शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

'वैचारिक आतंकवाद' है मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन ~~!!

कीनिया में हुए आतंकी हमले में 6 भारतीयों सहित 68 लोगों की हत्या से न सिर्फ पूरा विश्व सहम गया है बल्कि हिंदुस्तान में भी दुःख की लहर है, सभी देश वासी आहत हैं, .... मारे गए सभी लोग निर्दोष थे यह बताने की ज़रुरत नहीं...मारने वाले अपने आपको एक संगठन अल-शबाब का बता रहे थे...यह वो ब्रेन वाश लोगों का झुण्ड है...जिसे इनके आकाओं ने अपने हित साधन के लिए और एक औज़ार की तरह इस्तेमाल करने के लिए ... मज़हब को तोड़ मरोड़ कर ...उनमें भावनाएं भड़का कर मैदान में छोड़ दिया है... सबसे बड़ी बात तो यह कि आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता...बल्कि यह एक तरह का वैचारिक आतंकवाद होता है...दुनिया में हर जगह अलग अलग तरह का आतंकवाद होता है...नार्वे में आंद्रे ब्रेविक ने जो किया वो भी आतंकवाद ही था..उसे कट्टर बना दिया गया था..आयरलेंड में भी किसी समय जमकर आतंकवाद का नंगा नाच हुआ था...जिससे ब्रिटेन ने भी पनाह मांग ली थी, अफ्रीका में अल कायदा से इंस्पायर्ड छोटे छोटे ग्रुप हैं....संगठन अल-शबाब भी इनमें से एक है !

सोमालियाई समुद्री लुटेरों को कौन नहीं जानता, यह सभी निर्धन देशों से हैं और पैसे के लिए और अमरीकी हथकंडों के खिलाफ काफी समय से हिंसा का तांडव मचाये हैं...न सिर्फ कीनिया बल्कि नाइजीरिया में भी यह ग्रुप बहुत सक्रीय हैं...सोमालिया भी इनसे अछूता नहीं है, पाकिस्तान, अफगानिस्तान का तो कहना ही क्या...मोसाद और इजराईल के आतंकी करतूतों पर शायद भारतीय मीडिया कभी लिखेगा/बोलेगा भी नहीं....क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया (Sponsored by USA-Britain) का पिछलग्गू जो है...और अपने ही देश में होने दंगों के नाम पर नरसंहार को भी भले ही आप आतंकवाद का नाम ना दें, पर यह भी मानवता के नाम पर कलंक की तरह ही है...और वैचरिक आतकवाद का एक नमूना ही है...और इससे भी वर्ष भर में उतनी ही जाने जाती हैं...जितनी कि आतंकवादी घटनाओं में.... और इसमें शामिल हिन्दू और मुस्लिम दोनों होते हैं.....और मरने वालों में भी दोनों ही होते हैं....मगर देखा जाए तो मरता हिंदुस्तानी है....धर्म के नाम पर ब्रेन वाश किये गए लोगों को यह पता नहीं होता कि वो धर्म के खिलाफ काम करने जा रहे हैं....इसी लिए शैलेश जैदी साहब ने भी खूब ही कहा है... >

खादियों में छुपाकर विषैले बदन।
दंश अपना चुभोने ये विषधर चले।।

मय के प्यालों में था आदमी का लहू।
बज्म में वैसे कहने को सागर चले।।

निकले 'हर-हर-महादेव ' घर फूकने ।
जान लेनें को 'अल्ला-हो-अकबर' चले।।

धर्म क्या है किसी को पता तक न था।
धर्म के नाम पर फिर भी खंजर चले।।

(शैलेश जैदी)

Śỹëd Äsîf Älì
September 24, 2013

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें