1958 को ब्रिटेन में जन्मी वॉन्नी रिडले पेशे से एक पत्रकार थीं, और सम्मान पार्टी की सक्रिय कार्यकर्ता भी थीं, एक पत्रकार के रूप में वो The Sunday Times, The Independent on Sunday, The Observer, The Mirror and the News of the World के लिए लिखती रहीं, वो Wales on Sunday में डिप्टी एडिटर रहीं तथा बाद में Sunday Express को चीफ रिपोर्टर के रूप में ज्वाइन किया !
इसी संडे एक्सप्रेस ने 9 /11 हमले के बाद उन्हें अफगानिस्तान में रिपोर्टिंग करने भेज था !
जहाँ 2001 में उनका अफगानिस्तान में तालिबान ने अपहरण कर लिया था, दरअसल उनके पास कैमरा देख कर तालिबान को उनके जासूस होने का शक हुआ और उन्होंने वॉन्नी रिडले को बंधक बना लिया, वॉन्नी रिडले की गिरफ़्तारी के बाद पाक स्थित ब्रिटिश हाई कमिश्नर ने तालिबान से बातचीत कर उनकी रिहाई कराई !
और आखिर में 8 अक्टूबर 2001 को उन्हें तालिबान ने रिहा कर दिया, रिहाई के बाद वॉन्नी रिडले ने एक किताब लिखी जिसका नाम था "In the hands of Taliban", जिसमें उन्होंने बंधक के तौर पर तालिबान के बर्ताव के बारे में लिखा था, उस किताब में उन्होंने यह लिखा कि किस तरह से तालिबान ने उन्हें शारीरिक क्षति नहीं पहुंचाई, यहाँ तक कि उनकी तलाशी के लिए भी अफ़ग़ान औरतें बुलवाई गयीं थीं !
जब वो बंधक थीं तो एक अपहरणकर्ता ने उनसे इस्लाम अपनाने को कहा था, मगर तब वॉन्नी रिडले ने एक वादा कर इंकार कर दिया था कि रिहा होने के बाद वो क़ुरआने पाक ज़रूर पढ़ेंगी, और उन्होंने अपना किया हुआ वादा निभाया !
क़ुरआने पाक पढ़ने और समझने के बाद उनके नज़रिए में बड़ा बदलाव आया और उन्होंने सं 2003 की गर्मियों में उन्होंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया, और अपना नाम मरियम रिडले रख लिया !
और इसके वो खुल कर इजरायलवाद और आतंकवाद के साथ War On Terror पर पश्चिमी मीडिया की दोगली भूमिका के खिलाफ लिखने लगीं !
2003 में रिडले कतर आधारित मीडिया संगठन अल जज़ीरा चैनल में उन्हें वरिष्ठ संपादक के रूप में नौकरी का अवसर मिला, मगर जल्दी ही उनकी मुखर और तार्किक शैली से अल जज़ीरा चैनल हड़बड़ा गया और उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया, मरियम रिडले ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ केस लड़ा और चार साल लम्बी लड़ाई के बाद वो केस जीतीं, उन्हें हर्जाने के तौर पर अल जज़ीरा ने 100,000 कतरी रियाल दिए !
दिसंबर 2003 को उन्होंने एक नावेल और लिखा जिसका नाम था 'Ticket to Paradise' !
अक्टूबर 2005 में उन्होंने इस्लाम चैनल को ज्वाइन किया, और वहां अपना प्रोग्राम 'एजेंडा विद वॉन्नी रिडले' पेश करने लगीं, मगर यहाँ उनके प्रोग्राम की मुखरता के कारण Ofcom (The Office of Communications) ने उनके और एक अन्य प्रोग्राम के कारण चैनल पर £ 30,000 (तीस हज़ार पाउंड) का जुर्माना लगा दिया, वॉन्नी रिडले को यहाँ से भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा, यह अलग बात है कि उन्हें किये गए केस को जीतने के बाद इस्लाम चैनल से £26,000 पाउंड हर्जाने के रूप में मिले !
2008 में मरियम रिडले ने 'Free Gaza Movement' ज्वाइन किया, साथ ही युद्ध विभीषिका से जूझ रहे फिलस्तीन, इराक़, अफगनिस्तान, चेचन्या के लिए उन्होंने प्रेस और न्यूज़ चैनल्स के ज़रिये मुद्दे उठाये !
अमरीका सहित पश्चिमी जगत द्वारा गढ़े गए 'इस्लामोफोबिया' के खिलाफ उनकी मुहीम दुनिया में जाने जाने लगी, उन्होंने उस समय के ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर टोनी ब्लेयर की तुलना नृशंस हत्यारे और तानाशाह 'पोल पोट' की थी !
आज भी मरियम रिडले दुनिया भर में घूम घूम कर इस्लाम के खिलाफ चल रहे प्रोपेगंडे 'इस्लामोफोबिया' के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करती हैं !
हैरानी की बात यह है कि हिंदी मीडिया मरियम रिडले के बारे में लिखता है कि उनको तालिबान ने ज़बरदस्ती इस्लाम क़ुबूल करा दिया था, जबकि यह बात पूरी तरह से गलत है, मरियम रिडले ने अगर ज़बरदस्ती इस्लाम क़ुबूल किया होता तो वो रिहा होते ही, फिर से इस्लाम छोड़ सकती थीं, और ना ही इस्लाम की खूबियों पर अपना नजरिया रखने के लिए दुनिया भर में घूमतीं, ना ही कोई प्रयत्न करतीं !
वहीँ दूसरी ओर यूरोपीय मीडिया रिहाई के बाद से ही उन्हें ISIS और अलक़ायदा समर्थक बताने में जुटा हुआ है, जबकि सभी जानते हैं कि अलक़ायदा हो या ISIS या फिर कोई और मुस्लिम आतंकी संगठन, इनकी ही वजह से 'इस्लामोफोबिया' जैसे प्रोपेगंडे को ऑक्सीजन मिलती रही है !
अपनी इसी मुहीम के चलते जनवरी 2013 को मरियम रिडले जमात-ए-इस्लामी हिंद द्वारा यहां आयोजित स्प्रिंग ऑफ इस्लाम सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आना चाहती थीं, मगर तत्कालीन सरकार ने मरियम रिडले को वीजा देने से इंकार कर दिया था, और अंत में ब्रिटेन से ही वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए रिडले ने लड़कियों, महिलाओं और पत्रकारों के तीन सत्रों को सम्बोधित किया था, विवरण आप यहाँ इस लिंक पर पढ़ सकते हैं :-
http://khabar.ibnlive.com/latest-news/news/-1634632.html?ref=hindi.in.com
यहाँ एक बात यह निकल कर आती है कि दुनिया के मुसलमान अगर इस्लाम की बुनियादी तालीम पर कायम रहें और अपने अखलाक, तहज़ीब, गुफ्तुगू और आमाल से दूसरों को मुतास्सिर कर सकें, तो उसकी शख्सियत एक खामोश तब्लीग़ हो सकती है !
वहां मरियम रिडले के साथ कोई जोर ज़बरदस्ती नहीं की गयी थी, कैेद के दौरान वो तालिबान के र'वैये से मुतास्सिर हुई थी, और इस्लाम का एक बुलंद पहलू उसके सामने आया था, जिसे उन्होंने क़ुरआने पाक पढ़ने के बाद तफ्सील से समझा और इस्लाम कुबूला !
अपने किरदार का तू गाज़ी बन जा ,
जीत ना पाये तुझ से कोई तू ऐसी बाज़ी बन जा !
तोड़ने वाले खुद बनाएंगे मस्जिदें अपनी ,
शर्त है के पहले तू नमाज़ी बन जा !!
~अनजान~
Source :-
विकिपीडिया तथा अन्य !!