मंगलवार, 13 मार्च 2018

अरब क्रांति अब तक सीरिया की चौखट पर सर क्यों पटक रही है ??






अगर आपको सीरिया संकट समझना है तो 2010 और उससे पहले जाकर वहां से शुरू कीजिये, बल्कि शुरू कीजिये सद्दाम हुसैन को WMD के बहाने बदनाम कर उन्हें फांसी दिए जाए से, शुरू कीजिये अरब क्रांति, या अरब बसंत, या जासमीन क्रांति से, निशाने पर लिए गए कुछ अरब देशों की जनता को लोकतंत्र का लॉलीपॉप थमा कर शुरू की गयी अरब क्रांति से !

और फिर उसके बाद पहचानिये इस क्रांति के जनक, प्रायोजकों, फाइनेंसरों को, फिर आपको ISIS की पैदाइश उसकी वजहों और उसके प्रायोजकों, फाइनेंसरों को समझना होगा, जहाँ जहाँ अरब क्रांति ने तबाही मचाई, वहां वहां इस ISIS ने बाद में लूट और तबाही मचाई, अरब क्रांति के विरोधियों का क़त्ले आम किया गया !

अब आते हैं 'अरब क्रांति' पर, 18 दिसम्बर 2010 को एक सब्ज़ी विक्रेता मोहम्मद बउज़िज़ी के आत्मदाह से इसकी शुरूआत ट्यूनीशिया से हुई थी, इसकी आग की लपटें पहले-पहल मिस्र में तहरीर चौक के तौर पर, फिर लीबिया, यमन, बहरीन तक पहुंची, हालाँकि यह क्रान्ति अलग-अलग देशों में हो रही थी, परंतु इनके विरोध प्रदर्शनो के तौर-तरीके में कई समानता थी - हड़ताल, धरना, मार्च एवं रैली, अमूमन, जुमे को विशाल एवं संगठित भारी विरोध प्रदर्शन होता, जब जुमे की नमाज़ अदा कर सड़कों पर आम नागरिक इकठ्ठित होते थे !

सोशल मीडिया का अरब क्रांति में अनोखा एवं अभूतपूर्व योगदान था, इसे एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया, एक बेहद ही ढ़ाँचागत तरीके से दूर-दराज के लोगों को क्रांति से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल हुआ था !

अरब क्रांति के क्रन्तिकारियों को सरकार, सरकार-समर्थित हथियारबंद लड़ाके एवं अन्य विरोधियों से दमन का सामना करना पड़ा, लेकिन ये अपने नारे 'Ash-sha`b yurid isqat an-nizam' (अंग्रेज़ी में - "the people want to bring down the regime"; हिन्दी में - 'जनता की पुकार-शासन का खात्मा हो') के साथ आगे बढ़ते रहें !

अरब क्रांति ने पूरी दुनिया का आकर्षण अपनी ओर खींचा, तवाकोल करमान (Tawakkol Karman), यमनवासी, अरब क्रांति के प्रमुख योद्धाओं में एक, 2011 शान्ति नोबल पुरस्कार विजेता थी, दिसमबर 2011 में 'टाईम' पत्रिका ने अरब विरोधियों को 'द परसन ऑफ द ईयर' (The Person of the Year) की उपाधि भी दी गयी थी !

अब आईये अरब क्रांति के जनक, प्रायोजकों, फाइनेंसरों पर तो इसके लिए आपको कई इंग्लिश वेब साइट्स को पढ़ना होगा, विकीलीक्स के इस अरब क्रांति पर किये गए खुलासों को पढ़ना होगा !

जैसा कि साफ़ है कि अरब क्रांति का जनक अमरीका है, साथ में ब्रिटैन, इज़राईल हैं और इसमें सऊदी अरब का गायबाना हाथ था, यानी अप्रत्यक्ष सहयोग और समर्थन प्राप्त था :-


और इसके लिए आसान टैग लाइन वाली एक खबर आपको पढ़ना चाहिए वो है : "The Arab Spring: Made in the USA" इससे ही आप समझ गए होंगे कि खेल शुरू किसने किया, अल्जीरियन पत्रकार और लेखक अहमद बेनसादा की लिखी किताब 'Arabesque$', उसमें दिए गए तथ्यों को समझ कर पढ़ना होगा:-
https://dissidentvoice.org/2015/10/the-arab-spring-made-in-the-usa/


अहमद बेनसादा विकीलीक्स के हवाले से लिखते हैं कि ये अरब स्प्रिंग या अरब क्रांति अमरीका की सोची समझी पांच वर्षीय योजना थी, साथ में ब्रिटैन, इज़राईल थे, तथा इसमें सऊदी अरब का गायबाना हाथ था, यानी अप्रत्यक्ष सहयोग और समर्थन प्राप्त था :-

और इस अरब स्प्रिंग को सुचारु रूप से शुरू करने के लिए अमरीका में सीआईए, अमरीका का स्टेट डिपार्टमेंट, और 2008 में ओबामा के सफल चुनाव कैम्पेन वाली टीम ने बाक़ायदा सोशल मीडिया को मारक हथियार को इस्तेमाल करने के तरीकों पर अमरीका में वर्कशॉप्स और कॉन्फ्रेंस आयोजित किये जिसमें अरब क्रांति के बाद वाले नायकों ने हिस्सा लिया, और इस पर जमकर पैसा बहाया गया !
अहमद बेनसादा आगे चलकर विकीलीक्स के हवाले से बताते हैं कि Washington Post ने बताया था कि तहरीर चौक आंदोलन शुरू करने से पहले 10,000 युवकों को NED (National Endowment for Democracy) और USAID (US Agency for International Development) संगठन के बैनर तले ट्रेनिंग दी गयी थे, इस ट्रेनिंग का विषय था सोशल मीडिया तकनीक का अहिंसात्मक संगठनात्मक उपयोग कैसे किया जाये ?
इसके लिए मिस्त्र के एक पूर्व पुलिस अधिकारी ओमर अफीफी सुलेमान जो अमरीका में रह रहा था, उसने वाशिंगटन डीसी से इस ट्रेनिंग की कमान संभाली हुई थी, और इसके लिए अमरीका ने ओमर अफीफी सुलेमान को 2008 से लेकर 2011 तक हर साल 200,000 लाख डॉलर का भुगतान किया था !
https://dissidentvoice.org/2015/10/the-arab-spring-made-in-the-usa/

मिस्त्र के साथ ही लीबिया और सीरिया में अरब क्रांति की आग भड़काने के लिए सोशल मीडिया यौद्धाओं को ट्रेनिंग देने के साथ साथ सीआईए, मोसाद और सऊदी अरब द्वारा प्रायोजित गुरिल्ला हमलों के ट्रेनिंग कैम्प्स भी लगाए गए, कुछ ही महीनो बाद लीबिया में कर्नल गद्दाफी को मार डाला गया, इसके बाद इस अरब क्रांति सोशल मीडिया को हथियार बनाकर अपने गुरिल्ला मिलिटेंट के साथ सीरिया की चौखट पर पहुंची जहाँ राष्ट्रपति असद ने होस्नी मुबारक और कर्नल गद्दाफी का हश्र देख कर इस अरब क्रांति को सीरिया के दरवाज़े पर ही रोक दिया !
सीरिया के ख़ुफ़िया विभाग और राष्ट्रपति असद ने अरब क्रांति के पीछे की कुटिलता को भांप लिया था, और उन्होंने सद्दाम हुसैन, कर्नल गद्दाफी, के बाद मिस्र और लीबिया का हाल भी देख लिया था और तबाह बर्बाद मिस्र और लीबिया और उससे पहले के इराक को भी, तो जब मार्च 2011 में सीरिया के दक्षिणी शहर दाराआ में भी लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन शुरू हुआ तो असद इस प्रायोजित आंदोलन को कुचलने के लिए क्रूरता दिखाई, इसका ठीक असर वैसे ही हुआ जैसा कि अरब क्रांति वाले चाहते थे, सरकार के बल प्रयोग के ख़िलाफ़ सीरिया में राष्ट्रीय स्तर पर विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया और लोगों ने बशर अल-असद से इस्तीफे की मांग शुरू कर दी !
अरब क्रांति को कैसे सीरिया में दाखिल नहीं होने दिया गया, और अरब क्रांति से लेकर लेकर वर्तमान सीरिया संकट तक अगर आपको फैक्ट्स के साथ सब जानकारियां पढ़ी हैं तो अल-जज़ीरा के इस लेख को ज़रूर पढ़िए :-
https://www.aljazeera.com/news/2016/05/syria-civil-war-explained-160505084119966.html

वक़्त के साथ आंदोलन लगातार तेज होता गया, विरोधियों ने हथियार उठा लिए, विरोधियों ने इन हथियारों से पहले अपनी रक्षा की और बाद में अपने इलाक़ों से सरकारी सुरक्षाबलों को निकालना शुरू किया !
असद ने इस विद्रोह को 'विदेश समर्थित आतंकवाद' करार दिया और इसे कुचलने का संकल्प लिया, उन्होंने फिर से देश में अपना नियंत्रण कायम करने की कवायद शुरू की. दूसरी तरफ विद्रोहियों का ग़ुस्सा थमा नहीं था, विद्रोही भी आरपार की लड़ाई लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार रहे. इस वजह से दोनों पक्षों के बीच हिंसा लगातार बढ़ती गई !
विकीलीक्स में अनुसार अमरीका ने 2008 से 2010 के बीच असद विरोधियों को असद के खिलाफ माहौल बनाने और विद्रोह को उकसाने के लिए 12 मिलियन डॉलर्स जैसी भारी भरकम रक़म दी थी ! वाशिंगटन पोस्ट में छपी वो खबर यहाँ पढ़ सकते हैं :-
https://www.washingtonpost.com/world/us-secretly-backed-syrian-opposition-groups-cables-released-by-wikileaks-show/2011/04/14/AF1p9hwD_story.html?utm_term=.c469f4cf0d73

और साथ ही सीरिया से निर्वासित कुछ लोगों को ब्रिटैन में असद विरोधी एक TV चैनल शुरू करने के लिए आर्थिक मदद की थी, जिसका नाम था Barada TV, ताकि वो सीरिया में असद विरोधी माहौल बना सके, इस चैनल के बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं :-

यहाँ विकीलीक्स ने एक शब्द का इस्तेमाल किया है 'MEPI' जिसका मतलब है 'Middle East Partnership Initiative' ये अमरीका की खुराफात है, और प्रत्यक्ष रूप से तो इसकी स्थापना मिडिल ईस्ट में लोकतंत्र की स्थापना, आर्थिक और राजनैतिक स्थिरता क़ायम करना है, मगर इसके बहाने ये किसी भी देश में उसके नागरिकों को उकसाकर भड़काकर विद्रोह भी करा सकता है, किसी भी देश के विरोधी दल को फाइनेंस करके आंदोलन, सत्ता पलट जैसे कारनामें करा सकता है !
इस 'MEPI' के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं :-

इसके साथ ही विकीलीक्स ने एक शब्द और सामने रखा है 'MJD' यानि 'Movement for Justice and Development in Syria', حركة العدالة والبناء في سورية
ये एक सियासी पार्टी है जिसकी स्थापना 2006 में लंदन (UK) में की गयी थी, इसके चरिमान हैं अनस अल अबदाह, सका नाम समझ कर ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ब्रिटैन में बैठकर सीरिया में ये कैसा जस्टिस और कैसा डेवलपमेंट करना चाहते हैं ! इस MJD के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं :-
https://en.wikipedia.org/wiki/Movement_for_Justice_and_Development_in_Syria

इज़रायल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद के भूतपूर्व निदेशक इफ्रेम हलेवी ने न्यूयॉर्क टाइम्स में हाल ही में लिखा कि सीरिया में अमेरिका को सैन्य हस्तक्षेप करके असद की सत्ता को गिरा देना चाहिए क्योंकि इससे मध्य-पूर्व में ईरान अपने एकमात्र बड़े सहयोगी को खो देगा और उसके बाद ईरान पर हमला करना आसान हो जायेगा और पूरा शक्ति सन्तुलन अमेरिका और इज़रायल के पक्ष में आ जायेगा :-

उम्मीद है इतने लम्बे लेख और कुछ सबूतों के ज़रिये आप सीरिया संकट के शुरू होने और उसके जारी रहने की वजहें समझ गए होंगे, सद्दाम को रास्ते से हटाने से लेकर अरब क्रांति के बहाने होस्नी मुबारक से लेकर कर्नल गद्दाफी को क़त्ल किये जाने, और सीरिया संकट शुरू करने तक अमरीका, इज़राईल ब्रिटैन और सऊदी अरब सबके रोल सामने आ गए होंगे !
अरब क्रांति से पहले सीरिया में किसी को कोई समस्या नहीं थी, और न सिर्फ सीरिया बल्कि ट्यूनीसिया, यमन, मिस्त्र, लीबिया में भी शासक और जनता चैन से ही थी, अब आप देख सकते हैं कि जहाँ जहाँ अरब क्रांति ने आग लगाईं उन देशों का क्या हाल है, (ट्यूनीसिया को छोड़कर) यमन, मिस्त्र, लीबिया के हाल आपके सामने हैं, और इसी विध्वंसक अरब क्रांति की आग के सीरिया में न घुस पाने की खुन्नस अरब क्रांति के जनक सीरिया से निकाल रहे हैं !

अब सीरिया इसी प्रायोजित अरब क्रांति की जीत और हार का आख़री मैदान बना हुआ है !

आप जितना चाहें इस ARAB SPRING, Jasmine Revolution के बारे में पढ़िए, इसके जनक, प्रायोजकों और कारणों पर पढ़िए आपको यही तथ्य नज़र आएंगे, मैंने ये लेख इंटरनेशनल कूटनीति, लपलपाती साम्राज्यवादी भूख, तेल की न बुझने वाली अमरीकी प्यास, ब्रिटिश-अमरीका की मिडिल ईस्ट पालिसी की खुराफात को सामने रख कर लिखा है !
लिखने को तो इस पर एक पूरी किताब भी लिखी जा सकती है जैसे कि अहमद बेनसादा ने अपनी किताब 'Arabesque$' लिखी थी, मगर इस सीरिया संकट को समझने के लिए अगर समझना चाहें तो इतना भी बहुत है !!

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