बुधवार, 9 मार्च 2016

बाबाओं, कॉर्पोरेट्स, पूंजीपतियों और राजनैतिक दलों की चिरपरिचित जुगलबंदी !!

चाहे श्री श्री हों या ललित मोदी, रामदेव हों या विजय माल्या यह लॉबी ऐसी है जिसका कोई भी सरकार बाल बांका नहीं कर सकती, इस लॉबी की ताक़त के आगे सभी राजनैतिक पार्टियां नतमस्तक नज़र आती हैं, यह बात अलग है कि कुछ राजनैतिक दलों के सत्ता में आते ही इनके धंधों में चार चाँद लग जाते हैं,धंधों को खाद पानी मिलने लगता है, नयी ऊर्जा मिलने लगती है, और इसके लिए यह लॉबी कई बार सरकारों के बनने बिगड़ने में भी अहम रोल अदा करती नज़र आती है !

यह कोई नयी बात नहीं है, इस जुगलबंदी की शुरुआत स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से हुई थी, चन्द्रा स्वामी की राजनैतिक जुगलबंदी का इतिहास उठकर देख लीजिये, हज़ारों करोड़ों की अकूत संपत्ति के शिखर पर बैठे बाबा लोग हर सरकार में निर्भय होकर तथाकथित सेवा करते नज़र आते हैं, हर बाबा अपनी अपनी राजनैतिक गोटियां फिट करके रखते हैं, चाहे वो श्री श्री हों, रामदेव हों, स्वामी अग्निवेश हों, बाबा राम रहीम हों, रामपाल बाबा हों, आसाराम बापू हों, या नित्यानंद हों !


अडानी, अम्बानी से लेकर, टाटा बिड़ला की ताक़त कौन नहीं जानता,  ललित मोदी की पहुँच किसे पता नहीं है, 2011 से दीवालिया हुए  विजय माल्या का किस सरकार ने क्या बिगाड़ लिया ? यह सब इस ताक़तवर लॉबी के राजनीति से मज़बूत गठजोड़ के सबूत हैं !


भारत के विभिन्न कार्पोरेट घरानों ने समाचार पत्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनलों में अपना पैसा निवेश किया हुआ हैं, कुछ के अपने ही चैनल्स हैं, यह सब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश की राजनीति को प्रभावित करते हैं !

बाबा लोग भी कहाँ पीछे रहने वाले हैं, उनके भी अपने निजी चैनल्स भक्तों को आशीर्वाद और ज्ञान बांटते देखे जा सकते हैं, जिस बाबा का खुद का चैनल नहीं है, वो कई न्यूज़ चैनल्स पर बढ़िया टाइम स्लॉट में अपनी बाबागिरी पेश करता नज़र आता है !

पूँजी पतियों और राजनीति का सबसे कुरूप गठबंधन अगर देखना हो तो BCCI की ओर नज़र डाल लीजिये, जहाँ क्रिकेट को बेचने और मुनाफा कमाने के लिए यह किसी भी हद तक जाते नज़र आते हैं !

जनता के आगे मुद्दों का टुकड़ा फेंक कर अपने हित साधने वाले सियासतदान ही इसके असली गुनहगार है, तो चलिए देर किसी बात की, सोशल मीडिया की चीख पुकार में शामिल हो जाइए, और देश की चिंता कीजिये !!  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें