बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

भाजपा--लोकायुक्त ---और जनलोकपाल--मुखौटा दर मुखौटा~~~~!!

भारत में भ्रष्टाचार से लड़ाई अगर लोकपाल , या उसके कथित आदर्श रूप ' जन लोकपाल ' के जरिए ही लड़ी जानी है , तो संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर हुई राजनैतिक दलों की  बहस से लगता है कि इस लड़ाई का कोई भविष्य नहीं है। संसद में बीजेपी ने इस बिल की सबसे बड़ी कमजोरी यह बताई कि इसमें सीबीआई को लोकपाल के हवाले नहीं किया गया है। जिस पार्टी ने अपने शासनकाल में सीबीआई का खुला दुरुपयोग अयोध्या कांड में फंसे अपने गृहमंत्री को बचाने में किया हो , वह अचानक इस संस्था को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए आतुर हो जाए , यह बात आसानी से गले नहीं उतरती। बहरहाल , सरकारी लोकपाल विधेयक के प्रति बीजेपी की सबसे बड़ी नाराजगी का बिंदु सीबीआई नहीं , राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति है। लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने के विधेयक का विरोध करते हुए उसका कहना था कि सरकारी बिल में लोकपाल की ही तर्ज पर लोकायुक्तों की नियुक्ति की बात कह कर देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन किया गया है। यह चूंकि खुद में एक असंवैधानिक प्रस्थापना है , लिहाजा इसे जायज बनाने वाले संविधान संशोधन को मंजूरी नहीं दी जा सकती।


बिना किसी प्रस्तावना या पूर्वपीठिका के आया बीजेपी का यह विचार सचमुच बौखलाहट पैदा करने वाला है। रामलीला मैदान में अपने अनशन के दौरान अन्ना हजारे ने जो तीन - चार शर्तें संसद के सामने रखी थीं , उनमें एक यह भी थी कि राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति लोकपाल को ही मॉडल बनाते हुए की जाए और इसे लोकपाल कानून के जरिए बाध्यकारी बनाया जाए। उस समय बीजेपी ने न सिर्फ संसद में अन्ना की सारी शर्तों की ताईद की थी , बल्कि तब से अब तक सभी संभावित मंचों से इसका श्रेय लेने की भरपूर कोशिश भी की थी। और तो और , हाल में जंतर - मंतर पर अन्ना के एक दिवसीय अनशन में उनके मंच पर पहुंचे शीर्ष बीजेपी नेताओं ने एक बार भी ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि अन्ना की कुछ शर्तों से उनका विरोध है , और उन्हें वे असंवैधानिक मानते हैं। बल्कि मीडिया के सामने अन्ना की हर बात में उनकी मुंडी हाँ में ही हिलती नज़र आयी थी...जो कि संसद में अचानक ही ना में हिलती नज़र आने लगी...!

कंबल ओढ़कर घी पीने की यह रणनीति मौका मिलने पर भारत की सारी राजनीतिक पार्टियां अपनाती हैं , जिसमें उनके नेता यह मानकर चलते हैं कि इस देश की जनता ज्यादा महीन बातें नहीं समझती , और जब तक हवा अपनी तरफ है , तब तक किसी भी मुद्दे पर स्याह - सफेद में कुछ कहने की जरूरत क्या है।

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