शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

बेशक ..यह हिंदुस्तान आपका भी है मगर ~~~!!

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में !
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किसी  के  बाप का  हिन्दोस्तान  थोड़ी  है   !!

राहत इंदौरी साहब का यह शेर....सोशल मीडिया पर मुसलमान भाई कई बार तैश में आकर शेयर करते हैं....करना भी चाहिए और हक़ बात भी है, यह मुल्क किसी की बपौती थोड़े ही है !

मगर ज़रा रुकिए....और सोचिये कि जिस मुल्क में हम पैदा हुए जो मुल्क हमारा मादरे वतन है, हमने उसके लिए क्या किया ? मुल्क के आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, औद्यौगिक, राजनैतिक, तकनीकी विकास में हमारा योगदान कितना प्रतिशत है ?

कभी सोचा है कि 18 करोड़ की हमारी आबादी इस मुल्क के लिए क्या योगदान दे रही है ?  

कभी नज़र सानी की है कि  हमारी आधी आबादी यानी मुस्लिम औरतें शैक्षणिक और आर्थिक तौर पर कितनी मज़बूत हैं ?

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की लगभग 60 फीसदी मुस्लिम महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं, इनमें से 10 फीसदी महिलाएं ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाती हैं जबकि शेष 30 फीसदी महिलाएं दसवीं कक्षा तक अथवा उससे भी कम तक की शिक्षा पाकर घर की बहु बनने के लिए मजबूर हो जाती हैं !

सच्चर समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय पुलिस सेवा में मुसलमान केवल 4 प्रतिशत, प्रशासनिक सेवा में 3 फीसदी और विदेश सेवा में मात्र 1.8 प्रतिशत हैं, यही नहीं देश के सबसे बड़े नियोक्ता के तौर पर मशहूर रेलवे के कुल कर्मचारियों में से महज 4.5 फीसदी मुसलमान हैं !


हम थोड़ी देर के लिए देश को एक संयुक्त परिवार की तरह मान लें, तो परिवार के दूसरे सदस्यों के योगदान की तुलना में, परिवार के लिए हमारे द्वारा दिए गए योगदान को कहाँ रख पाएंगे ?

कब तक हम इतिहास की पोटली खोल खोल कर लोगों के इतिहास के नामी मुसलमानो के अज़ीम योगदान को दिखाते रहेंगे ?

ज़रा सोचिये कि डा. ज़ाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद साहब, सर सय्यद अहमद, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या कलाम साहब जैसे लोग क्यों पैदा होना बंद हो गये ? ?

यह याद रखिये कि जो जंग तलवार, बन्दुक, तोप और रॉकेट से नहीं जीत सकते वो जंग आप 'तालीम' से जीत सकते हैं !!



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