बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

मैं तो चला बाबा बनने~~~~~!!


दोस्तों कई दिनों से मन ललचा सा रहा है...सोच के घोड़े लगातार दौड़ लगा रहे हैं...मन में वैराग सा पैदा हो रहा है...मगर यह वैराग जीवन से नहीं ...अपनी बेंक स्टेटमेंट स्लिप से है....बचत खाते में .कोने में दुबके पड़े कुछ हज़ार रुपयों की चीखों से उपजा है  ....देश में सोचा  जाए तो पढ़ लिख कर आदमी या तो दस बीस हज़ार की सरकारी नौकरी कर पाता है...या किसी अमीर के घर जन्म लिया हो तो डाक्टर..इंजिनीयर ..सोफ्ट वेयर कंसल्टेंट..आदि बनने का पूरा जुगाड़ होता  है...परन्तु इन को भी किसी न किसी के अधीन तो काम करना ही होता है...सर पर कोई आला अधिकारी डंडा लिए खड़ा ही होता है...और दूसरे ...देखा जाए तो धंधा या बिजनेस करने के लिए तगड़ा रोकड़ा अंटी में होना चाहिए....उसके बाद भी धंधा चल निकलने की कोई फुल गारंटी नहीं है...इन्वेस्ट करने के बाद भी घाटे का डर सताता ही रहता है ! तो बात हो रही थी मन ललचाने की... सोच के घोड़ों की दौड़ की...बात यह हुई कि जीवन की आपा धापी और दस बीस हज़ार की नौकरी के बाद भी आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैय्या वाली कहावत एक कान से होकर दूसरे से रोज़ निकल रही थी...कि एक दिन टी.वी. पर व्यस्त टाइम स्लोट में एक न्यूज़ चेनल पर देखा कि एक सज्जन विशाल कुर्सी पर बैठ कर पढ़े लिखे लोगों को हाथ उठा उठा कर आशीर्वाद दे रहे थे... कुछ देर देखने और सुनने  पर पाता चला कि यह सज्जन तो एक बाबा हैं....नाम है निर्मल बाबा....और यह उनका दरबार है....और मज़े की बात यह थी कि इस दरबार का नाम भी निर्मल दरबार था...दरबार में उपस्थित प्रजा हज़ारों में थी...सब पढ़े लिखे और खाते पीते घरों के लग रहे थे...आधे घंटे में मुझे सारा गणित समझ आ गया...!

गूगल बाबा से सलाह ली तो पाता चला कि यह निर्मल बाबा प्रति प्रजा 2000/- रूपये लेते हैं...तभी दरबार में प्रवेश मिलता है...सोच के घोड़े अपनी लगाम तुडवाने लगे...मन कुलांटे मारने लगा...कहाँ दस बीस हज़ार की नौकरी...और कहाँ इन बाबा का अपार व्यापार...कोई जीवन जीने की कला सिखा कर करोड़ों कमा रहे हैं...कोई योग ...कोई भोग...कोई तावीज़, कोई भभूत  कोई गण्डा करके धन कुबेर बन बैठे हैं...और तो और देश में और समाज में रुतबा बढ़ा सो अलग......पहले तो नेतागिरी में लोग पिट पिटा कर भी जाने को तैयार हो जाते थे...मगर अब यह बाबा गिरी का धंधा इतना ज़बरदस्त चमका है कि नेता भी इनके चरणों में नज़र आने लगे हैं.... बस तय कर लिया कि अब और अपना जीवन व्यर्थ नहीं होने दूंगा....जल्दी ही बाबा गिरी का धंधा पकड़ना होगा.... ना किसी की चाकरी ...ना ही कोई बोस न कोई अफसर...ना बिजनेस में घाटे का लोचा..वर्तमान समय में बाबागिरी से अच्छा कोई धंधा नहीं है,
.खूब फल फूल रहा है... इसके कई फायदे हैं,  सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि इसमें आपको कोई निवेश  नहीं करना है, मतलब यह व्यवसाय बिना पैसों के शुरू किया जा सकता है...न किसी डिग्री की ज़रुरत न किसी शारीरिक मापदंड की ..बस शर्त यही है कि आपकी ज़बान केंची की तरह चलनी चाहिए...मस्तिष्क उससे भी तेज़...कुछ हाथ की सफाई के करतब भी आते हों तो सोने पे सुहागा  !

शुरू में दस बीस किराए भाड़े के चेले और चेलियाँ साथ में लेना होगा...कुछ दिन इधर उधर गाँव में तम्बू लगा कर प्रवचन...जीवन ज्ञान...संस्कारों पर दो चार भाषण...और काम शुरू...हर गाँव में एक एक कमीशन एजेंट रखना होगा...जो कि आये दिन इश्तिहार छपवा कर ...प्रचार प्रसार करता रहे...और बार बार तम्बू लगवाकर चढ़ावे का इंतज़ाम करता रहे...हर गाँव और शहर में कुछ धनी भक्तों का जुगाड़ हुआ...दो चार छुट भैय्ये नेता तम्बू प्रवचन अटेंड कर गए तो समझो....अपन तर गए...कुछ दिन बाद शहर में आश्रम का जुगाड़ हो जाएगा...एक कुटिया...छोटी सी बगीची दो चार लाल पीले झंडे...कुछ अगर बत्तियां...एक लाउड स्पीकर...सुबह शाम प्रवचन...धंधा शुरू...बन गए अपन भी गुरु...!  बीते कुछ वर्षों से देखा गया है कि मंदिरों और बाबाओं को अपार चढ़ावा मिला है...किसी भी बाबा का जब भी कही पैसा कौड़ी के बारे में ज़िक्र आता है...तो 400 या 500 करोड़ से नीचे की तो बात ही नहीं होती....एक बाबा हैं बाबा खालिद बंगाली...सुना है उनके मोबाइल का बिल लाख रूपये प्रतिमाह से कम नहीं आता...बाप रे...किसी के पास राल्स रायस गाड़ियों का काफिला निकलता है...तो किसी के पास अरबों का सोना...साथ में आश्रम और आश्रम की भूमि अलग...किसी के पास राष्ट्र पति तक शीश झुकाने जाते हैं....तो किसी के पास प्रधान मंत्री ..से लेकर टाटा और अम्बानी .और फरहा खान, आमिर खान .शिल्पा शेट्टी ..तक....!


तो फिर लानत है दस बीस हज़ार की नौकरी को.....और धंधे पानी को...बाबागिरी जिंदाबाद...जब भेड़ों जैसी मानसिकता के भक्तो गण अपनी खून पसीने की कमाई बाबाओं पर लुटा रहे हों...तो अपुन क्यों स्टेंड बाई मोड़ में रहें... हींग लगे न फिटकरी ...रंग चोखा ...अब मैं तो चला बाबा बनने.... नाम भी रख लिया है....बाबा असमंजस दास...कोई रोके नहीं ...कोई टोके नहीं.....!!

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