मंगलवार, 24 मई 2016

आपको हम सबका सलाम के. अरुण कुमार !!


इस फोटो में जिन्हे आप स्कूल में अपने पांवों से ब्लेक बोर्ड पर लिखते हुए देख रहे हैं, उनके नाम है के. अरुण कुमार, 29 वर्षीय अरुण कुमार ने साबित कर दिया है कि विकलांगता पढ़ाई और कॅरियर में ज़रा भी बाधक नहीं हो सकती ! 1991 में हैदराबाद में हुए एक हादसे में उनके दोनों हाथ बिजली के हाई वोल्टेज से झुलस गए थे,लाख प्रयत्न करने के बाद भी उनके दोनों हाथों को बचाया नहीं जा सका !
  
इस घटना के बाद भी अरुण कुमार ने हार नहीं मानी, और अपनी पढ़ाई बिना हाथों के ही जारी रखी, वो पांवों से ही क़लम चलाना, अपने सारे काम करना सीख गए, कड़ी मेहनत और अपने झुझारू जज़्बे से उन्होेन अपने दोनों हाथों के बिना न सिर्फ BA, MA (Economics) किया बल्कि B Ed. की भी परीक्षा उत्तीर्ण की !

 उसके बाद उन्होंने यह साबित कर दिया कि वो न सिर्फ पढ़ सकते हैं, बल्कि पढ़ा भी सकते हैं, क्योंकि उनके शुरू से ही सपना था कि वो शिक्षक बने, और इसके लिए उन्होंने कोशिश प्रारम्भ की और अंत में उन्हें प्रतियोगी परीक्षा पास भी कर ली तथा आरक्षित कोटे से उन्हें शिक्षा सहयोगी के तौर पर नियुक्ति भी मिल गयी ! 

 इस समय अरुण कुमार कट्टा रामपुर, करीमनगर, (तेलंगाना) के एक सरकारी स्कूल में शिक्षा सहयोगी के तौर पर बच्चों को मन से पढ़ते हैं तथा ट्यूशन भी  देते हैं, वो अपना खुद का मोबाइल भी साथ रखते हैं, और पांवों से उसे काम में लेते भी हैं, उनके माता पिता बेहद गरीब हैं, इसलिए कृत्रिम हाथ के लिए धनराशि नहीं जुटा पा रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर अरुण कुमार का कहना है कि मेरी योग्यता को देखते हुए सरकार यदि मुझे स्थाई रोज़गार मुहैया करा दे तो वो खुद ही अपनी कमाई से कृत्रिम हाथ के लिए धनराशि का  भी इंतज़ाम कर सकता है !
  
अब आगे M. Ed और कंप्यूटर शिक्षा की इच्छा रखने वाले अरुण कुमार का कहना है कि मुझे विकलांग होने पर ज़रा भी अफ़सोस नहीं है, मैं शारीरिक विकलांग हूँ, मानसिक विकलांग नहीं !!

 न जाने कितनी सरकारें आईं और चली गयीं किसी सरकार ने इस क़ाबिल और हौंसलामन्द नौजवान को बेहतर रोज़गार देने में ज़रा भी रूचि नहीं दिखाई, मगर फिर भी के. अरुण कुमार हमेशा की तरह उसी जोश से रोज़ स्कूल जाते है, जहाँ उसके शिष्य, उसकी क्लास और उक्स ब्लेक बोर्ड उसका इंतज़ार करते रहते हैं, फिर वो रोज़ की तरह पैर से चाक पकड़कर उठाते है, और बोर्ड पर लिखना शुरू कर देते हैं ! 
  
विकलांगता को मुंह चिढ़ाकर अपनी मंज़िल पाने वाले के. अरुण कुमार के जज़्बे और हौंसले को हम सब का सलाम !!

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