किसी आलिम का क़ौल है कि :-
तुमने अगर एक बच्चे को पढाया तो मात्र एक व्यक्ति को पढ़ाया ! लेकिन अगर एक बच्ची को पढाया तो एक खानदान को और एक नस्ल को पढ़ाया !
“When you educate a man, you educate an individual and when you educate a woman, you educate an entire family.”
कार्ल मार्क्स ने कहा था :-
अगर किसी समाज की हालत और प्रगति के बारे में जानना हो तो यह देखें की उस समाज में औरतें किस स्थिति में हैं !
जो जंग तलवार, बन्दुक, तोप और रोकेट नहीं जीत सकते वो जंग आप तालीम से जीत सकते हैं !
इंडोनेशिया के बाद भारत ही वो देश है जहा मुसलमानो की दूसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है :-
मोटे तौर पर भारत में 18 करोड़ मुसलमान हैं, जो कि देश की आबादी का 14.88% हैं ! और इस 18 करोड़ की 'आधी आबादी' यानी मुस्लिम औरतें शिक्षा, आर्थिक स्तर से लेकर सामाजिक और पारिवारिक तथा स्वावलम्बन के मामले में बदतर हालत में हैं !
ताज्ज़ुब है वो कौम इल्म से दूर है जिस क़ौम के कलाम की शुरुआत ही "इक़रा " (पढ़ो) से होती है, जिस मज़हब मैं कहा गया हो कि इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना पड़े तो जाओ !
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की लगभग 60 फीसदी मुस्लिम महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं, इनमें से 10 फीसदी महिलाएं ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाती हैं जबकि शेष 30 फीसदी महिलाएं दसवीं कक्षा तक अथवा उससे भी कम तक की शिक्षा पाकर घर की बहु बनने के लिए मजबूर हो जाती हैं !
सच्चर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश भर में मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर 53.7 फ़ीसदी है, इनमें से अधिकांश महिलाएं केवल अक्षर ज्ञान तक ही सीमित हैं ! सात से 16 वर्ष आयु वर्ग की स्कूल जाने वाली लड़कियों की दर केवल 3.11 फ़ीसदी है, शहरी इलाक़ों में 4.3 फ़ीसदी और ग्रामीण इलाक़ों में 2.26 फ़ीसदी लड़कियां ही स्कूल जाती हैं !
शिक्षा की तरह आत्मनिर्भरता के मामले में भी मुस्लिम महिलाओं की हालत चिंताजनक है, सच्चर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक़ हिंदू महिलाओं (46.1 फ़ीसदी) के मुक़ाबले केवल 25.2 फ़ीसदी मुस्लिम महिलाएं ही रोज़गार के क्षेत्र में हैं, अधिकांश मुस्लिम महिलाओं को पैसों के लिए अपने परिवारीजनों पर ही निर्भर रहना पड़ता है, जिसके चलते वे अपनी मर्ज़ी से अपने ऊपर एक भी पैसा ख़र्च नहीं कर पातीं !
यह सभी आंकड़े बहुत न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बलि बहुत ही डरावने हैं, और मुस्लिम समाज के लिए एक चेतावनी भी हैं !
यह एक कड़वी सच्चाई है कि मुस्लिम महिलाओं की बदहाली के लिए कठमुल्लों द्वारा तोड़े मरोड़े गए कई धार्मिक कारण काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं, मुल्ला मौलवियों द्वारा इसकी मन मर्ज़ी से व्याख्या करने से भी है, जिसमें पर्दा भी है, मगर पर्दा इल्म हासिल करने में रुकावट बिलकुल भी नहीं है, रुकावट कुछ रूढ़िवादी समाजी सोच भी है, लोग कहते हैं कि लड़कियों को क्यों पढ़ाएं ? ससुराल में जाकर चूल्हा-चौका ही तो संभालना है. और यह कि लड़की अगर ज़्यादा पढ़ लिख जाएगी तो शादी के लिए रिश्ते नहीं आएंगे, इस सोच के चलते कई बार लड़कियां खुद तालीम हासिल करने से पीछे हट जाती हैं !
मुस्लिमो ने तालीम पर सारा गोरो फ़िक्र और अमल सिर्फ और सिर्फ दीनी तालीम तक ही समेट कर रख दिया हैं ! अब वक़्त की जरूरत हैं के दीनी तालीम की रौशनी में दुनियावी तालीम हासिल की जाये जिससे हम दुनिया के मुकाबिल भी एक नजीर बने और हमारी आखिरत भी कामयाब हो !
शरीयत औरत को इस काबिल देखना चाहती है कि वह अपने और अपने जैसे दूसरे इंसानों की खिदमत अपनी कमाई से कर सके, हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) के दौर में मुस्लिम औरतें मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढ़ती थीं ! ‘‘हज़रत खदीजा इसकी मिसाल है कि उन्होंने समाज मे आर्थिक क्रियाकलापों को बढ़ाया ! सियासत में भी मुस्लिम महिलाओं ने सराहनीय काम किए !
रज़िया सुल्तान हिंदुस्तान की पहली मुस्लिम महिला शासक बनीं, नूरजहां भी अपने वक़्त की ख्यातिप्राप्त मुस्लिम राजनीतिज्ञ रहीं, जो शासन का अधिकांश कामकाज देखती थीं, अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हज़रत महल ने हिंदू-मुस्लिम एकता को मज़बूत करने के लिए उत्कृष्ट कार्य किए थे !
फिर आज क्यों उसी मुस्लिम समाज में औरत की यह बदतर हालत है ?
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इसकी सबसे बड़ी वजह है मुस्लिम समाज में लड़कियों की शिक्षा के प्रति बेरुखी, मज़हब की गलत व्याख्या और मज़हबी ठेकेदारों द्वारा दिए गए फतवे,पर्दे पर ज़्यादा ज़ोर, तथा लोग क्या कहेंगे जैसी सोच !
जब इस बाबत लोगों से बातचीत की गयी और उनके सामूहिक विचार जाने तो दो एक बातें निकल कर सामने आईं, पहली तो यह कि मुस्लिम औरतों को तालीम दिलाने से किसी को कोई ऐतराज़ नहीं, कुछ चाहते हैं कि वो बस इतना पढ़ ले कि काम चल जाए, कुछ यह चाहते हैं, कि खूब पढ़े, आगे जाकर नौकरियां करें, मर्दों के कंधे से कन्धा मिलकर चलें, आर्थिक तौर पर मज़बूत हो, स्वावलम्बी बने, !
यहाँ एक ख़ास बात यह नज़र आयी कि कुछ कट्टर मुसलमान But, मगर, लेकिन, किन्तु परन्तु करते भी नज़र आये, और यही कहते पाये गए कि औरतों को तालीम ज़रूर दिलाना चाहिए बशर्ते कि ..'यह' और बशर्ते कि ..... 'वो' !!
यह जो यहाँ 'बशर्ते' है, यह बहुत बड़े मायने समेटे हुए है,....और यह सिर्फ भारत में ही नहीं है, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी पाया जाता है, जो कि खुद में मुस्लिम देश है, पाकिस्तान में औरतों की शैक्षिक/आर्थिक स्थिति और भी बदहाल है, वहां महिला शहरी क्षेत्र में साक्षरता का प्रतिशत 30% है, जबकि गावों में 5% है ! मुस्लिम देश अफगानिस्तान में औरतों की साक्षरता का प्रतिशत और भी डरावना 32 फ़ीसदी है !
यह 'बशर्ते' की विचारधारा अफगानिस्तान वाया पाकिस्तान अपने मुल्क में भी काम करती चली आ रही है, और शायद करती भी रहे, अगर हम नहीं चेते तो !
यह #बशर्ते ही कहीं न कहीं मुस्लिम औरतों की शैक्षणिक/आर्थिक स्थिति और सामाजिक बदहाली के लिए ज़िम्मेदार है, यह खुद में ही एक क़ानून है, यह खुद में एक अप्रत्यक्ष फतवा है, एक भूल भुलईयाँ, एक जाल है, जिसे मज़हबी ठेकेदारों ने इस तरह से सामने रखा है कि आप सहम जाते हैं, भ्रमित हो जाते हैं !
ज़रुरत है इस ‘बशर्ते’ की बारीकियां समझने की, ‘बशर्ते’ के पीछे छुपे स्वार्थ और मक्कारियों को समझने की, और मक़सद को बूझने की ! जितनी जल्दी इस ‘बशर्ते’ को डिकोड करेंगे, उतना ही आपका फायदा है ! वक़्त आ गया है कि मज़हबी हुदूद में रहते हुए इस 'बशर्ते' को डिकोड कर बेटियां - बहने आगे बढे....खूब पढ़ें, आला तालीम लें, स्वावलम्बी बने, खुद के पैरों पर खड़ी हों, अपना मुस्तक़बिल बनायें, समाज में मुल्क में अपनी बा-वक़ार, बा-इज़्ज़त मौजूदगी दर्ज कराएं, और फिर बेहतर और बेहतर समाज और क़ौम का निर्माण करें, और साथ ही इस पढ़ने की आज़ादी का गलत इस्तेमाल ना करें, तहज़ीब, शर्मो हया और अदब के साथ इल्म हासिल करें, कोई काम ऐसा ना करें कि म'आशरे में वालदैन का सर नीचे हो !
औरत किसी समाज भी की बुनियाद होती है और जब किसी ईमारत की बुनियाद ही कमजोर होगी तो बुलंद ईमारत की सोच भी बेमानी होगी !
मैं अपनी बात शायर जनाब असरारुल हक़ मजाज़ के इस शेर के साथ ख़त्म करता हूँ :-
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है, लेकिन !
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तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था !!