सोमवार, 8 दिसंबर 2014

ये कौन लोग हैं ? अमर प्रेम के स्मारक ताजमहल के दुश्मन ??

कल एक मित्र के स्टेटस पर एक साहब ने दो एक लिंक पोस्ट कर दावा किया कि यह ताजमहल नहीं ...एक शिव मंदिर है या तेजोमहालय है, और इसके लिए उन्होंने किसी पुरुषोत्तम नागेश ओक द्वारा पेश की गयीं दलीलें भी दीं थी. मगर इन सबकी गहराई में न जाकर सोचा जाए तो कई बातें समझ आती हैं...पहली तो यह कि जो लोग इस विश्व धरोहर और अमर प्रेम के स्मारक ताजमहल के बारे में यह सब सुनियोजित षड्यंत्र कर रहे हैं, उसके मूल में केवल हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ाना मात्र ही है, वो हर स्मारक को हिन्दू मुस्लिम स्मारक के तौर पर देखना चाहते हैं, और दिखाने की चेष्ठा कर रहे हैं ! कुछ देर के लिए यदि मान लिया जाए कि यह शिव मंदिर या तेजोमहालय है..तो क्या करना है इसका..तोड़िएगा इसको ? या पूजा पाठ करना है इसमें ? क्यों हज़ारों सालों तक इस शिव मंदिर या तेजोमहालय की सच्चाई छिपा कर रखी गयी ? या फिर अचानक से पिछले कुछ वर्षों से यह ख़ुफ़िया अभियान चला कर इतिहास से कुश्ती कबड्डी खेलने का तमाशा क्यों ? ताजमहल के लिए लिखी गयी कई हिन्दू-मुस्लिम और अँगरेज़ इतिहासकारों और विद्वानो द्वारा सैंकड़ों किताबें ..इन दो चार पूर्वाह्गृह से ग्रसित इतिहासकारों के सामने झूठी कैसे हो गयीं ?

बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद किसे याद नहीं है ? हुआ क्या ? इतिहास से कुश्ती लड़ी गयी, सुनियोजित रूप से विध्वंस किया गया ? उसके बाद दंगों में सैंकड़ों लोग मारे गए ? उसके बाद ? अब यदि यही लोग यह जताते हैं कि  यह ताजमहल नहीं ...एक शिव मंदिर है या तेजोमहालय है, तो इनका पूर्वाहग्रह और इनकी नियत समझ आती है ! कल को कोई और इतिहासकार यह दलील देगा कि मुम्बई में विक्टोरिया टर्मिनल को भी किसी पुराने मंदिर को तोड़कर बनाया गया है ? या फिर दिल्ली और आगरा के किले भी किसी मंदिर को तोड़ कर बनाये गए हैं ? किस किस को आप झूठी दलीलें देकर तोड़ेंगे साहब ? और किस किस को आप नए नए नामो से नवाजोगे ? मुग़ल गार्डन को ? ढाई दिन की झोंपड़ी को ? क़ुतुब मीनार को ? हुमायूँ के मक़बरे को ? कश्मीर के शालीमार गार्डन को ? बुलंद दरवाज़े को ?

जिस सदी में हम जी रहे हैं...कई देश चाँद और ग्रहों पर चहल क़दमी कर भी आये हैं, मगर हम हैं कि मंदिर-मस्जिद के झगड़ों से बाहर निकलना ही नहीं चाहते...या कुछ लोग और संगठन ऐसे हैं जो यह नहीं चाहते कि लोग मंदिर-मस्जिद से आगे की सोचें...ऐसे लोग देश को पीछे ही धकेलना चाहते हैं...आगे ले जाना नहीं ! अमेरिका की एक ताजा सरकारी रिपोर्ट में विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों की सूची में अमेरिका और चीन के बाद भारत को स्थान दिया गया है, देश के युवा और वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं, सूचना क्रांति के दौर में हम विश्व से क़दम से क़दम मिला कर चल रहे हैं...देश का युवा अपने प्रयत्नो से भारत को उन्नति और प्रगति के पथ पर ले जाने को कटिबद्ध है ...ऐसे में साहब आप चाहते हैं कि लोग आपकी इन वाहियात दलीलों पर गाल बजाएं, तालियां बजाएं, समर्थन में मुंडी हिलाएं ? अफ़सोस कि ऐसा अब बिलकुल सम्भव नहीं है...एक विध्वंस से देश ने बहुत कुछ सीखा है .अब और नफरत नहीं...और विध्वंस नहीं, अब इतिहास से कुश्ती कबड्डी नहीं ! देश के करोड़ों युवा अपने कौशल से न सिर्फ एक खूबसूरत वर्त्तमान लिख रहे हैं....बल्कि देश को एक उन्नत और प्रगतिशील स्वर्णिम भविष्य की और ले जाने को कृत संकल्प है...उसे मंदिर-मस्जिद के झगड़ों से अब कोई दिलचस्पी नहीं...न ही अब वो इन से सहमत है...और ना ही उसकी इसमें रूचि है ! आप अपने पूर्वाहग्रह और इतिहास की पोटली सर पर लिए आवाज़ लगाते घूमते रहिये !

जय हिन्द !!

By : Śỹëd Äsîf Älì

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

'वैचारिक आतंकवाद' है मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन ~~!!

कीनिया में हुए आतंकी हमले में 6 भारतीयों सहित 68 लोगों की हत्या से न सिर्फ पूरा विश्व सहम गया है बल्कि हिंदुस्तान में भी दुःख की लहर है, सभी देश वासी आहत हैं, .... मारे गए सभी लोग निर्दोष थे यह बताने की ज़रुरत नहीं...मारने वाले अपने आपको एक संगठन अल-शबाब का बता रहे थे...यह वो ब्रेन वाश लोगों का झुण्ड है...जिसे इनके आकाओं ने अपने हित साधन के लिए और एक औज़ार की तरह इस्तेमाल करने के लिए ... मज़हब को तोड़ मरोड़ कर ...उनमें भावनाएं भड़का कर मैदान में छोड़ दिया है... सबसे बड़ी बात तो यह कि आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता...बल्कि यह एक तरह का वैचारिक आतंकवाद होता है...दुनिया में हर जगह अलग अलग तरह का आतंकवाद होता है...नार्वे में आंद्रे ब्रेविक ने जो किया वो भी आतंकवाद ही था..उसे कट्टर बना दिया गया था..आयरलेंड में भी किसी समय जमकर आतंकवाद का नंगा नाच हुआ था...जिससे ब्रिटेन ने भी पनाह मांग ली थी, अफ्रीका में अल कायदा से इंस्पायर्ड छोटे छोटे ग्रुप हैं....संगठन अल-शबाब भी इनमें से एक है !

सोमालियाई समुद्री लुटेरों को कौन नहीं जानता, यह सभी निर्धन देशों से हैं और पैसे के लिए और अमरीकी हथकंडों के खिलाफ काफी समय से हिंसा का तांडव मचाये हैं...न सिर्फ कीनिया बल्कि नाइजीरिया में भी यह ग्रुप बहुत सक्रीय हैं...सोमालिया भी इनसे अछूता नहीं है, पाकिस्तान, अफगानिस्तान का तो कहना ही क्या...मोसाद और इजराईल के आतंकी करतूतों पर शायद भारतीय मीडिया कभी लिखेगा/बोलेगा भी नहीं....क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया (Sponsored by USA-Britain) का पिछलग्गू जो है...और अपने ही देश में होने दंगों के नाम पर नरसंहार को भी भले ही आप आतंकवाद का नाम ना दें, पर यह भी मानवता के नाम पर कलंक की तरह ही है...और वैचरिक आतकवाद का एक नमूना ही है...और इससे भी वर्ष भर में उतनी ही जाने जाती हैं...जितनी कि आतंकवादी घटनाओं में.... और इसमें शामिल हिन्दू और मुस्लिम दोनों होते हैं.....और मरने वालों में भी दोनों ही होते हैं....मगर देखा जाए तो मरता हिंदुस्तानी है....धर्म के नाम पर ब्रेन वाश किये गए लोगों को यह पता नहीं होता कि वो धर्म के खिलाफ काम करने जा रहे हैं....इसी लिए शैलेश जैदी साहब ने भी खूब ही कहा है... >

खादियों में छुपाकर विषैले बदन।
दंश अपना चुभोने ये विषधर चले।।

मय के प्यालों में था आदमी का लहू।
बज्म में वैसे कहने को सागर चले।।

निकले 'हर-हर-महादेव ' घर फूकने ।
जान लेनें को 'अल्ला-हो-अकबर' चले।।

धर्म क्या है किसी को पता तक न था।
धर्म के नाम पर फिर भी खंजर चले।।

(शैलेश जैदी)

Śỹëd Äsîf Älì
September 24, 2013

इस्लामोफोबिया क्यों ..और कैसे ??

9/11 हमलों के बाद अमेरिकी शह पर #मुस्लिम_विरोध की एक नयी लहर को विस्तार दिया गया है, और इस लहर को नाम दिया गया है 'इस्लामोफोबिया', यानी इस्लाम के खिलाफ घृणा या इस्लाम से असम्यक् भय ! इस्लामोफोबिया शब्द की खोज ब्रिटेन में एक दशक पूर्व 1996 में स्वघोषित कमीशन ऑन ब्रिटिश मुस्लिम एंड इस्लामोफोबिया ने की थी. और अब इसका उपयोग मुसलमानों के विरुद्ध पूर्वाग्रह के रुप में किया जाने लगा है ! जाहिर है एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा किया जा रहा है! न सिर्फ अमेरिका बल्कि यूरोप के कई मुल्क इस इस नकारात्मक भेदभाव वाले लफ्ज़ इस्लामोफोबिया के बहाने मुसलमानो के धार्मिक अधिकारों पर पाबन्दी लगाने में जुट गए, जैसे कि फ़्रांस और बेल्जियम में बुर्क़े पर पाबंदी लगा देना, इसके पीछे कई वाहियात दलीलें दी गयीं हैं, उनका मानना है कि बुर्का बंधनमुक्त समाज की नीति के प्रतिकूल है !

इसके अलावा #पोलैंड #जर्मनी #स्विट्जरलैंड #ऑस्ट्रिया और #ब्रिटेन में भी इस्लामोफोबिया (इस्लाम के खिलाफ घृणा) तेज़ी से फैल रहा है यहाँ के लोग अपने देश में मुसलमानो को शक की नज़र से देखने लगे हैं, वास्तविकता यह है कि इस पूर्वाःग्रह के पीछे #यहूदी लाबी जमकर सक्रिय है, और #करोड़ों_डालर इस इस्लामोफोबिया मुहीम पर खर्च किये जा रहे हैं ! इस्लाम के खिलाफ पैदा किये जाने वाले इस घृणित हव्वे को अब कई देश अपने अपने हिसाब से केश कराने में लगे हैं...यदि #इंटरनेट को खंगाला जाए तो कई आश्चर्यजनक और काफी हद तक वितृष्णा पैदा करने वाले तथ्य सामने आते हैं। दक्षिणपंथी और मुस्लिम विरोधी संगठन...इस हव्वे का अपनी अपनी योजनाओं के हिसाब से भुना रहे हैं, नार्वे में आंद्रे ब्रेविक द्वारा किया गया नर संहार जिसमें तक़रीबन 77 लोगों को उस अकेले ने मौत की घाट उतार दिया था...वजह थी ..सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मुस्लिम विरोधी साइटों से उसका जुड़ा रहना !

ऐसे हालात में मुख्यधारा के #मुसलमानों को #क्या_करना चाहिए ?
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अब वक़्त आ गया है कि #दुनिया_के_मुसलमान इस धृणित लहर इस्लामोफोबिया के खिलाफ एकजुट हो जाएँ, और इसको बे-असर करने - झूठा साबित करने के लिए आगे आयें, और गैर इस्लामी भाइयों को इस्लाम की खूबियों से वाक़िफ़ कराएं, नफरत के इस ज़हर को नफरत और जोश से कम नहीं किया जा सकता, मुसलमानों को अपना आत्मनिरीक्षण करने की भी ज़रुरत है, कोशिश होनी चाहिए कि हम फौरी तौर (तत्काल) पर अपने ही समाज में हिंसक और उग्रवादी तत्वों से लड़ने और उन्हें बेनकाब करने की कोशिश करें। ये खासतौर से नज़रियाती (वैचारिक) तौर पर करना होगा, आखिरकार ये एक नज़रियाती जंग है इन लोगों को अपने धर्म को उग्रवादी मुसलमानों और जाहिल उलमा के हाथों से बचाने की कोशिश करनी चाहिए। मेरे मुताबिक यही एक रास्ता है कि हमें इस्लाम की अमन और सद्भाव के धर्म और बहुलवाद वाले समाजों में सह-अस्तित्व की समझ को स्पष्ट और ज़ोरदार अंदाज़ में प्रचारित करना चाहिए। और इसमें क़ुरान करीम की आयतें और नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहे वसल्लम (स.अ.व.) का करिदार हमारे लिए मददगार होगा। पूरी दुनिया के मुसलमान अगर इस नफरत की मुहीम 'इस्लामोफोबिया' के खिलाफ उठ खड़े हो जाए तो अमरीका और गिनती के यूरोपीय मुल्कों कि क्या मजाल कि इस नफ़रत के पौधे को आगे खाद पानी देने की हिम्मत करे !

#नोट:- अभी हाल ही में हैदराबाद में जनवरी में हुए जमात-ए-इस्लामी हिंद द्वारा यहां आयोजित स्प्रिंग ऑफ इस्लाम सम्मेलन में ब्रिटिश पत्रकार, #मोहतरमा_वॉन्नी_रिडले को वीजा देने से इंकार कर दिया था, बाद में उन्होंने वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए लड़कियों, महिलाओं और पत्रकारों के तीन सत्रों को सम्बोधित किया। यह वही मोहतरमा वॉन्नी रिडले है जिन्हे तालिबान ने 2001 में बंधक बना लिया था और 2003 में रिहाई के बाद खुद उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था, यह वॉन्नी रिडले मोहतरमा भी इसी 'इस्लामोफोबिया के खिलाफ अपनी आवाज़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुलंद किये हुए हैं ! आप इन Yvonne Ridley के बारे में इंटरनेट या फिर WIKIPEDIA पर तफ्सील से पढ़ भी सकते हैं, WIKIPEDIA लिंक यह है :- http://en.wikipedia.org/wiki/Yvonne_Ridley 



Śỹëd Äsîf Älì
February 3' 2014



ताकि और अरीब मजीद ना बन पाएं ~~!!

कल्याण के इंजीनियरिंग स्टूडेंट अरीब मजीद का नाम अब कोई अनजान नाम नहीं है,  ISIS के लिए काम करने गए अरीब मजीद को ईराक़ से लौटते ही NIA ने अपनी गिरफ्त में ले तो लिया गया था, और जैसा कि जांच और खुद उसके बयानों से यह बात सामने आयी है कि वो सोशल मीडिया के ज़रिये ही इस काम के लिए मोटीवेट हुआ था, और इस ब्रेन वाश करने में  एक लड़की का हाथ है। उसका नाम है ताहिरा भट्ट,जिससे उसकी दोस्ती फेसबुक पर हुई थी। अपने छह पन्ने के बयान में मजीद ने दावा किया है कि ताहिरा ने उसका और उसके तीन दोस्तों शाहीम तनकी, फहाद शेख और अमन टंडेल का ब्रैनवॉश कर इस काम के लिए उकसाया !!


सोशल मीडिया देखा गया है कि कई नौजवान उकसाने और  कट्टरता फैलाने वाली पोस्ट्स पर बिना सोचे समझे न सिर्फ ज्यादा तवज्जो देते हैं, बल्कि दिन रात इसी धुन में लगे भी रहते हैं...यह नौजवान फेसबुक पर कई उकसाने वाले ग्रुप्स और पेजेज़ के सदस्य भी हैं ! वो यह नहीं सोचते कि सोशल मीडिया पर उनकी इस गतिविधियों से क्या हासिल होने वाला है ? फेसबुक पर ऐसे कई ग्रुप्स भी हैं...जो कि मुसलमानो के नाम से कोई और ताक़ते आपरेट कर रही हैं, बिना सोचे समझे इनके जाल में फंसने वाले नौजवान खुद अपने लिए ही आफत का सामान इकठ्ठा कर रहे हैं ! 


पहले भी IM (इंडियन मुजाहिदीन) के जाल में कई नौजवान फंसे हैं, गिरफ्तार हुए हैं, और इसी IM की आड़ में सैंकड़ों बेगुनाह मुस्लिम नौजवान परेशान किये गए, हिरासत में लिए गए, कई छोड़े गए, कइयों का सामजिक, पारिवारिक जीवन बर्बाद हुआ ! अब इस ISIS के आकर्षण में फिर से मुस्लिम नौजवानो के फंसने की खबर आयी है तो यह भी एक बड़ा खतरा ही कहा जा सकता है !


मुझे इसी बात पर अपने फेसबुक दोस्त जनाब अकरम शकील साहब का एक स्टेटस याद आ गया, उन्होंने लिखा था कि :- " जन्नत जाने का रास्ता लीबिया, ईरान, सीरिया या ईराक़ से ही नहीं जाता है, आप जन्नत अपने ही मुल्क हिंदुस्तान में अच्छे आमाल करके भी जा सकते हैं ! "


ऐसे में सभी नौजवानो से यही अपील है कि कभी किसी के उकसावे या बहकावे में नहीं आयें, कभी किसी प्रकार की लालच में नहीं आयें, संदेहास्पद लोगों से दूरी बनाये रखें, ख़ास तौर पर इंटरनेट पर ऐसे अजनबी लोगों से सावधान रहें, जो मुसलमान के रूप में आपको गुमराह करना चाहे हों, उग्र विचार वालों से होशियार रहें, कभी तैश में नहीं आयें, किसी भी मुद्दे या घटना पर आक्रोशित कभी ना हों, विरोध करें तो लोकतांत्रिक तरीक़े से और क़ानूनी मर्यादा में रहते हुए करें, पूरी  होशमन्दी का सबूत दें, ताकि आगे कोई और अरीब मजीद ना बन पाये !
Śỹëd Äsîf Älì 
December 3, 2014 


सत्ता से दूरी - कांग्रेस के लिए ज़रूरी !!

भारत की आजादी के बाद से कांग्रेस ने सिर्फ 13 साल छोड़ कर बाकी सारे समय देश पर राज किया है. इस बार भी लगातार 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद उसे हार का सामना करना पड़ा है. इसका कारण बताने की ज़रुरत भी नहीं है ! गठबंधन सरकार की मजबूरियों को बहाना बना कर ढीली और कमज़ोर सरकार का तमगा लिया, कई निर्णय और विधेयक ठन्डे बस्ते में ही रहे, 2 G घोटाले से लेकर कॉमन वेल्थ घोटाले ने तथा कई और भी घोटालों ने भी इस हार में मुख्य भूमिका निभाई ! और इसका नतीजा 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत के रूप में सामने आया !


कांग्रेस की बुरी तरह से पराजय हुई, यहाँ तक कि कई राज्यों के विधान सभा चुनावों से लेकर स्थानीय निकायों के चुनावों तक में सूपड़ा साफ़ हो गया ! भले ही इसे मोदी लहर कहें मगर एक नज़रिये से देखा जाए तो यह कांग्रेस के विरुद्ध जनादेश भी कहा जा सकता है ! 


कांग्रेस के लिए सत्ता से दूरी क्यों ज़रूरी है, इसकी दलील यह है कि इस लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हवा के रुख को देखते हुए  कई दिग्गज कांग्रेसियों ने भाजपा को ज्वाइन किया है, जो कि कांग्रेस के लिए  ठीक ही रहा, यदि यह लोग कांग्रेस में ही रहते तो वफादारी किस प्रकार निभाते यह शायद कांग्रेसी जान चुके होंगे, दूसरी बात 10 साल सत्ता सुख भोगते भोगते कांग्रेस और उसके कई बड़े नेता अति आत्म विश्वास से लबरेज़ हो गए थे, फूहड़ बयान बाजियां जमकर हुईं, चमचा गिरी और चापलूसी की इंतिहा होगई, एक साहब ने तो सोनिया गांधी को देश की माँ तक कह डाला था, वहीँ दूसरी ओर  देश में सुलग रहे जनाक्रोश से भी पूरी तरह अनजान रहे,  और उस जनाक्रोश को अन्ना आंदोलन के ज़रिये विस्फोटित किया गया, बाद में रामदेव बाबा भी इसमें कूद पड़े ! 


कांग्रेस के लिए सत्ता से दूरी की ज़रुरत को समझने के लिए हमें 6 -7 वर्ष पीछे लौट कर सत्ता से 10 वर्ष दूर रही भाजपा और उसकी उस समय की स्थिति तथा अब की स्थिति पर भी एक नज़र डालना होगी, तभी इसे ढंग से समझा जा सकता है, उस समय भाजपा इतनी कमज़ोर थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी कमज़ोर आवाज़ या फिर काले धन के खिलाफ उसका विरोध एक औपचारिकता मात्र ही लगता था,  मगर जब भाजपा के थिंक टैंकों ने अपनी रणनीति  बदली और सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों को कांग्रेस के शासन के विरोध आवाज़ उठाने के लिए अपने साथ लिया तो स्थिति तुरंत ही बदल गयी,  इसका सबसे बड़ा उदाहरण भ्रष्टाचार के खिलाफ तैयार किया अन्ना आंदोलन और रामदेव बाबा का काला धन विरोधी आंदोलन ! यदि यह दो आंदोलन नहीं होते तो शायद भाजपा को यह प्रचंड बहुमत भी नहीं मिल पाता ! जनाक्रोश को सुनियोजित ढंग से समझ कर उसका मंथन किया गया !


कांग्रेस का अर्थ 'जीत' नहीं है, कांग्रेस का अर्थ केवल 'सत्ता' ही नहीं है, अब कांग्रेस किस स्थिति में है, किसी से छिपा नहीं है, सत्ता से दूर रहकर कांग्रेस को बहुत कुछ सोचना है,  पिछले दस सालों के लेखे जोखे से सबक लेना है, वर्तमान नीति बनानी है, भावी रणनीति पर भी काम करना है, और 2014 में हुए इस सत्ता परिवर्तन पर और उसके मूल कारणों पर भी मंथन करना है, समय बहुत है, हो सकता है इन्हे भी पूरे दस वर्ष उसी तरह प्रतीक्षा करना पड़े जैसा कि भाजपा को करना पड़ा था,  और यदि चेते नहीं तो हो सकता है 10 वर्ष से भी ज़्यादा प्रतीक्षा काल हो जाए, और यदि ऐसा हुआ तो 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा भी सच हो जाएगा !

Śỹëd Äsîf Älì
1st Dec., 2014

आप इतिहास रच सकते हैं मोदी जी, बशर्ते...!!

लगभग तीन महीने पहले AMU (अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) में मेडिकल परीक्षा के काम से अलीगढ जाना हुआ था, वहां क़याम के दौरान कई लोगों से पॉलिटिक्स पर बात चीत हुई,  वहां के लोगों ने बहुत ही विचारोत्तेजक बिन्दुओं पर ध्यान दिलाया, वहां की बात चीत में जो बाते निकल कर सामने आईं वो कुछ इस तरह से थीं कि ... पहली और सबसे बड़ी बात तो यह कि वहां के लोगों का यह कहना था कि नरेंद्र मोदी की इस बड़ी जीत से घबराने या आशंकित होने की बिलकुल ही ज़रुरत नहीं है, यह एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है, कोई भी राजनैतिक दल सत्ता पाने का अधिकारी होता है ! 


वहां के लोगों का यह भी कहना था कि प्रधान मंत्री पद की शालीनता, कर्तव्य, और गरिमा होती ही ऐसी है कि उस पद पर आसीन होने के बाद व्यक्ति में परिवर्तन स्वाभाविक होता है, और यही कारण है कि नरेंद्र मोदी की चुनावी आक्रामक शैली अब कहीं नज़र नहीं आ रही है, इस पद पर आसीन होने के बाद उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करने को बाध्य तो होना ही है, इस विशाल देश और उसकी की जनता का वर्तमान और भविष्य संवारने का ज़िम्मा और मौक़ा उन्हें मिला है, ऐसे मौके को खोना नहीं चाहिए और अपने आपको साबित करना चाहिए, लम्बी पारी खेलनी है तो सभी को साथ लेकर चलना चाहिए,  आपने वर्तमान जीत लिया तो भविष्य भी आपका है !


दूसरी अहम बात वहां के लोगों ने कही कि इस चुनाव और भाजपा की विराट जीत ने नरेंद्र मोदी को एक नायाब सुनहरा मौक़ा दिया है कि वो अगर ठान लें तो अपने आप को अटल बिहारी से आगे ले जाकर दिखा सकते हैं, और इतिहास में एक शाक्तिशाली प्रधान मंत्री के रूप में स्थापित हो सकते हैं, बशर्ते कि वो वर्तमान का सही और सार्थक उपयोग कर सकें, जो कि बहुत ही कठिन है ! कारण साफ़ नज़र आ रहे हैं कि जहाँ एक ओर इनकी ही पार्टी के योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे लोग लोग लव जिहाद और मदरसों पर आतंकी पैदा करने, गरबा में मुसलमानो को प्रवेश न देने जैसे मुद्दे लेकर धार्मिक उन्माद भड़काने के लिए सड़कों पर उत्तर आएं हैं, वहीँ दूसरी ओर संघ ने भी धीरे धीरे हिन्दू राष्ट्र का राग शुरू कर दिया है, यह बहुत दुखद है..और इससे ज़्यादा दुखद है.... इन सभी मामलों पर मोदी जी की चुप्पी !


ऐसे में यदि मोदी जी ने इन ताक़तों के सामने हथियार डाल दिए तो 2019 को शायद इन्हे जनता की कड़वी दवाई पीनी पड़ जाए, इसी लिए इस चुनावों में मिले विशाल बहुमत  का सम्मान करते हुए यदि मोदी जी अपने इन बयान बहादुरों के मुंह और प्रयासों पर लगाम लगा कर. संघ के प्रभाव से मुक्त होकर सभी करोड़ों देश वासियों के हित के लिए आगे बढ़ें तो उनको सभी का समर्थन और साथ मिलता रहेगा, देश के सभी वर्ग, धर्म के लोग भारत को बुलंदियों पर देखना चाहते हैं, एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं, वे सभी अपना सुरक्षित भविष्य और सुनहरा वर्तमान चाहते हैं !


हाल ही में  देश में हुए उपचुनावों के नतीजों के बाद बयानों में आये बदलावों और आज हिंदुस्तानी मुसलमानो के लिए दिए गए उनके बयानों से आशा की एक हल्की सी लौ तो झिलमिलाई है, अब उस लौ को आशा का दीपक बनाये रखने की पूरी ज़िम्मेदारी मोदी जी की है, देखना है कि इस पर वो कितने खरे उतरते हैं !!

(Śỹëd Äsîf Älì)

20/09/2014

विवाहित नारी : अर्धांगिनी या दासी ??

विवाहित नारी को झाड़ू पोंछा बर्तन रोटी करने वाली बाई, बच्चे पैदा करने वाली .. और पाँव दबाने वाली गुलाम समझने की कुप्रथा अब भी कई समाजों में चहल क़दमी कर रही है, और दुःख इस बात का है की इस कुप्रथा की सबसे बड़ी संवाहक खुद औरत ही है, आज भी कई जगह शादी योग्य लड़कों की माँओं को औरतों द्वारा यह कहते सुन सकते हैं कि अब और कितने दिन भर के काम कर कर के शरीर को कष्ट दोगी ? बहू क्यों नहीं ले आतीं ? यानी उनके लिए बहू एक बिना वेतन के घर के काम करने वाली महरी हो गयी, और साथ में बच्चे पैदा करने का काम भी बिलकुल फ्री ! कहीं न कहीं इस कुप्रथा के पीछे अशिक्षा भी बड़ा कारण रहा है, गाॉंवों और क़स्बों में अभी भी यह कोढ़ बहुलता से देखा जा सकता है ! इस नज़रिये से तो औरत की शादी होना .....अप्रत्यक्ष रूप से उसे दासता की बेड़ियों में जकड़ना ही हुआ ! 

यही कुछ हम कई फिल्मों और टी.वी. धारावाहिकों में भी देख सुन सकते हैं, जहाँ यह सब कुप्रथाएँ धड़ल्ले से जारी हैं, सरकार ने शराब, सिगरेट जैसी चीज़ों के प्रदर्शन पर तो रोक लगा दी है, मगर समाज में एक कोढ़ की तरह रची बसी इस कुप्रथा को कई रूपों में दिखाने से रोकने के लिए किसी प्रकार का कोई क़ानून नहीं है, क्या दहेज़, क्या अत्याचार और दमन, हर धारावाहिकों में परिवारों में बहुओं पर अत्याचार के अनेक रूप आप देख सकते हैं ! अधिकांश धारावाहिकों में बहू को एक काम करने वाली महरी की तरह ही पेश किया जाता रहा है, जो घर में सिर्फ खानदान का चिराग देने, झाड़ू-पोंछा-बर्तन करने और सब के पाँव दबाने के लिए ही ब्याह कर लाई जाती है ! क्या माँ बाप अपनी बच्चियों को इस दिन के लिए पैदा करते, पढ़ाते लिखाते हैं कि कल को वो दहेज़ के साथ किसी घर में एक अवैतनिक महरी बन कर जाए ? 

जो लोग दहेज़ के बिना बहु घर नहीं लाते, और जिन लोगों के घरों में औरतों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार होता है, उनकी बेटियों के साथ अगर कोई वैसा ही व्यवहार करे तो चीख पुकार मच जाती है, ऐसा दोहरा रवैया आखिर क्यों ? किसी की बेटी को लोग अगर ब्याह कर घर लाते हैं, और उसे बेटी का दर्जा देने से परहेज़ करते हैं तो उन्हें कोई हक़ नहीं कि अपनी बेटियों के लिए ऐसा ही दर्जा चाहें ! वो क्यों इस बात की आशा करते हैं कि उनकी बेटी ससुराल में रानी बन कर रहे, नौकर चाकर चारों तरफ रहें ? सामाजिक और पारिवारिक परम्पराएँ निभाना अलग बात है और सामाजिक कुरीतियों की भेंट चढ़ना अलग बात !  

पति पत्नी जीवन रुपी गाडी के दो पहिये होते हैं, अगर एक कमज़ोर या एक अधिक भरी पड़ जाए तो फिर यह गाडी चलती नहीं ...घिसटती है, आज जहाँ लड़कियां पढ़ लिख कर ऊंचाइयों को छू रही हैं, हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही हैं, चाहे वो सेना हो या पुलिस, बैंकिंग हो या मेडिकल, राजनीति हो खेल, हर कहीं परचम बुलंद किये हुए है, पुरुषों के कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं, ऐसे में इस तरह की पिछड़ी हुई सोच, और कुरीतियों के ख़त्म नहीं हो पाने के पीछे के कारणों को खत्म करने के लिए नयी पीढ़ी को बीड़ा उठाना ही होगा, ख़ास कर युवकों को आगे आकर इस अंतर को ख़त्म करना होगा, और इसकी शुरुआत अपने अपने घरों से ही करने की सोच लें तो इस कुप्रथा को खाद पानी मिलना धीरे धीर कम हो जाएगा...और आशा है कि यदि ऐसे प्रयास बड़े स्तर पर होने लगें तो आने वाले समय में यह कुप्रथा केवल क़िस्से कहानियों में ही सुनने को मिले !!

बहुत याद आते हो बाबूजी !!

मेरे वालिद मरहूम सय्यद हामिद अली जिन्हे उस दौर की फुटबॉल की दुनिया में 'भैया' के नाम से जाना जाता था, राजस्थान के टोंक शहर के रहने वाले थे, उनके वालिद (मेरे दादा) पुलिस में सुपरिन्टेन्डेन्ट थे, उनके बेहतरीन खेल का डंका न सिर्फ राजस्थान और देश में ही बजता था, बल्कि पाकिस्तान में भी उनके खेल को सराहा गया था, वो राजस्थान पुलिस के पहले राष्ट्रिय खिलाडी भी थे, वो दौर था जब जयपुर में फुटबॉल के लीग मैचेज़ हुआ करते थे, महाराजा कालेज में खेली जाने वाली इस लीग में वालिद साहब को राजस्थान क्लब से खेलने के लिए टोंक से बुलवाया जाता था !


वालिद साहब ने अपनी ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की थी, और 1945 से लेकर 1947 तक वो अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की फुटबॉल टीम के कप्तान भी रहे थे, आज भी वहां स्पोर्ट्स हाउस में उस दौर की टीम के बड़े बड़े नाम पट्टों पर उनका नाम दर्ज है ! साथ ही उन्हें अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का "कलर" भी मिला था, जो कि बिरले खिलाडियों को ही मिलता था ! 


जब वो प्रसिद्द खिलाडी मगन सिंह तंवर के नेतृत्व में पाकिस्तान खेलने गए तो उनके खेल से  प्रभावित हो कर उन्हें वहां उन्हें फ़ौज में लेफ्टिनेंट का पद तक देने की पेशकश की गयी थे, जिसे उन्होंने नकार दिया था, इसके बाद उन्हें ओकाड़ा मिल के मालिक ने 800 /- रूपये महीना और रहने को बांग्ला देने की पेशकश भी की थी, साथ ही उन्हें बेहतर तकनीक सीखने के लिए इंग्लैंड में ट्रेनिंग में भेजने की मंशा भी जताई थी, मगर वालिद साहब को अपने शहर टोंक से बहुत लगाव था, वो किसी भी पेशकश को नकारते ही गए, आखिर में उनका खेल देख कर उस समय पुलिस के DIG स्व. लक्षमण सिंह जी ने उन्हें पुलिस से खेलने और पुलिस ज्वाइन करने को मना ही लिया ! और उनको सीधा राजस्थान पुलिस में सब इन्स्पेक्टर का ओहदा दिया गया, इस ओहदे को उन्होंने बड़ी ही ईमानदारी से निभाया, उनकी पहचान एक ईमानदार, निडर, क़ानून के ज्ञाता और गरीबों के हमदर्द के रूप में आज भी है, आज भी पुलिस महकमें में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है !!  25 फ़रवरी 2006 को वालिद वालिद साहब जन्नत नशीं हुए थे, वो एक बेहतरीन और ईमानदार पुलिस अधिकारी थे, एक अच्छे बेटे, अच्छे भाई, अच्छे पति, और दुनिया के सबसे अच्छे पिता थे,  मुझे फख्र है कि मैं उनका बेटा हूँ, वो आज भी मेरे अंदर धड़कते हैं, कोशिश करता हूँ कि उनके उसूलों और नज़रिये पर चलने की पूरी पूरी कोशिश करूँ !


आज आप बहुत ही याद आये बाबूजी !!!!  


(मैं शुक्रगुज़ार हूँ खेल पत्रकार ऐ. गनी साहब का जिन्होंने 21 फ़रवरी 2002 को भास्कर में वालिद साहब पर यह लेख लिखा) 

एक आम जूते की आत्मकथा ~~~ !!

सादर नमस्कारजी हाँ मैं जूता हूँ, मुझे भला कौन नहीं जानता ? हिंदी में जूता , अंग्रेजी में Shoes , पंजाबी में ਸ਼ੂਜ਼ (जुत्त ) , जापानी में दोसोकू , संस्कृत में पादुका ! मानव शिशु जब संभल कर माँ बाप की ऊँगली पकड़ कर चलना सीखता है, तभी से अपनी ड्यूटी पर लग जाता हूँ, और तभी से मैं इंसान का साथी बन जाता हूँ,  उसके शरीर का बोझ उठता हूँ, धूल हो या कीचड, पहाड़ हो या तलहटी, मौत हो या ज़िन्दगी, बस का सफर हो या ट्रैन का, हवाई यात्रा हो या समुद्री यात्रा, मंगल ग्रह की यात्रा हो या चन्द्रमा की, मैं हर जगह सदा मानव के साथ रहा हूँ, उसके रास्ते को कष्टकारी होने से बचाता हूँ, लोग मुझे सिर्फ सोते समय मुझे परे करते हैं !


मेरी महिमा भी कम नहीं है, आप मेरे ईराक़ी भाई को ही ले लीजिये जो ईराक़ी पत्रकार मुन्तज़र अल ज़ैदी के पाँवों की शोभा बढ़ा रहा था, और जब वो पाँव से निकल कर बुश की तरफ दौड़ा तो पूरे विश्व में उसकी शौहरत का डंका बज गया, अपुष्ट ख़बरों के अनुसार अब वो जूते संग्रालय की शान बढ़ा रहे हैं, इसी परंपरा को भारत में भी अपनाने की होड़ लग गयी थी, फिर तो हर कोई जब जी में आये हमें किसी भी नेता पर उछाल दिया करता था, चाहे वो पी चिदंबरम पर वर्ष 2009 में जूता फेंकने वाले पत्रकार जरनैल सिंह हो या प्रकाश सिंह बादल पर जूता फेंकने वाले, या फिर राहुल गांधी की सभा में जूता उछालने वाले,  या फिर हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जनसभा में जूता उछालने वाले, सभी को एक चस्का लग गया, और इस परंपरा को आगे बढ़ाने में जुट गए, भले ही हमारी यह उछाला उछाली कई बार राजनैतिक दलों द्वारा स्पांसर ही क्यों न की गयी हो !


और यह हम ही हैं जिसे हैदराबाद से लाने के लिए मायावती का वायुयान एक ऑफिसर और दो सुरक्षा गार्ड के साथ लखनऊ से उड़ान भरता था, और यह हम ही हैं जिसके बेहद शौक़ के कारण तमिलनाडु में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता और उसकी सखी को सत्ता से उखाड़ फैंका गया था, आज भी लोग मज़ाक में जयललिता के जूता प्रेम का ज़िक्र कर ही देते हैं ! और यह वही नेताओं का जूता है जिसे नेताओं को पहनाते या जिसके फीते बांधते कई प्रशासनिक अधिकारियों के फोटो कई बार मीडिया में नज़र आते हैं, हाल ही में गुजरात के सीमाई इलाके के दौर पर गये गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सेना के जवान से अपने जूते का फीता बंधवाया था !


हम कितने ही जर्जर क्यों न हो जाएँ मानव के काम आते ही रहते हैं, मेरे मालिक मेरी खस्ता हालत होता देख घर से बहार फेंक देता है तो भी मैं किसी और गरीब मानव के काम अवश्य आता हूँ, मेरी भी कई प्रजातियां हैं, जैसे कुछ चमड़े के घराने के, तो कुछ फाइबर के घराने के, तो कुछ प्लास्टिक के घराने के, और वैश्विक स्तर पर हमें कई बिरादरियों में बाँट दिया गया है, जैसे Adidas , Nike , Puma , और भारत में बाटा से लेकर लखानी तक, और लिबर्टी से लेकर केम्पस और मेट्रो शूज़ तक !

मगर यहाँ अंत में आकर हम जूतों को एक बात से बहुत संतुष्टि है और गर्व है कि आप मानवों की संगत में लगातार रहते हुये भी हमने खुद को आपकी सभ्यता से बचा कर रखा. हमारे लिये क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या सिख और क्या ईसाई, सब एक हैं. हम सबकी एक समान ही नि:स्वाथ सेवा करते हैं, और सेवा करते हुए अपने आपको होम कर देते हैं !!

(Śỹëd Äsîf Älì)


Dr. Jane Goodall : एक महिला जिसने अपना जीवन चिम्पेनजियों के लिए समर्पित कर दिया !!

डॉ. जेन गुडॉल (Jane Goodall) का नाम विश्‍व के सम्‍माननीय जंतु वैज्ञानिक (Zoologist) के रूप में लिया जाता है। जेन गुडाल का जन्म 3 अप्रेल 1934 को लन्दन में हुआ था, उन्होंने डार्विन कालेज, केम्ब्रिज और न्यूहेम कालेज, कैम्ब्रिज से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी,  शिक्षा पूरी करने के बाद जेन गुडाल ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जॉब किया उसके बाद वो अपने एक मित्र की मार्फ़त केन्या में  मशहूर anthropologist ....Louis Leakey के संपर्क में आयीं और उसके बाद उनको साथ एंथ्रोपोलॉजी से सम्बंधित शोध भी किया, इसी दौरान उन्हें चिम्पेनजियों पर भी काम करने के लिए दिए गए ! अफ्रीका में जेन गुडाल ने न सिर्फ वहाँ के वन्य जीवन को बहुत नज़दीकी से देखा...बल्कि चिम्पेनजियों के संकट ग्रस्त जीवन ने भी उनको बहुत प्रभावित किया !

उन्होंने तय कर लिया कि वो खुद अपने दम पर अफ्रीका के इन चिम्पेनजियों के जीवन को बचने और उनके पुनर्वास लिए काम करेंगी, और आखिर में उनको इस कार्य के लिए ग्रानाडा टेलिविज़न के रूप में स्पांसर भी मिल गए जो कि उनके इस एनीमल डॉक्युमेंट्री प्रोजेक्ट के लिए धन तथा अन्य सुविधाएँ देने को राज़ी हो गए, डा. जेन गुडाल ने अपनी माँ और एक अफ्रीकी रसोइये के साथ जुलाई 1960 को अपना काम अफ्रीकी देश तंजानिया के गोम्बे स्‍ट्रीम नेशनल पार्क शुरू किया जो कि अभी तक जारी है...डा. जेन गुडाल ने चिपेन्जियों के लिए अफ्रीका में 1960 से लेकर 1995 तक काम किया था !

डा. जेन गुडाल ने घने जंगलों में रहकर चिंपाजियों के साथ व्‍यतीत किया और उनपर शोध कार्य किया। उन्‍होंने अपने शोध के द्वारा बताया कि हम मानवों की तरह चिंपैंजी भी साथ-साथ खेलना, काम करना, लड़ना आदि काम करते हैं, ज गुडॉल विश्‍व भर में गोम्‍ब जैसे कई स्‍थानों के जंगलों को नष्‍ट करने वाले लोगों से बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं। उनके द्वारा स्‍थापित संस्‍था ‘रूट्स एण्‍ड शूट्स’ (Roots & Shoots) 70 देशों के स्‍कूल एवं कॉलेजों को पर्यावरण पशु और जनजाति की रक्षा के लिए प्रेरित कर ही है। एक चिप रिसर्चर होने के नाते वे संयुक्‍त राष्‍ट्र की शांति की संदेशवाहक (UN Messenger of Peace) भी हैं ! नेशनल जियोग्राफिक मेगज़ीन के कवर पेजो पर डा. जेन गुडाल की चिम्पैंजियों के साथ वाली कई फोटो को स्थान मिला ! 

26 वर्ष की अवस्‍था में चिम्‍पैंजियों पर शोध कार्य प्रारम्‍भ करने वाली डा. जेन गुडॉल की बदौलत इंसान के सबसे नज़दीकी इस चिम्पैंजी के जीवन के छिपे हुए हर पहलू को विज्ञान तक  पहुँचाया है...और इस प्रजाति को विलुप्ति के कगार से बचाया भी है...इनके अद्वितीय कार्यों के लिए जेन गुडाल को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने पी,एच,डी, की उपाधि प्रदान की है, और इसके अलावा उन्हें कई बड़े प्रतिष्ठित विश्व विख्यात पुरस्कार भी मिल चुके हैं : इनको मिले विश्व विख्यात पुरस्कारों की लाइन इतनी लम्बी है कि यहाँ देने से यह लेख बहुत ही लम्बा हो जाएगा...संक्षिप्त में आप इस लिंक पर क्लिक कर उनके जीवन और कार्यों तथा पुरस्कारों के बारे में विस्तार से पढ़ सकते हैं...लिंक यह है :- http://en.wikipedia.org/wiki/Jane_Goodall !



डा. जेन गुडाल आजकल कई फार्मास्‍यूटिकल कंपनियों में व्‍यस्‍त हैं तथा उसके साथ ही साथ पर्यावरण संरक्षण के कार्य में भी लगी हुई हैं। गुडॉल ने अपने अध्‍ययनों का निचोड़ स्‍वयं द्वारा रचित दो किताबों ‘वाइल्‍ड चिम्‍पैंजीस’ (Wild Chimpanzees), ‘इन द शैडो ऑफ मैन’ (In the shadow of man) में दिए हैं। इसके अतिरिक्‍त उनके पुस्‍तकें 'अफ्रीका इन माई ब्‍लड' (Africa in my blood) एवं 'हार्वेस्‍ट फॉर होप: एक गाइड टू माइंडफुल ईटिंग' (Harvest for Hope : A Guide to Mindful Eating) भी काफी चर्चित हैं !

आज उनके कार्यों को विश्‍व भर में मान्‍यता मिल रही है तथा अफ्रीका के घने वर्षा वनों में चिपेन्जियों का जीवन सुरक्षित होने लगा है...तथा चिंपैंजियों की अठखेरियां एक बार फिर जीवंत हो गई हैं !

सपनो की ऑफ्टर सेल्स सर्विस !!

जिस तरह से तगड़ी मार्केटिंग के ज़रिये बाजार में किसी भी प्रकार का उत्पाद जमकर बेचा जा सकता है, उसी तर्ज़ पर अब राजनीति में भी करोड़ों खर्च कर मार्केटिंग के ज़रिये सपनो के बेचने की परंपरा चल निकली है, मार्केटिंग का मूल मन्त्र यही होता है, कि बेचे जाने वाले उत्पाद को दूसरी कंपनी के उत्पादों से किसी भी तरह से बेहतर साबित करना, और कैसे भी करके ग्राहक को यह विश्वास दिलाना कि यदि वो यह उत्पाद खरीद लेगा तो बहुत ही फायदे में रहेगा ! इसके लिए बड़े बड़े दावे किये जाते हैं, अन्य कंपनियों के उत्पादों की कमियां बताकर अपने उत्पाद को श्रेष्ठ बताया जाता है ! 

जब यह मार्केटिंग सफल हो जाती है तो कंपनी के उत्पादों की जमकर खरीदारी होती है, कंपनी मालामाल हो जाती है, साथ ही एक नियम यह भी होता है कि उत्पाद बेचे जाने के साथ ही कम्पनियाँ अपने अपने सर्विस सेंटर स्थापित करती है ताकि ग्राहक को उत्पाद की बिक्री के बाद आने वाले किसी भी समस्या या तकनीकी परेशानी से मुक्ति मिल सके ! 

अब राजनीति में ठीक इसी फंडे को आज़माया जाने लगा है, लोगों को जमकर सपने बेचे जाने लगे हैं, जनता की दुखती नब्ज़ पर हाथ रख कर नारे तय किये जाने लगे हैं, उनके आक्रोश के अनुसार सपने तैयार किये जाने लगे हैं, और पी.आर. एजेंसीज की मदद से तगड़ी मार्केटिंग के ज़रिये यह साबित किया जाने लगा है कि हमारे सपने उच्च श्रेणी के हैं, और यदि आप राज़ी हैं तो न सिर्फ आप बल्कि समाज और देश भी निहाल हो जायेगा ! 

पिछले सपनो के पूरे ना होने या नए लुभावने सपनो की चाहत लिए जनता मन्त्र मुग्ध हो कर सपने खरीद लेती है, वो यह नहीं देखती कि यह किस प्रकार से पूरे होंगे, वो यह भी नहीं देखती कि इन सपनो की ऑफ्टर सेल्स सर्विस का भी कोई इंतज़ाम है या नहीं, जहाँ वो किसी सपने की तकनीकी खामी के लिए शिकायत तो कर सकता हो, या इन के पूरे ना होने या असफल होने की स्थिति में कोई अन्य विकल्प तो मौजूद हो ! 

राजनीति में सपनो के बेचे जाने के बाद उनके पूरा किये जाने का कोई नियम लागू होता भी नहीं है, भले ही जनता सड़कों पर ऊतर आये, बड़े बड़े किये गए वायदे उस समय बहानो में तब्दील होते नज़र आते हैं, और ठीक बाजार की परंपरा के अनुसार जनता को यह समझाया जाता है कि हेड आफिस को इस बाबत सूचना भेज दी गयी है, सबर रखिये, या फिर सम्बंधित डीलरों पर मामला टाल दिया जाता है, या फिर यह कहा जाता है कि फ़लाँ फ़लाँ कंपनी के तो फ़लाँ उत्पाद में यह कमी पायी गयी थी, कौनसी नयी बात है ! 

और असहाय जनता हर बार की तरह खरीदे गए सपनो को किरचों की तरह चूर चूर होता हुआ देख निढाल हो कर रह जाती है, कोई चारा नहीं रह जाता है, क्योंकि सपनो की क्षति पूर्ती तो नहीं हो सकती ...ना ही इनका कोई अन्य विकल्प हो सकता है, और ना ही इन टूटे हुए सपनो के लिए कोई ऑफ्टर सेल्स सर्विस सेंटर होता है !!

सोमवार, 20 जनवरी 2014

'माउस मित्रता' ... ज़रा संभल कर ~~~!!

माउस की एक क्लिक पर बनते बिगड़ते रिश्तों की आभासी दुनिया ...सोशल मिडिया ..फेसबुक, ट्वीटर आदि  का हाल अजीब होता जा रहा है, यह 'सोशल साईट' की जगह 'पालिटिकल साईट' नज़र आने लगी है, हम जैसे ज्यादातर पुराने फेसबुक यूज़र इस बदलाव से अचंभित हैं,  फेसबुक, twitter पर जब यूज़र अपना प्रोफाइल बनाता है, तो उसे तलाश होती है  अपने जैसे विचारों वाले मित्रों की...और ज्यादातर लोग आगे जाकर अपने हम ख्याल दोस्तों के समूह में शामिल हो ही जाता है, इसे हम वैचारिक ध्रुवीकरण भी कह सकते हैं, जैसे शायरी और कविता का शौक़ रखने वाले यूज़र वैसे ही ग्रुप और दोस्तों का समूह बना ही लेते हैं, खिलाडी...खिलाडियों के साथ, संगीत प्रेमी, राजनीति, फोटो ग्राफी जैसे अनेक क्षेत्रों की रूचि अनुसार विभाजित होते रहते हैं, और अपनी गतिविधियाँ तथा रुचियाँ शेयर करते हैं, पोस्ट करते हैं...विचार रखते हैं !

मगर कुछेक वर्षों से यह ताना बाना टूटता नजर आने लगा है, सोशल मीडिया पर राजनैतिक दलों के आ धमकने से सब कुछ बदल गया है, ज़यादातर लोग रोज़ इकठ्ठा हो कर जमकर सर फुटव्वल करते हैं, ..और ऐसा आभास होने लगा है कि 2014 में फेसबुक, ट्वीटर पर जमकर राजनैतिक गंध मचने वाली है, शुरुआत हो चुकी है, सभी पार्टियों के नेतागण यहाँ पधार चुके हैं... यह मंच अब पॉलिटिकल अखाड़े में तब्दील होने लगे है ! फेसबुक, ट्वीटर यूज़र्स को चाहिए कि अपने समान विचारों वाले मित्रों, या अच्छे और सकारात्मक विचार वाले मित्रों  को ही सम्मिलित करें...हालांकि सभी के अपने निजी विचार, मत और समझ होती है, मगर यह भी कहीं सच है कि आप जिन दोस्तों के साथ ज्यादा अपना समय बिताते हैं (चाहे वो सोशल साइट्स या वास्तविक दुनिया) उनके विचारों का धीरे धीरे कहीं न कहीं आपके विचारों पर भी प्रभाव तो होता है ! इसलिए ऐसे मित्रों की संगति कीजिये जिनसे आपके विचारों को धनात्मक ऊर्जा मिले ...न कि ...ऋणात्मक !

कुछ यूज़र्स अपनी निजी बातों को धड़ल्ले से फेसबुक या ट्वीटर पर दोस्तों और फालोवर्स के साथ शेयर करते देखे गए हैं, जो कि कहीं न कहीं आगे जा कर हानिकारक भी हो सकती है, सोशल मीडिया को अपने टेबल तक ही रहने दिया जाए तो बेहतर है, इसे बेडरूम में ताँक झाँक करने की गुस्ताखी मत करने दीजिये, किसी भी ऐसी पोस्ट से बचिए जो आपके परिवार या आपकी निजी ज़िन्दगी में खलल पैदा करे, या उसे चौराहे पर लाकर तमाशा बना दे, हाल ही में पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार तथा मंत्री शशि थरूर के ट्वीट्स ..उसके बाद सुनंदा पुष्कर की मौत ..ने जो हंगामा किया है, वो इस बात का साक्षी है कि सोशल मीडिया में निजता को परोसना कभी कितना घातक हो सकता है !

इधर कुछ दिनों से फेसबुक और ट्वीटर पर बहुत बड़ी संख्या में फेक प्रोफाइल वालों की भरमार है, यह लोग ही ज़्यादातर इन सोशल साइट्स पर अराजकता और उत्पात मचाते हैं...और मित्र सूची में सम्मिलित होकर, ग्रुपों तथा पेजों में शामिल हो कर अमर्यादित भाषा, और उकसाने वाली पोस्ट करने में भी नहीं हिचकते ! इसलिए कोशिश कीजिये  कि हम सभी इससे बचे रहें, और प्रयत्न कीजिये कि फेसबुक, ट्वीटर आदि पर हम सबको सकारात्मक दृष्टिकोण, और आला मयार के लोगों की सांगत मिले ...खब्ती...लठैतों और संकीर्ण मानसिकता वालों से छुटकारा मिले ! यह एक बेहतरीन मंच है...इसे सकारात्मकता के लिए काम में लीजिये...दुरावों और दोषारोपण के लिए नहीं, जोड़ने के लिए काम में लीजिये..तोड़ने के लिए नहीं !  ..समय समय पर अपनी मित्र सूची की झाड़ पोंछ करते रहिये, बचते रहिये...बचाते रहिये...अब तो फेसबुक, ट्वीटर पर यह भी नहीं कह सकते कि  :-  ' दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये ' !  'माउस मित्रता' है...सोच समझ कर कीजिये....!!

जय हिन्द !

ज़रा बड़ा तो हो जाने दीजिये 'आप' को !!

कांग्रेस की मस्ती और भाजपा की पस्ती के कारण जन्म लेने वाले IAC (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) ... उसके जनलोकपाल आंदोलन ...और उसके बाद पैदा हुयी नवजात आम आदमी पार्टी ने न सिर्फ भारतीय राजनीति के परंपरागत गणित के तौर तरीक़ों को पलटा है बल्कि राजनीति में नए व्यवहारिक प्रयोग भी प्रारम्भ किये हैं, भले इस इस पार्टी के जन्म और उसके मूलभूत आधार जनलोकपाल आंदोलन और केजरीवाल के गुरु अन्ना को हाशिये पर धकेले जाने के कारण कई विवाद आज भी कायम हैं !
हम ज़्यादा पीछे नहीं जाकर यदि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो दिल्ली में इस पार्टी ने विधान सभा  चुनावों जो सफलता पायी है, वो भारतीय राजनीति में एक Turning Point की तरह ही कहा जाएगा, झाड़ू ने न सिर्फ बड़े बड़े दिग्गजों का सफाया कर दिया, बल्कि शीला दीक्षित जैसी मुख्यमंत्री को भारी मतों से हार का सामना करना पड़ा, कांग्रेस की करारी शिकस्त हुई, साथ ही भाजपा भी आवाक रह गयी, भले ही कांग्रेस के समर्थन के बाद आ आ पा सत्ता में आयी हो, मगर उसने जो दुंदुभि राजनीति में बजायी है, उससे न सिर्फ बड़े राजनैतिक दलों की नींद उडी है, बल्कि इन बड़े दलों ने आ आ पा के सैद्धांतिक कार्यकलापों का अनुसरण करना भी शुरू कर दिया है !

मगर यही गतिशीलता और जनप्रियता आज आ आ पा के लिए पनौती बन बैठी है, कारण कि न सिर्फ जनता बल्कि मीडिया का भी पूरा रुझान आ आ पा पर ही केंद्रित हो गया है, एक तरफ देश के बड़े खूसट राजनैतिक दलों के निशाने पर हैं, तो दूसरी और आ आ पा की लोकप्रियता से लार टपकाए अवसरवादियों की जमकर पार्टी में घुसपैठ भी हुई है, समय न रहते कोई उचित फ़िल्टर भी काम में न ले सकने के कारण आ आ पा में कई दलों के अवसरवादी घुसपैठिये जा घुसे हैं, साथ ही शीर्ष नेतृत्व में शामिल लोगों द्वारा पार्टी विरोधी गतिविधियां भी समय समय पर संकट का कारण बनती जा रही हैं ! ताज़ा उदाहरण बिन्नी महोदय द्वारा दूसरी बार की गयी अप्रत्यक्ष बगावत, के साथ भाजपा से आ आ पा में गयी टीना शर्मा के बयान हैं !

अब इस नवजात पार्टी पर इस समय सिर्फ चारों और से दबाव बना हुआ है, जनता का, मीडिया का, आ आ पा के सदस्यों का, जीत कर आये लोगों का..और नए शामिल हुए कई क़द्दावर लोगों के समायोजन का भी, वही दूसरी और कांग्रेस और भाजपा के साथ क्षेत्रीय दलों द्वारा लगातार किये जा रहे हमलों का भी दबाव है, साथ ही किये गए वायदों को जल्दी से जल्दी पूरा करने का भी दबाव है !

पिछले विधान सभा चुनावों में और राज्यों में भी अन्य दलों ने जीत दर्ज की है, छत्तीसगढ़ में , मध्य प्रदेश में, राजस्थान में ...मिजोरम में ...वहाँ क्या क्या हुआ....कितने वायदे पूरे हुए...सरकारें क्या कर रही है ? किसी को इससे मतलब नहीं है...इस समय सब के निशाने पर है आम आदमी पार्टी जो कि अभी घुटनो के बल चलकर उठ कर खड़ा होने की कोशिश में है...उससे मीडिया, जनता, विरोधी दल, और समर्थक यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि यह दौड़ कर बताये, जैसा यह कहें कलाबाज़ियाँ खा कर दिखाए ! भले ही आ आ पा के लिए कांग्रेस की B टीम होने का आरोप लगे, या भाजपा की B टीम होने का, राहुल गांधी के खिलाफ बताया जाए या मोदी के खिलाफ, वो जो भी है...उसका पूरा चरित्र तो सामने आने दीजिये...मुठ्ठी तो खुलने दीजिये...तब राय बनाइये, इस नवजात को अपने पांवों पर खड़ा तो होने दीजिये, ऐसी जल्दी भी क्या है, सूचना क्रांति के इस दौर में अब देश और इस देश की जनता इतनी कमज़ोर और मूर्ख नहीं है कि किसी ऐरे गैरे को सर पर बैठाये, यदि किसी को सर पर बैठा सकती है तो उसे धूल भी चटा सकती है...इसके भूत और वर्त्तमान काल में कई बड़े उदाहरण हैं !

उम्मीद करता हूँ कि राजनीति में अभी जो भ्रमित काल चल रहा है जल्दी ही दूर होगा...और वास्तविकता सबके सामने आएगी !

जय हिन्द !

काम वाली बाइयों बनाम हमारा संसार !!


ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया ,

माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया !


मशहूर और हरदिल अज़ीज़ शायर जनाब मुनव्वर राना साहब का यह शेर बहुत ही प्रसिद्द है...और इसकी गहराई और मंतव्य को सब मानते हैं, मगर वर्त्तमान दौर में मेट्रो सिटीज़ में उच्च वर्ग...और उच्च माध्यम वर्ग के उन घरों में जहाँ पति पत्नी दोनों नौकरी पेशा हैं...घर में बच्चे हों,  घरों का पूरा काम काज काम वाली बाइयों (Maid) के ही भरोसे रहता हो, जिन घरों में काम वाली बाइयाँ सुबह सवेरे आकर नाश्ते से लेकर बच्चों को स्कूल भेजने तक का काम अपने हाथ में लेती हों, हाँ इस मुनव्वर राना साहब के शेर का वजूद और मायने ही ख़त्म हो जाते हैं !

कई लोगों के लिए यह काम वाली बाइयाँ बहुत बड़ी मजबूरी हैं, तो कहीं यह कुछ लोगों के लिए स्टेटस सिम्बल भी हैं, सुना तो यह भी है कि मुम्बई और दिल्ली जैसे शहरों में तो लोगों ने विदेशी काम वाली बाइयों को भी लोगों पर रौब डालने के लिए नौकरी पर रखा हुआ है ! बड़े शहरों में काम वाली बाइयों की बढ़ती मांग और उनकी अहमियत किसी से छिपी नहीं हैं, नौकरी पेशा पति पत्नी ...जिनके बच्चे भी हों, पूरी तरह से इन बाइयों के भरोसे रहते हैं, सुबह सवेरे यही आकर घर के काम काज को शुरू करती हैं, यदि पति पत्नी अपनी नौकरी पर जल्दी निकलते हैं तो उनके बच्चों को तैयार कर स्कूल बस तक पहुँचाना, उसके बाद घर के बाक़ी काम यही संभालती हैं ! बड़े शहरों की कालोनियों में सुबह सवेरे ही इनकी गतिविधियां शुरू हो जाती हैं, लोग बेसब्री से इनकी आमद का इंतज़ार करते हैं, घडी की सुइयों की तरह हर घर में इनका नियत समय होता है, दस पंद्रह मिनट की देरी से ही घर के सदस्यों का टाइम टेबल अस्त व्यस्त हो जाता है, कई बाइयां तो लम्बी दूरी, सिटी बसों, टैम्पो या लोकल ट्रेनो से तय करके अपनी ड्यूटी चढ़ती हैं !

जिस दिन भी काम वाली बाई पंद्रह मिनट या आधे घंटे किसी कारण वश देरी से आये तो हज़ार सवाल...उसके लिए तैयार रहते हैं, घडी देख .क्या टाइम हुआ है, कहाँ थी अब तक, इतनी देरी कैसे लगी ? आदि इत्यादि ! और जिस दिन अगर किसी घर में अगर काम वाली बाई नहीं आती है, वो दिन सदमे का दिन होता है, सब कुछ ठहर जाता है, घर के सारे काम कौन करे ? कैसे करे ? यह समस्या मुंह बाये खड़ी हो जाती है, पति पत्नी अपनी नौकरी पर जाएँ, या फिर इस घर के लिए रुकें ? पड़ौसी की बाई ऐसे समय और नखरे दिखाती है, उनका सारा गुस्सा काम वाली बाई के प्रति इक्ठ्ठा होता जाता है, और अगले दिन उसके आने पर जमकर फूटता है ! भले ही काम वाली बाई के खुद के घर में कितना ही बड़ा काम या संकट क्यों ना हो, लोगों को उससे कोई मतलब नहीं होता, उनको समय पर बाई चाहिए ही चाहिए !

इन काम वाली बाइयों की भी अपनी निजी ज़िन्दगी होती है, इनके परिवार होते हैं, पति, सास ससुर, बच्चे, ..बीमारी, ख़ुशी गम..... हमारी ज़िन्दगी की तरह सभी कुछ होता है, भले ही रात भर शराबी पति की लड़ाई से जगी हो, मगर सुबह काम पर मुस्तैद नज़र आती है, भले ही उसका बच्चा बीमार हो, भले ही तुरत फुरत काम निबटा कर बाद में उसे अस्पताल ले जाए, काम की खोटी नहीं करती, भले ही उसकी तबियत निढाल हो, काम पर आना ही होता है .पगार काटने का डर जो होता है, और पगार ऐसा माध्यम है, जो उसे कहीं न कहीं एक सम्बल देता है, आंशिक स्वतंत्रता देता है, कुछ अपनी ..कुछ अपने परिवार के लिए मन मर्ज़ी का करने की ..अपने किसी की इच्छा पूरी करने की, थोड़ी ही सही ...मगर अपनी खुद की ज़िन्दगी जीने की ! इस पगार के दम पर यह ऐसे सपनो का संसार बुनती है जहाँ ..पैसा जोड़ कर अपने लिए एक छोटा सा खुद का घर बनाये...आगे जाकर इसकी बेटी पढ़ लिख कर इस लायक़ हो जाए कि उसे अपनी माँ की तरह घर घर जाकर काम न करना पड़े, उसका बेटा खूब पढ़े और आगे जा कर बड़ा अफसर बने ..और इन्ही सपनो का पीछा करते करते वो घर घर दौड़ दौड़ कर काम पूरे करने रोज़ निकल पड़ती है ! जहाँ हम इसका इंतज़ार करते रहते हैं कि कब यह बाई काम पर आये...और हम अपने सपनो को पूरा करने के लिए दिन की शुरुआत करें !!

नंगा राजा, चापलूस दरबारी और भ्रमित जनता ~~!!

बचपन में एक कहानी सुनी थी...कि किसी देश में एक राजा हुआ करता था, वो बहुत ही घमंडी,झूठा, दम्भी, निरंकुश और निर्दयी था...उसे अपनी चापलूसी बहुत ही पसंद थी, उसके दरबारी भी उसके इस दुर्गुणों को भुनाने में पीछे नहीं थे, वो उसके हर करतब में सहमति जताते और वाह वाही करते थे, उस राजा के दुर्गुणो की चर्चा पूरे देश में थी, जनता उसकी बातों को सुनकर हंसती और मज़े लेती थी, लोग एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते थे !

इसी बीच चार ठगों की एक मंडली को भी राजा की इस दुर्गुणों और कमज़ोरी का पता चला, उन्होंने एक योजना बनाई और दरबार के लिए निकल लिए ! वहाँ पहुँच कर उन्होंने राजा से मिलने की इच्छा जताई और बताया कि वो बहुत ही बारीक, नफीस और कमाल का जादुई कपडा बुनने और सिलने में माहिर कारीगर हैं, मगर उनके बुने हुए कपडे सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आते हैं, अगले ही दिन राजा से उनकी मुलाक़ात हुई...राजा उन ठगों का दावा सुनकर खुश हो गया...और उसने उनसे अपने लिए एक शाही जोड़ा तैयार करने का आदेश दिया....बदले में ठगों ने राजा से एक लाख सोने की मोहरों की मांग की...जिसे राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, ठगों को उनकी इच्छा के अनुसार उम्दा कमरा...खाना पीना और ऐशो आराम दिया गया !

कुछ दिन बीतने के बाद राजा को अपने तैयार होने वाले जोड़े के बारे में जानने की इच्छा हुयी...उसने अपने महामंत्री से कहा कि जाकर देखकर आओ क्या प्रगति है...महामंत्री ठगों के कमरे में गया ...जैसे ही ठगों को खबर हुई कि महामंत्री शाही जोड़े के प्रगति के बारे में जानने आ रहे हैं...उन्होंने ऐसा अभिनय करना शुरू किया जैसे वो कपडे को थान में लपेट रहे हों....महामंत्री को वहाँ कोई कपडा तो नज़र आया नहीं....मगर ठग बाक़ायदा अपने अभिनय में लगे रहे...महामंत्री ने पूछा कि शाही जोड़े की तैय्यारी कहाँ तक पहुंची...? ठगों ने कहा कि कपडा तो बुन लिया है...और थान  में लपेट रहे हैं...अब सिर्फ सिलाई का काम बाक़ी है, महामंत्री हैरान होकर बोला कि मुझे तो कहीं कोई कपडा नज़र ही नहीं आ रहा, इस पर ठगों ने कहा कि आपको याद है कि हमने कहा था कि वो जादुई कपडा सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आता है, आपको नज़र नहीं आ रहा ....यानि आप या तो नेक नहीं है, ईमानदार नहीं हैं....या फिर वफादार नहीं है, राजा साहब को आपका यह चरित्र शायद पता ही नहीं है ? इस पर महामंत्री घबरा गया....और बोला कि नहीं कपडा बहुत ही बारीक है...इसलिए अब मुझे हल्का हल्का कपडा थान पर नज़र तो आ रहा है....और यह कहता हुआ ...उलटे पाँव वापस भाग लिए !

ऐसे ही चार पांच चक्कर लगवाने के बाद एक दिन ठग मंडली ने दरबार में घोषणा की कि महाराज का जादुई शाही जोड़ा तैयार है, राजा ख़ुशी ख़ुशी उनके कमरे में गया, वहाँ  ठगों ने उनसे कहा कि आप अपने पुराने कपडे उतार दीजिये....आपका जादुई शाही जोड़ा लेकर आते हैं...राजा ने फ़ौरन ही अपने पहने कपडे अलग किये और तैयार हो गया...ठग मंडली के चारों सदस्य दूसरे कमरे से ऐसा अभिनय करते निकले जैसे किसी जोड़े को बहुत ही सम्भाल कर ला रहे हों, राजा अवाक रह गया, उसने कहा कि यह क्या हो रहा है, जादुई शाही जोड़ा कहाँ है....? तब ठगों ने कहा कि महाराज हम वही तो लेकर आ रहे हैं...कहीं ऐसा तो नहीं कि यह जोड़ा आपको नज़र ही नहीं आ रहा हो ?  राजा सन्न रह गया ...फिर उसे ठगों द्वारा कही बातें याद आ गयीं कि यह जादुई जोड़ा सिर्फ सज्जन, ईमानदार, और वफादार लोगों को ही नज़र आता है...उसने सोचा ज़रूर मुझमें कहीं खोट है....जो मुझे यह जोड़ा नज़र नहीं आ रहा ! कुछ हिचकिचाकर उसने कहा मैं तो मज़ाक़ कर रहा था...लाओ पहना दो,  इस पर ठगों ने उसे जोड़ा पहनाने का भरपूर अभिनय किया...और अंत में पायजामे के नाड़े की गाँठ बांघने का अभिनय करते बोले.....लीजिये महाराज ! आपका जादुई शाही जोड़ा तैयार है, अब आप दुनिया में इकलौते ऐसे राजा हैं जिसके पास यह जादुई जोड़ा है ! यह कहते हुए ठगों ने राजा के सर पर उसकी शाही पगड़ी रखी ...और जाने की आज्ञा के साथ अपना मेहनताना एक लाख सोने की मोहरें मांगी...जिसे राजा ने फ़ौरन ही मंगवा कर उनको दीं....एक लाख मोहरें लेकर ठग मंडली ....महल से निकल गयी !

अब महाराज सर पर पगड़ी रखे ...नंगे ही ...ठगों के कमरे से बाहर निकले...और दरबार में जा पहुंचे, राजा को नंगा आते देख सारे दरबारियों की आँखें फटी की फटी रह गयीं और उनकी चीखें निकल गयीं, राजा ने सोचा मेरा जादुई शाही जोड़ा और उसकी सुंदरता देख इनकी चीखें निकल रही है, तभी महामंत्री ने जल्दी जल्दी सभी को बताया कि भूल कर भी सच मत बोल देना...महाराज ने जो जादुई शाही जोड़ा पहन रखा है, वो सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आता है, यदि हमें नज़र नहीं आ रहा ....और हमने राजा से कह दिया ...तो अपनी नौकरी तो गयी...सो भला इसी में है कि जयकारे लगाते रहो...अपनी बला से नंगा ही घूमता फिरे, हमें इससे क्या ...इसी बीच नंगे महाराज अपने सिंहासन पर विराजमान हो चुके थे...और उन्होंने वहाँ से आवाज़ लगाईं....सभी शांत हो जाएँ....और यह बताएं कि मेरा यह जादुई शाही जोड़ा कैसा लग रहा है ? सभी दरबारी अपने नंगे महाराज को देखा और एक सुर में बोले..." वाह वाह महाराज ...आपकी जय हो, इस जादुई जोड़े में तो आप पर निराली छटा छा रही है...आप बहुत ही सुन्दर, शक्ति शाली, आभामय लग रहे हैं !"

यह सुनकर नंगे महाराज ख़ुशी से फूले नहीं समाये...और उन्होंने तुरंत ही घोषणा कर डाली कि ....मैं अभी शहर का दौरा करूंगा....और अपनी प्रजा को इस जादुई शाही जोड़े के दर्शन कराउंगा ...महामंत्री ने तुरंत फुरंत ही नंगे महाराज के दौरे का इंतज़ाम किया, शहर में चुपचाप मुनादी करा दी गयी कि महाराज अपने जादुई शाही जोड़े को पहन कर जनता जनार्दन को दर्शन देने पधार रहे हैं, कोई आवाज़ नहीं करे....जैसा हम कहें और जैसी हम नारे बाज़ी और वाह वाही करें...सभी वैसा ही करें...वर्ना खैर नहीं...क्योंकि यह जोड़ा सिर्फ सज्जन, ईमानदार और वफादार लोगों को ही नज़र आता है ...इंतज़ाम पूरे होने के बाद एक सजे हुए हाथी पर नंगे महाराज केवल सर पर पड़गी पहने ....शहर के दौरे पर निकल लिए !

जब नंगे महाराज हाथी पर बैठ कर शहर में निकल रहे थे....तो जनता का हंसी के मारे बुरा हाल था...मगर कुछ चापलूसी में तो कुछ भय के कारण....नंगे महाराज के जादुई शाही जोड़े के सम्मान में जयकारे कर रहे थे....तारीफें की जा रही थीं.....वाह वाही हो रही थी....तभी भीड़ में एक छोटा नन्हा बच्चा बाहर आया, उसने जैसे ही राजा को देखा ...तो ठहाके मार कर हंसने लगा ....और चिल्लाया " राजा नंगा.....राजा नंगा...!" लोगों ने हँसते.....झेंपते हुए ....फ़ौरन ही उसके मुंह पर हाथ रख दिया...और भीड़ से बाहर ले गए !

कुल मिलकर यदि इस कहानी को देश के राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो ...हमें ऐसे कई नंगे महाराजा बखूबी नज़र आयेंगे, जो मुद्दों से दूर अपनी अपनी ढफली अपने अपने राग लिए जनता के सामने परेड करते नज़र आते हैं ...उन्हें भ्रमित करते नज़र आयेंगे...साथ ही में उनके जयकारे करती ...चापलूस मंडली ....के साथ कई ठग मंडलियां भी अपना उल्लू सीधा करती नज़र आएंगी..... और यदि इनके बीच कोई इनको आईना दिखाने की कोशिश करे तो...उसे कान पकड़ कर धकेल दिया जाता है, या फिर इन नंगे महाराजाओं के चाटुकार और चापलूस उसपर टूट पड़ते हैं...जमकर लठैती होती है ! जनता को ऐसा राजा चाहिए होता है  जो खुद अपने गिरेबान में झाँक सकता हो, चाटुकारिता और चापलूसी से नफरत करता हो, आडम्बर, अभिमान, घमंड से परे हो, .वास्तविकता से परिचित हो, हवा में न रह कर ज़मीन की बात करे...अपने फैसले लेने की क्षमता हो, जनमानस की नब्ज़ पहचानता हो, सुखों और दुखों से भली भाँती परिचित हो, अपनी जनता के दुखों और उनसे जुड़े मुद्दों के लिए प्रतिबद्ध हो, और अपने राज्य के सर्वांगीण विकास, गौरव और सम्मान की बात करे !!
जय हिन्द !!

(Disclaimer :- इस काल्पनिक कहानी का किसी ज़िंदा या मुर्दा ...या तख़्त नशीं या किसी होने वाले राजा से किसी प्रकार का कोई लेना देना नहीं है )

'राष्ट्रिय खेल' के मुंह पर करारा 'तमाचा' !!

कल मेरी मुलाक़ात नुक्कड़ पर बैठे मन्नू काका से हुयी, वो खुद हाकी और फ़ुटबाल के खिलाडी रहे थे, और खेलों के प्रति उनका जूनून बुज़ुर्गी में भी कम नहीं हुआ है, मिलते है मैंने कहा "मुबारक हो मन्नू काका सचिन को क्रिकेट के लिए "खेलों का पहला भारत रत्न मिल गया है." ! मन्नू काका ने निर्विकार भाव से मुझे देखा और कुछ नहीं बोले, मैंने उन्हें छेड़ने के लिए फिर कहा : " वैसे इस सम्मान पर पहला हक़ मेजर ध्यान चन्द का बनता है, जैसा कि कुछ माह पहले भारत के खेल मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित भी था,  दिया तो मिल्खा सिंह को भी जा सकता था....दोनों ने ही खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक में देश का नाम रोशन किया है....क्रिकेट क्या है ? विश्व के 95 प्रतिशत देशों में तो यह खेला ही नहीं जाता, केवल गिनती के 5 प्रतिशत देश ही इसे खेलते हैं !

झुंझला कर मन्नू काका ने कहा " अमां मियां यह मेजर ध्यान चन्द हैं कौन ? और यह मिल्खा सिंह क्या बला है ? और यह खेलों का महाकुम्भ ओलम्पिक होता क्या है ? सचिन और क्रिकेट के आगे कौन मेजर ध्यान चन्द और कौन मिल्खा सिंह, और कैसा ओलम्पिक ! हम तो 196 देशों से अलग ..दस बारह देशों के बीच पकती इस क्रिकेटिया खिचड़ी से निकले खिलाडियों को ही महिमा मंडित करेंगे...आप होते कौन हो क्रिकेट को कोसने वाले ? राष्ट्रिय खेल हाकी को किसको परवाह है ? मेजर ध्यान चन्द और मिल्खा सिंह जैसों को यहाँ पूछता कौन है, 'भाग मिल्खा भाग' फ़िल्म बना तो ली और क्या चाहिए ?

मुझे उनके अंतर्मन में उठ रही निराशा नज़र आने लगी....मैंने उनसे कहा मन्नू काका देश में क्रिकेट भी तो पापुलर खेल है ? तब इस पर उन्होंने अपने अंदर की पीड़ा ज़ाहिर की ...और बोले :जब खिलाड़ी आपादमस्तक बिकने लगे और खेल का मैदान विज्ञापनों से पट जाए तो फिर यह खेल नहीं व्यापार हो जाता है। दरअसल यह  बहुराष्ट्रीय कारपोरेट घरानों की व्यापारिक साजिश ही है जिसने हमारे देश में क्रिकेट को इतना ऊंचा दर्जा दे दिया है। क्रिकेट और खिलाडियों को उत्पाद और ब्रांड के तौर पर पेश करने का षड्यंत्र कामयाब हो गया है, इस षड़यंत्र में सब शामिल हैं: याने सिर्फ माल बनाने और बेचने वाले ही नहीं, बल्कि राजनेता, उद्योगपति, मीडिया मालिक, क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्मी सितारे और सट्टाबाजार के रहस्यमय नियंत्रक भी। इन सबने मिलकर जनता को बेहोश कर बाजार के सामने फेंक दिया है कि जितना नोंच सकते हो नोंच लो, हमारा मुनाफा हमें जरूर मिल जाना चाहिए।

फिर वो बोले क्या हुआ अगर  मेजर ध्यानचंद की तो उन्होंने तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया ?  क्या हुआ अगर उनको विश्व हॉकी के जादूगर के रूप में जानता है ? क्या हुआ अगर अपने बेजोड़ और अद्भुत खेल के कारण उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक खेलों एम्स्टरडम ओलंपिक 1928, लॉस एंजिलस 1932, बर्लिन ओलंपिक 1936 (कप्तानी) में टीम को तीन स्वर्ण पदक दिलवाए ? और ओलंपिक खेलों में 101 गोल और अंतरराष्ट्रीय खेलों में 300 गोल दाग कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है ? क्या हुआ अगर एम्स्टरडम हॉकी ओलंपिक मैच में 28 गोल किए गए जिनमें से ग्यारह गोल अकेले ध्यानचंद ने ही किए थे ? इस किरकिट आगे सब कुछ बौना ही तो है !

क्या हुआ अगर ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया ? क्या हुआ अगर विदेशों में ध्यानचंद की लोकप्रियता है ? क्या हुआ अगर वियना (आस्ट्रिया) वासियों ने ध्यानचंद की याद में एक मूर्ति स्थापित की, जिसमें उनके चार हाथ हैं और चारों हाथों में हॉकी स्टिक है ? इस किरकिट के भगवान् के आगे तो उनकी औक़ात क्या रह गयी ?

फिर मन्नू काका बोले "  क्या हुआ अगर मेजर ध्यान चन्द  ने उस दौर में देश का नाम पूरे विश्व में रोशन किया ?..और और पूरे खेल जगत में इस तिरंगे की धाक जमाई ? हम भी तो दस बारह देशों के बीच खिचड़ी नुमा क्रिकेटिया विश्व कप करा ही लेते हैं...और किरकिट के खिलाडियों का जमकर महिमा मंडन भी कर लेते हैं...और अपने किरकिट के भगवान् भी चुन लेते हैं.....अमरीका, जर्मनी, जापान, फ़्रांस, रूस, चीन जैसी महाशक्तियों ...सहित कितने और देशों में इस किरकिट और इसके भगवान् का डंका बजे या नहीं उससे हमें क्या ? इस किरकिट और इसके भगवानो के बारे में विश्व के कितने देशों को पता है, उससे हमें कोई लेना देना नहीं ? भले ही हम जानते हैं कि उन सैंकड़ों देशों के लिए इस किरकिट की औक़ात क्या है ? जो खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक में न खेला जाता हो, उसे भी हम 'खेल' ही कहते हैं ....हम तो झूमेंगे इस क्रिकेटिये नशे में  ...और गढ़े जायेंगे इस किरकिट के भगवान् !

मन्नू काका की इन बातों को सुनकर मैं निरुत्तर हो गया....मुझे लगने लगा कि अब सम्मान भी राजनीति से प्रेरित ...राजनैतिक नफ़ा - नुक़सान राजनैतिक बिसात और माहौल के अनुसार तय किये जाते हैं...भले ही सरदार पटेल को उनके निधन के 41 सालों बाद भारत रत्न से सम्मानित किया गया हो, मगर किरकिट के भगवान् को नियमों में फेर बदल कर आनन् फानन में यह सम्मान दिया गया ....आनन् फानन में दिए गए इस सम्मान और उसके टाइमिंग पर देश में आवाज़ें उठनी शुरू हो ही गयी हैं... काश कि यह सम्मान पहले मेजर ध्यान चन्द को दिया जाता ...जैसा कि खेल मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित भी था....तो यह हमारे वैश्विक हीरो और हमारे राष्ट्रिय खेल को पूरे देश की और से एक सलाम होता, मगर राष्ट्रिय खेल के महान नायक को दरकिनार कर यह सम्मान जिस प्रकार से किरकिट के भगवान् को दिया गया है, उससे तो राष्ट्रिय खेल हाकी के मुंह पर एक करारा तमाचा ही लगा है !!  मगर हमें यह भी ख़ुशी है कि हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चन्द का गौरव और सम्मान ...इन राजनेताओं के प्रमाण पत्र और सम्मान का मोहताज नहीं है, वो देश के हीरो थे, और हमेशा रहेंगे...वो पूरे देश का गौरव थे और रहेंगे...वो आम आदमी के भारत रत्न हैं...और हमेशा रहेंगे !!

जय हिन्द !!

हाय .....किरकिट अनाथ भया~~!!

हाहाकारी समाचार.....अब आने वाले दिनों में किरकिट अनाथ हो जाने वाला है, दिल थाम कर रहिये...किरकिट के नाथ ने हाथ ऊंचे कर दिए हैं...और किरकिट को अनाथ कर चल दिए हैं...या खुदा....अब इस देश का क्या होगा...? कहीं किरकिट के भगवान् के संन्यास की खबर सुन कर चाइना या पाकिस्तान हमला नहीं कर दे...? या फिर  शायद ओबामा की भी रुलाई फूट पड़े, या फिर किसी राज्य की सरकार ही न गिर जाए, सेंसेक्स धड़ाम से आ न आ गिरे, विश्व में एक मिनट का मौन न हो जाये, या फिर कहीं कोई किरकिट प्रेमी वानखेड़े स्टेडियम में हाराकिरी न कर ले !

अथाह पैसों के ढेर पर  पर बैठी निरंकुश बीसीसीआई ने अपनी तिजोरी भरने के लिए  क्रिकेट प्रेम के नाम पर जनता को बाज़ार का हिस्सा बना दिया गया है.   क्रिकेट को एक उत्पाद की तरह से बेचा जाने लगा है...और क्रिकेट खिलाडियों को स्टार और आइकन बनाया जा रहा है..एक शतक लगाते या किस मैच में दो-चार विकेट लेते ही मिडिया और उसके पेड एक्सपर्टस किसी खिलाड़ी की तुलना इतिहास के महान खिलाडियों से करने लगते हैं और विज्ञापन के दरवाज़े उनके वास्ते अपने आप ही खुलने लग जाते हैं ! IPL की खेल और खिलाडी मण्डी में खिलाडी नीलाम होते हैं..अपने आकाओं के इशारों पर मैदान में अपने अपने हुनर दिखाते हैं...जिस में फिक्सिंग भी शामिल है....यह भी किरकिट ही है....जहाँ धोनी भी फिक्सिंग पर अपने इंडिया सीमेंट वाले बॉस के खिलाफ मुंह खोलते डरते हैं...और फिक्सिंग के सवाल पर मीडिया के सामने बेशर्म बन कर चुप रहते हैं...और तो और किरकिट के भगवान् भी फिक्सिंग पर फुस्स करके रह जाते हैं....यह भी किरकिट ही है...जिसे देश की जनता की नसों में देश प्रेम के नाम पर ठूंस दिया गया है...और हर जायज़ और नाजायज़ हथकंडों से इसे बेच कर तगड़ा मुनाफा कमाया जा रहा है...यहाँ तक कि दाऊद तक के वारे न्यारे हो रहे हैं....यह भी किरकिट ही है !

अब तो लगने लगा है कि ...कभी महा शतक पर पूरे देश को महा आंदोलित करने वाले कार्पोरेट घराने और TRP और बाज़ार की मारी मीडिया अब महा विदाई का महा कवरेज कर देश की जनता को रुला कर ही छोड़ेगी, कोई बात नहीं आखिर किरकिट के भगवान् रिटायर्ड हो गए हैं...और अब इस अनाथ खेल और किरकिट के भगवान् के लिए दो आंसू तो बनते ही हैं, ...क्या कहा...? देश के बाक़ी खेल ? हा हा हा...अमां मियां जाओ होश की बातें करो ...भाड़ में जाएँ यह सब...किरकिट ज़िंदाबाद...किरकिट के रिटायर्ड भगवान् ज़िंदाबाद ..और श्रीनिवासन ज़िंदाबाद....निरंकुश बीसीसीआई ज़िंदाबाद !

पहले शौचालय.....फिर फेसबुक ~~!!

(सबसे पहले स्पष्टीकरण कि इस ब्लॉग से किसी बाबा, मुल्ला, संत, नेता, मंत्री, संत्री, जाति, धर्म, फेकू, पप्पू ,गप्पू, या किसी पार्टी से पास या दूर तक का कोई लेना देना नहीं है - शर्तें लागू)

एक फेसबुक यूज़र होने के नाते कई बार नोट किया है कि फेसबुक पोस्ट पर प्रात: काल 4 से 6 बजे के बीच भी काफी कमेन्ट और लाइक देखे जाते रहे हैं, भले ही यह Time zone का लोचा हो, मगर अपने देसी हिसाब से तो यह प्रात:काल ही हुआ, और उसी हिसाब से इस विशेष समय को लेकर हम कई बार कन्फ्यूजिया भी गए....हमारी समझदानी में खलबली हुई....और उसी खलबली के दौरान कई प्रश्न इकठ्ठे होकर खली के रूप में सामने खड़े हो गए....और इन सभी प्रश्नों की पोटली लादे हमारे एक चरित्र फेसबुकिये Cool Dude निकल चले :-

यह कूल डूड 2500/-रु. की रसीद कटा कर पहुँच गए सीधे डेढ़ आँख वाले लफंदर बाबा के दरबार में, वहां लफंदर दरबार शबाब पर था...बाबा ऊंचे सजे हुए आसन पर विराजमान थे, और हाथ उठा उठा कर कृपा बरसा रहे थे, कुछ देर में कूल डूड का नंबर आया...चार पांच मुस्टंडे बाड़ी गार्डों ने उन्हें तीन तरफ से घेर लिया...और उनके हाथ में माइक थमा दिया, अब आप पूछेंगे कि चौथी तरफ से क्यों नहीं घेरा...तो भाई...चौथी तरफ से तो लफंदर बाबा को संबोधित करना जो था...खैर ...कूल डूड ने लफंदर बाबा को नमस्कार किया....और बोला :-

प्रणाम बाबा ! में आपको अपने पिछले अनुभव बताने यहाँ दरबार में आया हूँ...अगर बाबा की आज्ञा हो तो बोलूँ ?
लफंदर बाबा :- अवश्य बोलो बच्चा !
कूल  डूड :-  बाबा पिछली बार मैं आपके पास आया था और आपसे निवेदन किया था कि मेरा फेसबुक अकाउंट है....मगर न तो ज्यादा मित्र बनते हैं...और ना ही मेरी किसी भी पोस्ट पर मित्रों के लाइक या कमेन्ट आते हैं...मैं खुद ही तीन चार फर्जी प्रोफाइल बनाकर अपनी ही पोस्ट को लाइक करता और कमेन्ट करता था... तब आपने मुझ पर कृपा की थी....और मेरी फेसबुकिया ज़िन्दगी संवर गयी बाबा, जमकर कमेन्ट और लाइक आ रहे हैं, अब मैंने अपने तीनो फर्जी प्रोफाइल भी डिलीट कर दिए हैं बाबा...!

लफंदर बाबा कुछ नहीं बोले...केवल उनकी गर्दन और ऊंची हो गयी और कृत्रिम मुस्कराहट होंठों पर खिंच गयी.....उन्होंने अपना हाथ कृपा बरसाने के लिए उठाया ही था कि कूल डूड ने फिर मुंह खोला...और बोला :- मगर एक समस्या है बाबा !!

लफंदर बाबा :- बोलो बच्चा ...
कूल डूड : - मेरी मित्र सूची में महिला मित्रों की संख्या बहुत कम है बाबा ...कोई उपाय बताइये !

लफंदर बाबा :- यह बताओ ...तुम्हारा मानीटर LCD है, या वही पुराना वाला बक्सा ?
कूल डूड :- LCD है बाबा !
लफंदर बाबा :- हूँ.....तुम्हारा माउस wire less तो नहीं है...समझ रहे हो न...बिना तार वाला ?
कूल डूड :- नहीं बाबा ...तार वाला है !
लफंदर बाबा :- इन्टरनेट कौनसा वाला है....MTS, Airtel, Reliance, Docomo या MTNL ?
कूल डूड :- BSNL का है बाबा !
लफंदर बाबा :- फेसबुक सोफे पर बैठ कर चलाते हो या कुर्सी पर ?
कूल डूड :- पिछली बार आपके लफंदर दरबार की फीस के चक्कर में कुर्सी बेच डाली थी बाबा....अब एक लकड़ी का स्टूल है, उसी पर उकडू बैठ कर फेसबुक चलता हूँ बाबा !
लफंदर बाबा :- यह बताओ सुबह उठते ही सबसे पहला काम क्या करते हो ?
कूल डूड :- सीधा कम्प्युटर पर टूट पड़ता हूँ बाबा....और फेसबुक खोल कर अपने notifications , कमेन्ट और लाइक देखता हूँ बाबा !

लफंदर बाबा का कृपया के लिए उठा हाथ 45 डिग्री के एंगल पर काफी देर से रुका हुआ था ...और दर्द करने लगा था...इसी बीच किसी मच्छर ने उनके चूड़ी दार पायजामे के नीचे खुली एडी मैं शरारत कर डाली, बाबा का उठा हुआ हाथ अचानक से नीचे आया और उन्होंने अपने पाँव का जूता निकाल लिया...पाँव खुजाने के लिए...कूल डूड...बेचारा घबरा कर लडखडाया ..मगर तीनो और से घेरे खड़े बाडी गार्डों ने उसको पकड़ कर सीधा खड़ा कर दिया...जब बाबा अपनी एडी खुजा कर संतुष्ट हुए तो ...उन्होंने अगला सवाल दाग दिया...>

लफंदर बाबा :- यह बताओ जब फेसबुक आन करते हो तो क्या पूरे कपडे में होते हो...?
कूल डूड :- नहीं बाबा  कभी लुंगी...कभी पायजामा तो कभी सिर्फ कच्छे में ही शुरू हो जाता हूँ !
लफंदर बाबा : - ह्म्म्म अच्छा यह बताओ वो पायजामा ...नाड़े वाला होता है, या इलास्टिक वाला ?
कूल डूड :- दोनों नहीं होते बाबा....पायजामे पर बेल्ट बाँध कर काम चलाता हूँ !
लफंदर बाबा का कृपा वाला हाथ फिर से 45 डिग्री के एंगल पर आकर रुक गया था...मगर 90 डिग्री तक के सफ़र में लफंदर बाबा को इस कूल डूड ने पसीना पसीना कर दिया था...फिर अन्दर से घबराये लफंदर बाबा ने कूल डूड से पूछा ..
लफंदर बाबा :- ह्म्म्म्म ...यह मुझे लोटा और टोंटी क्यों नज़र आ रही है ? आँख खुलते ही सबसे पहला काम क्या करते हो ?
कूल डूड :- वही ....फेसबुक बाबा !
लफंदर बाबा :- नहीं.....बच्चा....पहले शौचालय फिर फेसबुक ! नहाइये धोइये ...फिर शुरू होइये ...(अब बाबा के हाथ का एंगल बढ़ने लगा था)
कूल डूड :- जैसी आज्ञा बाबा !
लफंदर बाबा :- एक बात और.....
कूल डूड :- जी बाबा जी ...
लफंदर बाबा :- फेसबुक आन करने से पहले Deo स्प्रे ज़रूर लगाना ! और वो भी Musk वाला, Musk नहीं हो तो लेवेंडर भी चलेगा...लड़कियों को यही दोनों ज्यादा पसंद हैं, कृपा अवश्य होगी !
कूल डूड :- अवश्य बाबा .....!
और अंत में लाफ्रंदर बाबा का हाथ पूरे 90 डिग्री के एंगल पर आया और उन्होंने कृपा उस कूल डूड की और फेंकी.....जिसे लपक कर वो  पीछे कुर्सी पर जाकर बैठ गया....और अपना खाली पर्स खोल लिया....ताकि...इधर उधर से आ रही कृपा से उसका बटुवा भर जाए....और अगले लफंदर दरबार में आने की फीस का जुगाड़ हो जाए !

वो ....खुला दरवाज़ा ~~~!!


एक बस्ती के आखरी छोर पर एक कच्चा मकान था, उस मकान का दरवाज़ा हमेशा बंद रहता था...उसमें गरीब बुज़ुर्ग माँ बाप अपनी जवान बेटी के साथ रहते थे, बेटी की शादी के साथ दहेज़ की चिंता में गरीब बूढ़े की कमर झुक गयी थी, चेहरे पर झुर्रियां बढ़ गयी थीं, कांपते हाथों से बूढी पत्नी भी पति के साथ मिलकर घर में कागज़ की थैलियाँ तैयार करती थी, बेटी भी उनका हाथ बंटाती थी, जिसे वो बूढा रोज़ झुकी कमर लिए...खांसते थूकते...दूकान दूकान जाकर बेचने निकल जाता था, रोज़ उनका दरवाज़ा खुलता और वो बूढा थके थके क़दमो से कागज़ की थैलियाँ बेचने निकल जाता...और दरवाज़ा फिर से बंद हो जाता !

एक दिन लोगों ने देखा कि वो दरवाज़ा खुला हुआ है....बस्ती में हलचल हुई कि ऐसा कैसे हुआ...हमेशा बंद रहने वाला दरवाज़ा ..आज कैसे खुला पड़ा है..? काना फूसी हुई, तब किसी ने चुपके से कहा कि कल रात इन बूढ़े माता पिता की इकलौती बेटी...किसी के साथ चली गयी है, कभी लौट कर नहीं आने के लिए.....फिर लोगों ने देखा कि वही बूढा अपनी झुकी हुई कमर के साथ कांपते हुए....आँखों में लरजते आंसू लिए ..कागज़ की थैलियाँ बेचने निकल रहा है, और घर के अन्दर बुज़ुर्ग माँ अपने आंसू पोंछते और खांसते हुए कागज़ की थैलियों का सामान समेट रही है... आज उसने दरवाज़ा बंद नहीं किया है... दहेज़ के दानव ने....उनका दरवाज़ा हमेशा के लिए खुला छोड़ दिया है !!

'शौचालय' से भी पहले 'विद्यालय' बनवाइए साहब !!

नरेन्द्र मोदी का बयान आया था कि 'पहले शौचालय फिर देवालय' ..कुछ ऐसे ही बयान जयराम रमेश पहले भी दे चुके हैं, जिसके कारण उन्हें भारी विरोध का सामना भी करना पडा था, उनके बयानों के अनेक अर्थ निकाले गए थे, आज जो मोदी के इस बयान पर गाल और तालियाँ बजा रहे हैं, उन्होंने ही उत्पात मचाया था...खैर ...अब मोदी जी ने बयान दे दिया है तो समर्थन तो करना ज़रूरी है ही, क्योंकि यह बयान मोदी ने जो दिया है, कई लोग तो इस बयान के समर्थन में बहुत ही हास्यास्पद तर्क और तथ्य दे रहे हैं ! मोदी ने अपने आप को इलेक्ट्रोनिक मीडिया / पी.आर. एजेंसी और सोशल मीडिया द्वारा स्थापित तो कर लिया है मगर उनके कई बयानों और विचारों पर उनकी पार्टी को ही कई बार बेक फुट पर आना पड़ा  है, और एक बात कि मोदी सिर्फ समस्याएं बताते हैं...तर्क संगत समाधान नहीं, बल्कि समाधान की जगह अपने आप को रख देते हैं, जो कि व्यावहारिक बिलकुल नहीं है, आप यदि समस्या बता रहे हैं ...तो उसके एक दो तर्कपूर्ण हल/समाधान तो बताना ही होगा... किसी के दुर्गुणों को आप सीढ़ी नहीं बना सकते !

अब मोदी ने 'पहले शौचालय फिर देवालय' का नारा दे तो दिया है, मगर उस पर बहस भी चल पड़ी है, क्यों शौचालय पर इतना जोर दिया मोदी ने....और क्या शौचालयों से ज्यादा ज़रूरी देश में कुछ भी नहीं है ? या फिर शौचालय के बाद प्राथमिकता पर सिर्फ देवालय ही क्यों आता है ? शौचालयों से पहले या बाद में यदि विद्यालयों को और उसके बाद देवालयों को रख दिया जाए तो क्या हर्ज है, यह भी तो शिक्षा के देवालय हैं...हमारे देश में शिक्षा का भी हाल बुरा है, गरीबी, विद्यालयों की कमी, शिक्षकों की कमी, माध्यमिक विधयालों में मूल-भूत सुविधायों की कमी आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे देश शिक्षा में पिछड़ा हुआ है, गाँव में स्कूल ना होने के कारण लगभग 20% बच्चे स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाते, उनमें से लड़कियों की संख्या अधिक है ! प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर ही यदि शिक्षा क्षत विक्षत है....तो नयी पीढ़ी कैसे शिक्षित होगी ? और यदि शिक्षित नहीं होगी तो उनको रोज़गार कैसे मिलेगा ? बेरोज़गारी कैसे दूर होगी ?

अशिक्षा ...शौचालय नहीं होने से ज्यादा हानिप्रद है, शौचालय का जुगाड़ तो लोग निजी तौर पर करते चले आ रहे हैं, और अब इस विषय पर लोगों में खुद ही जागरूकता भी आ रही है, मगर विद्यालय का जुगाड़ निजी तौर पर संभव नहीं है, यह सभी जानते हैं, इसके लिए सभी संसाधनों के लिए प्रशासन और सरकार ही ज़िम्मेदार है,  शिक्षित युवा ही देश के भावी कर्णधार होते हैं, देश को उन्नति, प्रगति के पथ पर ले जाने वाले...देश का गौरव बढ़ने वाले होते हैं, देश में जितने अधिक विद्यालय होंगे जितने अच्छे पढ़ाई के संसाधन होंगे...युवा पीढ़ी उतनी ही शिक्षित और संस्कारवान होगी !

इसलिए मेरे विचार से देश में शौचालयों से काफी पहले विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, महा विद्यालयों का निर्माण होना चाहिए, बेहतर स्वास्थ्य के लिए  रूग्णालयों (अस्पतालों) का निर्माण होना चाहिए, देश में रोज़गार के अवसरों का बढाने का प्रयास होना चाहिए....देश की उन्नति और प्रगति के लिए यह अत्यंत आवशयक हैं...बेहतर और उन्नत शिक्षा/स्वास्थ्य और रोज़गार से बेहतर/समर्थ और शिक्षित युवा आगे जाकर शक्तिशाली नागरिक बनेंगे और देश का मान बढ़ाएंगे !

मंदिर मस्जिद के झगड़ों की भूल भुलैयां में देश ...और देश के युवाओं की सोच कहीं भटक कर रह गयी है....देश की प्रगति, उन्नति और गौरव के लिए ...आइये इन झगड़ों से ऊपर उठ कर देश के लिए कुछ सकारात्मक और सार्थक करें....क्योंकि ...>

मंदिर-मस्जिद बहुत बनाया, आओ मिलकर देश बनाए,
हर मज़हब को बहुत सजाया, आओ मिलकर देश सजाएं !

मंदिर-मस्जिद के झगड़ों ने लाखों दिल घायल कर डाले,
अपने आप को बहुत हंसाया, आओ मिलकर देश हसाएँ !

मालिक, खालिक, दाता है वो, सदा रहे मन-मंदिर में,
उसका घर है बसा बसाया, आओ मिलकर देश बसाएँ !

गाँव, खेत, खलिहान उजड़ते, आँखे पर किसकी नम है ?
इतना प्यारा देश हमारा, आओ मिलकर देश चलाएं !

(शाहनवाज़ सिद्दीकी ‘साहिल’)

जय हिन्द !!

चिंता को नी करो 'बापू' सा~~!!

चिंता को नी करो बापू सा....पहले भी आप ही के आश्रम के दो बच्चों की मौत का झूठ आरोप लगा कर आपको बदनाम किया था, क्या हुआ ? कुछ नहीं ना ! सो अब इस बार आपको नाबालिग बच्ची से बलात्कार के झूठे आरोप लगा बदनाम कर रहे हैं, आपके पुत्र महोदय भी कह रहे थे कि मानसिक बीमार बच्ची है...उसका क्या. ? उस बेचारी को  क्या पता कि यौन अपराध क्या होता है, या बलात्कार क्या होता है ? शायद उस नाबालिग बच्ची का पिता भी पागल है जो अपनी बिटिया की इज्ज़त पूरे देश में उछालता  फिर रहा है...? या फिर शायद कोई षड्यंत्र ? आप ही कह रहे थे ना कि किसी मेडम का किया धरा है, क्या करें शायद मेडम को कोई और काम भी तो नहीं है, आप से बड़ा राह का काँटा शायद ही कोई और हो उनके लिए,  इसी लिए शायद आपके दरवाज़े पर राजस्थान पुलिस 7 घंटे समन देने के लिए बैठी रही ? और शायद इसी लिए आप को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया, सिर्फ पूछताछ के लिए ही बुलाया है ? वो भी घटना घटित होने के इतने दिन बाद ! अब जब आपसे लोग पालिटिकल बदला लेने उतारू हो गए हैं तो चिंता काहे की.....आपके बचाव लिए भी तो पालिटिकल लोग घटना के प्रारंभ से ही साथ तो हैं, आपके निर्दोष होने की दुहाइयां तो पहले दिन से ही दी जाने लगी हैं...सो डोन्ट वरी बापू सा !

आपके पास तो दिव्य शक्ति है, जैसा कि आपने भक्तों को बताया था कि कैसे आपने आपके क्रेश होते हुए हेलीकाप्टर को ध्वस्त होने से बचाया, और लोगों सहित खुद को भी सकुशल धरती पर ले आये... जब इतनी दिव्य शक्ति है,  तो घबराने का नहीं ! खैर छोडिये...चिंतित मत होइये ....आप निर्मल बाबा को ही देखिये ..कितना बदनाम किया इन्ही लोगों ने, देश का सारा प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया उनके पीछे पंजे झाड कर पड़ा हुआ था.....क्या हुआ ?? कुछ नहीं ना...आज भी देश के बड़े बड़े न्यूज़ चेनल अपने Prime Time में निर्मल बाबा का दरबार live दिखा रहे हैं, कृपा खूब ठाठ बाँट से बँट रही है, और बांटी जा रही है, ...इधर भी उधर भी....सो, चिंता नी कोई बात नही...यदि कल जेल चले भी गए तो आपका रुतबा कम थोड़े ही होगा, ना ही आपकी दिव्य शक्ति कम होगी...फिर आपके लाखों भक्तगण हैं ना दोबारा आपको सर आँखों पर बैठाने के लिए...फिर से वही आश्रम होगा...फिर से आप अपने सभी लीलाओं और पुराने कार्य कलापों के लिए स्वतंत्र होंगे, सो टेंशन लेने का बिलकुल नहीं !!

चिल्लाओ कि 'राष्ट्रवादी' हो ~~!!

कभी सोचा नहीं था कि ऐसा दौर भी आएगा कि लोगों को अपने आपको राष्ट्रवादी होने का बखान करने के लिए चिल्लाना भी होगा, चीख चीख कर जनता को बताना होगा कि वो राष्ट्रवादी हैं, अब वो चाहें नेता हों उनके समर्थक हों, कोई भी संगठन हो या फिर आम हिंदुस्तानी ! देखा जा रहा है कि हर कोई अपने आपको राष्ट्रवादी बताने की होड़ में लगा है, रोज़ राष्ट्रवाद  की नयी परिभाषाएं गढ़ी जा रही हैं,  हर कोई अपने अपने राष्ट्रवाद का झंडा उठाये दौड़ा चला जा रहा है, पूछताछ पर राष्ट्रवाद के झंडे से डंडा निकाल लिया जाता है !

अब सवाल यह उठता है कि जो देशवासी अपने आपको राष्ट्रवादी होने के लिए चिल्ला नहीं रहे हैं और ख़ामोशी से राष्ट्रवाद के कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं,  तो क्या वो राष्ट्रविरोधी घोषित हो गए ? क्या किसी माँ के बच्चों में से कोई बच्चा मातृत्व प्रेम की अपनी अपनी परिभाषाएं गढ़ता है ?  चीख चीख कर शेष परिवार को यह जताता हैं कि सिर्फ वही मातृत्व का सम्मान करता है, प्यार करता है, शेष  मातृत्व का अपमान करते हैं, या प्रेम नहीं करते  ?

इसको क्या दिखावा नहीं कहा जा सकता, या कुछ और बात है ? राष्ट्रवाद किसी दिखावे या किसी प्रतीकात्मकता का मोहताज नहीं है, यह तो एक जज्बा होता है एक विचार होता है, जो रगों में खून के साथ दौड़ता है !

अब तो लगने लगा है कि राष्ट्रवाद का भी राजनीतिकरण हो चला है, राजनैतिक दल अपनी अपनी सहूलियत और वोटों के समीकरण के आधार पर राष्ट्रवाद की परिभाषाएं गढ़ रहे हैं, सबके राष्ट्रवाद के अपने अपने झंडे हैं अपनी अपनी परिभाषाएं हैं, और इन परिभाषाओं की जंग में जमकर चीख पुकार मची है, होड़ सी लगी है, त्राहिमाम मचा है, लगने लगा है कि चिल्ला चिल्ला कर अपने आपको राष्टवादी बताना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है, इसका एक अप्रत्यक्ष सन्देश शायद यह भी हो कि जो चिल्ला कर अपने आपको राष्ट्रवादी घोषित नहीं कर रहे ....वो शायद कहीं न कहीं राष्ट्र विरोधी हैं !

राष्ट्रवाद एक विचारधारा है, एक सशक्त भावना है, राष्ट्र के प्रति एक  अगाध निष्ठा की भावना है, सामूहिकता की भावना का दृढीकरण है, और यह भावना, विचारधारा और निष्ठा किसी दिखावे, शोर शराबे या किसी राजनैतिक दल/नेता या संगठन की कतई  मोहताज नहीं है !

जय हिन्द !!