बुधवार, 15 अप्रैल 2015

भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ ज़रूर बनाइये... अगर ...

देश में सरकार बदलने के बाद भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने के लिए पुरज़ोर आवाज़ उठी है, भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सबसे पहले इस के लिए आवाज़ उठाई थी, और इसी बाबत कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने के लिए दायर याचिका ख़ारिज कर दी है !
घर्म ग्रन्थ हर धर्म के लिए आस्था, आदर, गौरव, श्रद्धा और सम्मान के पात्र होते हैं, बात यहाँ भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने की हो रही है, ठीक है......गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कीजिये....अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने से देश की समस्याएं सुलझ जाएँ, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश में औरतों को डायन बता कर मार देना बंद हो जाए, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद अस्पताल के दरवाज़ों पर प्रसूताएं दम तोडना बंद कर दें, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद बेरोज़गारी ख़त्म हो जाए, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद किसान आत्म हत्यायें करना बंद कर दें !
अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश के वृद्ध आश्रम बिलकुल खाली हो जाएँ, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद कोई बेटी दहेज़ की बलिवेदी पर चढ़े, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश में कोई भूखा ना सोये, यदि इस से देश में घोटाले, भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाए, स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन के लिए दर दर भटकना पड़े, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद देश के सैनिकों को क्रिकेट खिलाडियों से ज़्यादा सम्मान और पैसा मिलने लगे, अगर इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने के बाद बेटियां कोख में मारना बंद कर दिया जाए ......तो बेशक फ़ौरन ही इसे राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाए, देश का कोई भी नागरिक इसका विरोध नहीं करेगा,बल्कि आगे आकर इसके समर्थन में अपनी आवाज़ उठाएगा !
और यदि मान लीजिये कि भगवद् गीता राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित नहीं होता है, तो भी इस ग्रन्थ के प्रति आस्था कम नहीं होगी, सम्मान और आदर कम नहीं होगा ! आज तक सरकारों ने शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा नहीं दिया तो उनके प्रति हमारा सम्मान और आदर कम तो नहीं हो गया ? आज तक बापू को राष्ट्रपिता का दर्जा किसी सरकार ने नहीं दिया तो क्या उनके आदर और सम्मान में किसी प्रकार की कोई कमी आयी ?
पवित्र धार्मिक ग्रंथों के बहाने राजनैतिक हितों को आस्था का चोला पहना कर जनता को गुमराह नहीं किया जाना चाहिए !
चाहे भगवद् गीता हो या पवित्र क़ुरआन, या बाइबिल या गुरु ग्रन्थ साहिब...इन्हे किसी प्रकार की घोषणा की ज़रा भी आवश्यकता नहीं है, यह सभी पवित्र ग्रन्थ इन सब मान्यताओं और घोषणाओं से काफी ऊपर हैं, इन सब के प्रति आस्था, सम्मान, श्रद्धा और आदर कभी कम हुआ है और ना ही भविष्य में होगा, चाहे सरकारें घोषणा करें या ना करें !!

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