शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

सोशल मीडिया बनाम वास्तविक संसार !!


जब हम सोशल मीडिया पर होते हैं, तो हम दुनिया को उसी चश्मे से देखते हैं, पूरे दिन भले ही हम कैसे ही दृष्टिकोण ले कर जियें, मगर जैसे ही हम आभासी दुनिया में दाखिल होते हैं, हमारा नजरिया और बर्ताव धीरे धीरे बदलने लगता है, यहाँ के भीड़ भरे, आक्रोशित और चीख पुकार करते आभासी संसार में हम अपनी वास्तविकता से कहीं कटने लगते हैं !

फिर हम भी बहुत जल्दी उसी भीड़ का एक हिस्सा बन कर इस कोलाहल में शामिल हो जाते हैं, हमें देश खतरे में नज़र आने लगता है, किसी को हिन्दू तो किसी को मुस्लिम खतरे में नज़र आने लगता है !

ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया पर हम या सभी यूज़र्स फालतू मुद्दों पर समय खराब करते हैं, अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन चुके इस मंच की धमक से सरकारें कई बार सहमति भी देखी गयी हैं ! यह जानकारी और ज्ञान का अकूत भण्डार है, करंट टॉपिक्स से जुड़ने और समझने तथा विचार बनाने का नायाब जरिया भी है !

मगर न जाने क्यों जब हम सोशल मीडिया से दूर बाहरी दुनिया में होते हैं, तो बहुत ही शांत, बेफिक्र और समस्याओं से काफी हद तक दूर रहते हैं, ना ही कोई पाकिस्तान होता है, ना ही कोई ISIS होता है, ना ही संघ परेशान करता है, ना ही मोदी जी कहीं नज़र आते हैं, ना ही केजरीवाल की चर्चा कहीं होती है, ना कोई बिहार चुनाव पर हमसे लड़ता है !

इसलिए कोशिश कीजिये कि आभासी दुनिया को वास्तविक दुनिया में अपने साथ लेकर नहीं जाएँ, जब भी लॉगआउट करें, सभी कुछ यही छोड़ दें, और वास्तविक दुनिया की वास्तविकता के मज़े लें ! जहाँ सभी अपने में मस्त होकर दाल रोटी के जुगाड़ में मस्त है, जहाँ आपको किसी से like की ज़रुरत नहीं, किसी को टैग करने की ज़रुरत नहीं, किसी लिंक को पेश करने की ज़रुरत नहीं ! जहाँ ना हिन्दू खतरे में नज़र आएगा ना ही कोई मुसलमान कहते में मुस्लमान खतरे में नज़र आएगा ! कोशिश यही करें कि वास्तिवक दुनिया में जाएँ तो सोशल मीडिया का चश्मा साथ लेकर नहीं जाएँ !

आभासी दुनिया और वास्तविक दुनिया के इस फर्क को आप सोशल मीडिया से कुछ दिन या महीने दूर रहकर आप इस तब्दीली को महसूस कर के देख सकते हैं !!


शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

बेशक ..यह हिंदुस्तान आपका भी है मगर ~~~!!

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में !
.
.
किसी  के  बाप का  हिन्दोस्तान  थोड़ी  है   !!

राहत इंदौरी साहब का यह शेर....सोशल मीडिया पर मुसलमान भाई कई बार तैश में आकर शेयर करते हैं....करना भी चाहिए और हक़ बात भी है, यह मुल्क किसी की बपौती थोड़े ही है !

मगर ज़रा रुकिए....और सोचिये कि जिस मुल्क में हम पैदा हुए जो मुल्क हमारा मादरे वतन है, हमने उसके लिए क्या किया ? मुल्क के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, औद्यौगिक, राजनैतिक, तकनीकी विकास में हमारा योगदान कितना प्रतिशत है ?

कभी सोचा है कि 18 करोड़ की हमारी आबादी इस मुल्क के लिए क्या योगदान दे रही है ?  

कभी नज़र सानी की है कि  हमारी आधी आबादी यानी मुस्लिम औरतें शैक्षणिक और आर्थिक तौर पर कितनी मज़बूत हैं ?

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की लगभग 60 फीसदी मुस्लिम महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं, इनमें से 10 फीसदी महिलाएं ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाती हैं जबकि शेष 30 फीसदी महिलाएं दसवीं कक्षा तक अथवा उससे भी कम तक की शिक्षा पाकर घर की बहु बनने के लिए मजबूर हो जाती हैं !

सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय पुलिस सेवा में मुसलमान केवल 4 प्रतिशत, प्रशासनिक सेवा में 3 फीसदी और विदेश सेवा में मात्र 1.8 प्रतिशत हैं, यही नहीं देश के सबसे बड़े नियोक्ता के तौर पर मशहूर रेलवे के कुल कर्मचारियों में से महज 4.5 फीसदी मुसलमान हैं !


हम थोड़ी देर के लिए देश को एक संयुक्त परिवार की तरह मान लें, तो परिवार के दूसरे सदस्यों के योगदान की तुलना में, परिवार के लिए हमारे द्वारा दिए गए योगदान को कहाँ रख पाएंगे ?

कब तक हम इतिहास की पोटली खोल खोल कर लोगों के इतिहास के नामी मुसलमानो के अज़ीम योगदान को दिखाते रहेंगे ?

ज़रा सोचिये कि डा. ज़ाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद साहब, सर सय्यद अहमद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या कलाम साहब जैसे लोग क्यों पैदा होना बंद हो गये ? ?

यह याद रखिये कि जो जंग तलवार, बन्दुक, तोप और रॉकेट से नहीं जीत सकते वो जंग आप 'तालीम' से जीत सकते हैं !!