मंगलवार, 19 जनवरी 2016

सोशल मीडिया पर हम अपने म'आशरे का आईना भी हैं !!

अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बने सोशल मीडिया पर आये दिन लोगों की उपस्थिति बढ़ रही है, हर धर्म, सोच, समाज और विचारधारा के लोग यहाँ अपने विचारों और बहस से अपने मत व्यक्त करते नज़र आते हैं !

आप यहाँ कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष रूप से अपने समाज और धर्म का आईना भी होते हैं, आपकी पोस्ट, आपकी शेयरिंग, आपके विचार आपकी टिप्पणियां, आपकी प्रतिक्रिया यहाँ आपके धर्म समाज के सिद्धांतों को भी प्रतिध्वनित करती हैं !

यह बात सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं बल्कि ऑफलाइन भी लागू होती है, आप अपने मोहल्ले में अपने पड़ोस में भी इस को अपने व्यवहार, बोलचाल, संवाद से अपने समाज और धर्म की छवि अप्रत्यक्ष रूप से लोगों तक पहुंचाते हैं !

सोशल मीडिया पर 6 साल होने को आये हैं, मगर एक बात जो यहाँ  बहुत ही अफसोसनाक महसूस की है, वो है मुस्लिम म'आशरे और मज़हब की अजनाने में ही नकारात्मक इमेज पेश करना !

कोई दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन मुसलमान आपस में फ़िरक़ों, मसलकों पर ना भिड़े हों ! लोग यहाँ खासतौर से ग्रुप में इकठ्ठे होकर यह काम करते हैं, फ़िरक़े एक्सपर्ट्स बहुत हैं, कोई किसी से हार माने को तैयार नहीं है, यह बहुत ही अफ़सोस की बात है, आज से तीन चार साल पहले यहाँ सोशल मीडिया पर ऐसी तमाशेबाज़ी बिलकुल नहीं थी !

इसके अलावा भी कई आम मुद्दों पर मज़हब की नेगेटिव इमेज ही निकल कर बाहर आती है !

कुछ ऐसे हैं जो अपने ही म'आशरे की औरतों की इज़्ज़त का जनाज़ा यहाँ निकाल कर खुश होते हैं, कोई साहब बीवियों को रोज़ बिना कहे पाँव दबाने वाली बांदी की हैसियत से पेश करते हैं तो, तो कोई साहब औरतों को चारदीवारी में क़ैद रखें वाला फितना बताते हैं, कोई पढ़ाई लिखाई को गैर ज़रूरी बताता है, तो कोई औरतों को नौकरी करने, पैसा कमाने को हराम क़रार देता है !

यह क्या तमाशा है ? आप एकतरफा इलज़ाम और फैसला कैसे सुना सकते हैं, सिर्फ इसी वजह से कि यहाँ सोशल मीडिया पर मुस्लिम बहन बेटियों का वजूद कम है ? जिस दिन उनका प्रतिशत यहाँ बढ़ गया (जिसे कि काफी लोग शायद पसंद ना करें) उस दिन इस इल्ज़ाम तराशी का माक़ूल जवाब भी मिल जायेगा !

एक ख़ास बात यह कि म'आशरे की बहन बेटियों को लतियाने वाले कभी म'आशरे के बेटों में फैलती बुराईयों पर हमला बिलकुल नहीं करते, जो कि औरतों के मुकाबले कहीं ज़्यादा है, वजह शायद यही है कि खुद भी उसी पुरुष श्रेणी में आते हैं !




अपने समाज की कुरीतियों को सामने रखना, दूर करने के उपायों पर चर्चा कर अच्छी बात है, मगर एहतियात के साथ ! इस मंच पर हर मज़हब के लोग हैं, सैंकड़ों हज़ारों यहाँ एक दूसरे की पोस्ट पढ़ते हैं, और नज़रिये बनाते हैं. हमेशा किसी बात का नकारात्मक पहलू सामने रखते रहेंगे तो उसकी छवि यहाँ दूसरे लोगों में वैसी ही बन जाएगी !

सोशल मीडिया की इस कोलाहल भरी दुनिया में हम सब की पोस्ट, बहस, तक़रार और कमेंट्स से गैर मुस्लिम्स के सामने जो सामूहिक नजरिया निकल कर आता है वो जाने अनजाने कहीं न कहीं इस्लामोफोबिया को ही पोषित करता है, यानी मज़हब की ख़ौफ़ज़दा, कट्टर या नेगेटिव इमेज ही पेश करता है !

कौन किस मस्जिद में जाता है, कैसे नमाज़ पढता है, किस फ़िरक़े का है ? यह ज़रूरी नहीं, ज़रूरी है तालीम पर ज़ोर देना, लोगों को बताया जाए कि मुल्क में तालीम के मामले में आप किस जगह हैं ? नौकरियों में आप किस जगह हैं ? आपकी आधी आबादी यानी मुस्लिम औरतों की शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक स्थिति कितनी बदतर है !

अब यह हम सब पर मुन्हसिर है कि हम अपने मज़हब की कैसी इमेज यहाँ पेश करते हैं, फ़िरक़ों में बँटे हुए, लड़ते झगड़ते, कट्टर, इल्म से महरूम, जिहादी, पिछड़े हुए या फिर तालीम में आगे बढ़ते हुए, मुत्तहिद, समाज को सुधारने की कोशिश करने वाले !!

इसलिए कोशिश यही कीजिये कि जहाँ तक हो सके ऐसी बातों से ऐसी पोस्ट्स से बचा जाए जिससे मज़हब की गलत इमेज निकल कर बाहर आये ! ज़रा सोचिये कि एक होने के बजाय हम रोज़ तिनका तिनका होकर क्यों बिखर रहे हैं ?? आखिर किस दिन एक होंगे ?
पांच उँगलियाँ इकठ्ठी होकर मुठ्ठी में कब तब्दील होंगी ??

शायद ऐसी ही बातों पर किसी शायर ने यह शेर कहा होगा :-

मुत्तहिद हो तो बदल सकते हो निजाम-ए-आलम !
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मुन्तशिर  हो  तो  मरो,  शोर  मचाते  क्यों  हो !! 

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