बुधवार, 23 अगस्त 2017

ट्रिपल तलाक़ फैसला और सरकार की नियत !!


कल सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने विवादास्पद तीन तलाक़ पर फैसला दे दिया है, लोग और मीडिया इसे भले ही इसे मुस्लिम महिलाओं को मिली आज़ादी या मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रहे हैं मगर असलियत कुछ और ही है !

सबसे पहली बात तो ये कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल इंस्टेंट ट्रिपल तलाक़ (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग तो ठुकरा दी लेकिन सरकार को कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया है !

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने क़ुरआने पाक में बताये गए तरीके से नियमानुसार और तय शुदा अवधि में तलाक़ या तीन तलाक़ देने पर किसी प्रकार की कोई समीक्षा या निर्देश नहीं दिए हैं, यानी तलाक़ देने वाले शरीयत के हिसाब  तलाक़ देंगे ही !

इस्लाम सिर्फ एक मज़हब ही नहीं नैतिक व्यवस्था के अंतर्गत एक जीवन पद्धति है, क़ुरआने पाक में इस नैतिक व्यवस्था और जीवन पद्धति के लिए हर तरह की हिदायतें और निर्देश हैं !

इस्लाम मे तलाक़ को बुरा माना गया है, और तलाक देने जरूरी हो जाये तो तलाक़ देने के लिए क़ुरआने पाक में सम्बंधित निर्देश दिए गए हैं !

मामला इसलिए बिगड़ा कि सही वक़्त पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस इंस्टेंट ट्रिपल तलाक़ मुद्दे पर उचित और त्वरित क़दम नहीं उठाये ! लोगो को तलाक़ के बुनियादी उसूल नहीं समझाए गए, गली मोहल्ले छाप मौलानाओं ने इस इंस्टेंट ट्रिपल तलाक़ (तलाक-ए-बिद्दत) की अपनी अपनी तरह से व्याख्याएं कीं और पीड़ित महिलाओं को इन्साफ से वंचित रखा गया !

अब बात करते हैं ट्रिपल तलाक़ पर आये फैसले पर मोदी सरकार की तथाकथित ऐतिहासिक 'उपलब्धि' की, बारीकी से देखे तो इस मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर सुधारने या मुस्लिम समुदाय के भले का समीकरण दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा ! 


यह बात अलग है कि इंस्टेंट ट्रिपल तलाक़ के गिनती के जो मामले होते थे, उनमें कमी आएगी और इस कमी का न सिर्फ AIMPLB बल्कि सभी मुसलमान सहर्ष स्वागत भी करेंगे  ! इंस्टेंट ट्रिपल तलाक़ के मामले मुस्लिम आबादी के आंकड़ों के अनुपात में भूसे के ढेर में सुई के सामान हैं, और इसके कोई आधिकारिक आंकड़े भी मौजूद नहीं है, केवल अनुमान हैं :-

"The divorce rate among Muslims in the 2011 Census is lower than among Hindus. And while there is no survey on cases of ‘triple talaq’, the incidence could be as low as 1% of the total."
Source :-
https://www.nationalheraldindia.com/minorities/census-put-muslim-divorce-rate-at-056-rate-triple-talaq-lower-than-hindus


आखरी बात इस इंस्टेंट तलाक़ पर आये फैसले और सरकार की नियत की तो इस ट्रिपल तलाक़ मुद्दे को मोदी सरकार ने मीडिया, अपने कुछ संगठनों के ज़रिये एक सुनियोजित रणनीति के तहत उछाल कर मुद्दा बना कर राजनैतिक हित उत्तरप्रदेश चुनाव में साधे थे !

यदि मोदी सरकार को मुस्लिम महिलाओं की इतनी चिंता है तो उन्हें इस बात पर भी गौर करना होगा कि केवल इंस्टेंट ट्रिपल तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जारी करा देने से 20 करोड़ की आधी आबादी यानि मुस्लिम महिलाओं का उत्थान नहीं होने वाला, ना ही उनका सामाजिक जीवन सुधरने वाला, ये तभी संभव है जब मोदी जी समग्र मुस्लिम समुदाय के लिए ही ऐसी चिंता करें, और उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई ठोस नीति बनाएं !

बात अगर पीड़ित मुस्ल्मि महिलाओं की आती है तो गुमशुदा नजीब की माँ भी पीड़ित महिला है, दादरी के अख़लाक़ की बेवा भी मुस्लिम महिला है, बहरोड़ में मॉब लिंचिंग का शिकार हुए पहलू खान की अंधी माँ और उसकी बेवा बीवी, और हाल ही में ट्रैन में मारे गए जुनैद की माँ भी पीड़ित मुस्लिम महिला है !

इसलिए इस इंस्टेंट तलाक़ को मुस्लिम महिलाओं की जीत, सामाजिक उत्थान, सशक्तिकरण या फिर मोदी सरकार की ऐतिहासिक उपलब्धि जैसे अलंकारों से अलंकृत करने के बजाय मूल में जाकर देखेंगे तो एक राजनैतिक हितसाधन का प्रयास ही नज़र आएगा !


यदि मुस्लिम महिलाओं की पारिवारिक सुरक्षा और उनके सामाजिक उत्थान की चिंता वास्तविक है तो उन्हें समस्त मुस्लिम समुदाय की चिंता करना होगी, सामाजिक सुरक्षा के लिए कोई कारगर नीति बनानी होगी, तभी ये सामाजिक उत्थान, पारिवारिक सुरक्षा और सशक्तिकरण जैसे अलंकरण साकार होंगे !