब सा तहरीर चौक था......  अरब देशों में इकठ्ठा होती भीड़ों पर गोलियां चलाती फौजों के बरअक्स इस भीड़ में बिसलेरी और बिस्कुट बाँटते लोग थे, वहां शहीद हो रहे मिश्री लोगों के सामने यहाँ सिर्फ स्वास्थ्य के इजाजत देने तक अनशन की घोषणा करते लोग थे. .....उस तहरीर और इस तहरीर में फर्क सिर्फ इतना भर नहीं था. यहाँ तो फर्क बुनियादी मूल्यों का, मान्यताओं का भी था. उन तहरीर चौकों में तानाशाहों के खिलाफ सारे अवाम की गुलाम इच्छाओं के कैद से बाहर आने की छटपटाहटें थीं .. वहां दिलों में उबल रहा गुस्सा न केवल सरकारों बल्कि सरकारी शह पर जमाने से जनता को लूट रही कंपनियों को भी मार भगाने पर आमादा था और ठीक उलट यहाँ के तहरीर चौक के तो प्रायोजक ही एनजीओ और कार्पोरेशंस थे. !


वहां की लड़ाई सबके हक और हुकूक की थी और यहाँ संविधानिक प्राविधानों की वजह से कुछ शोषित लोगों के आगे बढ़ आने से सदियों से सत्ता पर काबिज लोगों के माथे पर बन रही चिंता की लकीरें थीं. वहाँ तानाशाहों के मिजाज से चलते शासन के खिलाफ एक लोकतांत्रिक संविधान बनाने के सपने थे और यहाँ बाबासाहेब के बनाए संविधान को खारिज करने की जिद थी. ..वहां एक तानाशाह को भगा कर सामूहिक प्रतिनिधित्व वाला स्वतंत्र समाज हासिल कर पाने की जद्दोजहद थी और यहाँ एक व्यक्ति को संसद और संविधान से भी ऊपर खड़ा कर देने की हुंकारें थीं. या यूँ कह लें, कि वहां लड़ाई जम्हूरियत हासिल करने की थी और यहाँ उसे जमींदोज करने की थी..और इस आन्दोलन की आड़ में सिर्फ सत्ता परिवर्तन ही मूल उद्देश्य था...राजनैतिक हाथ  इस आन्दोलन की पीठ पर पीठ थपथपाए जा रहे थे...!

बात साफ़ है, कि इस तहरीर चौक पर लिखी जा रही तहरीरें उस तहरीर चौक की इबारतों से न केवल अलहदा हैं बल्कि उनसे मुख्तलिफ भी हैं. अब समझना यह है कि 'हमारे' तहरीर चौक पे ये अजब तहरीरें कौन और क्यों लिख रहा है ?  समझना इसलिए कि फिर लड़ना भी पड़ेगा, असली तहरीर चौक की विरासत बचानी भी पड़ेगी...!!

आओ दुष्प्रचार करें~~~~!!

पिछले दिनों फेसबुक पर किसी मित्र की पोस्ट पढ़ी थी...उसमें उन्होंने लिखा था...कि आकाश पी सी टेबलेट (Laptop)को हर एक विद्यार्थी तक पहुँचाने कि योजना भी एक कांग्रेसी चाल है...इससे नवयुवक पोर्न की और आकर्षित होंगे...और पथभ्रष्ट हो कर देशप्रेम से विमुख हो जायेंगे..कितनी अजीब बात है...क्या आकाश पी सी टेबलेट को नवयुवक या विद्यार्थियों को सिर्फ इसी काम के लिए दिया जा रहा है.....या क्या लोग जो कि पहले से इन्टरनेट, लेपटाप या ऐसे पी सी टेबलेट प्रयोग कर रहे हैं...वो सब ऐसा ही कर रहे हैं...यह कैसी सोच है...? मुझे याद है..जब राजीव गाँधी ने कम्प्युटर क्रान्ति के लिए बीड़ा उठाया था...तब भाजपा ने पूरा देश सर पर उठा लिया था...कम्प्युटर के विरोध में ज़बरदस्त दुष्प्रचार किया था...लोगों को मूर्ख बनाया गया था...आज वही कम्प्युटर है...और वही सूचना क्रान्ति ...जिसकी बदौलत प्रचार और दुष्प्रचार दोनों हो रहे हैं...  मैंने   एक और पोस्ट देखी थी जिसमें पिछले 30 सालों में सोने के भावों में होने वाली वृद्धि के लिए कांग्रेस और सोनिया गाँधी को ज़िम्मेदार ठहराया गया था...कितनी वाहियात बात है...क्या सोना सिर्फ भारत में ही महंगा हुआ है...और देशों में तो शायद  दस हज़ार रूपये तोला ही बिक रहा है...क्या इन दुश्प्रचारियों को यह नहीं पता कि सोने का मूल्य अंतर्राष्ट्रीय विषय है...न कि राष्ट्रिय...  हर बात के लिए सरकार को या कांग्रेस को कोसना एक फैशन सा बन गया है...कल को किसी गूजर भाई की भैंस पानी से निकलने से मना करदे तो क्या इसके ज़िम्मेदार कपिल सिब्बल होंगे...?या किसी की पत्नी मायके जा कर बैठ जाए तो क्या इसके ज़िम्मेदार दिग्विजय सिंह होंगे ? कल को जुम्मन मियाँ की आँखों में मोतिया बिन्द हो जाए तो क्या इसका दोष सोनिया गाँधी को दिया जाएगा....? मांगी लाल की सुबह स्कूटर स्टार्ट होने से मना कर दे तो क्या इसके ज़िम्मेदार राहुल गाँधी ही होंगे ?
सरकार की कमियाँ और मुद्दों को उठाने का अधिकार सभी देशवासियों को है...जन सहभागिता से लोकतंत्र का शुद्धिकरण ही होता है...मगर दुष्प्रचार अलग बात है...और तर्कपूर्ण व समीक्षात्मक रूप से कमियां और गलतियाँ बताना अलग होता है...इन्टरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर यह एक फैशन बन गया है...और काफी लोग अपने को दूसरे से बढ़कर देशप्रेमी बताने के चक्कर में बे सर पैर के तर्क और दुष्प्रचार कर अपनी पीठ ठोंक रहे हैं....जय हो....!!

जनलोकपाल आन्दोलन को तहरीर चौक का पायजामा मत पहनाइये ~~~!!

अन्ना के अनशन को जनक्रांति बताने वाले चपल रिपोर्टरों की यह मजबूरी समझिए कि उन्हें टीआरपी रेस में टिके रहने के लिए घटना का चरम प्रस्तुत करना ही होगा. वे जनक्रांति से आगे का कोई शब्द जानते होते तो अन्ना के अनशन के लिए वह प्रयोग करते. यह तो भला हो कि जनक्रांति के ऊपर का कोई शब्द उनके पल्ले नहीं पड़ा नहीं तो टेलीवीजन मीडिया इसे वह भी बना देता. लेकिन जिस जन की उपस्थिति को क्रांति बताई जा रही थी वह जन शहरी मध्य वर्ग या फिर उस मध्य वर्ग का पिछलग्गू जमातें थी. उनका वहां होना जहां अन्ना हजारे का अनशन चल रहा था यह सिर्फ और सिर्फ टेलीवीजन मीडिया की मौजूदगी की वजह से था. मसलन, अन्ना की जीत के जश्न में जिस इंडिया गेट पर जश्न मनाया जा रहा था वहां न तो उतने लोग थे जितना दावा किया जा रहा था और न ही सेलिब्रेशन जैसा कोई माहौल. हुड़दंग का आलम था और उस हुड़दंग में टेलीवीजन पर दिख जाने की होड़. टेलीवीजन पर दिखते ही फोन किसी परिचित को लग जाता और इधर से पूछा जाता कि "आज तक पर अभी थोड़ी देर पहले मैं आ रहा था. तुमने देखा क्या?" रात सवा नौ बजे तक इसी तरह सेलिब्रेशन चलता रहा. सवा नौ बजे के करीब पुलिस ने कहा टेलीवीजन चैनल्स को कहा लाइट्स आफ. और कमाल देखिए सवा दस बजे वहां से सारा सेलिब्रेशन गायब हो चुका था. कारण साफ़ है....बिना टीवी के अन्ना की जीत का जश्न घण्टे भर भी नहीं टिक सका. आन्दोलन के नाम पर टी वी कैमरों की चमक की चाशनी छलका कर..जनता को एक बार घेरा जा सकता है...दो बार घेरा जा सकता है...मगर बार बार जनता को आवाज़ लगा कर आन्दोलन का मजमा नहीं लगा सकते...यह बात अन्ना के मुंबई अनशन से एक दम साफ़ हो गयी है...और टीम अन्ना के भी होश इस विफलता से उड़े हुए हैं...यहाँ मीडिया के कैमरे...और लाईट के साथ एनजीओवादी मेनेजमेंट की भी सारी तिकड़में धरी की धरी रह गयी थी.... रही सही कसर मुंबई हाई कोर्ट ने पूरी कर डाली थी...!


जो लोग यह समझते हैं कि यह अन्ना का अनशन था और उसे मीडिया  ने रिपोर्ट किया, उन्हें अपने वाक्य को अब शायद दुरुस्त कर लेना चाहिए. यह मीडिया का अनशन था जिसमें नायक की भूमिका अन्ना हजारे ने निभाई. स्टेड लगाने से लेकर जनक्रांति घोषित कर देने तक सारा आयोजन टेलीवीजन मीडिया और कुछ एनजीओवादी कर्मठ कार्यकर्ताओं की देन थी. जैसे एक दशक पहले कुछ आतंकवादियों ने गन की नोक पर भारतीय संसद को गिरवी बनाने की कोशिश की थी, कुछ कुछ वैसी ही कोशिश इस बार न्यूज मीडिया ने अपने गनमाइक से की. अन्ना को आगे करके भारतीय मीडिया ने पंद्रह दिनों तक अपनी टीआरपी को संभाले रखा. फायदे के इस अर्थशास्त्र में रास्ते में जो कोई आया टेलीवीजन ने उसके सिर कलम कर दिये. टेलीवीजन ने राजघाट से कत्लेआम का जो यह सिलसिला शुरू किया था वह इंडिया गेट पर आकर खत्म हुआ...यह  मीडिया और अन्ना कि जुगलबंदी और एनजीओवादी मेनेजमेंट का एक  उदाहरण है...जिसको तहरीर चौक जैसी आलीशान क्रान्ति का पायजामा पहनने की विफल कोशिश भी इस बाजारवादी और टीआरपी मोहित मीडिया ने की थी...!!

सिविल सोसाइटी और मीडिया का मायाजाल....!!


सारा का सारा देश (जो की टीवी ग्रस्त है) पलकों में तीलियां फंसाए अपलक अपने अपने टीवी सेटों से चिपका बैठा था. सब के सब अचानक से भारतीय हो गए थे... राष्ट्रभक्ति और खेल भावना से भरे हुए. टीम इंडिया का खेल देखने में लोग यों जुटे कि टीआरपी के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए. इसी वर्ल्डकप विद इंडिया वैडिंग का रिसेप्शन शुरू हुआ पांच अप्रैल को, जंतर-मंतर पर. एक बुजुर्ग व्यक्ति गांधी टोपी और धवल वस्त्रों में सफेद चादर वाले मंच पर आसीन हो गए. इनके बगल में एक भगवा वस्त्रधारी स्वामी जी, एक मैग्सेसे प्राप्त पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और कुछ सामाजिक कार्यों के दक्ष मैनेजर. पीछे भारत माता का तिरंगा ध्वज वाला फोटो ...जो अब पूरा ही गायब हो चुका है, . खैर, अनशन का आगाज़ हुआ. अन्ना हजारे तकिया लेकर बैठ गए. 
वैसे अन्ना जैसे कई बैठते हैं इस जगह पर. साल भर होते हैं प्रदर्शन, सत्याग्रह, धरने, रैलियां. ये धरने-प्रदर्शन अपनी नीयत और सवालों को लेकर ज़्यादा ईमानदार होते हैं. पर इसबार बात जन लोकपाल बिल की थी. अन्ना की मंडली का मानना है कि जन लोकपाल बिल आते ही भ्रष्टाचार इस देश से ऐसे गायब हो जाएगा जैसे डिटॉल साबुन से गंदगी. ..बाबा रामदेव के दिशा निर्देशन में पहले ही जन लोकपाल बिल का खाका बन चुका था. अब इसे सरकार को सौंपना था. सरकार इसे माने और वैसे ही माने जैसे कि अन्ना मंडली चाहती है, इसके लिए सीधा रास्ता तो कोई संभव नहीं था सो बात तय हुई अनशन की. ...सवाल उठा कि अनशन पर कौन बैठे... ? अन्ना या रामदेव. फिर लगा, गांधी टोपी की ओट में और एक उम्रदराज बुजुर्ग को सामने रखकर हित साधना सबसे आसान होगा. सो अनशन शुरू हुआ... लंगर परंपरा को पापनाशक मानने वाले अभिजात्य, धनी लोग गाड़ियों में मिनरल वॉटर की पेटियां लेकर पहुंच गए. कई छोटी-बड़ी एनजीओ न्यौत दी गईं. बैनरों और कनातों की तादाद बढ़ती चली गई. नफीसा अली, फरहा खान, अनुपम खेर जैसे  चेहरे मौके की चाशनी पर मक्खियों की तरह आ कर भिनभिनाने लगीं..!
मीडिया में पहले से मज़बूत पैठ रखने वाले और सालाना जलसों में मीडिया को पुरस्कार देने वाले समाजसेवी मीडिया मैनेजमेंट में लग गए... दो बड़े मीडिया संस्थानों के मालिकों को एक पहुँचे हुए बाबा का फोन गया और उनके चैनल, अखबार अपने सारे पन्ने और सारे कैमरे लेकर इस अभियान में कूद पड़े. बाकी मीडिया संस्थान बिना खबरों वाले दिन में इस ग्रेट  अपार्चुनिटी को कैसे हाथ से निकलने देते... ओबी वैन एक के बाद एक... बड़ी बड़ी लाइटें, सैकड़ों कैमरे, हज़ारों टेप, मंडी के सड़े आलुओं की तरह सैकड़ों मीडियाकर्मी फैले पड़े थे. लगा कि लाइव-लाइव खेलते खेलते ही भ्रष्टाचार खत्म. अन्ना लाइव, अरविंद लाइव, सिब्बल लाइव, रामदेव लाइव, स्वामी लाइव, बेदी लाइव... आमजन के तौर पर इक्ट्ठा हुए सैकड़ों लोग भी लाइव में अपना चेहरा चमकाने के लिए हसरत भरी नज़रों से कैमरों की ओर देख रहे थे... कामातुर पुरुषों की तरह. एक कैमरा पैन हुआ.. और ये लीजिए, ज़ोर-ज़ोर से नारे लगने शुरू. भारत माता की जय, वंदेमातरम, भ्रष्टाचार खत्म करो. चेहरे पर तिरंगे, हाथ में तिरंगे, कपड़े तिरंगे, पर्चे तिरंगे, पोस्टर तिरंगे. जैसे युद्ध विजय हो. ये लोग भ्रष्टाचार को मिटाने आए थे. मंच से कमेटी के लिए लड़ाई चल रही थी. यानी एक जगह पर दो अलग-अलग मकसदों का संघर्ष... मंच पर कमेटी में शामिल होने का और मंच के सामने भ्रष्टाचार मिटाने का...!



बौद्धिक दखल रखने वाले एक बड़े हिस्से को आखिर तक और कुछ को तो अभी तक समझ में नहीं आया है कि इस पूरे ड्रामे को किस तरह से लिया जाए. ? कुछ लोग इस भ्रम और अनिर्णय में मंच तक जा पहुंचे कि कहीं एक बड़ी लड़ाई में तब्दील होते इस सिविल सोसाइटी कैम्पेन से वो अछूते न रह जाएं. कहीं ऐसा न हो कि समाज और मीडिया उनसे पूछे कि जब इतना बड़ा यज्ञ हो रहा था तो आप अपनी आहुति की थाली लेकर क्यों नहीं पहुंचे...और अंत में आम आदमी आवाक सा मुहं फाड़े इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध होने वाली सर्कस के हर एपिसोड को देखता चला आ रहा है...पहले एपिसोड से लेटेस्ट एपिसोडों की तुलना कर हैरान हो कर  सर खुजाता नज़र आ रहा है...जूतम पैजार...टीम अन्ना की बयान बाज़ी...पाला बदलते बयान...राजनैतिक बिसात पर टीम अन्ना की डेढ़ चाल ...आम आदमी को लग रहा है...की इस सर्कस में हर बार उसको ही मोहरा बनाया गया...हर बार भीड़ रुपी तवे पर रोटियां सेंकी गयी...जब मुंबई में तवा गरमा न हो सका तो शो बीच में ही ख़त्म...अब इस भीड़ को राजनीति की बिसात पर खींच कर कौनसी रोटियां सेंकने की फिराक मैं हैं...यह शायद अब उसकी समझ में आने लगा है., यानी इस मीडिया पोषित बाबा/अन्ना आन्दोलन और सरकार के बीच के फुल तमाशे में अगर कोई ठगा गया तो वो है...आम आदमी...बाक़ी सब की तो बल्ले बल्ले हो ही चुकी है...यह बात भी जनता देख और समझ चुकी है...!!

जूता, चप्पल, थप्पड़ और स्याही... राजनैतिक, मानसिक या प्रायोजित....??

जूते चप्पल, थप्पड़ और स्याही फेंकने की कला का ज़ोरदार प्रदर्शन जितना हमारे देश में होना शुरू हुआ है...वो हैरत में डालने वाला है...इराकी पत्रकार मुन्तजिर अल जैदी के जूते की तर्ज़ पर ....तड़ा तड नक़ल जारी है.......अब इसमें कई लोचे भी हैं.....कुछ जूते, चप्पल, स्याही और थप्पड़  तो राजनैतिक  थे, कुछ मानसिक...और कुछ प्रायोजित....कुछ में तो मारने वाले की चाँदी हो गयी...कुछ में पड़ने वाले की...शरद पंवार को थप्पड़ मारने वाले के थप्पड़ का कारण मानसिक निकला.... यह उसकी डाक्टरी रिपोर्ट से पता चला... मानसिक थप्पड़ और जूते के पीछे क्रोध और आवेश भी शामिल होते हैं...यह बात भी इस में निहित है.....कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी  को  जूता दिखने वाले  राजस्थान के सीकर निवासी सुनील  कुमार  का  जूता राजनैतिक  निकला , वो भाजपा से सम्बंधित एक संगठन से काफी अरसे से जुड़ा रहा था...   उदाहरणों की कमी नहीं है... स्याही डाल खुद को राजनीति में चमकाने की इच्छा रखने वाले सिद्दीकी ने बाबा को दो दिन तक मीडिया में चमका दिया.......प्रशांत भूषन के थप्पड़ मार कर सरदार बग्गा जी ने अपनी भगत सिंह क्रान्ति सेना की दुकान चमका डाली....और देहरादून में  किशन लाल नाम के एक व्यक्ति ने जूता उछाल कर टीम को मीडिया में चमका दिया...अब यह जूता राजनैतिक तो हो नहीं सकता...प्रायोजित ज़रूर हो सकता है...प्रायोजक कौन है....? अरे भाई वही होगा....जिसको इस जूते से लाभ ज्यादा हुआ हो...अर्थात जिस जूते, चप्पल, थप्पड़ या स्याही से पड़ने वाली पार्टी को लाभ और सिर्फ लाभ ही हो ...उस को तो हम प्रायोजित ही कह सकते हैं.....!


टीम अन्ना का देहरादून दौरा जूते की वजह से चर्चा में ज्यादा रहा। जूता, चप्पल फेंकना एक फैशन होता जा रहा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। लोकतांत्रिक मर्यादाओं की सीमाओं के भीतर रहकर विरोध करने के बजाय जूता चप्पल फेंकना स्याही फेंकना, थप्पड़ मारना जैसी हरकतों के बढ़ जाने से आपसी टकराव होंगे, मारपीट होगी और यह हमें अराजकता की ओर ले जाएगा। टीम अन्ना चूंकि राजनीति की बिसात पर उतर आई है इसलिए उसे भी यही सब, या इससे ज्यादा की  भी  झेलने की आदत डालनी होगी ..जो की अक्सर इस बिसात पर होता ही रहता है...!!

तहरीर चौक से जनलोकपाल आन्दोलन तक सिर्फ विफलता~~~~~!!

अप्रैल' 2011  में जब समाजसेवी अण्णा हजारे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने दिल्ली के जंतर-मंतर गए और उनके तथाकथित आमरण अनशन के समर्थन में हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई तो मीडिया के एक वर्ग ने इस आंदोलन की तुलना इजिप्ट के तहरीर चौक क्रांति से की थी।सोशल नेटवर्किंग मीडिया के उस वर्ग ने अण्णा के आंदोलन में जितना बखूबी सदुपयोग किया गया उससे भी अण्णा लीला और जास्मिन क्रांति का साम्य दिखाना स्वाभाविक था। जिस रिकी पटेल ने इजिप्त, जॉड्रन और ट्यूनीशिया में सोशल मीडिया का उपयोग किया था वही रिकी पटेल अण्णा हजारे की अनशनलीला में भी योगदान कर रहा था। यह दुर्दशा अकेले जंतर-मंतर की मौखिक क्रांति की ही नहीं है, बल्कि अरब की जास्मिन क्रांति भी विफलता का सामना कर रही है। जब अण्णा ‘मौन व्रत’ पर थे ठीक उसी समय जास्मिन क्रांति के भूक्षेत्र अरब में महत्वपूर्ण घटनाएं हुई।


 तहरीर चौक की क्रांति के साथ ही लीबिया में शुरू हुई बगावत में छिड़े युद्ध में कर्नल मुअम्मर गद्दाफी अपने गृह नगर सिरते में मारे गए। गद्दाफी के बाद सऊदी अरब के 86 वर्षीय राजकुमार की मौत और ट्यूनीशिया में चुनाव सम्पन्न हुए। जास्मिन क्रांति में शामिल सीरिया में बशर-अल-असद की सत्ता के खिलाफ हिंसा का दौर जारी है, यमन अराजकता के अंधड़ से मुकाबिल है। इजिप्त तहरीर चौक की क्रांति पर पछता रहा है। आठ माह पुरानी क्रांति घायल, रक्तरंजित और भ्रमित है, विशेषकर बड़े पैमाने पर अब अलोकप्रिय है। कोई नहीं जानता कि इसका नियंत्रा किसके पास है? शक है कि यह सचमुच क्रांति थी या सैनिक तख्तापलट। अधिकांश इजिप्तवासी निराश और खौफजदा हैं।होस्ने मुबारक को हटाना सेना को तो मुबारक हुआ है, जनता को नहीं।  अमेरिका के पैसों पर पलने वाली सेना अब वहां आम निहत्ते नागरिकों का क़त्ले आम कर रही है...कुछ दिनों पहले पूरे विश्व में मिश्री सेना द्वारा सरे आम एक महिला को निर्वस्त्र कर जूते लातों से निर्ममता से पीटने का विडियो और समाचार प्रकाशित हो चुके हैं...तहरीर चौक रो रहा है...उधर  बहरीन में जास्मिन क्रांति विफलता का स्वाद चख चुकी है। अब मुंबई में जनलोकपाल पर हुए असफल आन्दोलन के बाद ....केवल असफलता के समाचार निकल कर आ रहे हैं... टीम अन्ना के निरंकुश बर्ताव ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है...जिस टीम ने कभी अपने मंच से उमा भारती को चढ़ने नहीं दिया था...जिस ने रामदेव से परहेज़ किया था...अब वही टीम अन्ना के सदस्य ...रामदेव की शरण में जा रहे हैं...उन रामदेव की ...जिनका काला धन मुद्दा...हाशिये पर पड़ा है...बाबा काले धन पर जोर लगाएं.....या जनलोकपाल पर......कुल मिलकर ...देखा जाए....तो तहरीर चौक की क्रान्ति से लेकर....लीबिया, यमन, ट्यूनिसिया, सीरिया...की प्रायोजित क्रांतियों के साथ  जनलोकपाल आन्दोलन का  हश्र  भी लगभग...एक जैसा ही हो चुका है.....!!

सोशल नेटवर्किंग साइट्स से राष्ट्रिय एकता और धार्मिक सौहार्द की कीमत पर समझौता हरगिज़ नहीं~~!

देश में सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लगाम की अटकलों पर नज़र डाली जाए तो पायेंगे कि ..इसके मूल में राष्ट्रिय एकता, सौहार्द और धार्मिक समन्वयता को बिगाड़ने वालों पर शिकंजा कसने और सजा  का ही विचार है....न कि किसी राजनैतिक पार्टी या आन्दोलन पर लगाम लगाने की....यह अफवाहें फैलाने वाले वही लोग हैं...जो कि इस गंदगी को फेसबुक पर फैला कर खुश हो रहे हैं.....जो फेसबुक यूज़र ज्यादा राजनैतिक ग्रुप्स के सदस्य रह चुके हैं...उन को पता होगा कि कई ग्रुप तो सिर्फ विद्वेष और घृणा फैलाने के लिए ही बने हैं...काफी यूज़र इस बात के गवाह भी होंगे...भले वो सामने ना आयें...या सहमती ना दें...पर यह सच है....फेसबुक पर ऐसे सैंकड़ों  घृणित ग्रुप्स की बड़ी लम्बी लिस्ट हैं...जैसे  कि समाचार हैं...कि गूगल, फेसबुक और 19 अन्य सोशल नेटवर्किंग साइटस पर विभिन्न वर्गों  के बीच वैमनस्य बढ़ाने के आरोप में कानूनी कार्रवाई के आदेश कोर्ट ने दिया हैं..  अदालत ने कहा था कि शुरुआती प्रमाणों के आधार पर आरोपी  21 कंपनियों के खिलाफ वर्ग वैमनस्य बढ़ाने, राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाने और लोगों की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने के लिए समन जारी करने का मामला बनता है।
भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का गलत प्रयोग  कुछ प्रदूषित  मानसिकता वाले संगठनों द्वारा प्रायोजित ग्रुप और कुछ हद तक धार्मिक वैमनस्यता फैला कर वोट बटोरने वाली राजनैतिक पार्टियाँ करती चली आ रही हैं...!!

 राजस्थान में पिछले माह तीन शहरों में ऐसे ही फेसबुक पर  धार्मिक वैमनस्यता फैलाने वाले फोटो को लेकर तीन चार दिन तक जमकर उपद्रव हुआ था...जिसको की बाद में राज्य व केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद हटा दिया गया...अब ऐसे में देश के किसी भी धर्मं का आदमी नहीं चाहेगा कि उसके धर्म का फेसबुक या अन्य साइट्स पर अपमान हो....इसलिए केंद्र सरकार और सूचना प्रसारण मंत्रालय को कोई रास्ता इस साइट्स के अधिकारीयों के साथ मिल बैठकर निकालना होगा.... .जिससे कि देश में कम से कम ऐसे ज़बरदस्त सोशल नेटवर्किंग साइट्स का दुरूपयोग न हो पाए...और साथ ही मैं जो करोड़ों यूज़र इस का सदुपयोग कर रहे हैं...उनको निराशा भी ना हो....और रास्ता होगा भी.....निकलेगा भी....क्योंकि इस सूचना क्रान्ति के दौर में कुछ भी असंभव नहीं...! और साथ ही में कोर्ट यह भी सुनिश्चित करे कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन भी ना हो....तीसरी बात यह क़दम राष्ट्रीय एकता..अखंडता और सौहार्द को बचने के लिए हो.....ना कि राजनीतक लाभ उठाने या फिर किसी दल विशेष को निशाना बनाने के लिए...!और इसके समर्थन में उन सभी यूज़र्स को आगे आना चाहिए जो कि इस मंच का रचनात्मक उपयोग कर रहे हैं...जो इसकी उपयोगिता समझते हैं...!!