बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सिविल सोसाइटी और मीडिया का मायाजाल....!!


सारा का सारा देश (जो की टीवी ग्रस्त है) पलकों में तीलियां फंसाए अपलक अपने अपने टीवी सेटों से चिपका बैठा था. सब के सब अचानक से भारतीय हो गए थे... राष्ट्रभक्ति और खेल भावना से भरे हुए. टीम इंडिया का खेल देखने में लोग यों जुटे कि टीआरपी के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए. इसी वर्ल्डकप विद इंडिया वैडिंग का रिसेप्शन शुरू हुआ पांच अप्रैल को, जंतर-मंतर पर. एक बुजुर्ग व्यक्ति गांधी टोपी और धवल वस्त्रों में सफेद चादर वाले मंच पर आसीन हो गए. इनके बगल में एक भगवा वस्त्रधारी स्वामी जी, एक मैग्सेसे प्राप्त पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और कुछ सामाजिक कार्यों के दक्ष मैनेजर. पीछे भारत माता का तिरंगा ध्वज वाला फोटो ...जो अब पूरा ही गायब हो चुका है, . खैर, अनशन का आगाज़ हुआ. अन्ना हजारे तकिया लेकर बैठ गए. 
वैसे अन्ना जैसे कई बैठते हैं इस जगह पर. साल भर होते हैं प्रदर्शन, सत्याग्रह, धरने, रैलियां. ये धरने-प्रदर्शन अपनी नीयत और सवालों को लेकर ज़्यादा ईमानदार होते हैं. पर इसबार बात जन लोकपाल बिल की थी. अन्ना की मंडली का मानना है कि जन लोकपाल बिल आते ही भ्रष्टाचार इस देश से ऐसे गायब हो जाएगा जैसे डिटॉल साबुन से गंदगी. ..बाबा रामदेव के दिशा निर्देशन में पहले ही जन लोकपाल बिल का खाका बन चुका था. अब इसे सरकार को सौंपना था. सरकार इसे माने और वैसे ही माने जैसे कि अन्ना मंडली चाहती है, इसके लिए सीधा रास्ता तो कोई संभव नहीं था सो बात तय हुई अनशन की. ...सवाल उठा कि अनशन पर कौन बैठे... ? अन्ना या रामदेव. फिर लगा, गांधी टोपी की ओट में और एक उम्रदराज बुजुर्ग को सामने रखकर हित साधना सबसे आसान होगा. सो अनशन शुरू हुआ... लंगर परंपरा को पापनाशक मानने वाले अभिजात्य, धनी लोग गाड़ियों में मिनरल वॉटर की पेटियां लेकर पहुंच गए. कई छोटी-बड़ी एनजीओ न्यौत दी गईं. बैनरों और कनातों की तादाद बढ़ती चली गई. नफीसा अली, फरहा खान, अनुपम खेर जैसे  चेहरे मौके की चाशनी पर मक्खियों की तरह आ कर भिनभिनाने लगीं..!
मीडिया में पहले से मज़बूत पैठ रखने वाले और सालाना जलसों में मीडिया को पुरस्कार देने वाले समाजसेवी मीडिया मैनेजमेंट में लग गए... दो बड़े मीडिया संस्थानों के मालिकों को एक पहुँचे हुए बाबा का फोन गया और उनके चैनल, अखबार अपने सारे पन्ने और सारे कैमरे लेकर इस अभियान में कूद पड़े. बाकी मीडिया संस्थान बिना खबरों वाले दिन में इस ग्रेट  अपार्चुनिटी को कैसे हाथ से निकलने देते... ओबी वैन एक के बाद एक... बड़ी बड़ी लाइटें, सैकड़ों कैमरे, हज़ारों टेप, मंडी के सड़े आलुओं की तरह सैकड़ों मीडियाकर्मी फैले पड़े थे. लगा कि लाइव-लाइव खेलते खेलते ही भ्रष्टाचार खत्म. अन्ना लाइव, अरविंद लाइव, सिब्बल लाइव, रामदेव लाइव, स्वामी लाइव, बेदी लाइव... आमजन के तौर पर इक्ट्ठा हुए सैकड़ों लोग भी लाइव में अपना चेहरा चमकाने के लिए हसरत भरी नज़रों से कैमरों की ओर देख रहे थे... कामातुर पुरुषों की तरह. एक कैमरा पैन हुआ.. और ये लीजिए, ज़ोर-ज़ोर से नारे लगने शुरू. भारत माता की जय, वंदेमातरम, भ्रष्टाचार खत्म करो. चेहरे पर तिरंगे, हाथ में तिरंगे, कपड़े तिरंगे, पर्चे तिरंगे, पोस्टर तिरंगे. जैसे युद्ध विजय हो. ये लोग भ्रष्टाचार को मिटाने आए थे. मंच से कमेटी के लिए लड़ाई चल रही थी. यानी एक जगह पर दो अलग-अलग मकसदों का संघर्ष... मंच पर कमेटी में शामिल होने का और मंच के सामने भ्रष्टाचार मिटाने का...!



बौद्धिक दखल रखने वाले एक बड़े हिस्से को आखिर तक और कुछ को तो अभी तक समझ में नहीं आया है कि इस पूरे ड्रामे को किस तरह से लिया जाए. ? कुछ लोग इस भ्रम और अनिर्णय में मंच तक जा पहुंचे कि कहीं एक बड़ी लड़ाई में तब्दील होते इस सिविल सोसाइटी कैम्पेन से वो अछूते न रह जाएं. कहीं ऐसा न हो कि समाज और मीडिया उनसे पूछे कि जब इतना बड़ा यज्ञ हो रहा था तो आप अपनी आहुति की थाली लेकर क्यों नहीं पहुंचे...और अंत में आम आदमी आवाक सा मुहं फाड़े इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध होने वाली सर्कस के हर एपिसोड को देखता चला आ रहा है...पहले एपिसोड से लेटेस्ट एपिसोडों की तुलना कर हैरान हो कर  सर खुजाता नज़र आ रहा है...जूतम पैजार...टीम अन्ना की बयान बाज़ी...पाला बदलते बयान...राजनैतिक बिसात पर टीम अन्ना की डेढ़ चाल ...आम आदमी को लग रहा है...की इस सर्कस में हर बार उसको ही मोहरा बनाया गया...हर बार भीड़ रुपी तवे पर रोटियां सेंकी गयी...जब मुंबई में तवा गरमा न हो सका तो शो बीच में ही ख़त्म...अब इस भीड़ को राजनीति की बिसात पर खींच कर कौनसी रोटियां सेंकने की फिराक मैं हैं...यह शायद अब उसकी समझ में आने लगा है., यानी इस मीडिया पोषित बाबा/अन्ना आन्दोलन और सरकार के बीच के फुल तमाशे में अगर कोई ठगा गया तो वो है...आम आदमी...बाक़ी सब की तो बल्ले बल्ले हो ही चुकी है...यह बात भी जनता देख और समझ चुकी है...!!

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