बुधवार, 27 अप्रैल 2016

और भी मसले हैं समाज में बुर्क़े के सिवा ~~~!!

अगर औरतों की बराबरी के नाम पर किसी के पेट में मरोड़ उठती है, या बराबरी की तुलना को औरतों को खड़े होकर पेशाब करने से मानते हैं या फिर ट्रक के टायर बदलने से मानते हैं तो माफ़ कीजिये आपका ज्ञान सुधारिये, औरतें यह भी कर रही हैं, खड़े होकर पेशाब भी कर रही हैं और ट्रक के टायर भी बदल रही हैं, चाहें तो फोटो लिंक सहित कमेंट में दे सकता हूँ !!

पिछले दिनों बुर्का युद्ध के दौरान जहाँ एक तरफ बुर्का समर्थकों द्वारा यह दलीलें भी दी गयीं कि उनके साथ बराबरी का व्यवहार किया जाता है, उन पर कोई जोर ज़बरदस्ती नहीं है, वो चाहें तो बुर्का ओढ़ें या ना ओढ़ें, वहीँ दूसरी और औरतों को इस बात पर गरियाया भी गया कि वो बराबरी का हक़ या बुर्क़े की मुखालफत कर नंगी होना चाहती हैं !

मुझे एक बात बताईये कि क्या बुर्क़े के बाद सिर्फ पैंटी और ब्रा ही एक मात्र पहनावा रह जाता है, दुनिया में औरतें क्या यह दो ही पहनावे पहनती हैं बुर्क़ा और उसके बाद ब्रा और पैंटी ? बुर्क़े के बाहर क्या औरत नंगी है ? और जो बुर्का नहीं पहने वो रंडी, तवायफ या छिनाल जैसे बदतरीन और गलीज़ लफ़्ज़ों से नवाज़ी जाए ?

क्या बुर्क़े वाली ही औरत है बाक़ी सब औरतें सनी लीओन हैं, जिसकी कि मिसाल यहाँ फेसबुक पर हज़ार बार देख चुके हैं ?

अगर आपका जवाब हाँ है तो माफ़ कीजिये आप मुल्क की और क़ौम की उन सभी बहन बेटियों को गाली दे रहे हैं जो बुर्का नहीं पहनती हैं, पढ़ लिख कर आला ओहदों पर काम कर रही हैं, चाहे वो डॉक्टर्स हों, जज हों, वकील हों, इंजीनियर्स हों, पुलिस में हों, एयर फ़ोर्स, नेवी, आर्मी या शिक्षा के क्षेत्र में हों !

क्यों फिर आप सब मुल्क की पहली पायलट साराह हमीद..


पहली मुस्लिम एस्ट्रोनॉट अनुशेह अंसारी ..

क्यों राजस्थान हाई कोर्ट में जज बनी यास्मीन खान..

या एशिया की पहली डीज़ल इंजन ड्राइवर मुमताज़ क़ाज़ी ...

की उपलब्धियों पर सुभानल्लाह, माशाल्लाह करते हैं, क्यों इनके बुर्क़ा ना ओढ़ने पर, या इनके हिजाब ना पहनने पर लानतें क्यों नहीं भेजते ??

इस मंच पर हज़ार बार यह देखा गया है कि पर्दे या बुर्क़े पर रोज़ कोई न कोई प्रवचन देता है, बहुत अच्छी बात है, होना भी चाहिए, मगर तर्कों और तहज़ीब के दायरे में, मगर क्या क़ौम की औरतों के लिए यही एक मुद्दा या मसला है ?

औरतें दीन को उतना ही समझती हैं, जितना कि आप और हम, दुनिया भर में हिजाब डे औरतें ही तो मनाती हैं, यूरोप में क्यों हिजाब के लिए औरतें लड़ रही हैं, कोई ज़बरदस्ती तो नहीं ? फिर क्यों उस पर थोपा जाए कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं !

मैं पर्दे का बिलकुल भी मुख़ालिफ़ नहीं हूँ, मगर जोर ज़बरदस्ती के खिलाफ हूँ, यह औरतों का मसला है, आपके यह कहने पर कि "तुम नक़ाब में रहो, दुनिया औक़ात में रहेगी " , वो इसे अपने पर थोपने वाली नहीं, उसे मालूम है कि क्या करना है, कोई औरत नंगी नहीं होना चाहती, जैसा कि यहाँ सीधा इलज़ाम आयद किया जाता है !

दूसरी बात कि यहाँ जितने औरतों के हुक़ूक़ के समर्थन में उठ खड़े हुए हैं, वो ज़रा बताएं कि क़ौम की औरतों की शैक्षणिक स्थिति इतनी बदतर क्यों है ? क्यों हमारी आधी आबादी आर्थिक, शैक्षणिक, स्वावलम्बन के क्षेत्र में बदतरीन हालत में हैं ?

क्यों यहाँ इस मंच पर क़ौम की औरतों की आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और सशक्तिकरण के मुद्दों पर बहस नहीं की जाती ?? क्यों इस मसले से हमेशा बच कर निकला जाता है ?

आज अगर कभी भूले भटके क़ौम की औरतों की आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और सशक्तिकरण के मुद्दों पर बहस छिड़ जाए तो एक तिहाई बुर्का समर्थक योद्धा मुद्दे से कन्नी काटते नज़र आएंगे !

पिछले दिनों कई लोगों को यहाँ हद दर्जे फूहड़ गालियां और कमेंट करते देखा है, अपनी ही लिस्ट की मुसलमान औरतों को ज़लील करते देखा है, गलियाते देखा है, मैं ऐसे किसी भी फेसबुक दोस्त की फ्रेंड लिस्ट में नहीं रहना चाहता ! कइयों को अनफॉलो किया है, कईयों को चुपचाप अनफ्रेंड किया है, और यह सिलसिला जारी है !

एक आम फेसबुक यूज़र की हैसियत से अपने विचार रखे हैं, आप सभी आज़ाद हैं चाहें तो मुझे संघी कहें, काफिर कहें, नास्तिक का तमग़ा दें, या इसी वक़्त अनफॉलो करें, अनफ्रेंड करें या ब्लॉक करें !!

मगर अब बुर्क़े पर यहाँ बहस ना करें, इस पर यहाँ अपार ज्ञान पहले ही खूब बंट चुका है, करना ही चाहते हैं तो क़ौम की बहन बेटियों की तालीम और उनके सशक्तिकरण पर करें !

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