शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

सत्ता से दूरी - कांग्रेस के लिए ज़रूरी !!

भारत की आजादी के बाद से कांग्रेस ने सिर्फ 13 साल छोड़ कर बाकी सारे समय देश पर राज किया है. इस बार भी लगातार 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद उसे हार का सामना करना पड़ा है. इसका कारण बताने की ज़रुरत भी नहीं है ! गठबंधन सरकार की मजबूरियों को बहाना बना कर ढीली और कमज़ोर सरकार का तमगा लिया, कई निर्णय और विधेयक ठन्डे बस्ते में ही रहे, 2 G घोटाले से लेकर कॉमन वेल्थ घोटाले ने तथा कई और भी घोटालों ने भी इस हार में मुख्य भूमिका निभाई ! और इसका नतीजा 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत के रूप में सामने आया !


कांग्रेस की बुरी तरह से पराजय हुई, यहाँ तक कि कई राज्यों के विधान सभा चुनावों से लेकर स्थानीय निकायों के चुनावों तक में सूपड़ा साफ़ हो गया ! भले ही इसे मोदी लहर कहें मगर एक नज़रिये से देखा जाए तो यह कांग्रेस के विरुद्ध जनादेश भी कहा जा सकता है ! 


कांग्रेस के लिए सत्ता से दूरी क्यों ज़रूरी है, इसकी दलील यह है कि इस लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हवा के रुख को देखते हुए  कई दिग्गज कांग्रेसियों ने भाजपा को ज्वाइन किया है, जो कि कांग्रेस के लिए  ठीक ही रहा, यदि यह लोग कांग्रेस में ही रहते तो वफादारी किस प्रकार निभाते यह शायद कांग्रेसी जान चुके होंगे, दूसरी बात 10 साल सत्ता सुख भोगते भोगते कांग्रेस और उसके कई बड़े नेता अति आत्म विश्वास से लबरेज़ हो गए थे, फूहड़ बयान बाजियां जमकर हुईं, चमचा गिरी और चापलूसी की इंतिहा होगई, एक साहब ने तो सोनिया गांधी को देश की माँ तक कह डाला था, वहीँ दूसरी ओर  देश में सुलग रहे जनाक्रोश से भी पूरी तरह अनजान रहे,  और उस जनाक्रोश को अन्ना आंदोलन के ज़रिये विस्फोटित किया गया, बाद में रामदेव बाबा भी इसमें कूद पड़े ! 


कांग्रेस के लिए सत्ता से दूरी की ज़रुरत को समझने के लिए हमें 6 -7 वर्ष पीछे लौट कर सत्ता से 10 वर्ष दूर रही भाजपा और उसकी उस समय की स्थिति तथा अब की स्थिति पर भी एक नज़र डालना होगी, तभी इसे ढंग से समझा जा सकता है, उस समय भाजपा इतनी कमज़ोर थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी कमज़ोर आवाज़ या फिर काले धन के खिलाफ उसका विरोध एक औपचारिकता मात्र ही लगता था,  मगर जब भाजपा के थिंक टैंकों ने अपनी रणनीति  बदली और सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों को कांग्रेस के शासन के विरोध आवाज़ उठाने के लिए अपने साथ लिया तो स्थिति तुरंत ही बदल गयी,  इसका सबसे बड़ा उदाहरण भ्रष्टाचार के खिलाफ तैयार किया अन्ना आंदोलन और रामदेव बाबा का काला धन विरोधी आंदोलन ! यदि यह दो आंदोलन नहीं होते तो शायद भाजपा को यह प्रचंड बहुमत भी नहीं मिल पाता ! जनाक्रोश को सुनियोजित ढंग से समझ कर उसका मंथन किया गया !


कांग्रेस का अर्थ 'जीत' नहीं है, कांग्रेस का अर्थ केवल 'सत्ता' ही नहीं है, अब कांग्रेस किस स्थिति में है, किसी से छिपा नहीं है, सत्ता से दूर रहकर कांग्रेस को बहुत कुछ सोचना है,  पिछले दस सालों के लेखे जोखे से सबक लेना है, वर्तमान नीति बनानी है, भावी रणनीति पर भी काम करना है, और 2014 में हुए इस सत्ता परिवर्तन पर और उसके मूल कारणों पर भी मंथन करना है, समय बहुत है, हो सकता है इन्हे भी पूरे दस वर्ष उसी तरह प्रतीक्षा करना पड़े जैसा कि भाजपा को करना पड़ा था,  और यदि चेते नहीं तो हो सकता है 10 वर्ष से भी ज़्यादा प्रतीक्षा काल हो जाए, और यदि ऐसा हुआ तो 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा भी सच हो जाएगा !

Śỹëd Äsîf Älì
1st Dec., 2014

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