बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

जूता, चप्पल, थप्पड़ और स्याही... राजनैतिक, मानसिक या प्रायोजित....??

जूते चप्पल, थप्पड़ और स्याही फेंकने की कला का ज़ोरदार प्रदर्शन जितना हमारे देश में होना शुरू हुआ है...वो हैरत में डालने वाला है...इराकी पत्रकार मुन्तजिर अल जैदी के जूते की तर्ज़ पर ....तड़ा तड नक़ल जारी है.......अब इसमें कई लोचे भी हैं.....कुछ जूते, चप्पल, स्याही और थप्पड़  तो राजनैतिक  थे, कुछ मानसिक...और कुछ प्रायोजित....कुछ में तो मारने वाले की चाँदी हो गयी...कुछ में पड़ने वाले की...शरद पंवार को थप्पड़ मारने वाले के थप्पड़ का कारण मानसिक निकला.... यह उसकी डाक्टरी रिपोर्ट से पता चला... मानसिक थप्पड़ और जूते के पीछे क्रोध और आवेश भी शामिल होते हैं...यह बात भी इस में निहित है.....कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी  को  जूता दिखने वाले  राजस्थान के सीकर निवासी सुनील  कुमार  का  जूता राजनैतिक  निकला , वो भाजपा से सम्बंधित एक संगठन से काफी अरसे से जुड़ा रहा था...   उदाहरणों की कमी नहीं है... स्याही डाल खुद को राजनीति में चमकाने की इच्छा रखने वाले सिद्दीकी ने बाबा को दो दिन तक मीडिया में चमका दिया.......प्रशांत भूषन के थप्पड़ मार कर सरदार बग्गा जी ने अपनी भगत सिंह क्रान्ति सेना की दुकान चमका डाली....और देहरादून में  किशन लाल नाम के एक व्यक्ति ने जूता उछाल कर टीम को मीडिया में चमका दिया...अब यह जूता राजनैतिक तो हो नहीं सकता...प्रायोजित ज़रूर हो सकता है...प्रायोजक कौन है....? अरे भाई वही होगा....जिसको इस जूते से लाभ ज्यादा हुआ हो...अर्थात जिस जूते, चप्पल, थप्पड़ या स्याही से पड़ने वाली पार्टी को लाभ और सिर्फ लाभ ही हो ...उस को तो हम प्रायोजित ही कह सकते हैं.....!


टीम अन्ना का देहरादून दौरा जूते की वजह से चर्चा में ज्यादा रहा। जूता, चप्पल फेंकना एक फैशन होता जा रहा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। लोकतांत्रिक मर्यादाओं की सीमाओं के भीतर रहकर विरोध करने के बजाय जूता चप्पल फेंकना स्याही फेंकना, थप्पड़ मारना जैसी हरकतों के बढ़ जाने से आपसी टकराव होंगे, मारपीट होगी और यह हमें अराजकता की ओर ले जाएगा। टीम अन्ना चूंकि राजनीति की बिसात पर उतर आई है इसलिए उसे भी यही सब, या इससे ज्यादा की  भी  झेलने की आदत डालनी होगी ..जो की अक्सर इस बिसात पर होता ही रहता है...!!

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