बुधवार, 21 दिसंबर 2011

क्या हम ज़ेहन से अपाहिज (मानसिक पंगु ) हो चुके हैं....?

साल 2011  को देश के इतिहास में याद किया जाएगा. वजह है करप्शन से परेशान और  सरेंडर किये हुए  मुल्क की सोयी जनता को एकदम से झकझोर कर जगा देना....इसमें अन्ना हज़ार का नाम सबसे पहले आता है...और देश के आंदोलनों के इतिहास में लिखा भी जाएगा,.. मगर एक सवाल परेशान कर रहा है...कि क्या मुल्क के लोग इतने सालों  अन्ना का इंतज़ार ही कर रहे थे कि अन्ना आयंगे और हमें जगायेंगे..?

शायद हम लोगों की सोच और मानसिकता पर जंग लग गया है, या फिर " सब चलता है " वाली आदत पड़ चुकी है...या हम   उन कीट पतंगों की तरह हो चुके हैं...जो एक ज़रा से रौशनी किरण यदि कोई दिखा देता है..तो फ़ौरन समूह बनाकर उधर ही लपक जाते हैं, चाहे वो रौशनी किसी गलत हाथों में ही क्यों न हो...! उदाहरण सब के सामने है...अन्ना हजारे का उदाहरण और बाबा रामदेव का उदाहरण सब के सामने है, और कई छोटे मोटे उदाहरण भी हैं...जैसे कोई दलितों को रौशनी की किरण दिखा कर अपनी और लपका लेता हा.....कोई अल्प संख्यकों को रौशनी की झलक दिखा कर दौड़ा लेते हैं.., क्या हमारी बौद्धिक क्षमता, सोच, और निर्णय को गिरवी रख आये हैं..जो हर किसी मसीहा बताने वाले की और अँधा धुंद दौड़ पड़ते हैं...यह तो एक मानसिक और बौद्धिक  गुलामी की तरह है...और यही वजह है की politicians और खुद को मसीहा कहलाने वाले लोग...हमें ठग कर अपना उल्लू सीधा कर के निकल लेते हैं...!

मुझे इस वक़्त रहत इन्दोरी साहब का एक शेर याद आ रहा है..

ये लोग पांव नहीं जेहन से अपाहिज हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है..!!

जबकि हमको कहना यह चाहिए...

ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये
वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है...!!

ज़रा सोचिये दोस्तों~~~~~~~!!
शुक्रिया...धन्यवाद.

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